महासू देवता,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसे देहरादून जिले के प्राचीन मंदिरों में से एक घोषित करता हैं।

Tripoto
19th May 2024
Photo of महासू देवता,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसे देहरादून जिले के प्राचीन मंदिरों में से एक घोषित करता हैं। by Yadav Vishal
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उत्तराखंड को "देव भूमि" या "देवताओं की भूमि" कहा जाता है क्योंकि यह राज्य अनगिनत प्राचीन मंदिरों, धार्मिक स्थलों और तीर्थयात्राओं का केंद्र है। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता, ऊंचे-ऊंचे पहाड़, बहती नदियाँ और पवित्र झरने इस राज्य को धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाते हैं। हिमालय की गोद में बसे होने के कारण यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ आध्यात्मिक शांति और ध्यान का केंद्र भी है। उत्तराखंड में लोक देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं भी प्रचलित हैं। इनमें सबसे रोचक है लोक देवता महासू की कथा। महासू देवता मंदिर जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने देहरादून जिले के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक घोषित कर रखा है। महासू देवता मंदिर हनोल, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है और यह मंदिर स्थानीय जनता के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

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महासू देवता मंदिर 

महासू देवता मंदिर हनोल, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यह मंदिर मुख्य रूप से बौठा महासू देवता को समर्पित है, जो चार महासू देवताओं में से एक हैं। अन्य तीन देवता बासिक, पवासी, और चालदा महासू हैं। इन देवताओं को भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है। महासू देवता को न्याय का देवता माना जाता है, और यहाँ आने वाले भक्त अपने विवादों का निपटारा करने और न्याय पाने के लिए देवता की शरण में आते हैं। इसके अलावा, यहाँ हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय-चतुर्थी को वार्षिक महोत्सव "जागड़ा" मनाया जाता है, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं

महासू देवता मंदिर का इतिहास

महासू देवता मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन और समृद्ध है। यह मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है और स्थानीय जनश्रुति के अनुसार, इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था। यह मंदिर 9वीं-10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था और नागर शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इतिहास में वर्णित है कि महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्र की जनता को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी, जिसके बाद से इन्हें मुख्य आराध्य देवता के रूप में पूजा जाने लगा।

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मंदिर की वास्तुकला

यह मंदिर 9वीं-10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था और नागर शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की दीवारों पर अद्वितीय चित्रण और अलंकृत छत्रियां इसकी विशेष वास्तुकला को दर्शाती हैं, जो इसे उत्तराखंड के अन्य मंदिरों से अलग और विशिष्ट बनाती हैं। यह मंदिर तीन कक्षों में विभाजित है: मंडप, मुख्य मंडप, और गर्भगृह। गर्भगृह में महासू देवता की मूर्ति स्थापित है और यहां एक दिव्य ज्योत सदैव जलती रहती है । इस मंदिर की बनावट और सजावट में लकड़ी और धातु का व्यापक उपयोग हुआ है, जिससे इसकी भव्यता और सौंदर्य में वृद्धि होती है।

मुख्य तत्व

1.मुख्य संरचना:
- मंदिर तीन कक्षों में विभाजित है: मंडप, मुख्य मंडप, और गर्भगृह।
- मंडप एक आयताकार हॉल है जहां श्रद्धालु बैठते हैं और बाजगी पारंपरिक नौबत बजाते हैं। यहां महिलाएं भी बैठकर दर्शन कर सकती हैं क्योंकि मुख्य मंडप में उनका प्रवेश वर्जित है।

2. मुख्य मंडप:
- मुख्य मंडप एक बड़ा वर्गाकार कमरा है जिसमें चारों महासू देवताओं (बौठा महासू, बासिक महासू, पवासी महासू, चालदा महासू) के छोटे-छोटे पौराणिक मंदिर स्थित हैं।
- यहां पुजारी और अन्य पश्वा (वह लोग जिन पर महासू देवता अवतरित होकर भक्तों की समस्याओं का समाधान देते हैं) बैठते हैं।

3. गर्भगृह:
- गर्भगृह में भगवान शिव के प्रतिरूप महासू देवता की मूर्ति स्थापित है। यहां केवल पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं।
- गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत सदैव जलती रहती है और स्वच्छ जल की एक अविरल धारा बहती रहती है जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।

4. वास्तुशिल्प:
- मंदिर की आंतरिक दीवारों पर अलंकृत चित्रण और सजावट की गई है।
- नागर शैली के छत्र (छत की संरचना) और अलंकृत छतरियां मंदिर की मुख्य विशेषताएं हैं। इनका निर्माण लकड़ी और धातु से किया गया है जो इसे भव्य और आकर्षक बनाते हैं।

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निर्माण सामग्री और शैली

- मंदिर की अधिकांश संरचना लकड़ी से बनी है, जो इसे भूकंप-रोधी बनाती है। लकड़ी की नक्काशी और धातु की सजावट इसे एक अनूठा स्वरूप प्रदान करती हैं।
- नागर शैली की वास्तुकला में बने छत्र और गुंबद मंदिर की छत को अलंकृत और भव्य बनाते हैं।

अन्य विशेषताएं

- मंदिर के परिसर में प्रतिवर्ष विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं, जिसमें जागड़ा महोत्सव प्रमुख है। यह उत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय-चतुर्थी को मनाया जाता है और इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।

महासू देवता मंदिर की वास्तुकला न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतिनिधित्व करती है।

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कैसे पहुंचें?

महासू देवता मंदिर, हनोल, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है और यहाँ पहुँचने के लिए आप विभिन्न तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।

सड़क मार्ग से:हनोल मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। देहरादून से हनोल की दूरी लगभग 190 किलोमीटर है और मसूरी से यह दूरी लगभग 156 किलोमीटर है। आप देहरादून या मसूरी से निजी वाहन, टैक्सी या बस द्वारा हनोल पहुँच सकते हैं। चकराता से हनोल की दूरी लगभग 70 किलोमीटर है और यहां से भी बस या टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग से:निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है, जो हनोल से लगभग 190 किलोमीटर दूर है। देहरादून रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी या बस द्वारा हनोल पहुँच सकते हैं।

हवाई मार्ग से:निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो हनोल से लगभग 210 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस द्वारा हनोल पहुँच सकते हैं।

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