पहाड़ों में रहना, घूमना इस दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है। जब आप सुबह-सुबह आंखे खोलते हैं और सामने बर्फ से ढंके पहाड़ दिखाई देते हैं इससे खूबसूरत और कुछ भी नहीं लगता है। मैंने 5 हजार रुपए से कम में भी पहाड़ों में एक सप्ताह बिताया। मैं हिमाचल परिवहन की बसों में बैठी, टेड़े-मेढ़े रास्तों पर पैदल चली और भारत-तिब्बत के आखिरी गाँव के लिए हिचहाइकिंग भी की। खतरनाक रास्तों पर ही सबसे खूबसूरत नजारे दिखाई देते हैं। मेरे लिए ये यात्रा बेहद शानदार रही। हिमालय की ताजी हवा में सांस लेना सबसे शानदार क्षण होता है। आप पहाड़ों में कभी खुशी होते हैं तो कभी चिड़चिड़ापन भी आता है। पहाड़ हमें मुश्किलों में भी जीना सिखाता है।
अगस्त के महीने में न्यूज चैनल लगातार बारिश, बाढ़ और लैंड्सलाइड की खबरें चला रहे थे। मैं दो बार अपनी ट्रिप को कैंसिल कर चुकी थी इसलिए इस बार मैंने खुद से कहा कि हाँ, मैं जाऊँगी। मैंने अगस्त के तीसरे सप्ताह में हिम्मत दिखाई और किनौर जाने के लिए हिमाचल परिवहन की बस से निकल पड़ी।
दिल्ली - रामपुर बुशहर - रेकॉन्ग पियो - कल्पा - रोघी
दिल्ली से रामपुर की 15 घंटे की यात्रा थका देने वाली रही। इस यात्रा के बाद मैंने एक हैंडपंप पर ब्रश किया। बस स्टैंड से कुछ खीरे लिए और जल्दी-जल्दी रेकाॅन्ग पियो के लिए निकल पड़ी। एचआरटीसी के साथ मेरा सफर फिर से शुरू हो गया। मेरे लिए ये सफर रोमांच, खुशी और हिचकियों से भरा हुआ था।
रामपुर से हर आधे घंटे में रेकाॅन्ग पियो के लिए बसें जाती हैं। मैं बस स्थानीय लोगों के साथ सफर कर रही थी। बस में 90 के दशक के बाॅलीवुड गाने बज रहे थे जो मेरी यात्रा और भी अच्छा बना रहे थे।
नाको
मैं लगभग 11 बजे रेकॉन्ग पियो पहुँची। यहाँ मैंने सूप पिया और फिर से समधो के लिए बस मैं बैठ गई। बस लगभग साढ़े 12 बजे रेकाॅन्ग पियो से निकली जिसने मुझे मुझे ठंडे रेगिस्तान में एक छोटे-से गाँव के बाहर छोड़ दिया। इस गाँव का नाम था, नाको। एक प्यारे से पुराने कपल ने मेरा स्वागत किया। बौद्ध विवाह, चांदनी रात में सुनसान सड़क पर पैदल चलना, यहाँ के लोग और भोजन, ये सारे अनुभव मैंने पहले कभी नहीं किए थे। इसलिए भी नाको मेरे लिए एक खूबसूरत सफर बन गया था।
नाको में यहाँ रहेंः डेलेक गेस्ट हाउस, 089881 08581
चितकुल
चितकुल भारत-तिब्बत बाॅर्डर के पास हिमालय का छोटा-सा स्वर्ग है। ये बहुत दूर होने के बावजूद आप यहाँ बिना परमिट के यात्रा कर सकते हैं। मैंने इस खूबसूरत जगह पर एक रात और उसके अगले दिन वहीं बिताया। मैंने अपने कैमरे में यहाँ के छोटे बच्चों और स्थानीय भेड़ों को कैद किया। मैंने अपनी पीठ पर रक्सैक लादकर पूरी घाटी को पैदल नापा, जो मुझे बार-बार थका रहा था। हिमालय की ताजी हवा लेने के लिए चितकुल बढ़िया विकल्प है। चितकुल में रहने के लिए यहाँ क्लिक करें।
कल्पा
कल्पा पियो से 7 किमी. की दूरी पर एक सुंदर गाँव है। कल्पा से किन्नौर की खूबसूरत पर्वत श्रंखला दिखाई देती है। मैंने अपनी एक शाम यहाँ बिताई। कल्पा के छोटे-से ढाबे पर थुकपा और मोमोज का स्वाद लिया।
मैं अगली सुबह 8 किमी. दूर इसलिए जाना चाहती थी क्योंकि मुझे रोघी के फेमस सुसाइड प्वाइंट को देखना था लेकिन वहाँ जाने के लिए भी थोड़ी कठिनाई थी। कल्पा से रोघी के बीच एचआरसीटीसी की दो ही बसें चलती हैं। एक बस सुबह 8 बजे और दूसरी साढ़े 9 बजे। मैं पहली बस पकड़ने से चूक गई और मुझे अगली बस का इंतजार करना पड़ा। कल्पा में रहने के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
इसी तरह रोजी से रेकाॅन्ग पियो के लिए आखिरी बस शाम 6 बजे है। मेरे पास सुसाइड प्वाइंट पर बिताने के लिए सिर्फ 10 मिनट थे। मुझे एक शिमला के ड्राइवर मिले, जिन्होंने मुझे इस जगह के बारे में कुछ कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने बताया कि कई टूरिस्ट ने यहाँ से गिरकर अपनी जान दे दी। इस सबके बावजूद मैं चट्टान के छोर पर जाकर खड़ी हो गई। अगर यहाँ से कूदेंगे तो एक पंक्षी की तरह आसमाँ में उड़ने लगेंगे।
नाको - रेकॉन्ग पियो - करछम - सांगला - चितकुल
नाको में दो दिन बिताने के बाद मैं भारत के आखिरी गाँव चितकुल के लिए निकल गई। अगर आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आना-जाना करते हैं तो ये जान लीजिए कि ये बसें समय की बड़ी पाबंद होती हैं। कभी-कभी कुछ वजहों से ये चलती भी नहीं हैं।
मैं सुबह बहुत जल्दी जाग गई और सुबह साढ़े 7 बजे समधो से पियो के लिए बस पकड़ी। अगले 10 मिनट मे पियो पहुँच गई और फिर वहाँ से दूसरी बस पर बैठी जो चंडीगढ़ होते हुए करछम जा रही थी। करछम वो जगह है जहाँ से रास्ते दो तरफ जाते हैं, एक सांगला घाटी की तरफ और दूसरा रास्ता रिकाॅन्ग पियो के लिए। मैंने करछम से सांगला के लिए बस में बैठ गई।
घुमक्कड़ी के रास्ते में रूकावटें ना आएं तो वो यात्रा सफल कैसे होगी। मेरे सफर में भी फिर ऐसा ही हुआ। सांगला जाने वाले रास्ते पर 12 दिनों पहले हुए लैंडस्लाइड की वजह से रोड जाम हो गई थी। सड़क पर कई सारे पत्थर गिर गए थे जिसकी वजह से उस रास्ते पर अब केवल छोटी गाड़ियाँ ही निकाल सकती थीं, हम फंस गए थे। ना हमारे पास कोई गाड़ी थी और ना ही कोई मदद दिखाई दे रही थी। इसके बावजूद हम चलते रहे। काफी देर चलने के बाद आखिर में एक लोकल ने हमारे लिए अपनी गाड़ी रोकी।
सांगला जाने वाली सभी बसें लैंडस्लाइड की वजह से रुक गई थी इसलिए हमें सांगला से चितकुल जाने वाली बस मिलना भी मुश्किल हो गया था। अच्छी बात ये है कि एक आदमी ने मेरी मदद की और मुझे चितकुल की तरफ जा रहे एक ट्रक में सीट मिल गई।
चितकुल- सांगला - जलोरी - रामपुर बुशहर - शिमला - चंडीगढ़ - नई दिल्ली
वापसी की यात्रा आसान नहीं होने वाली थी। मैंने चितकुल से पैदल चलना शुरू किया। मस्त्रंग से बस पकड़ी और वापस से उसी लैंडस्लाइड वाले पॉइंट तक पहुँची। प्लान के मुताबिक हमें उसी रात 11 बजे के लगभग रामपुर पहुँचना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जलोरी के पास वाली सड़क पर एक और जाम था जिसकी वजह से हम रामपुर नहीं पहुँच पाए।
बाहर तेज बारिश हो रही थी और मैंने किसी तरह जलोरी में आराम करने का ठिकाना ढूंढा और खाना खाया। इसके बाद एक बार और सफर शुरू हुआ। जलोरी से रामपुर, रामपुर से शिमला फिर वहाँ से चंडीगढ़। बसें बदलने का ये कारवाँ रात 1 बजे तक चलता रहा। जिसके बाद आखिर में सोमवार की भोर में नई दिल्ली पहुँची। इन सभी जगहों पर मैंने रहने के लिए 200 से 300 रुपए दिए और एक समय के खाने के लिए मैंने 50 से 100 रुपए दिए।
आमतौर पर एचआरटीसी की बसों में महिला यात्रियों के लिए 25% डिस्काउंट होता है लेकिन रक्षाबंधन था इसलिए एचआरटीसी ने महिलाओं के लिए पूरी छूट कर दी थी जिससे मेरी बहुत मदद हुई। जान लेने वाली बात ये है कि नाको और चितकुल में केवल बीएसएनएल का नेटवर्क आता है। रेकोंग पियो में बाकी सभी नेटवर्क बढ़िया काम करते हैं।
अगस्त के महीने में ट्रेवल करने के लिए आपको सतर्क के साथ फुर्तीला होना भी बहुत जरूरी है। क्योंकि पहाड़ों में कभी भी बारिश हो सकती है इसलिए आपको स्थिति के हिसाब से अपने आपको ढाल पाना भी बहुत जरूरी है जाता है। अगर आप एचआरटीसी की बसों से सफर कर रहे हैं तब ये तीनों चीजें और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है जाती हैं। लोकल से बात करिए, आँखें और कानों को खुला रखिए और सबसे खास जगह-जगह पर जरूरी चीजों को लिखते जाइए।
मेरी ये यात्रा एडवेंचर के साथ-साथ चुनौतियों से भरी रही। कहीं पर तेज बारिश मिल जाती थी तो कभी घंटों बिना खाने और गाड़ी के सड़क पर भी रहना पड़ता था। इन दिनों में मैं बीमार भी पड़ी और थकान भी खूब हुई। लेकिन जब आप एक बार इन पहाड़ों की वादियों में होते हैं तब आपको ये सारी मुश्किलें बहुत छोटी लगने लगती हैं। यहाँ तक की जिन चीजें और हालातों से पहले बहुत ज्यादा डर लगता था पहाड़ों में आकर आप उन सभी मुश्किलों को भी जीत लेते हैं। पहाड़ होते ही इतने खूबसूरत हैं। आप एक बार इनकी गोद में पहुँच जाइए आपको सभी चीजें खूबसूरत लगने लगेंगी।
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