धौलाधार की पहाडिय़ों की मनोरम छठा में चाय बागानों के बीच स्थित मां कुनाल पत्थरी मंदिर कपालेश्वरी के नाम से भी विख्यात है। मां कपालेश्वरी देवी मंदिर अनूठा और विशेष भी है। यहांँ पर मां के कपाल के ऊपर एक बड़ा पत्थर भी कुनाल की तरह विराजमान है। इसलिए इस मंदिर को मां कुनाल पत्थरी के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास
51 शक्तिपीठों में से यह शक्तिपीठ मां सती के अंगों में से एक है। मां सती का यहांँ पर कपाल गिरा था, और यह शक्तिपीठ मां कपालेश्वरी के नाम से विख्यात हुआ। मां सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहांँ -जहांँ गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि यहांँ माता सती का कपाल गिरा था इसलिए यहांँ पर मां के कपाल की पूजा होती है।
कुनाल का भी अलग महत्व
मां कुनाल पत्थरी मंदिर में मां के कपाल के उपर बना एक पत्थर हमेशा ही पानी से भरा रहता है। मान्यता यह भी है कि जब भी इस पत्थर में पानी सूखने लगता है तो यहांँ पर वर्षा होती है मां कभी भी पानी की कमी नहीं होने नहीं देती है। कपाल के ऊपर बने पत्थर में पानी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है तो कई बीमारियों को लेकर भी श्रद्धालु इस पानी को लेकर जाते हैं।
देखने लायक स्थान
कुनाल पत्थरी का विकास धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी हो सकता है। यह मंदिर ऐसी जगह पर स्थित है जहांँ पर चारों ओर चाय के बागान हैं तो उत्तर की और सामने धौलाधार की सफेद पहाडिय़ां वहीं दक्षिण में कांगड़ा हवाई अड्डा मंदिर की मनोरम छठा को और भी बढ़ाता हैं।
कैसे पहुंचे मंदिर तक
सड़क मार्ग : कुनाल पत्थरी मंदिर जिला मुख्यालय धर्मशाला से तीन किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल मार्ग : पठानकोट कांगडा का निकटतम ब्रॉड गेज रेल मुख्यालय है।
वायुमार्ग : कांगड़ा हवाई इस मंदिर से १० किलोमीटर की दूरी पर है।
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