अगर भारत में रोड यात्रा करने का सुझाव माँगा जाए, तो झट से यही सुनने को मिलता है, ' भई बाइक उठाओ और लेह-लद्दाख की तरफ निकल लो!' ये सुझाव वाजिब भी है, आखिर बर्फ की चादर से ढके पहाड़ों के बीच, सनसनाती हवा के साथ बाते करतें सफर करना, जिंंदगी का अलग ही अनुभव है। तो इसी अनुभव को खुद महसूस करने के लिए मैं भी लेह-लद्दाख के सफर पर निकला पड़ा। चलिए मैं अपने सफर की कहानी आपको बताता हूँ और अगर आप भी भारत के इस बर्फीले रेगिस्तान का सफर करने का खयाल रखते हैं तो आपके लिए कुछ ज़रूरी टिप्स भी हैं:
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कहाँ घूमें, क्या देखा?
लेह - लामायुरु मठ: हमने पूरा एक दिन लिकिर मठ, मैग्नेटिक हिल, गुरुद्वारा पत्थर साहिब, ज़ंस्कर संगम और युद्ध संग्रहालय देखने में बिताया।
लेह - पैंगॉन्ग त्सो: रास्ते में आपको बहुत सारे याक, लद्दाखी बकरियाँ और दो कूबड़ वाले ऊँट देखने को मिलेंगे | पैंगॉन्ग झील सबसे ज़्यादा ऊँचाई पर स्थित खारे पानी की झीलों में से एक है | यहां का मौसम और नज़ारा दोनों ही बड़ा सुहाना है और झील का पानी एक दम ठंडा। दिन में समय के साथ ही झील के पानी का रंग भी बदलता रहता है | इस जगह की ऊंचाई लेह की तुलना में ज़्यादा है। सितंबर के अंत तक ज़यादातर गेस्ट हाउस बंद हो जाते हैं क्योंकि तापमान बहुत नीचे चला जाता है और यहाँ रहना मुश्किल हो जाता है| सौभाग्य से हमें एक गेस्ट हाउस मिला, जिसे हमारे लिए खोला गया और हमने वहाँ एक रात बिताई। ऑक्सिजन का स्तर इतना कम था कि सिरदर्द की वजह से हमें रात में नींद ही नहीं आई |
लेह शहर: नुब्रा घाटी का रास्ता दो दिनों के लिए बंद था और इसीलिए हमें दिन लेह शहर में बिताना पड़ा | लेह एक प्राचीन शहर है जो बहुत छोटा है और शांति स्तूप या लेह पैलेस से पुरे शहर का नज़ारा लिया जा सकता है | बहुत सारी दुकाने भी हैं जहाँ से आप अनोखे यादगार तोहफे खरीद सकते हैं |
लेह - खारदुंग-ला दर्रा: जैसे ही हमें पता चला कि खारदुंगला दर्रा के बाद नुब्रा घाटी की ओर जाने वाला रास्ता भी बंद हो गया है, हमने एक मोटरसाइकल किराए पर ले ली और खारदुंगला की ओर निकल पड़े क्योंकि ये दुनिया की सबसे ऊँची मोटरेबल सड़कों में से एक है | खारदुंगला लेह शहर से लगभग 24 कि.मी. दूर है| हमने लगभग 10 कि.मी. की यात्रा ही की होगी कि हमें भारी बर्फबारी का सामना करना पड़ा | किसी तरह हमने दो और किलोमीटर की यात्रा की और दक्षिण पुल्लू पहुँचे | दक्षिण पुल्लू पर एक आर्मी स्टेशन है जहाँ मेडिकल सुविधाएँ भी हैं। यहाँ एक दुकान भी है जहाँ आप हाथ के दस्ताने, सर्दियों के लिए कपड़े, मैगी और अन्य आवश्यक सामान ले सकते हैं।
कुछ सामान लेने के बाद हमने खारदुंगला दर्रे की ओर जाने का फैसला किया। रास्ते में हम तीन बार फिसले, पर शुक्र है पहाड़ पर से गिरे नहीं | दूर-दूर तक बर्फ के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था | एक बार और बुरी तरह फिसलने के बाद बाइक का पिछला ब्रेक जाम हो गया और सर्दी के मारे हमारे शरीर जमने लगे | इसी के साथ हमने बिना घायल हुए वापिस लेह उतरने की ठानी | पहाड़ों के घुमावदार रास्तों से बाइक सिर्फ़ आगे वाले ब्रेक के भरोसे उतार रहे थे और जैसे तैसे हम दक्षिणी पुल्लू पहुँच गये | ठंडे मौसम में हमने चाय पी कर गर्माहट लाने का सोचा तो पता चला कि पहाड़ों के घुमाओ से उतरते समय मेरा बटुआ कहीं गिर गया है | दुकानदार ने सलाह दी कि पहाड़ी सड़कों पर बाइक चलाते समय बटुआ पीछे वाली जेब में ना रखें | हालांकि हमने दक्षिण पुल्लू के आर्मी स्टेशन और उस दुकान के बाहर खड़े कुछ अन्य पर्यटकों व ड्राइवरों को खोए बटुए के बारे में बता दिया था। फिर मोटरसाइकल को पहले गियर में धीरे-धीरे सिर्फ आगे वाले ब्रेक के भरोसे लेह शहर में वापिस लाए | क्या ज़बरदस्त अनुभव रहा !
हिमालय की ऊँचाइयों पर शालीन लोग
क्योंकि मेरा सारा पैसा (लगभग 5000 रुपये) और सारे डेबिट / क्रेडिट व पहचान पत्र बटुए में ही थे, इसलिए सुबह उठते ही मैंने पहले अपने सारे कार्ड बंद करवाए और ओरिएंटल गेस्ट हाउस के खाते में कुछ पैसे जमा करवाए ताकि गेस्ट हाउस और टॅक्सी का किराया चुका सकूँ | लेह के लोगों के नैतिक मूल्य इतने गहरे थे कि उन्होंने मुझे पैसा बाद में चुकाने को भी कह दिया | मुझसे यह भी कहा कि अगर किसी लद्दाखी ड्राइवर को मेरा बटुआ मिलेगा तो वो मुझ तक उसे पहुँचा भी देगा | और सोचिए अगले दिन क्या हुआ होगा? अलगे दिन मेरे पास एक ड्राइवर का फ़ोन आया जिसे मेरा बटुआ मिल चुका था | मेरा पता जान कर वो शाम को मेरे गेस्ट हाउस तक आ गया और मुझे मेरा बटुआ वापिस कर दिया | बटुए में सारी चीज़ें वैसी ही पड़ी थी जैसी पहले थी | जब मैंने उसे कुछ पैसे देने चाहे तो उसने मुझे साफ माना कर दिया | लेह के लोगों ने मुझे बहुत प्रभावित किया | उस टैक्सी वाले का नंबर + 91-9419242940 है | अगर आप लेह में टैक्सी लेना चाह रहे हैं तो इस ड्राइवर को ज़रूर संपर्क करें |
लेह-श्रीनगर: अगले दिन हम एयर इंडिया के हवाई जहाज़ के ज़रिए श्रीनगर की ओर निकल गये | ये जहाज़ केवल बुधवार को उड़ान भरता है और खर्चा 2500 रुपये है |
हम लेह कैसे पहुँचे?
हमने श्रीनगर पहुँच कर यहाँ से लेह के लिए एयर इंडिया का जहाज़ (एआई-447) पकड़ा | इस जहाज़ की सबसे खराब बात यह है कि यह सिर्फ बुधवार को ही उड़ान भरता है लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि ऑफ सीजन में यह उड़ान काफी किफायती (₹2000 / - प्रति व्यक्ति) होती हैं। हालाँकि हम रोड ट्रिप ही करना चाहते थे, हम जानते थे कि सड़क यात्रा काफ़ी लुभावनी और प्राकृतिक सुंदरता से भरी होगी , लेकिन वक्त की कमी के कारण हम रोड के जरिए नहीं जा पाए।
लेह में कहाँ ठहरे
हम ओरिएंटल गेस्ट हाउस में ठहरे थे, जो शांति स्तूप के ठीक नीचे है| हमारा नाश्ता और डिनर कमरे के किराए में ही शामिल था। यहाँ कुछ कमरों में केंद्रीय हीटिंग सिस्टम भी था, यानी अगर आप सर्दियों के मौसम में यहाँ रुकना चाह रहे हैं तो यहाँ ठंड से बचने का अच्छा इंतज़ाम है। इस होम स्टे के लोग बहुत विनम्र और शालीन हैं।
लेह में घूमने-फिरने का ज़रिया
लेह में बाइक आसानी से किराए पर मिल जाती है | एक टैक्सी यूनियन भी है जिसने टैक्सी लेने के किराए की दर निर्धारित की हुई है | हो सकता है कि आपको लेह में टैक्सी की कीमत भारत के दूसरे शहरों के मुकाबले ज्यादा लगे , लेकिन जब आप यहाँ के मौसम और लद्दाख के ऊँचे भूगोल के बारे में सोचेंगे तो किराया वाजिब ही लगेगा | हमने चंबाजी (+ 91-9419537515 / + 91-9654503307) की इनोवा किराए पर ली| चंबाजी बहुत अच्छे इंसान हैं और बहुत सावधानी से गाड़ी चलाने के साथ ही वह इस इलाके को भी अच्छी तरह से जानते हैं। आप अपने सफर के लिए इनसे भी संपर्क कर सकते हैं।
ज़रूरी सामान
धूप का चश्मा होना ही चाहिए | सनस्क्रीन होनी चाहिए, यहाँ बोरो प्लस काफ़ी मशहूर है | सर्दियों के कपड़े, दस्ताने और कानों को ढकने के लिए टोपी ज़रूर रख लें (अगर आप यहाँ मोटरसाइकल चलाना चाहते हैं तो )!
टिप- आराम ज़रूर करें
क्योंकि आप दुनिया में कुछ सबसे ऊँची जगह में से एक पर जा रहे हैं जा रहे है तो तैयारी पूरी रखें | अगर आपको साँस लेने में दिक्कत होती है या हाई ब्लड प्रेशर की बिमारी है, तो जाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें। स्वस्थ लोगों को भी लेह पहुँच कर एक से दो दिन आराम करने की सलाह दी जाती है क्योंकि शरीर को यहाँ के वातावरण में ढलने के लिए वक़्त चाहिए होता है | और हाँ खूब पानी पीना न भूलें |
अगर आप भी कभी लेह-लद्दाख की घाटियों में छुट्टियाँ मनाकर आएँ हैं तो Tripoto परिवार के साथ अपना अनुभव बाँटें और Tripoto पर ब्लॉग बना कर अपनी यात्रा के बारे में लिखें।
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