ये शहर कब अस्तित्त्व में आया, पक्के तौर पर कोई नहीं जानता। लोग इसे सँकरी गलियों, चौड़े घाटों, नाव की सवारी, गंगा आरती और अध्यात्म से जोड़ते हैं। ‘A place in peace under noise’ शोर में शांति खोजता यह शहर बनारस दुनिया में इकलौता है। बड़े बड़े घुमक्कड़ अपनी पहली यात्रा के तौर पर बनारस को चुनते हैं। कहते भी हैं, ‘बनारस नहीं घूमे, तो कुछ नहीं घूमे।’
यहाँ के बारे एक अजब बात यह है कि यहाँ कुछ भी ऐसा नहीं है, जो कहीं कहा न गया हो। कोई नयापन नहीं है यहाँ। वही पुराने घाट, पुराने मंदिर, पुरानी चकल्लस; लेकिन यही पुरानी चीज़ें हर बार कुछ नया मज़ा देती हैं।
शिव का शहर बनारस ऐसा है जहाँ भगवान को भी गाली दी जाती है। जैसे भगवान नहीं, कोई दोस्त है अपना। लेकिन उससे भी ख़ास बात इस शहर को ख़ास बनाती है, वह है यहाँ के लोगों का पशु पक्षियों के साथ बर्ताव।
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आज हम ऐसे ही कुछ तस्वीरों से रूबरू होंगे, जहाँ आपको इस मदमस्त शहर का यह ख़ूबसूरत रंग देखने मिलता है।
पहली तस्वीर काशी के सिंधिया घाट की है। विदेश से आए हुए पंछियों का यह छोटा सा झुंड, जो मेरे ठीक बगल में बैठा है। न तो उसके भीतर कोई डर है किसी पिंजरे में क़ैद हो जाने का, और न ही उसको इसकी चिंता। आपको शायद ही कहीं और ऐसा देखने मिले।
विदेशों से आए ये पक्षी हर साल सर्दियों के दौरान यहाँ रहते हैं। आप इनके नज़दीक जाने की कोशिश करिए, तो ये बिदकते नहीं, वहीं बैठे रहते हैं, जैसे उनके भीतर कोई डर ही नहीं।
इससे जुड़ा एक वीडियो आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
बनारस में कुत्ते नहीं भौंकते। किसी अलसाई हुई सुबह को किसी घाट के बीच चुप से बैठ जाते हैं। कोई अपना समझकर खाना खिला जाता है।
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यह नज़ारा आपको हर घाट पर मिलता है।
अगर आप बनारस आए हैं, तो मणिकर्णिका घाट की गलियाँ ज़रूर देखी होंगी। इन सँकरी गलियों में गाय और कुत्तों का जमावड़ा ख़ूब मिलेगा। उनको न तो कोई परेशान करता है, न डराता है, न ही भगाने की कोशिश करता है। कई बार तो इन सँकरी गलियों में आपको ये जानवर सोते मिलेंगे, लेकिन उनको कोई जगाता भी नहीं, फाँदकर आगे बढ़ जाता है। मानो इंसान और जानवर में कोई भेद नहीं।
गायों का एक जोड़ा धूप सेंक रहा है। सामने खड़े सज्जन को निकलना है। महोदय के भीतर डर है, लेकिन गायें एकदम शांत। बनारस की छोटी-छोटी गलियों वाली भूलभुलैया में ये दिन आम सा है।
अगर आप घाट के दूसरे छोर पर जाएँ, तो ऊँट और घोड़े भी ऐसे ही हैं।
बनारस में आपको पशु पक्षियों के साथ एक अलग ही तरह का अपनापन महसूस होता है। ऐसे ही अनुभव लेकर आप अपने घर आते हैं। बनारस आपसे अलग भले हो जाता है, ये अनुभव आपको बनारस से अलग नहींं होने देते।
तो आप कब जा रहे हैं बनारस के इस यादगार अनुभव का आनंद लेने, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
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