मेघालय में लोगों और प्रकृति के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वानस्पतिक संबंधों को उजागर करते 70 से अधिक गांवों में पाए जाने वाले ‘लिविंग रूट ब्रिज’ को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया, 'यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 'जिंगकिएंग जेरी लिविंग रूट ब्रिज कल्चरल लैंडस्केप्स ऑफ मेघालय’ को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की संभावित सूची में शामिल किया गया है। 'उन्होंने कहा, ‘मैं इस यात्रा में समुदाय के सभी सदस्यों और हितधारकों को बधाई देता हूं।’
ग्रामीणों ने लगभग 10 से 15 वर्षों की अवधि में जलाशयों के दोनों किनारों पर ‘फिकस इलास्टिका' पेड़ की जड़ों से ‘लिविंग रूट ब्रिज’ को विकसित किया। पेड़ की जड़ों से इन पुलों का निर्माण किया जाता है। वर्तमान में राज्य के 72 गांवों में फैले लगभग 100 ज्ञात ‘लिविंग रूट ब्रिज’ हैं ।
दूर-दूर से देखने आते हैं पर्यटक
मेघालय के इन पुलों को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इन पुलों का निर्माण न तो किसी इंजीनियर ने किया है और न ही किसी आर्किटेक्ट ने इन्हें डिजाइन किया है। मेघालय वो राज्य है जहां पर बारिश बहुत होती है और लगातार बारिश की वजह से नदियों का स्तर बहुत बढ़ जाता है। लोगों को कोई परेशानी न हो इसके लिए इस तरह के पुलों का निर्माण किया जाता है। मेघालय के दो जिलों ईस्टर्न खासी हिल्स और वेस्टर्न जयंती हिल्स में ऐसे पुलों की भरमार है। समुद्र तल से ये पुल 50 मीटर से 1150 मीटर की ऊंचाई पर हैं। पिछले 180 सालों से मेघायल के लोग इन पुलों का प्रयोग कर रहे हैं। जिन जगहों पर ये पुल बने हैं, वहां पर कोई सरकारी पुल नहीं है।
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