आजकल जब हम आये दिन ऐसी बुरी घटनाओं के बारे में सुनते हैं जिस हर बात से महसूस होता है कि इससे बुरा तो और क्या ही होगा इस कलयुग में ! और यही सोचते हुए ख्याल तो हम सभी के मन में आता ही है कि काश सतयुग वापस आ जाये या फिर ये की राम राज़ की वापसी हो जाये ! अब ऐसा कब होगा और होगा भी या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन क्या आपको पता है की उत्तरप्रदेश में बाकी कई धार्मिक और पौराणिक स्थलों के अलावा सनातन धर्म का सबसे प्राचीनतम बताया जाने वाला तीर्थ स्थल भी है।
जी हाँ लखनऊ से सिर्फ 80 किलोमीटर दूर सबसे पुराने युग, सतयुग का तीर्थ स्थल आज भी मौजूद है जो धार्मिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण बताया जाता है कि इस पवित्र स्थान की यात्रा सतयुग की यात्रा के समान है। तो चलिए बताते हैं आपको इसके बारे में पूरी जानकारी...
नैमिषारण्य तीर्थ
लखनऊ के बेहद पास गोमती नदी के तट पर नैमिषारण्य तीर्थ स्थित है जिसे इस धरती पर मौजूद सबसे प्राचीन तीर्थ स्थल बताया जाता है। यह स्थान कितना पवित्र है इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस स्थान का इतिहास भगवान विष्णु , भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव और माता सती से भी जुड़ा हुआ है। यह वही स्थान है जहाँ ऋषि वेद व्यास ने 88000 ऋषियों को वेदों, शास्त्रों और पुराणों को सुनाया था। उत्तरप्रदेश में लखनऊ के पास सीतापुर जनपद में स्थित यह सबसे पवित्र तीर्थ स्थान जिसे नैमिषारण्य के साथ ही अन्य नामों जैसे नीमसार , नैमिष से भी जाना जाता है। साथ ही आपको बता दें की सतयुग काल से ही कई पौराणिक कथाएं इस तीर्थ स्थान से जुड़ी हुई हैं जिनके बारे में संक्षिप्त में हम इस लेख में बताने की कोशिश करेंगे।
नैमिषारण्य तीर्थ से जुडी मान्यताएं
सबसे पहले आपको बताते हैं यहाँ से जुड़ी एक रोचक मान्यता के बारे में जिसके अनुसार महाभारत युद्ध के बाद आने वाले कलियुग से बड़े चिंतित थे और इसीलिए वे सभी इक्कट्ठे ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे किसी ऐसे स्थान को सुझाने के लिए कहा जो स्थान कलयुग के प्रभावों से मुक्त हो। यह सुनकर ब्रह्मा जी ने एक चक्र निकाला और उसे धरती की ओर घुमाते हुए ऋषियों से कहा कि यह चक्र धरती पर जहाँ भी रुक जायेगा वही स्थान सदैव कलयुग के प्रभावों से मुक्त रहेगा। आख़िरकार वो चक्र नैमिष नामक इस वन क्षेत्र में आकर रुका और तभी से ऋषियों के लिए यह स्थान सबसे पवित्र तपोभूमि बन गया। बताया जाता है कि इस स्थान का उल्लेख महाभारत और रामायण समेत हर ग्रंथ में मिल जाता है।
इसके अलावा ऐसा बताया जाता है कि उत्तर रामायण में किये गए उल्लेख के अनुसार भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ भी इसी स्थान पर पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि से लव-कुश का मिलन भी इसी स्थान पर हुआ था।
इसके अलावा भी आपको बता दें कि यहीं पर ललिता देवी मंदिर शक्तिपीठ मौजूद है जहाँ माता सती का हृदय गिरा था। आज भी यहाँ माता के इस शक्तिपीठ के दर्शनों के बिना नैमिषारण्य की यात्रा अधूरी ही मानी जाती है।
नैमिषारण्य तीर्थ के प्रमुख आकर्षण केंद्र
चक्रतीर्थ
भगवान ब्रह्मा जी ने जो चक्र फेंका था वो जहाँ आकर रुका उस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है और इसे चक्रतीर्थ के नाम से जाना जाता है। यहाँ आपको एक चक्र रूप में बने कुंड में पवित्र जल भरा हुआ दिखाई देता है और साथ ही इसके बाहर भी पवित्र कुंड बना हुआ है जहाँ लोग पवित्र स्नान करते हैं। इसी चक्रतीर्थ के चारों ओर काफी सारे मंदिर भी बने हुए हैं जैसे गोकर्ण नाथ मंदिर, भूतेश्वर नाथ मंदिर, चक्र नारायण मंदिर आदि।
व्यास गद्दी
यहाँ करीब 5000 वर्षों पुराना बताया जाने वाला पवित्र वट वृक्ष भी है जिसके लिए बताया जाता है की इसी वृक्ष के नीचे बैठकर ऋषि वेदव्यास जी ने उन सभी शास्त्रों को सुनाया था जिन्हें हम वेद, पुराण के नामों से जानते हैं। यहाँ वेद व्यास जी को समर्पित एक मंदिर भी है। यहाँ जाने पर आप व्यास गद्दी के दर्शन करना बिलकुल न भूलें।
ललिता देवी मंदिर
माता सती के 51 या 108 शक्ति पीठों के बारे में कौन नहीं जानता। उन्हीं में से एक शक्तिपीठ जहाँ माता के हृदय स्वरुप के दर्शन आपको होते हैं वो है ललिता देवी मंदिर जो की नैमिषारण्य में ही स्थित है।
दधीचि कुंड
यहाँ एक विशाल तालाब भी स्थित है जिसे दधीचि कुंड के नाम से जाना से जाना जाता है। यहाँ एक मंदिर ऋषि दधीचि को समर्पित है और उसके अलावा भी काफी सारे मंदिर इस कुंड के चारों ओर बने हुए हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि इस पवित्र कुंड में सभी पवित्र नदियों का जल मिला हुआ है जो इसे बेहद पवित्र कुंड बनाता है।
मनु सतरूपा मंदिर
ऐसा बताया जाता है की महर्षि मनु और सतरूपा जिनकों ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि के सृजन के लिए चुना था उन्होंने यहीं पर 23000 वर्षों तक तपस्या की थी।
इसके अलावा भी यहाँ अनेकों पवित्र धार्मिक स्थान हैं जिनको आपको नैमिषारण्य की यात्रा में जरूर शामिल करना चाहिए जैसे कि शेष मंदिर, क्षेमकाया, मंदिर, हनुमान गढ़़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट आदि।
नैमिषारण्य कैसे पहुंचे?
यह स्थान हिन्दू धर्म में एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान है इसीलिए देश में कहीं से भी आप यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं।
हवाई मार्ग से
यहाँ पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ में स्थित है जो की देश के साथ विदेशों के भी सभी बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है। लखनऊ पहुंचकर आप करीब 90 किलोमीटर दूर नैमिषारण्य पहुँचने के लिए बस, टैक्सी आदि ले सकते हैं।
सड़क मार्ग से
सड़क मार्ग से आप देश के किसी भी बड़े शहर से आसानी से नैमिषारण्य पहुँच सकते हैं। अपने वाहन के साथ आप आसानी से सीधे यहाँ पहुँच सकते हैं और अगर आप सार्वजानिक वाहनों से आना चाहते हैं तो आप पहले सीतापुर या लखनऊ पहुंचकर वाहन से आसानी से किसी भी बस या फिर टैक्सी वगैरह से नैमिषारण्य तीर्थ पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग से
नैमिषारण्य में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन अन्य बड़े शहरों से यहाँ तक जुड़ी ट्रेन इतनी आसानी से शायद न मिले तो उसके लिए आप कानपुर और बालामऊ आ सकते हैं जहाँ से आपको काफी सारी पैसेंजर ट्रेनें भी नीमसार के लिए मिल जाएँगी।
आपको बता दें कि इस पवित्र तीर्थ स्थान के लिए कहा जाता है कि इसकी यात्रा के बिना चार धामों कि यात्रा भी अधूरी ही रहती है तो हम सभी को इस स्थान कि यात्रा जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करनी चाहिए।
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