भारत का उत्तराखंड राज्य देवो की भूमि के नाम से जाना जाता है,जिसका कारण है वहां के हर कण में विराजमान ईश्वर। जिसकी शक्तियों को लोगो ने महसूस किया है और उनके प्रति आस्था के इतिहास को सैकड़ों वर्षों से सजो के रखा है।ऐसी ही आस्था और विश्वास को समेटे हुए उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक जगह है जिसे लटेश्वार महादेव के नाम से जाना जाता है।यह मंदिर यह मंदिर पिथौरागढ़ के बड़ाबे नामक एक छोटे से गांव में स्थित है।आइए जानते है इस मंदिर के विषय में।
लटेश्वार महादेव मन्दिर
पिथौरागढ़ शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बड़ाबे गांव का यह मंदिर प्रकृति की खूबसूरत वादियों में बसा है और इसके चारो तरफ हरियाली और नीले आसमान का अद्भुत नजारा दिखता है।वैसे तो यह जगह पर्यटन के लिहाज से भी काफी समृद्ध है। आपको बता दे की यहीं पर थल केदार नाम का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है।थल केदार में भगवान शिव के दर्शन करने के बाद ही उनके गण लटेश्वर बाबा के दर्शन करने को जरूरी माना गया है।लगभग 2500 फीट की ढलान पर एक दुर्गम मार्ग को पार करने के बाद लटेश्वर नामक मंदिर आता है।लटकेश्वर मंदिर को एक सम्पूर्ण विशाल शिला खंडित होकर गुफा रूप में परिवर्तित किया गया है, जहां लाटा देव की प्रथम स्थापना हुई है।
लटेश्वर महादेव का इतिहास
कहते हैं कि बड़ाबे गांव (बाराबे या बड़ाबे गांव) के पास ही हल्दू नामक स्थान था।जहां एक बार पर लटेश्वर देवता और एक दैत्य के बीच लड़ाई हुई थी।कहते है की इस दैत्य की 22 हाथ लम्बी शिखा थी और इस दैत्य ने वहां बहुत आतंक मचाया था,वहां पर रहने वाले सभी लोग इस दैत्य से बहुत ही परेशान हो गए थे।लटेश्वर देवता ने उस दैत्य को युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध के दौरान उसकी शिखा उखाड़ फेंकी, उस दैत्य की सारी शक्ति उसकी शिखा में थी शिखा उखड़ते ही उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गई और दैत्य वहां से भाग गया। लेकिन इस युद्ध में शिवगण लटेश्वर देवता की जीभ भी कट गई, जिस कारण उन्हें लाटा देवता के नाम से प्रसिद्धी मिली और इसी नाम से उन्हें यहां के लोग भी पूजने लगे। लोगों का विश्वास है कि लटेश्वर देवता की कृपा से यहां अब कभी किसी भी प्रकार के भूत-पिशाच नहीं आते हैं।
लटेश्वर महादेव मंदिर में बहती है गुप्त गंगा
वैसे तो लटेश्वर मंदिर गुफा अत्यंत संकरी है, जहां पहुंचना लगभग नामुमकिन है।लेकिन आपको बता दे कि इस गुफा के भीतर स्वच्छ जल का एक स्रोत है।जिसे यहां के स्थानीय लोग गुप्त गंगा मानते हैं और इसके जल को गंगाजल के समान पवित्र मानते है।कहा जाता है कि इस जल के प्रयोग से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं और बच्चों का हकलाना भी बंद हो जाता है।पहले इस मंदिर के विषय में बस ग्राम वासी ही जानते थे और वो इस मंदिर में ही पूजा पाठ करते थे। धीरे धीरे लोगो के बीच लाटा देवता की प्रसिद्धि हुई तो यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी। उसके बाद ग्रामवासियों ने यहां एक नया मंदिर और एक धर्मशाला का निर्माण किया जिससे लोग यहां पूजा पाठ कर सके।
शरद और कार्तिक पूर्णिमा पर ही होता है विषेश पूजा
आपको बता दे पहले पूजा-अर्चना गुफा मंदिर में ही होती थी, लेकिन वर्तमान में ग्राम वासियों के प्रयास से यहां पर एक मंदिर और एक धर्मशाला का निर्माण किया गया है। यहां के स्थानीय लोगो का मानना है लटेश्वर देवता नंदीगण है,जो कि अपने अधीनस्थ 52 गणों के राजा हैं। इस मंदिर में शरद और कार्तिक पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है, यहां पर सिर्फ शरद पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान के नाम का हवन होता है, जिसमें पूरे गांव की खुशहाली की कामना की जाती है।मान्यता है कि इसी दिन सामूहिक रूप से लटेश्वर बाबा प्रकट होकर जनता को आशीर्वाद देते हैं और उनके मुंह से निकले हुए वचन पूरे गांव वालों को मानने पड़ते हैं। इस पल का साक्षी बनने के लिए पूरे शहर से लोग यहां पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचें
फ्लाइट से
पिथौरागढ़ का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर में स्थित है जो पंतनगर हवाई अड्डे के रूप में प्रसिद्ध है। हवाई अड्डा उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में पिथौरागढ़ से करीब 241 किमी दूर स्थित है। पिथौरागढ़ में किसी भी गंतव्य तक पहुंचने के लिए आप आसानी से टैक्सी और बसों को प्राप्त कर सकते हैं।
ट्रेन से
पिथौरागढ़ का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में स्थित है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से पिथौरागढ़ तक कुल दूरी लगभग 138 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन के बाहर से सटीक गंतव्य तक पहुंचने के लिए यात्री आसानी से बसों और टैक्सी की संख्या प्राप्त कर सकते हैं।
सड़क मार्ग से
पिथौरागढ़ अच्छी तरह से चौड़ी सड़कों से जुड़ा हुआ है जो उत्तराखंड के सभी प्रमुख स्थलों से भी जुड़ा हुआ है। टैक्सियां और बस उत्तराखंड राज्य के मुख्य स्थलों से पिथौरागढ़ के लिए उपलब्ध हैं। पिथौरागढ़ से दिल्ली (457 किमी), नैनीताल (218 किमी) और बद्रीनाथ (32 9 किमी) सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
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