रहस्य। यह वो चीज है जो हम इंसानों को अपनी ओर किसी चुम्बक की तरह आकर्षित करती है।
रहस्यों को सुलझाने से मिलने वाले सुकून के जुनून में ही हम इंसानों ने न जाने कितनी खोजें कर डाली और कितने ही अविष्कार कर दिए।
लेकिन कई चीजों के अस्तित्व के पीछे की असली कहानी आज तक रहस्य बनी हुई है।
चांद से लेकर मंगल तक से जुड़ी जानकारियों का ज़खीरा रखने वाले हमारे वैज्ञानिकों के पास धरती से जुड़ी अनेक जगहों के वजूद को लेकर कोई ठोस जवाब नहीं है।
और आज हम आपको ऐसी ही एक बेहद रहस्यमयी जगह पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में एक लोनार क्रेटर झील नाम की एक ऐसी ही रहस्यमयी जगह है, जिसकी उत्पत्ति को लेकर वैज्ञानिकों तक की राय बदलते समय के साथ ही बदल जाती है।
अब तक की सबसे ताजा खोजबीन के आधार पर इसका जन्म आज से करीब 52,000 साल पहले का बताया जाता है।
हालांकि, कुछ रिसर्च पेपर में अब इसके करीब 5-6 लाख वर्ष पुराना होने तक का दावा किया जा रहा है।
बाकी विवाद सिर्फ इसके अस्तित्व में आने की तारीख को लेकर ही नहीं है। इस झील के वजूद में आने की वजह भी पहले कुछ बताई गई और अब कुछ और मानी जाती है।
पहले वैज्ञानिक इस बात पर सहमत थे कि लोनार झील ज्वालामुखीय उत्पत्ति है। और अब वैज्ञानिक बिरादरी की ही आम राय यह है कि इसका निर्माण किसी उल्कापिंड के टकराने के कारण हुआ।
लोनार झील की उत्पत्ति को लेकर साइंस से इतर हिंदू धर्म ग्रंथों का भी अपना एक अलग दावा है। धार्मिक पुस्तकों की मानें तो लोनार झील का नाम इस इलाके में रहने वाले लवणासुर नामक एक राक्षस के नाम पर पड़ा। लोक प्रचलित कहानी के अनुसार लवणासुर के आतंक से लोगों को मुक्त करने के लिए इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने उसे मारकर नरक भेज दिया था। पृथ्वी की सतह से लवणासुर को नरक के द्वार भेजने के लिए भगवान विष्णु द्वारा अत्याधिक शक्ति का इस्तेमाल किया गया। इस वजह से उस स्थान पर एक बहुत बड़ा गड्ढा तैयार हो गया। इस कहानी को और बल मिलने का एक कारण यह भी है कि उस इलाके में यह एक मात्र ऐसा जल स्रोत है जिसका पानी लवणयुक्त है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अंदाजन 10 लाख टन वजनी एक उल्कापिंड जब धरती की सतह से करीब 90 हजार किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से टकराया, तब लोनार झील का निर्माण हुआ। टक्कर इतनी ज्यादा खतरनाक थी कि आसपास के 10 किमी तक के क्षेत्र में धूल का गुब्बार छा गया। इस टक्कर से 18,000 डिग्री सेल्सियस गर्मी पैदा हुई और इसकी गरमाहट से सारा उल्कापिंड जलकर खाक हो गया। इसलिए आपको झील के आसपास उल्कापिंड का कोई अवशेष नजर नहीं आता है। उल्कापिंड और धरती के बीच हुई टक्कर से जमीन में 150 मीटर गहरा एक गोल गड्ढा बन गया था। जिसकी पहचान आज लोनार झील के नाम से की जाती है। वर्तमान में लोनार झील बेसाल्ट चट्टान से बनी दुनिया की सबसे युवा और अच्छे तरीके से संरक्षित क्रेटर झील है। इस झील का औसत व्यास करीब 1.2 किमी है और जिस गड्ढे में यह झील बनी है उसका औसत व्यास करीब 1.8 किमी है।
लोनार झील अपने अस्तित्व से ही रहस्यमयी बनी हुई हैं। इसलिए कभी अचानक सूख जाने की वजह से चर्चा में आ जाती है। तो कभी अचानक से पानी के रंग बदल जाने की वजह से सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। अब अगर आप भी रहस्यों से भरे लोनार झील को देखने का रोमांच उठाना चाहते हैं, तो फिर आपको महाराष्ट्र के बुलढाणा स्थित लोनार टाउन आना होगा। यहां ट्रेन से आने वाले पर्यटकों को लोनार झील से 90 किमी दूर स्थित सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जालना उतरना होता है। यदि आप भारत के किसी कोने से हवाई मार्ग के जरिए लोनार झील तक आने की सोच रहे हैं, तो फिर आपको 150 किमी की दूरी पर स्थित सबसे नजदीकी हवाई अड्डे संभाजीनगर/औरंगाबाद तक की उड़ान भरनी होगी। हवाई अड्डे से आप आसानी से सड़क मार्ग के जरिए लोनार लेक के मुहाने तक पहुंच जाएंगे। वैसे अगर आप महाराष्ट्र के ही किसी इलाके से आ रहे हैं, तो फिर अपने निजी वाहन या फिर लोनार झील के लिए नियमित रूप से चलने वाली सरकारी, गैर-सरकारी बसों के जरिए भी अपनी मंजिल तक पहुंचने का सफर तय कर सकते हैं।
लोनार झील घूमने आने से पहले यहां ठहरने से जुड़े किसी मसले पर आपको थोड़ी भी चिंता नहीं करनी है। लोनार झील के आपसाप आपको आपकी सुविधा और सहूलियत के हिसाब से ठहरने के बहुतेरे विकल्प मिल जाएंगे। वैसे तो आप साल के किसी भी मौसम में लोनार झील घूम सकते हैं। लेकिन गर्मियों के दिनों में यहां तापमान इतना ज्यादा होता है आपको लू लगने का खतरा होता है और तेज बारिश में परिसर इतना ज्यादा फिसलन भरा हो जाता है कि सुरक्षित ढंग से चलना भी दूभर हो जाता है। इसलिए लोनार झील को घूमने के लिए आप सितंबर से फरवरी के दौरान का प्लान बनाए तो सही होगा। क्योंकि इन दिनों में मौसम के सुहावना होने से आप लोनार झील के साथ-साथ झील के आसपास की प्राकृतिक खूबसूरती को भी एन्जॉय कर सकते हैं। लोनार झील घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए यह स्थान सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। आप बगैर किसी एंट्री फीस के दिन भर लोनार झील का कोना-कोना घूम कर उस जगह की वैज्ञानिक और पौराणिक इन दोनों वाइब को महसूस कर सकते हैं।
लोनार झील को घूमने के दौरान आपको इसमें स्थित पानी को लेकर भी एक रहस्यमयी जानकारी हाथ लगेगी। दरअसल, झील में दो अलग-अलग जल क्षेत्र हैं जो एक दूसरे के साथ मिश्रित नहीं होते हैं। झील का बाहरी क्षेत्र तटस्थ क्षेत्र है जिसका पीएच स्तर 7 है। झील का आंतरिक क्षेत्र क्षारीय भाग है जिसका पीएच स्तर 11 है। वैसे लोनार झील से करीब 700 मीटर की दूरी पर एक छोटा लोनार झील भी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उल्कापिंड के टुकड़े से बना होगा। इसका नाम अंबर झील है। इन झील के पास ही हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति को जिस चट्टान से बनाया गया है, उसे अत्याधिक चुम्बकीय माना जाता है। वैसे लोनार झील के अलावा इसके आसपास देखने लायक और भी ढेर सारी जगहें हैं। लोनार झील परिसर के आसपास में ही आप गोमुख मंदिर, दैत्यसुधन मंदिर, श्री गजानन महाराज संस्थान, आनंद सागर, कमलजा देवी मंदिर, बोथा वन जैसी जगहें भी घूम सकते हैं।
क्या आपने हाल में कोई की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें