भारत एक ऐसा देश हैं, जो अपनी संस्कृति और त्योहारों के उत्सव की भावना के लिए जाना जाता हैं। यहां ना जानें कितने त्योहार हर रोज़ मनाए जाते हैं। दशहरा भी उन त्योहारों में से एक है जिसे पूरे उत्साह के साथ देश में मनाया जाता हैं। दशहरा को बुराई पर अच्छाई के जीत के समारोह के रूप में पूरे देश में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार, मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था, और उनकी जीत का दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, भगवान राम ने माता सीता का अपहरण करने वाले दुष्ट राक्षस रावण का भी वध कर इसी दिन विजय पायी थी। जिसे उनके आगमन स्वरूप विजयदशमी का यह त्योहार मनाया जाता हैं। यूं तो दशहरा की धूम पूरे देश में मची हुई हैं, ऐसी एक धूम कुल्लू में भी मची हैं। कुल्लू में दशहरा का त्योहार बड़े संख्या में पर्यटकों को अपने ओर आकर्षित करता हैं। यहां होने वाला अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का भव्य आयोजन बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता हैं।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा हिमाचल की हसीन वादियां में मनाया जायेगा। कुल्लू में यह त्योहार बुराई पर अच्छाई के जीत के समारोह के रूप में मनाया जाता हैं। 24 अक्टूबर से शुरू यह त्योहार क़रीब सात दिनों तक चलेगा। जिसे कुल्लू के ढालपुर के मैदान में इस उत्सव का शुभारंभ किया गया हैं। देवी देवताओं के महाकुंभ में अबकी बार 300 से ज्यादा देवी देवताओं के आने की उम्मीद हैं। दशहरा कमेटी ने प्रदेश के 332 देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा हैं।
कुल्लू के दशहरा का इतिहास
कुल्लू का दशहरा पहली बार कुल्लू में 1660 ईस्वी को मनाया गया था। इसका इतिहास 16 वीं शताब्दी का हैं, यह माना जाता हैं। कहा जाता हैं कि राजा जगत सिंह को भयंकर बीमारी हो गई थी। ऐसे में एक बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही इलाज होगा। तब राजा जगत सिंह ने तपस्या के निशान के रूप में रघुनाथ की मूर्ति को अपने सिंहासन पर स्थापित किया था। रघुनाथ के विग्रह को स्थापित करने के बाद राजा जगत सिंह ने देवता का चरण-अमृत पिया और उनकी बीमारी दूर हो गई। रोग मुक्त होने की खुशी में राजा ने सभी 365 देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया और खुशी में उत्सव मनाया। बस तब से ही कुल्लू में यह त्योहार बहुत ही धूम धाम से मनाई जाती हैं।
देश के विभिन्न राज्य के सांस्कृतिक दलों के साथ विदेशी दल का भी दिखेगा परेड
देश के विभिन्न राज्य के सांस्कृतिक दलों के परेड के साथ इस बार आपको विदेशों के सांस्कृतिक दल के भी परेड देखने को मिलेंगे। यह परेड रथ मैदान से शुरू होगी, जो माल रोड होते हुए जिला युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के कार्यालय होते हुए ढालपुर तक जायेगी। इस बार इस संस्कृत परेड में विदेशों के सांस्कृतिक दल, देश के विभिन्न राज्य के सांस्कृतिक दलों सहित प्रदेश व जिले के लगभग 50 सांस्कृतिक दल अपने-अपने देश व प्रदेशों की समृद्ध संस्कृति की प्रस्तुति देंगे।
11 विभागों की झांकियां के साथ होगा कार्निवल
कुल्लू में दशहरा के समय हर साल कार्निवल भी होता हैं। इस साल इस कार्निवल में 11 विभागों की झांकियां प्रस्तुत की जायेगी, जिनमें जल शक्ति विभाग, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण, भाषा एवं संस्कृति विभाग, लोक निर्माण विभाग, हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड, उद्योग विभाग, वन विभाग,पर्यटन विभाग, एनएचपीसी नगवाई, एचपीसीएल शाडाबाई व हिम ऊर्जा विभाग की झांकियां शामिल होंगी।
कुल्लू दशहरा महोत्सव के मुख्य आकर्षण
कुल्लू दशहरा में सांस्कृतिक परेड और कार्निवल के आलावा यहां का मुख्य आकर्षण भगवान रघुनाथ की प्रतिमा का जुलूस हैं। जिसको देखने के लिए लाखों लोग आते हैं। इसके अलावा रथ को अंतिम दिन व्यास नदी ले जाया जाता हैं और लकड़ी की घास का एक ढेर जलाया जाता हैं। इन सब पारंपरिक रिवाजों के आलावा यहां मेले भी लगते हैं। इन मेलों में संगीत और नृत्य जैसे कार्यक्रम भी आपको देखने को मिल जाएंगे।
तो इस बार आप दशहरा घूमने का प्लान बना रहें हैं तो अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव देखना ना भूलें।
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