2018 में विदेश मंत्रालय के द्वारा आयोजित यात्रा से उत्तराखंड वाले रूट से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गया था। आदि कैलाश से पहले का मुख्य पड़ाव गूंजी, ओम पर्वत सभी इसी रूट पर आते हैं।अब तो इधर पक्की सड़कें हैं,लेकिन पहले यात्रियों को केवल ॐ पर्वत तक पहुंचने में ही कई दिन लगते थे।जब सड़क नही थी तब यह क्षेत्र एकदम सुनसान रहता था,केवल आईटीबीपी के जवान और सीजन में कैलाश यात्री ही आते थे।अब तो हालांकि गाडियां जाने लगी हैं और भीड़ पहुंचने लगी हैं।
ओम पर्वत के आगे तो अब भी कोई नही जा सकता ,क्योंकि उधर पड़ती हैं भारत–चीन की बॉर्डर। हम खुशकिमस्त हैं कि हमने यह सब चीजें पैदल घूमी हैं कई दिनों में और फिर पैदल भारत चीन (भारत तिब्बत) बॉर्डर पार करके कैलाश यात्रा की थी।
जब हम तिब्बत के तकलाकोट शहर में 2 रातें रुक कर एक्लीमेटाइज हो गए,तब हमें कैलाश पर्वत की परिक्रमा जो कि तीन दिन की दुर्गम यात्रा होती हैं उसके लिए ले जाया गया।
हम बस में से देख रहे थे गहरा नीला आसमान,दूर स्थित बर्फीले पहाड़,थोड़ा सा रेतीला मैदान तो कही हरे घास के मैदान जहां पहाड़ी बकरियां चर रही थी।यूं मानों कि हम कोई खूबसूरत पेंटिंग देख रहे थे।तभी हमारी दोनों बस रुकी एक गहरी नीली झील के किनारे।
हमारे साथ जो गाइड था,उसे तिब्बती,चाइनीज और हिंदी आती थी,उसने हमें झील को घूम आने को कहा।नीचे ,हमें झील के पास जाने के लिए कुछ फीट नीचे तक ट्रेक करके जाना था।
वहां पहुंचने पर उसने हमें बताया कि यह झील हैं "राक्षस ताल झील"। उसने कहा जैसे मानसरोवर झील पवित्र मनाई जाती हैं उसी तरह यह झील हिंदू और बौद्ध धर्म में अपवित्र और राक्षसी प्रकृति की मानी जाती हैं। उसने आगे बताया कि इसके पानी में ना तो नहाया जाता हैं और ना इसको पीया जाता हैं।
झील तो हमें काफी खूबसूरत लगी।कहते हैं रावण ने यही भगवान शिव की आराधना की,यहां स्नान किया और फिर उसकी बुद्धि भी फिर गई।गूगल मैप पर अगर आप सर्च करेंगे तो पाएंगे कि मानसरोवर झील और यह राक्षस ताल झील दोनों पास में ही हैं।यहां से करीब 3 किमी बाद ही हम मानसरोवर झील पहुंच गए थे। वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि इसमें कुछ विषैले तत्व मौजूद हैं जिसकी वजह से इस पानी पीने से शरीर को नुकसान होता हैं। झील के पास ही याक की कटी हुई गर्दनें देखने को मिल जाती हैं जिन्हे बोद्धिस्ठ लोग पवित्र मानते हैं ।
खैर,मान्यता इसके बारे में जो भी हो, हर कैलाश यात्री इस झील के भी दर्शन तो करता ही हैं लेकिन यहां कोई पूजा,हवन वगेरह नहीं किया जाता हैं। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई करीब 14500फीट और झील की गहराई करीब 150 फीट मानी जाती हैं।
बाकि जानकारी आपने मेरी पुस्तक "चलो चलें कैलाश" में पढ़ी ही होगी.... और हां,कहते हैं यहां कोई पशु पक्षी इसके आसपास दिखता नहीं हैं ,मैने अभी अपने सारे फोटोज में गौर किया तो कही कोई पक्षी वगेरह भी नजर ना आया।लेकिन मानसरोवर झील में तो कई पक्षी,मछलियां देखने को मिली थी...
कैलाश यात्रा के लिए पासपोर्ट और फिट शरीर चाहिए होता हैं।फिलहाल 2019 से यह यात्रा बंद हैं अभी तक...
फोटो: जुलाई 2018