Jayanti Mata Temple मांझी मनूनी और बनेर नदी के इस संगम स्थल से ठीक ऊपर पहाड़ी पर विराजमान मां जयंती के मंदिर में शुक्रवार से पंचभीष्म मेले शुरू हो गए।
पुराना कांगड़ा के समीप पहाड़ की चोटी पर बने माता जयंती के मंदिर के ठीक नीचे तीन नदियों का संगम स्थल है। मांझी, मनूनी और बनेर नदी के इस संगम स्थल से ठीक ऊपर पहाड़ी पर विराजमान मां जयंती के मंदिर में शुक्रवार से पंचभीष्म मेले शुरू हो गए। इन मेलों के दौरान पांच दीये मां के दरबार में पांच दिन तक अखंड जलेंगे। इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्ते लगाकर दीपक जलाया जाता है। हजारों श्रद्धालु मां के मंदिर में शीश नवाते हैं।
कांगड़ा किला के ठीक सामने करीब 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर है। जयंती माता को मां दुर्गा की छठी भुजा का एक रूप माना जाता है। कहा जाता है कि कांगड़ा में माता का यह मंदिर द्वापर युग में निर्मित हुआ था। जयंती माता जहां जीत का प्रतीक है वहीं वह पापनाशिनी भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है। महाभारत के युद्ध के समय युधिष्ठर को मां जयंती ने स्वप्न दिया था कि उनकी इस युद्ध में जीत होगी और यह भी निर्देश दिया था कि पांडव मां चामुंडा का आशीर्वाद लें।
एक अन्य कथा के अनुसार जब इंद्र को राक्षस ने युद्ध में घेर लिया था तो मां जयंती ने मां चामुंडा का रूप धारण करके देवराज इंद्र की सहायता भी की थी। कहा जाता है कि जयंती माता के दर्शन से पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। मारकंड पुराण में भी मां जयंती को पापनाशिनी कहा गया है। लोगों की आस्था व श्रद्धा की प्रतीक जयंती मां गोरखा समुदाय के लोगों की कुलदेवी भी है।
जयंती मां से जुड़ी कई कथाएं हैं, इनमें से एक कथा यह भी बताई जाती है कि एक राजकुमारी मां की भक्त थी। जब राजकुमारी की शादी हुई और उसकी डोली उठने लगी तो कहार उसे उठा नहीं पाए। इसके बाद राजकुमारी ने कहा कि मां ने उसे स्वप्न दिया था कि वह उसे अपने साथ ले जाए। इसके बाद एक पिंडी को मां की पिंडी के साथ स्पर्श करके राजकुमारी अपने साथ ले गई और उसे अपने सुसराल में स्थापित किया। आज यह स्थान चंडीगढ़ में हैं, जहां जयंती माजरी गांव में मां जयंती का मंदिर बना हुआ, जोकि लोगों की आस्था का प्रतीक है।
पांडवों की स्मृति में जयंती मां के मंदिर में पंचभीष्म मेले भी होते हैं। पंचभीष्म मेलों के दौरान इस क्षेत्र का नजारा ही कुछ और होता है। मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं बल्कि दूर दराज के क्षेत्रों से भी हजारों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं। पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले उबड़-खाबड़ रास्ते के साथ सीधी चढ़ाई थी, लेकिन समय के साथ-साथ यहां पर बेहतर रास्ते का निर्माण भी करवाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है। पुराना कांगड़ा से जयंती माता मंदिर की सीढिय़ों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, इसके बाद करीब चार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके मंदिर में पहुंचते हैं।
इतिहास
बताया जाता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत के बाद भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे अनुरोध किया कि वह पांडवों को ज्ञान प्रदान करें। मृत्यु शैय्या पर लेटे पितामह भीष्म सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे पितामह भीष्म ने श्रीकृष्ण के अनुरोध पर पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानी पांच दिन तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिन में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में 'भीष्म पंचक' के नाम से जाना जाएगा। इसके बाद से जयंती माता मंदिर में इस आयोजन का आरंभ हुआ जो निरंतर जारी है।
कैसे पहुंचे जयंती माता मंदिर
जयंती माता मंदिर कांगड़ा बस अड्डा से मात्र चार किलोमीटर, गगल स्थित कांगड़ा एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर तथा कांगड़ा रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
-कांगड़ा बस अड्डा से पुराना कांगड़ा : चार किलोमीटर (बस सुविधा)
-पुराना कांगड़ा ने नंदरूल मार्ग पर स्थित जयंती माता मंदिर की पैदल चढ़ाई : डेढ़ किलोमीटर।
-चढ़ाई में दौरान लगभग 100 सीढिय़ां भी चढऩी पड़ती हैं।
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