भारत की ख़ूबसूरती के ढेरों क़िस्से आपने किताबों में पढ़े होंगे। लेकिन अगर ये बात महज़ किताब तक ही रह गई तो ये किताब और लेखक, दोनों के साथ नाइंसाफ़ी वाली बात होगी।
एक प्रदेश में ढेर सारे अभयारण्यों का अंबार, उनके बीच पनपती ठेठ हिन्दुस्तानी सभ्यता और जन्म लेते नए नवेले ज़ायके, मुग़लों का आधिपत्य, भारत की आज़ादी और उसके ठीक दो महीने में हैदराबाद की जंग, कितना कुछ है बताने को इस रोचक राज्य तेलंगाना के बारे में। मैं आज आपको सैर कराने वाला हूँ इस ख़ूबसूरत प्रदेश की। चलिए, सफ़र शुरू करते हैं।
1. हैदराबाद
हैदराबाद की विरासत, उसकी सियासत और ज़ायका, इनके लिए बस एक लफ़्ज़ है, मसालेदार। हैदराबादी बिरयानी की तुलना लखनऊ के दस्तरख़्वान से की जाती है। यहाँ के हलीम और पत्थर कबाब के क्या कहने, स्वाद के शौकीन यहाँ हर दिन महफ़िल जमाते हैं।
13वीं सदी का गोलकोंडा क़िला, मक्का मस्जिद, क़ुतुब शाही मकबरा यहाँ की रवायत में यूँ घुले हैं जैसे राजे रजवाड़े तो ख़त्म हो गए लेकिन मुग़लिया सल्तनत का वो अंदाज़ यहाँ के ख़ून में आज भी ज़िन्दा है। देखने के लिए इन मक़बरों और क़िलों से इतर हुसैन सागर झील है। और सबको पता है, हैदराबाद का सफ़र चारमीनार जाकर ही पूरा होता है।
बात सियासत की नहीं करेंगे, बस इतना कहेंगे कि यहाँ के नेताओं का बोला हर लफ़्ज़ दिल्ली के रास्ते पूरे भारत में गूँजता है।
2. वारंगल
जो लोग आईआईटी की तैयारी करते हैं, उनको इस जगह का नाम बख़ूबी याद है। क्योंकि आईआईटी न निकला, तो सपना एनआईटी वारंगल में सीट पक्की करने का ही होता है।
वारंगल वो जगह हैं जहाँ आपका सीधा साब्दा होता है जंगल की ख़ूबसूरती से। पाखल झील और पाखल वाइल्डलाइफ़ सैंचुरी है यहाँ पर। पहाड़ों में ट्रेक करते और नदी में गोते लगाते नौजवानों की जंगल की इस ख़ूबसूरती पर नाज़ न हुआ तो इसमें उनमें जंगल की कोई ग़लती नहीं है। सुना तो आपने भी होगा, सुनार के सोना न परख पाने से सोने की रंगत कम नहीं हो जाती।
इतिहास की किताबों से सीधा निकल कर आपकी आँखों में एक पल में अपनी जगह बना लेता है यहाँ का पिलर मंदिर। 12वीं सदी का यह मंदिर तत्कालीन काकतीय वंश की कला की निशानी है, बेहद शानदार, देखने लायक।
3. संगारेड्डी
भारत की रंगत पर मुग़लों ने ठीक ठाक असर छोड़ा है। वो आपको हमारी ज़बान में नज़र आएगा, हमारे ज़ायके में नज़र आएगा। किसी ज़माने में यहाँ का निज़ाम बहुत मशहूर हुआ करता था, इतिहासकार रामचन्द्र गुहा भी एक वाक़या 'इंडिया आफ़्टर गाँधी' में लिख चुके हैं। सरदार पटेल का इस निज़ाम को हटाकर हैदराबाद को भारत में विलय कराने का वो हैरतअंगेज़ क़िस्सा आपको भी पढ़ना चाहिए।
इस निज़ाम के बारे में तफ़सील से जानकारी चाहिए तो संगारेड्डी से बेहतर जगह शायद ही कोई हो। इसके इतर यहाँ की बनी जेलों को भी लोग देखने आते हैं। प्राचीन ज़माने की बनी ये जेलें वास्तु कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पुरुषों व स्त्रियों के अलग अलग जेलें, जिसमें राशनघर भी हैं, पकवानघर भी मौजूद हैं। ऐसी जेलें और उनका उत्कृष्ट वर्णन तत्कालीन सभ्यता की लोकनीति का बेहतरीन नमूना पेश करता है।
4. मेडक
मेडक का क़िला ताजमहल के बाद उन गिनी चुनी प्राचीन तामीरों में है जहाँ मुग़ल और हिन्दू संस्कृतियाँ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इन इमारतोंं में दोनों रंग साफ़ पता चलते हैं। कैथेड्रल चर्च यहाँ से कुछ ही दूरी पर है। गहरे सिलेटी रंग इस चर्च की सादगी में भी एक अदा भर देता है।
यहीं से कुछ दूरी पर है पोचारम वाइल्डलाइफ़ सैंचुरी, जहाँ पर जंगलों का सा कच्चापन साफ़ झलकता है। आज के जीव और पेड़ पौधे, उनकी सैकड़ों प्रजातियाँ साथ मिलती हैं।
नीलगाय, जंगली बिल्ली और आलसी भालू जैसे जंगली जीव तो आसानी से दिख जाएँगे। पंछी दर्शन के लिए भी लोग मेडक आना नहीं भूलते।
5. करीमनगर
करीमनगर ख़ुद में प्राचीन इतिहास की झलकियाँ समेटे है। ऐतिहासिक मंदिर और क़िले भले चुप रहें लेकिन उनमें चढ़ी हुई नक्काशी की आवाज़ साफ़ सुन सकेंगे आप। एक सल्तनत पर दूसरे का रंग चढ़कर बोलता है यहाँ।
एल्गैंडल हिल क़िला, जगतील क़िला और रामगिरी क़िला अपनी सभ्यता का पर्याप्त सुबूत छोड़ गए हैं। उनको देखकर आप जान पाएँगे कि क़िला होना क्यों ज़रूरी है। उनके पीछे की तकनीक और दिमाग इतना रोचक है कि ये क़िले आपकी अगली रीसर्च का हिस्सा भी हो सकते हैं।
उनके ही साथ मंथानी में लगा मिलता है मंथानी मंदिर। भगवान शिव की प्रतिमा का गौतमेश्वर रूप इस मंदिर की ख़ासियत है। और अगर वाइल्डलाइफ़ का शौक़ हो तो शिवराम वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी भी आते हैं लोग।
6. निज़ामाबाद
निज़ामाबाद दक्षिण भारत की वो जगह है जहाँ के मंदिरों में उत्तर भारतीय वास्तुकला का दर्शन होता है... और कहीं कहीं संस्कृति का भी। दो डैम ख़ूब देखने आते हैं यहाँ पर लोग, एक है पोचमपद और दूसरा है निज़ाम सागर।
प्रकृति का कुदरती रंग देखने के लिए मल्लारम जंगल और पोचारम वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी हैं। कुछ अलग हटके वाला फ़ैक्टर हो तो अलीसागर जलाशय है यहाँ पर। लोग कम आते हैं लेकिन अच्छी जगह है।
7. खम्मम
क़रीब एक हज़ार सालों से खम्मम के स्तंभद्रि पहाड़ी पर खड़ा है एक क़िला, जिससे खम्मम की पहचान होती है। हिन्दू और मुग़ल संस्कृति इस तरह घुल गए हैं यहाँ कि अलग अलग पहचान कर पाना कठिन है। लेकिन दोनों ही स्वाद पता चलेंगे यहाँ पर। खम्मम में देखने लायकों में लाकाराम झील भी है।
धार्मिक यात्राओं पर लोग आते हैं यहाँ। 50किमी0 दूर कल्लूर और 25 किमी0 दूर नीलाकोंडपल्ली के हिन्दू मंदिर यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों में अपनी शुमारी रखते हैं।गर्मी की छुट्टियों में यहाँ से 125 किमी0 दूर पैरांतालापल्ली भी देखने की ख़ूबसूरत जगह है।
8. आदिलाबाद
45 मीटर ऊपर से ज़मीन को छूता हुआ कुन्तला जलप्रपात अपने शोर से अपने होने की गवाही दे देता है। और उसके पोचेरा जलप्रपात 20 मीटर ऊँचा है। यह कुन्तला की तरह मस्त नहीं है, शान्त है लेकिन सुकून संग मस्ती यहाँ भी उतनी ही है। ये दोनों ही जलप्रपात आदिलाबाद को मदमस्त बना देते हैं।
कवल, प्राणहित और शिवराम यहाँ की तीन प्रमुख वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी हैं। वहीं गोदावरी नदी पर बसा है सरस्वती का बसर मंदिर। महात्मा गाँधी पार्क और कला आश्रम विश्राम करने की शान्त जगहें हैं।
घूमने के लिए सबसे सही समय
चूँकि तेलंगाना दक्षिण भारतीय प्रदेश है, इसलिए ठंड के महीनों में यहाँ हवा खुशनुमा हो जाती है। इसलिए सितम्बर से मार्च के महीने में टिकट बुक कीजिए।
कैसे पहुँचें
सड़क मार्गः तेलंगाना में किसी भी जगह से दूसरी जगह जाने के लिए आंध्र प्रदेश एसआरटीसी बस चलती हैं। प्राइवेट में वोल्वो और एसी बसों की भरमार है। औरंगाबाद, मंगलौर, चेन्नई, मुंबई और प्रसिद्ध नज़दीकी शहरों से तेलंगाना के हैदराबाद की बसें आसानी से मिल जाएँगी।
ट्रेन मार्गः हैदराबाद, सिकन्दराबाद और कचिगुड़ा रेलवे स्टेशन तेलंगाना के प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। यहाँ के लिए भी आपको प्रसिद्ध शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, पुणे, बंगलौर और चेन्नई से ट्रेन चलती हैं।
हवाई मार्ग: हैदराबाद का राजीव गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा विदेशों से भी सीधा जुड़ा है। पुराने हैदराबाद में बेगमपेट हवाई अड्डा भारतीय शहरों से जुड़ा है।
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