हमारे देश में पर्यटन की अद्भुत संभावनाएं हैं और हर साल देश-विदेश से करोड़ों पर्यटक देश के अनेक पर्यटन स्थलों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। लेकिन आज भी भारत में पर्यटन उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जिसका ये हक़दार है। अनेक पर्यटन स्थलों के साथ ही यहाँ ऐसे अनेक प्राचीन और अद्भुत शिल्पकला वाले भव्य मंदिर हैं जिनकी एक झलक ही हमें हैरान कर देती है। ऐसा भी नहीं है कि ये अद्भुत मंदिर देश के किसी एक हिस्से में हों बल्कि यहाँ पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक चारों ओर ऐसे अनेक मंदिर हैं जिनका धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से तो बेहद महत्त्व है ही लेकिन इसके साथ ही इनकी वास्तुकला और इनसे जुडी कुछ अन्य रोचक बातों की वजह से भी ये पुरे विश्व में बेहद प्रसिद्द हैं।
ऐसे ही एक अद्भुत मंदिर के बारे के हम आपको आज बताने वाले हैं। कर्नाटक में स्थित इस मंदिर का इतिहास और इससे जुडी मान्यताएं तो इसे प्रसिद्द बनाती ही हैं लेकिन इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी इसे पर्यटन की दुनिया में भी काफी लोकप्रिय बनाते हैं। तो चलिए बताते हैं आपको इसकी पूरी जानकारी...
कोटिलिंगेश्वर मंदिर, कोलार
मंदिर के नाम से ही आप समझ गए होंगे कि यह मंदिर महादेव को समर्पित है। अब महादेव के अनेक मंदिरों में आपने दर्शन तो जरूर किये होंगे तो आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में ये भी आप सोच ही रहे होंगे।
कर्नाटक के कोलार जिले में स्थित कोटिलिंगेश्वर मंदिर की महिमा आप मंदिर में प्रवेश करते ही समझ जायेंगे और इस मंदिर के लिए यह कहना एकदम सही बैठता है कि यहाँ कण-कण में भगवान बसते हैं क्योंकि यहाँ 1-2 या 5-10 नहीं बल्कि कुल 1 करोड़ शिवलिंगों के दर्शन आप कर सकते हैं और इसी के साथ पुरे विश्व में मौजूद सबसे ऊँचे शिवलिंगों में से एक शिवलिंग जिनकी ऊंचाई 108 फ़ीट है के साथ 35 फ़ीट ऊंचाई वाले नंदी भी यहाँ विराजमान हैं। यहाँ मुख्य मंदिर का आकार भी शिवलिंग जैसा ही है और वो ही 108 फ़ीट ऊँचे शिवलिंग है जिनके दर्शन करके ही आप हर तरह से शिवमय हो जाते हैं क्योंकि महादेव के इस अद्भुत रूप के दर्शन हर कहीं नहीं हुआ करते और साथ ही आपके महादेव के दर्शनों के बाद जो श्रद्धा का भाव आपके अंदर उत्पन्न होता है उसके साक्षी बनते हैं यहाँ मौजूद करीब 1 करोड़ शिवलिंग। वास्तव में इस मंदिर में बिताया हर पल हमेशा के लिए आपके मन में समां जाने वाला होता है।
मंदिर से जुड़ा इतिहास
ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है जो कि गौतम ऋषि और देवराज इंद्र से जुड़ा है और मुख्य मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी उसी समय का बताया जाता है। इसके अलावा बताया जाता है कि मंदिर के वर्तमान स्वरुप के निर्माण की शुरुआत लगभग 1980 में स्वामी सांभ शिव मूर्ति और उनकी पत्नी वी रुक्मिणी ने करवाया था। अगर शुरुआत की बात करें तो उन्होंने कुल पांच शिवलिंगों से शुरुआत की थी। लेकिन स्वामी सांभ शिव मूर्ति की दृढ इच्छा थी की यहाँ पर करोड़ों शिवलिंग स्थापित हों। उसी इच्छा से बाद में यहाँ 101, फिर 1001 और इससे अधिक शिवलिंगों की स्थापना होती गयी। फिर वर्ष 2018 में स्वामी जी का देहांत हो गया लेकिन उनकी इच्छा के अनुरूप ही आज भी यहाँ लगातार शिवलिंगों की स्थापना होती रहती है और आज के समय यहाँ करीब 1 करोड़ शिवलिंग स्थापित हैं।
इसके अलावा आपको बता दें कि यहाँ 108 फ़ीट ऊँचे शिवलिंग रुपी मुख्य मंदिर और विशाल नंदी जी की मूर्ती का निर्माण 1994 में किया गया था।
मंदिर से जुडी पौराणिक और अन्य मान्यताएं
मंदिर से जुडी एक पौराणिक मान्यता यह बताई जाती है कि यह वही स्थान है जहाँ देवराज इन्द्र ने गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होने के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी और फिर 10 लाख नदियों के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसीलिए पौराणिक व धार्मिक दृष्टि से भी यह स्थान बेहद पवित्र माना जाता है और साथ ही मन्नत पूरी करने वाला भी माना जाता है।
इसके अलावा मंदिर से जुड़ी ये भी मान्यता है कि यहाँ मंदिर परिसर में स्थित 2 वृक्षों पर पीला धागा बांधने से भक्तों की सच्चे मन से की गयी हर मनोकामना पूरी होती है और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब वे वापस आकर यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना भी करवाते हैं और इसी तरह यहाँ लगभग 1 करोड़ शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं। साथ ही आपको बता दें कि यहाँ कोई भी भक्त अपनी इच्छा से 1 से 3 फ़ीट ऊँचे शिवलिंग की स्थापना करवा सकता है।
मंदिर परिसर की अन्य खास बातें
जैसा कि हमने बताया कि 108 फ़ीट ऊँचे शिवलिंग रुपी मंदिर के अलावा यहाँ 35 फ़ीट ऊँचे नंदी जी की मूर्ति भी स्थापित है। यह मूर्ति करीब 60 फ़ीट लम्बे, 40 फ़ीट चौड़े और करीब 4 फ़ीट ऊँचे चबूतरे पर स्थापित है।
इसके अलावा इतने विशाल शिवलिंग के साथ प्राचीन मुख्य मंदिर में शिवलिंग के दर्शन करके चारों ओर 1 करोड़ शिवलिंगों के बीच सच में ऐसा अनुभव होता है जैसे कि आप महादेव लोक में ही पहुँच गए हैं और इन्हीं शिवलिंगो के चारों ओर यहाँ 11 अन्य मंदिर भी जहाँ आपको दर्शन करने जरूर जाना चाहिए। इन मंदिरों में ब्रह्माजी, विष्णुजी, पंचमुखी गणपति जी, राम-लक्ष्मण-सीता जी , पांडुरंगा स्वामी ,अन्न्पूर्णेश्वरी देवी, वेंकटरमानी स्वामी जी के मंदिर मुख्य तौर पर जाने जाते हैं।
साथ ही आपको अब तक ये तो समझ आ ही गया होगा कि यह मंदिर भक्तों के बीच एक बड़ा आस्था का केंद्र भी होगा और इसीलिए यहाँ महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर से आये भक्तों की कतारें लगती हैं। मंदिर की छटा भी महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में देखते ही बनती है जिसके लिए यहाँ पहुँचने वाले कुल भक्तो की संख्या करीब 2 लाख तक पहुँच जाती है।
कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग से
अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो आपको बता दें कि मंदिर पहुँचने के लिए निकटतम एयरपोर्ट बैंगलोर एयरपोर्ट है क्योंकि कोलार में कोई एयरपोर्ट नहीं है। बेंगलुरु के लिए आपको देश या विदेश के सभी बड़े शहरों से आसानी से फ्लाइट मिल जाएगी। फिर बेंगलुरु पहुंचकर आप आसानी से KSRTC बस या फिर किसी टैक्सी वगैरह से आसानी से कोलार में काम्मासांदरा गाँव में स्थित कोटिलिंगेश्वर मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग से
रेलमार्ग से मंदिर तक पहुँचने के लिए आप बैंगलोर या फिर किसी अन्य शहर से कोरमण्डल (कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स) के लिए ट्रेन पकड़ सकते हैं। कोरमण्डल यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जिसकी दुरी मंदिर से सिर्फ 6 किलोमीटर है। यहाँ पहुंचकर आप आसानी से ऑटो वगैरह करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग से
सड़क मार्ग से कोटिलिंगेश्वर मंदिर तक पहुंचना बेहद आसान है। यहाँ पहुँचने के लिए आप बेंगलुरु से NH-75 पर चलते हुए कोलार पहुँच सकते हैं और फिर बंगरपेट होते हुए कोटिलिंगेश्वर मंदिर तक पहुँच सकते हैं। बेंगलुरु से मंदिर तक की दूरी करीब 90 किलोमीटर है।
तो अगर आप बेंगलुरु के आस पास हैं या फिर वहां जाने का प्लान कर रहे हैं तो आपको इस अद्भुत और प्राचीन मंदिर में जरूर दर्शन करने जाना चाहिए। इससे जुड़ी जितनी भी जानकारियां हमारे पास थीं हमने इस लेख के माध्यम से आपसे साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारियां अच्छी लगीं तो प्लीज इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं।
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