लखनऊ-झांसी-महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग,ओमकारेश्वर,भोपाल, जबलपुर,मैहर देवी,वाराणसी यात्रा सड़क मार्ग

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Photo of लखनऊ-झांसी-महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग,ओमकारेश्वर,भोपाल, जबलपुर,मैहर देवी,वाराणसी यात्रा सड़क मार्ग by Pratik Chandra Shukla

लखनऊ-झांसी-उज्जैन (महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग), ओमकारेश्वर, भोपाल, जबलपुर, मैहर देवी, वाराणसी यात्रा सड़क मार्ग द्वारा - समयावधि 04 दिन 05 रात माह सितम्बर/अक्टूबर 2022

हैलो दोस्तो, मैं प्रतीक आज आपको लखनऊ से झांसी, उज्जैन, ओमकारेश्वर, भोपाल, जबलपुर, मैहर देवी, वाराणसी की अपनी सड़क यात्रा का विवरण बताने जा रहा हूँ । इस यात्रा को हमने कुल 05 रात 04 दिन में पूरा किया था । माह सितम्बर एवं अक्टूबर 2022 में यह यात्रा मैनें अपने परिवार के साथ किया था । वैसे तो मैं ज्यादे रात में परिवार के साथ ट्रैवेल करना नहीं पसन्द करता हूँ क्योकि मेरी 01 छोटी बेटी भी इस यात्रा में साथ में रहती है । किन्तु समय कम होने के कारण मैं इस बार रात में भी काफी यात्रा किया था । इस लेख मैं आपको प्रतिदिन की यात्रा के बारे में मैं विस्तार पूर्वक बताऊंगा । जिसमें रोड कन्डिशन, दार्शनिक स्थल, यात्रा में लगने वाले समय एवं सड़क मार्गों का नाम इत्यादि । तो दोस्तों, प्रारम्भ करता हूँ मैं अपने पहले दिन या फिर कहे पहली रात की यात्रा से-

प्रथम रात- ऑफिस से घर आने में लगभग 07 बजे सायं का समय प्रतिदिन हो ही जाता है । उस दिन भी मैं 07 बजे सायं तक घर पहुंचा । पत्नी से पहले मैं डिस्कस किया था कि इस बार आपके जन्मदिन पर या नैनीताल अथवा उज्जैन दर्शन करने जाना है, बैग पैक रखें । चूंकि अन्तिम समय तक यह बिल्कुल भी कन्फर्म नहीं था कि हम लोग कहां जायेगें । घर आने के बाद मैं फिर से पत्नी से पूछा कि आपने क्या तय किया तो जवाब उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का सुनकर मैं बहुत खुश हुआ । मैं भोलेनाथ के समस्त ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना चाहता हूँ और अब तक अपने माता-पिता के साथ 08 ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर भी चूका हूँ । पत्नी जो अभी कभी उज्जैन नहीं गयी थी तो मैं उन्हे उनके जन्मदिवस पर वहीं दर्शन भी कराना चाहता था । अब जैसा कि मुझे आफिस से आने में ही 07 बजे का समय हो चुका था । जल्दी जल्दी तैयार होकर लगभग 07.45 PM पर हम लोग अपने HYUNDAI VENUE कार से SELF DRIVE करते हुये झांसी के लिये निकल गये । लखनऊ से कानपुर जालौन के रास्ते झांसी जाना था । चुंकि शाम के समय में लखनऊ से कानपुर के लिये काफी ट्रैफिक होती है इस वजह से कानपुर ही मैं लगभग 9.30 PM पर पहुंचा । ड्राईव करते समय मैं ज्यादे FOOD लेना पसन्द भी नहीं करता हूँ इस वजह से कानपुर में गोलगप्पे की दुकान खोजी गयी और गोलगप्पे खाकर एवं कुछ स्नैक्स व पानी की बोतल लेकर मैं लगभग 10.00 PM पर जालौन रुट से झांसी के लिये निकल गया । कानपुर से झांसी तक का रास्ता बहुत ही अच्छा रहा । ना थकावट ना समय का पता, आराम से हम लोग 12.30 के करीब झांसी पहुच गये । रात्रि में डिनर करके जल्द से जल्द होटल लेकर हम लोग आराम किये ।

प्रथम दिन “आज होंगे बाबा के दर्शन” अब आज के दिन झांसी से लगभग 500 किमी की दूरी भी तय करनी थी तथा हम लोगो को दर्शन भी 30 सितम्बर को ही करना था इस वजह से सुबह जल्दी जगकर हम लोग तैयार हो चुके थे । झांसी शहर मैं पहली बार आया था । मुझे ये शहर साफ सफाई के मामले में बहुत अच्छा लगा । ऐतिहासिक तो झांसी शहर है ही । जब झांसी आ ही गये थे तो क्यों ना किला भी घुम लिया जाये । हम लोग बिना देर किये झांसी किला पहुंचे । यह किला झांसी के सबसे उचाई पर स्थित प्रतीत हुआ । यहाँ हम लोगो ने जल्दी जल्दी में कुछ फोटोग्राफ्स लिये और आगे निकलने से पूर्व यही पास में सिविल लाईन्स एरिया में कुछ ब्रेकफास्ट किया गया । इसके बाद मैं उज्जैन बाबा महाकाल की नगरी के लिये लगभग 11.00 AM पर निकल चुका था । रास्ते की कन्डिशन ओवरआल ठीक ठाक ही है । कहीं कहीं बीच-बीच में अचानक से गढ्ढे दिख रहे थे, रास्ता फिर भी काफी खाली होने की वजह से चलाने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी । यह रोड भी लखनऊ से झांसी के लिये 04 लेन की तरह ही 04 लेन का ही है । रास्ते में शिवपुरी, सारंगपुर, मक्सी के रास्ते हम लोग लगभग 05 बजे उज्जैन नगरी में पहुच चुके थे । जैसा की मैं पहले भी उज्जैन बाबा महाकाल के दर्शन के लिये आ चुका था तो मुझे कहाँ रुकना था ये पहले से मैं जानता था । बिना देर किये मैं होटल जाकर वहाँ से वीआईपी दर्शन की व्यवस्था के बारे में जानकारी किया । पता चला कि 1500 रु0 में दो लोगो को गर्भगृह में दर्शन कराया जाता है । यह व्यवस्था मुझे तो काफी अच्छी लगी । क्योंकि इतनी दूर से मैं आज के दिन ही दर्शन करने के लिये आया था और यदि लम्बी लाईन के कारण प्रभु के दर्शन नहीं हो पाते तो मैं काफी उदास होता । आज मैं अपने पत्नी को यही उपहार भी देना चाहता था जो उनकी भी बहुत समय से इच्छा थी । हम लोग होटल से रेडी होकर मन्दिर द्वार पहुंचे जहाँ से टोकन लेकर आगे बढ़े । पता चला कि गर्भगृह दर्शन हेतु पुरुष सिर्फ धोती एवं बनियान एवं महिला साड़ी एवं ब्लाऊज में ही जा सकती है । इसका कोई अलग से चार्ज नहीं देना होता है । अब जब मन्दिर पहुंच ही चुका था तो मुझे भरोसा था कि दर्शन तो हो ही जायेगा । हम लोग थोड़ा रिलैक्स होकर कपड़े चेन्ज करके बाबा के दरबार में पहुंचे । क्या अद्भुत छटा महिमा रुप निराला है बाबा महाकाल का । मन में जो शान्ति मिलती है उसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता । आप कभी किसी भी ज्योतिर्लिंग स्थित मन्दिर परिसर में बैठ कर देखें, मन बिल्कुल शान्त , ना कोई सवाल, ना किसी जवाब की आवश्यकता । कुछ ऐसी ही स्थिती में मैं भी था उस समय । अन्दर गर्भगृह में मैं मेरी पत्नी व मेरी बेटी लगभग 10 मिनट रहें, पूजा पाठ अर्चना करते हुये हम लोग बाहर आयें एवं मन्दिर परिसर में काफी देर तक बैठे रहें । शरीर की सारी थकावट दूर हो चुकी थी । मन बिल्कुल शान्त । अरे भाई आप जिस कार्य से इतना भागमभाग में आये वह काम जो हो गया तो मन तो प्रसन्न होना ही था । वहां से मन्दिर परिसर में स्थित समस्त मन्दिर का दर्शन करने के पश्चात हम लोग ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध कराये गये वस्त्र को बदलकर पूर्व वस्त्रों को धारण कर बाहर आकर बड़ा गणेश मन्दिर तथा हरसिद्धी माता मन्दिर में दर्शन कियें । जब दर्शन पूजन से मैं फ्री हो गया तो आगे अब पत्नी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में केक काटने के लिये शहर की तरफ निकला । शहर की ज्यादे जानकारी उपलब्ध नहीं होने से मैं कुछ लोगो से पूछता हुआ स्टेशन की तरफ बढ़ा, जिस दूकान से मैं केक लिया जब उसे पैसे देने के लिये मोबाईल खोजा तो पता चला की मेरी मोबाईल मेरे पास नहीं है । मैं समझ गया कि जहाँ कपड़े बदले गये थे मोबाईल वहीं होगा । वह स्थान ऐसा था जहाँ सब लोगो की एन्ट्री नहीं होती है । जो वीआईपी दर्शन के लिये जाते हैं उन्ही की एन्ट्री होती है । मुझे यकीन था की मोबाईल तो मिल ही जायेगा । मैने तुरन्त एन्ड्राईड डिवाईस मैनेजर से मोबाईल का लोकेशन देखा, मन्दिर परिसर का ही लोकेशन प्राप्त होने पर मैं फिर से जहाँ वस्त्र बदले गये थे वहाँ आकर जानकारी की । पता चला कि मोबाईल कन्ट्रोल रुम में भेजा जा चुका है । मैं वहा पहुंचकर अपनी पहचान व मोबाईल के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध कराते हुये अपना मोबाईल प्राप्त किया । अब तो और भी देर हो चुकी थी । हम लोग जल्दी से केक लेकर होटल जाकर केक काटते हुये बर्थडे पार्टी सेलिब्रेट की गयी और रात में होटल जाकर आराम किया गया ।

दूसरा दिन- अब जब बाबा महाकाल के दर्शन हो ही चुके थे तो मैं उज्जैन नगरी में स्थित कालभैरव मन्दिर दर्शन एवं रामघाट दर्शन करने के पश्चात जल्द से जल्द ओमकारेश्वर के लिये निकलना चाहता था । आज की यात्रा भी काफी दौड़भाग वाली होने वाली थी इसका मुझे अन्दाजा था । सुबह सुबह होटल से रामघाट आया, जिसकी दूरी ज्यादे नहीं थी, पैदल ही जाकर वहां से वापस आ गये । फिर वहाँ से गुगल मैप की मदद से कालभैरव मन्दिर दर्शन के लिये आया । जब मैं वर्ष 2014 में यहाँ आया था और वर्ष 2022 में आया हूँ तो लगभग सारी चिजे बदल चुकें हैं । दर्शन व्यवस्था, पार्किंग व्यवस्था, दर्शनार्थियों की संख्या आदि । मैं दर्शन करके लगभग 12 बजे तक फ्री हो चुका था और ब्रेकफास्ट लेकर इन्दौर के रास्ते ओमकारेश्वर महादेव के दर्शन के लिये प्रस्थान किया । इस यात्रा में मुझे याद है कि मैं किसी भी दिन सुबह लन्च नहीं किया हूँ । लम्बी रनिंग व दौड़ भाग के कारण यह नसीब नहीं होता था, इसी वजह से मैं कार में स्नैक्स व पानी की बोतल हमेशा रखे रहता था । उज्जैन से ओमकारेश्वर की दूरी तो ज्यादे नहीं है, दूरी लगभग 140 किमी है किन्दु इन्दौर से मोर्ताक्का की रोड कन्डिशन अच्छी न होने व पहाड़ी मार्ग होने के कारण यात्रा में समय लगता है । लगभग 03 बजे हम लोग ओमकारेश्वर पहुंच कर वहाँ से नाव द्वारा नदी पार कर दर्शन के लिये गये । ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन हेतु या तो पैदल पुल के माध्यम अथवा ना द्वारा ही जाया जाता है । यहाँ दर्शन हेतु काफी दर्शनार्थी पूर्व से लाईन में लगे थे फिर भी लगभग 01 घन्टे में ओमकारेश्वर महादेव का दर्शन हम लोगो को भी मिल गया । समय अब हम लोगो के पास काफी था, शाम होने को करीब थी नदी पार करके हम लोग ममलेश्वर महादेव के दर्शन करके लगभग 06.00 PM तक फ्री हो गये थे । यहाँ अब शाम हो जाने के कारण फिर से थोड़ा स्नैक्स लेकर अब भोपाल जाने की प्लानिंग थी । ओमकारेश्वर से भोपाल का एक रास्ता गुगल मैप पर इन्दौर के रास्ते दिखा रहा था और एक रास्ता धसद, कन्नौड होते हुवे दिखा रहा था । चुंकि इन्दौर के रास्ते से ही मैं आया था तो ये रास्ता काफी ज्यादे थकावट वाला था इस वजह से मैं इस रास्ते से नहीं जाना चाहता था । अब मैं वहाँ टैक्सी ड्राइवर जो स्टैन्ड में गाड़ी लगाये हुवे थे से रास्ते की जानकारी किया तो उनके द्वारा बताया गया कि इन्दौर वाला रास्ता खराब तो है और कन्नौड का रास्ता अच्छा है लेकिन रात हो जाने से इन्दौर के रास्ते जाना ही ज्यादे ठीक रहेगा । मैं भी कहां मानने वाला था । पत्नी पूछती रही किस रास्ते से चलना है, मैं धसद के रास्ते पर पहुंचकर बताया कि इन्दौर के रास्ते नहीं जाना है । इस रास्ते में मैं गुगल मैप सेटेलाईट व्यू से देखा तो पता चला कि जंगल तो है और रास्ता सूनसान भी है । मैं बिना कहीं रुके भोपाल इन्दौर हाईवे पर यह रोड जहाँ मिलता है वहाँ पहुंचना चाहता था । हम लोग ओमकारेश्वर से निकल चूके थे । रास्ता बिल्कुल सुनसान था । काफी देर देर पर एकाक गाड़ी सामने से आती दिख जा रही थी । मेरे गाड़ी की स्पीड की उस रास्ते पर अच्छी ही रही होगी । इस रास्ते पर एक जगह हैं जिसका नाम है नर्मदा नगर, यहाँ नर्मदा नदी पर एक पुल बना हुआ है । जिसपर साईड से डैम भी है । मैं वहाँ का मनमोहक दृश्य देखकर ना चाहते हुवे भी रुक ही गया । रात्रि के समय में यह दृश्य और भी मनमोहक लग रहा था । बिल्कुल जंगल के मध्य । बांध के पानी के फुहारे तक तेज हवा के कारण महसुस हो रहे थे । कुछ फोटोग्राफ्स इस जगह की ली गयी और हम लोग आगे बढ़ गये । जब कन्नौड लगभग 09 बजे पहुंचे तो वहाँ रास्ते में मन्दिर पर कार्यक्रम व सायं आरती होने के कारण रास्ता रोका गया था । कन्नौड़ से आगे के रास्ते घाट वाले गुगल मैप पर मुझे दिख रहे थे । पास में ही कुछ पुलिसकर्मी भी खड़े थे जिनसे मैं उस रास्ते के सम्बन्ध में पूछा तो बताये की किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है । रास्ता अच्छा है । किन्तु जानवर का भय हो सकता है तो आप बिना रुके उस जगह से जल्दी निकल जायें । मैं वहाँ से निकलकर वास्तव में थोड़ा तेज गाड़ी चलाया । रास्ता काफी कर्वी था किन्तु कहाँ मैं रुकने वाला था । मैं समय से आष्टा पहुंच चुका था । जहाँ से भोपाल के लिये 04 लेन मार्ग मिल गया । अब आष्टा से भोपाल पहुंचने से पहले ही मैं डिनर करना चाहता था । क्योंकि भोपाल पहुंचने में हम लोगो को आसानी से 12 बजे का समय हो जाता । भूख भी लगी थी और यह शंका भी थी कि कहीं कुछ नहीं मिला तो । एक ढाबे पर गाड़ी रोककर हम लोग वहाँ डिनर किये औऱ मैं थोड़ा आराम भी किया । लगभग 12.30 बजे हमलोग भोपाल पहुंच चुके था और होटल बुककर हम लोग होटल आ गये । जहाँ आराम किया गया ।

तीसरा दिन- भोपाल, सोचो की झीलों का शहर हो ------ भोपाल शहर की एक अलग ही छटा है । काफी साफ सुथरा एवं व्यवस्थित शहर, यहाँ एक चिज तो अत्यन्त ही अच्छी लगी की रोडवेज सीटी बसों व एम्बुलेन्स के लिये एक अलग ही लेन है, जिसमें किसी अन्य वाहन की एन्ट्री बैन है । किसी भी दशा में एम्बुलेन्स को जाम में नहीं फसना होगा । सिटी बस से लोग जल्दी अपने गन्तव्य को पहुंच सकते हैं । मैं भी अपनी VENUE कार लेकर शहर दर्शन को निकल गया । गुगल बाबा से जानकारी प्राप्त करते हुये पहुंच चुके थे अपर लेक के किनारे । पहुंचकर मन में बस यही हो रहा था कि अब रुक ही जायें यही । काफी देर वहीं रहा, बोटिंग करी, मैगी खाये, चाय पिये, घुमे इन्ज्वाय किये । वहाँ से बगल में ही एनिमल पार्क है । जिसमें आप अपनी गाड़ी से भी जा सकते हैं । मेरी गाड़ी में तो सनरुफ भी है । आज पहली बार सनरुफ का फायदा मिलने वाला था, लेकिन मुझे नहीं मेरे धर्मपत्नी जी को । बस डीएसएलआर लेकर निकल पड़ी फोटो खिचनें । 03 से 04 घन्टे हम लोग उस स्थान पर रहें । मैं और ज्यादे कहीं जाना भी नहीं चाहता था । दर्शन करने निकला था जो कि पूर्ण हो चुका था । अब बस रास्ते में पड़ने वाले स्थानों को एक्सप्लोर करते हुये घर तक जाना था । वहाँ से निकलकर भोपाल शहर से लगभग 40 किमी की दूरी पर भीमबेटका की गुफायें स्थित हैं । इस स्थान के बारे में आप विकि अथवा गुगल से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । अत्यन्त ही ऐतिहासिक स्थान है यह । भोपाल नागपुर नेशनल हाईवे से यह लिंक मार्ग के माध्यम से जुड़ा हुवा है । जंगल का रास्ता होने के कारण अत्यन्त ही हरियाली थी । रास्ते में मेरी बेटी की तबियत खराब हुई । मैं हमेशा अपने व बच्ची के लिये इमरजेन्सी मेडिसिन रखे रहता हूँ । मेडिसिन देकर हम लोग भीमबेटका पहुंचे जहाँ लगभग 02 घन्टे का समय व्यतीत कर दृश्यों को मोबाईल / डीएसएलआर में कैदकर वहाँ से जबलपुर के लिये निकल गये । गुगल बाबा के सहयोग से रास्ता खोजने में लगभग बिल्कुल भी समस्या नहीं आती । फिर भी लोगो से सलाह लेते रहना चाहिये । आगे जबलपुर से लगभग 20 किमी पूर्व भेड़ाघाट नामक स्थान है । शाम के लगभग 07 बज चुके थे तो हम लोग जबलपुर ही रुकने व भेड़ाघाट जाने का प्लान कर लिये । अब जबकि भेड़ाघाट रास्ते में ही मुख्य मार्ग से लगभग 06 किमी अन्दर है तो हम लोग सीधे भेड़ाघाट पहुंचे । यहाँ शाम हो जाने से बिल्कुल ही भीड़ नही थी । इस समय यहाँ नौका यात्रा बन्द होने से लोगो द्वारा बताया गया कि भीड़ कम होती है । फिर भी होटल की तलाश की गयी, कोई अच्छा होटल नहीं मिलने से हम लोग जबलपुर ही आ गये और यहीं होटल लेकर आज रात्रि विश्राम किये।

चौथा दिन – सुबह सुबह जल्दी से जल्दी हम लोग भेड़ाघाट जाने के लिये निकल पड़े । “चल पड़े हैं हम, ना जाने जाना कहाँ, अनदेखे से हैं ये रास्ते ।“ काफी लान्ग ड्राईव हो चुकी थी । अब जल्दी से भेड़ाघाट आये और समय कम लगे इस वजह से एक गाईड किया गया जो वहाँ के बारे में सारी जानकारी देते हुये काफी जगहों पर हमें ले गये । फिर धुंआधार वाटर फाल जहाँ रोपवे से पहुंचना था वहाँ गये, अत्यन्त ही सुन्दर वाटरफाल है यह । अब हम लोगो को आज ही घर पहुंचना था और जबलपुर से घर की दूरी भी लगभग 550 किमी थी तो हम लोग समय से निकलना चाहते थे । लगभग 1.30 बजे भेड़ाघाट से निकल पड़े । आज नवरात्र अष्टमी होने के कारण हम लोग व्रत भी हैं । तो कुछ खाना भी नहीं, कुछ फल और पानी लेकर निकल पड़े । रीवां से जबलपुर एवं जबलपुर से भोपाल सारे रास्ते बहुत ही अच्छे रहें । हाँ एक चिज का ध्यान आपको देना है, इस रास्ते पर बीच-बीच में काफी जगह मवेशी रोड पर एक साथ काफी संख्या में बैठे मिलेंगे, इनको ध्यान देकर ही गाड़ी चलाना है । 04 लेन रोड के दोनो साईड के 01-01 लेन इनके कब्जे में होता है । जिससे की आपको आराम से ही निकलना है । RCC रोड होने व रास्ता अच्छा होने से मैं लगभग 04.30 बजे शाम मैहर शहर के पास था, अब जबकि आज अष्टमी भी हैं एवं हम पति पत्नी व्रत भीं है तो मेरे ही मन में दर्शन करने की इच्छा हुई । पत्नी से दर्शन करने को बताते हुवे मन्दिर मार्ग पर चल दिये । अब जबकि आज अष्टमी है तो यहाँ काफी भीड़ होती है । गाड़ी भी काफी पहले ही खड़ा करना पड़ता है । फिर भी शाम का समय था तो मुझे उम्मीद थी की भीड़ थोड़ी कम होगी । 08 बजे रात में भी मैं यहां से निकलता तो 12 से 01 के बीच में घर पहुंच जाता । हम लोग शहर से मन्दिर की तरफ बढ़े । माता रानी की बिना इच्छा के कहाँ किसी को दर्शन नसीब हो । गाड़ी मैं सिधे रोपवे पार्किंग के पास लेकर गया, जहाँ पत्नी को प्रसाद लेने के लिये भेजकर अपने टिकट लेने हेतु लाईन में लगा । हम लोगो को माता रानी के कृपा से ही शहर में एन्ट्री करके दर्शन करने व मन्दिर से वापस आने में मात्र 02 घन्टे का समय लगा । लगभग 07 बजे तक मैं दर्शन करके वापस नीचे आ चुका था । मैं मैहर देवी बहुत बार आया हूँ । मैं वाराणसी से यहाँ आने के बारे में भी आपको किसी लेख में जरुर बताऊंगा । अब तो रास्ता भी काफी अच्छा हो गया है । अब जबकि हम लोग नीचे आ गये थे और आगे घर तक जाना भी था तो बिना देर किये कुछ प्रसाद लेकर हम लोग वहाँ से निकल पड़े । रास्ते में बहुत बारिश भी मिली । किन्तु कोई दिक्कत नहीं हुई । शरीर तो थक ही चुका था । लेकिन मन में एक गजब का आनन्द था । इतनी लम्बी यात्रा करके हम लोग घर पहुंचने वाले थे । अपने सोचे समय के अनुसार रात लगभग 12 बजे ही हम लोग अपने घर पहुंच गये ।

तो दोस्तो यह यात्रा अनुभव भी मेरे लिये अत्यन्त ही रोमांचक था, क्योंकि इस यात्रा में मैं अपने सोचे से भी ज्यादे जगह पर होकर आया । लगभग 2500 किमी का सफर, अकेले ड्राईव, मेरी 01 साल से छोटी बेटी, लेकिन सब बहुत अच्छा रहा । इस प्रकार मैं लखनऊ से झांसी होते हुवे, उज्जैन बाबा महाकाल के दर्शन, ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, भोपाल अपर लेक, एनिमल पार्क, भीमबेटका गुफाए, भेड़ाघाट, जबलपुर, मैहर देवी मन्दिर की यात्रा पूर्ण कर वापस जनपद चन्दौली आया । कैसा लगा आपको मेरा यह लेख मुझे जरुर बतायें । आपके सुझाव से ही सुधार किया जा सकता है । आगे भी आपके साथ अपने यात्रा अनुभव के बारे में साझा करता रहूंगा । नमस्कार ।

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