यात्राएँ तो हमेशा ही रोमांचित करने वाली होती हैं। लेकिन कुछ जगहें होती हैं जो ज़िंदगी के एलबम में कुछ खास जगह बना लेती हैं। जिसे जब भी पलटा जाए चेहरे पर मुस्कान आ जाए। कोणार्क को देखने के बाद हर कोई यही कहता है। जब आप कोणार्क आते हैं तो आप यहाँ का वातावरण देखकर गर्व से खिल उठेंगे। आप कोणार्क सूर्य मंदिर को निहारेंगे तो अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा से भर उठते हैं। इतिहास के इस युग को, इस पल को देखने का एक सुनहर अवसर देता है कोणार्क। भुवनेश्वर और जगन्नाथ पुरी के पास स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर 800 साल पुरानी एक अनमोल धरोहर है।
आप यहाँ की विहंगम रचना को देखकर आश्चर्यचकित हो जाएँगे। उस समय जब ना बिजली थी और ना ही कोई गाड़ी। ये संसाधन ना होने के बावजूद उस समय के लोगों ने कोणार्क सूर्य मंदिर जैसी रचना बनाई। उस कला को देखकर आज भी मन ही मन प्रणाम करने का मन करता है। कोणार्क के सूर्य मंदिर को 1984 में वर्ल्ड हेरीटेज में जगह दी गई। कोणार्क संस्कृत से लिया गया शब्द है। कोणार्क यानी कि कोण और अरक यानी सूर्य के एक विशिष्ट कोण पर मंदिर की स्थापना। यहाँ शाम का नज़ारा देखना वाकई बेहद खूबसूरत है। सुबह-सुबह सूरज की किरणें मंदिर के गर्भगृह तक जाती हैं। इसलिए इस मंदिर का नाम कोणार्क रखा गया।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास
ओडिशा का समुद्र तट प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। कोणार्क सूर्य मंदिर को गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने बनवाया था। 12वीं शताब्दी में बने विशाल कोणार्क सूर्य मंदिर की रचना अद्भुत है। ये विशालकाय मंदिर किसी विशाल रथ के 12 जोड़ी यानी 24 पहियों पर बना हुआ है। इन 12 पहियों के माध्यम से सात घोड़े जिनके अलग-अलग नाम हैं, इस रथनुमा मंदिर की संरचना को खींच रहे हों, ऐसा विहंगम और खूबसूरत दृश्य सिर्फ यहीं दिखाई पड़ता है।
यदि दूर से सूर्योदय के समय मंदिर को देखें तो ऐसा लगता है जैसे ये मंदिर ज़मीन के नीचे से उग रहा हो। ये सुबह किसी के लिए सबसे खूबसूरत सुबह हो सकती हैं, कभी ना भूल पाने वाली सुबह। उर्जा के स्रोत माने जाने वाले सूर्य के सम्मान में 13वीं सदी में मनीषियों और कलाकारों ने कुछ ऐसा बनाया जो बेहद दुर्लभ और ऐतहासिक है। यहाँ पत्थरों पर उकेरी मूर्तियों की सुंदरता इतनी अनूठी है कि इससे नज़र हटाए न हटे। मंदिर के निर्माण की दिशा पूरब-पश्चिम है और मंदिर के चारों ओर दीवारों पर रथ के 12 पहियों के अलावा पत्थरों पर विभिन्न आकृतियाँ उकेरी गई हैं जो अत्यंत आकर्षक और देखने लायक है। शायद आपको जानकर आश्चर्य हो कि चारों ओर दीवारों पर जो मूर्तियाँ हैं उनमें सूर्य की तीन मूर्तियाँ दूर से ही बेहद खूबसूरत नज़र आती हैं।
इन उकेरे हुए पत्थरों में उस समय के समाज, वैभव और कला के बारे में समझा जा सकता है। ये सब दिखने में वैसा ही है जैसे एक फ्रेम में उकेरी हुई तस्वीर। इन उकेरी हुई तस्वीर में एक फ्रेम है, जो सबसे खूबसूरत है जिसमें एक छोटा बच्चा जिसके बाल घुंघराले हैं, उसके हँसते चेहरे पर एक- एक दाँत बहुत सुंदर लगता है। इसी तरह का एक और पत्थर का फ्रेम है जिसमें हाथी के साथ जिराफ का चित्र भी है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि जिराफ अफ्रीका का जानवर है। शायद उस जमाने में अफ्रीका तक कोणार्क के राजा का व्यापार फैला होगा। तब यहाँ के राजा को, वहाँ के राजा ने उपहार में ये जिराफ दिया होगा।
मंदिर की दीवारों पर देवताओं के अलावा पेड़-पौधे और जानवरों के साथ अलंकृत है। इसी तरह की कई मूर्तियाँ आपको मंदिर में उकेरी हुई मिल जाएँगी। मंदिर के गेट पर एक अलौकिक मूर्ति का जोड़ा स्थापित है जिसमें सबसे नीचे धराशायी मानव के उपर एक हाथी और सबसे उपर एक सिंह को प्रदर्शित करता है। काम-कला की विभिन्न विधाएँ भी इन्हीं पत्थरों की मूर्तियों में प्रदर्शित होती है जो आश्चर्यचकित किए बिना रहने नहीं देती। मंदिर के गर्भगृह में जाना प्रतिबंधित है क्योंकि मंदिर के कमजोर होने का डर रहता है। इसी वजह से प्रशासन ने मंदिर को भीतर से कई सहारे दिए हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर: कई आम किस्से
इस मंदिर के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जिसमें से एक है कि गर्भगृह में एक बड़ा चुंबक स्थित था, जिससे मंदिर की बड़ी दीवारें सुरक्षित रहती थीं। लेकिन इस बड़े चुंबक से पड़ोस के बंदरगाह से आने-जाने वाले पानी के जहाजों के कंपास में दिशाभ्रम होता है। इसी वजह से ब्रिटिश काल में इस चुंबक को तोड़ दिया गया। एक लोककथा ये भी है कि मंदिर के गर्भगृह में एक बहुत बड़ा हीरा रखा हुआ था जिसके भीतर से सूरज की किरणें गुजरती थीं। इस हीरे को विदेशियों ने वहाँ से हटवा दिया।
इन कहानियों के बारे में ये तो बता पाना कठिन है कि ये कितनी सही है, लेकिन ये बात पक्की है कि उस समय भी विज्ञान बहुत अच्छा था। ऐसा भी कहा जाता है कि 1627 में इस मंदिर के गिरने के खतरे को भांपकर खुर्दा के राजा ने गर्भगृह में स्थापित सूर्य की मूर्ति को जगन्नाथ पुरी मंदिर में भिजवा दिया था। इस मंदिर को चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थापित किया गया है। आज भी यहाँ हर साल वसंत पंचमी के दो दिन बाद बड़ा मेला लगता है। लाखों लोग चन्द्रभागा के इस जलकुंड में स्नान करते हैं। यदि आप सुबह के समय इस कोणार्क मंदिर की यात्रा करें, एक अच्छे गाइड को अपने साथ रख लें तो आपको बहुत-सी अद्भुत जानकारियाँ-कथाएँ जानने को मिलेंगी जो आपको यहाँ के आकर्षण में बांध देंगी।
जब कोई जानकार गाइड इस सूर्य मंदिर के रथनुमा पहियों की धुरी पर सूर्य की रोशनी से 1 मिनट के अंदर तक की गणना कर बता देता है, जब आप अपनी घड़ी देखते हैं उस समय आप आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते कि आज 800 साल पहले भी विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर था। आधुनिकता तब भी थी और लोगों की बुद्धि का स्तर, विज्ञान की जानकारी भी बहुत ज्यादा थी। अंग्रेजों के समय में इस मंदिर के संरक्षण के कई प्रयास किए गए। हाल ही में प्रचलन में आए दस के नोट में भी इस कोणार्क मंदिर के एक पहिए का सजीव चित्र दिखाई पड़ता है। आर्कियोलाॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इस राष्ट्रीय और विश्व धरोहर को बचाने का प्रयास किया है। लेकिन संभवतः अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।