आज इंजीनियर्स डे हैं। अलग अलग देशों में अलग अलग तिथि पर यह अभियंता दिवस मनाया जाता हैं।भारत में 15 सितम्बर को "डॉ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरवैया " जी की जयंती पर इसे मनाया जाता हैं। घूमने और नयी चीजे करने का शौक मुझे इंजीनियरिंग के दौरान ही पड़ा था ,पर कैसे पड़ा यह किसी और दिन बताऊंगा। इंजीनियरिंग के दौरान ही हम लोगों के दिमाग में यह बात फीड कर दी जाती हैं कि एक इंजीनियर कुछ भी कर सकता हैं ,कई फिल्ड में एक साथ रह सकता हैं या चुने हुए फिल्ड में ही अव्वल रह सकता हैं।
आज ऐसे ही एक उस भारतीय वैज्ञानिक के एक ऐसे योगदान की बात करते हैं जिसकी वजह से लद्दाख में पानी की कमी की समस्या तो सोल्व हुई ही हैं साथ ही साथ उनके योगदान से घुमक्क्ड़ों के लिए लद्दाख में घूमने को एक नई चीज मिल गयी। हम बात कर रहे हैं लद्दाख के आइस स्तूप/ हिम स्तूप की। आपने लद्दाख में कई बौद्ध धर्म से जुड़े स्तूप तो देखे ही होंगे लेकिन बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जिन्होंने आइस स्तूप भी देखे हो। 'बहुत ही कम लोग ' ,ऐसा इसीलिए बोला क्योंकि आइस स्तूप सर्दियों मे ही रहते हैं,गर्मी पड़ने पर धीरे धीरे पिघल जाते हैं और ज्यादातर यात्री लद्दाख को गर्मियों में ही देखने जाते हैं। गर्मियों में ही लद्दाख देखने का एक कारण तो यह हैं कि सर्दियों में बर्फ की वजह से यहाँ पहुंचाने वाला सड़क मार्ग बंद हो जाता हैं ,तो ऑप्शन केवल फ्लाइट ही रहता हैं जिसे कई लोग अफ़्फोर्ड नहीं कर पाते और दूसरा कारण वहां की हड्डियाँ कंपा देने वाली ठंड कई यात्रियों को यहाँ आने से रोक देती हैं।
2020 में चादर ट्रेक के दौरान हमारे 12 लोगों के बैच को शुरू के 3 दिन लेह शहर में ही रुकना था ,जिससे कि हमारा शरीर वहाँ के वातावरण में ढल जाए।इसके बाद वहाँ मेडिकल टेस्ट होते हैं ,जिसमें फिट सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही चादर ट्रेक पर ट्रैक्कर्स को भेजा जाता हैं।हमने इन 3 दिनों में ,लोकल लेह की कई जगहों को आराम से घुमा और उन्ही जगहों में से एक जगह थी शहर से 30 किमी दूर बने 'बर्फीले स्तूप'। इस 30 किमी को जब हमने 1500 रूपये में टैक्सी करके देखा तब जाना कि लद्दाख को बर्फीला रेगिस्तान क्यों कहा जाता हैं।हर तरफ केवल दो ही रंग थे या तो बर्फ के कारण सफ़ेद या बची कुछ जगहों पर मिटटी के कारण मटमैला रंग। यही हाल शहर का भी था ,हर जगह नल में से टपकता हुआ पानी बर्फ बन चूका था ,पेड़ हरे की जगह सफ़ेद थे। नालिया और पानी की स्ट्रीम जमी हुई। ठंड तो इतनी थी कि पानी पीते समय (गर्म पानी )जैसे ही जमीन पर पानी गिरता , पलक झपकते ही बर्फ में तब्दील हो जाता। रात को 4 -4 ओढ़ने के बावजूद और कई गर्म कपड़े पहन कर सोने के बावजूद भी हथेलिया और पैर सुन्न पड़ जाते।
एकाएक दूर से ही हमे एक बड़े बर्फीले मैदान में कुछ लोगों की भीड़ दिखी ,ढंग से देखा तो वही बड़े बड़े बर्फ के स्तूप भी नजर आये। गाडी एक तरफ लगवाई ,भागे भागे स्तूप के पास पहुंचने के चक्कर में फिसल कर कई बार गिरे ,फिर हाथों में स्टिक लेकर बड़ी मुश्किल से स्तूप के पास हम पहुंचे। ये हमसे कई गुना ऊँचे थे , करीब 4 से 5 थे शायद। हम ठंड वगैरह को तो भूल गए और लगे फोटो खींचने में। इसके अंदर भी गए ,जिसमे ऊपर से बर्फ की तीखी सिल्लियां लटक रही थी। एक पानी का बहुत बड़ा पाइप इसके अंदर पानी की सप्लाई कर रहा था। दुसरे स्तूप पर आइस क्लाइम्बिंग प्रतियोगिता चल रही थी। प्रतियोगी ,क्लाइम्बिंग के साधनों से उस पर चढ़ रहे थे। अचानक हमारी ज्यादा तादाद के कारण पानी का पाइप हिल गया और अंदर पावरफुल बहते पानी के कारण स्तूप से बाहर आ गया। अत्यधिक शक्ति से बहता ठंडा पानी सीधा हमारे एक दो सहयात्रियों पर पड़ता रहा ,वो फिसलने के चक्कर में भाग भी आ पाए। हालाँकि वहाँ के लोकल लोगों ने भागदौड़ी करके पाइप को हटा दिया और भीगे सहयात्रियों को जल्दी से ओढ़ा कर गाडी में भेज दिया।
ये स्तूप असल में कृत्रिम ग्लेशियर्स होते हैं ,जिनका काम पानी का संचयन करना होता है।इसमें एक अधिक ऊंचाई से पानी को पाइप के द्वारा लाया जाता हैं और स्तूप के एकदम सेंटर से फव्वारे की तरह पानी छोड़ा जाता हैं जिस से पानी उस क्षेत्र के चारों और जमकर ग्लेशियर जैसा बड़ा रूप ले लेता हैं। इन्हे बनाया इस तरह जाता हैं कि सूर्य की किरणों से भी यह आसानी से नहीं पिघल पाते। पानी की कमी वाले दिनों में इन्हे पिघला कर पानी आस पास के इलाकों में दिया जाता हैं। यह ट्रायल के तौर पर शुरुवात में काफी कम बनाये गए थे ,पर अब यह लाखों लीटर पानी का संचयन करने लगे हैं साथ ही साथ टूरिस्ट को भी अट्रेक्ट करने लग गए हैं,यहाँ बर्फीले खेल आयोजित होने लग गए हैं । अब सरकारी प्रोजेक्ट के तहत हर साल करीब 25 स्तूप बनाये जा रहे हैं और वो भी कई ज्यादा ऊँचे ऊँचे। कंपकपाती ठंड में इन ग्लेशियर्स के आसपास खेलना ,मस्ती करना आपको जिंदगी भर याद रहेगा।
इन स्तूप को बनाने का श्रेय भी एक इंजीनियर को ही जाता हैं। वैसे तो वें एक मेकेनिकल इंजीनियर हैं लेकिन उन्होंने बिना किसी मशीन का इस्तेमाल किये ही इन्हे बना दिया। इनके इस प्रोजेक्ट को अब और अन्य देश भी स्टडी करने लग गए हैं। हालाँकि ये स्तूप तो इनकी केवल एक छोटी सी उपलब्धि हैं ,इन्होने कई उपलब्धिया हासिल की। इन्हे भी आप सब इनडाइरेक्ट तरीके से तो जानते ही हैं , जानेंगे क्यों नहीं थ्री इडियट फिल्म में आमिर खान का किरदार इन्ही से प्रेरित था। इनका नाम हैं -इंजीनियर सोनम वांगचुक जी। इंजीनियर्स डे पर एक आर्टिकल तो इनके सम्मान में गर्व के साथ बनता ही हैं , आखिरकार ट्रेवलर्स के लिए भी तो इन्ही की वजह से एक खूबसूरत चीज घूमने को मिल गयी।
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