कोपेश्वर मंदिर: भारतीय वास्तुकला का अनोखा अजूबा जिसे हम भारतीयों ने ही भुला दिया

Tripoto
15th Oct 2023
Photo of कोपेश्वर मंदिर: भारतीय वास्तुकला का अनोखा अजूबा जिसे हम भारतीयों ने ही भुला दिया by रोशन सास्तिक

कोपेश्वर। इस शब्द का सरलतम अर्थ है क्रोधित शिव। यानी आज हम आपको जिस कोपेश्वर मंदिर के दर्शन कराने वाले हैं वो भगवान भोलेनाथ के क्रोधित रूप से जुड़ा हुआ है। यहां पर भगवान विष्णु जी भी मौजूद हैं। जो कि इस मंदिर को संभवतः अकेली ऐसी जगह बनाती है जहां भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों एक साथ पूजे जाते हैं। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि भगवान शिव जी के क्रोधित स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में नंदी महाराज की कोई मूर्ति स्थापित नहीं की गई है। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों भला। तो ऐसा है कि कोपेश्वर मंदिर से लेकर इन सभी अलग और विचित्र घटनाओं के पीछे एक बेहद दिलचस्प कहानी है। तो फिर चलिए पहले इस दिलचस्प कहानी को जान लेते हैं, फिर बाकी विषयों पर बात की जाएगी। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने अपनी ही पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव जी के अलावा अन्य सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा था। क्योंकि दक्ष प्रजापति को शिव जी के साथ मां सती का विवाह कुछ खास पसंद नहीं आया था। भगवान शिव जी ने मां सती को समझाया कि अगर उन्हें निमंत्रण नहीं मिला है तो उनका वहां जाना सही नहीं होगा। लेकिन पितृमोह में निमंत्रण ना मिलने के बावजदू मां सती अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में पति महादेव की मर्जी के बगैर नंदी पर सवार होकर चली गईं। परंतु यज्ञ में आकर उन्हें स्वयं अपने पिता द्वारा अपने और अपने पति के प्रति अपमानजनक बातें सुननी पड़ गईं। जो कि उनसे बर्दाश्त नहीं हुईं और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में कूद कर आत्मदाह का लिया।

मां सती द्वारा आत्मदाह की खबर लगते ही भगवान शिव वहां पहुंचे और उन्होंने क्रोधवश दक्ष प्रजापति का सिर ही धड़ से अलग कर दिया। भगवान विष्णु ने वहां पहुंचकर शिव जी को शांत करने की कोशिश की। उनके कहने पर शिव जी ने दक्ष प्रजापति को जीवन दान देते हुए सिर तो लगा दिया लेकिन बकरे का सिर लगाया। इसके बाद शिव जी के क्रोध को पूर्ण रूप से शांत करने के लिए भगवान विष्णु उन्हें अपने साथ कोल्हापुर के इसी स्थान लेकर आए। भगवान शिव के क्रोधित स्वरूप की मौजूदगी के चलते ही इस मंदिर का नाम कोपेश्वर पड़ा। उनके साथ भगवान विष्णु भी इस जगह पर आए थे इसलिए इस मंदिर में उनकी भी मौजूदगी है। भगवान विष्णु यहां लिंग स्वरूप में मौजूद हैं और उनकी पूजा गोपेश्वर नाम से की जाती है।

अब रही बात शिव मंदिर में नंदी की मूर्ति ना होने की तो उसके पीछे की वजह कहानी की शुरुआत में ही मिल जाती है। क्योंकि मां सती अपने माता-पिता के घर जाते वक्त नंदी महाराज पर ही सवार थी। इसलिए शिव जी जब विष्णु जी के साथ यहां आए तो उनके साथ नंदी महाराज नहीं थे। वैसे आपको को यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि यहां से 12 किमी दूर कर्नाटक के यदुर गांव में नंदी महाराज का मंदिर मिलता है। जो कि संभवतः एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ नंदी महाराज की मूर्ति मौजूद है। यह तो रही कोपेश्वर मंदिर के अस्तित्व में आने के पीछे की आध्यात्मिक कहानी। लेकिन कोपेश्वर मंदिर सिर्फ इस पौराणिक कहानी के चलते ही आकर्षण का केंद्र नहीं है। मंदिर अपनी आश्चर्यजनक वास्तुकला के चलते भी प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल है।

कोपेश्वर मंदिर के निर्माण को लेकर इतिहासकारों का एक धड़ा यह कहता है कि मंदिर का निर्माण बादामी चालुक्य वंश द्वारा 7वीं शताब्दी में किया गया। तो वहीं इतिहासकारों का एक पक्ष मंदिर निर्माण का समय 9वीं शताब्दी बताता है और इसका श्रेय कल्याणी चालुक्य वंश को देता है। हालांकि सर्वमान्य इतिहास के तहत वर्तमान में मौजूद कोपेश्वर मंदिर की संरचना के निर्माणकर्ता के रूप में शिलाहर शासकों को स्वीकृत किया गया है। महाराष्ट्र के मूल निवासी माने जाने वाले शिलाहरो ने 12वीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया। मंदिर में मौजूद 12 शिलालेख में से 11 शिलालेखों पर प्राचीन कन्नड़ लिपि अंकित हैं। इनमें से महज एक शिलालेख पर देवनागरी लिपि का इस्तेमाल किया गया। इन शिलालेखों पर मंदिर के निर्माण और इसके निर्माणकर्ताओं से जुड़ी कोई खास जानकारी नहीं लिखी गई है। हालांकि एक शिलालेख पर देवगिरी के यादव शासकों द्वारा इसके जीर्णोद्धार का जिक्र जरूर मिलता है। जो यह साबित करता है कि कोपेश्वर मंदिर का अस्तित्व कम से कम 1000 साल पुराना तो है ही।

कोपेश्वर मंदिर की बेजोड़ बनावट को निम्नलिखित 3 हिस्सों में बांटा जा सकता है।

स्वर्ग मंडप:- नाम में क्या रखा कहने वाले यहां आकर समझ सकते हैं कि नाम में ही सब कुछ छिपा हुआ है। क्योंकि अपने नाम के अनुसार ही स्वर्ग मंडप आपको इसमें प्रवेश में बाद स्वर्ग लोक में पहुंच जाने का बेहद अनोखा अनुभव कराता है। स्वर्ग मंडप में प्रवेश के लिए कुल चार प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। इसकी संरचना मुख्यतः तीन घेरों के जरिए की गई हैं। पहले घेरे में 12 स्तंभ, दूसरे घेरे में 16 स्तंभ और फिर तीसरे घेरे में 12 स्तंभ बने हुए हैं। इसके साथ ही आधार के लिए मंडप के चारों तरफ 2-2 स्तंभ खड़े हैं। मंडप की परिधि में आप भगवान गणेश, कार्तिकेय स्वामी, भगवान कुबेर, भगवान यमराज, भगवान इंद्र की मूर्तियों को उनके वाहक मोर, चूहे, हाथी आदि के साथ देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त स्वर्ग मंडप में 9 ग्रहों को समर्पित 9 कलाकृतियां भी देखने लायक हैं।

कुल 48 स्तंभों पर आधारित गोलाकार मंडप की छत खाली छोड़ दी गई है, जिसका व्यास 13 फीट का है। इस 13 फीट के खाली स्थान से आपको रात के वक्त सितारों से भरा खाली आसमान देखने के बाद ही समझ आता है कि क्यों इसे स्वर्ग मंडप कहा जाता है। 13 फीट व्यास वाला यह खाली इलाका दरअसल हम भारतीयों के अद्भुत वास्तुकला के साथ ही खगोलशास्त्र और ज्योतिष विज्ञान के मामले में अति-आधुनिकता की भी निशानी है। कहा जाता है कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा की रात को चंद्रमा स्वर्ग मंडप के एकदम मध्य में आ जाता है। इस दर्शनीय लेकिन बेहद दुर्लभ नजारे का साक्षीदार बनने की खातिर कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर परिसर में भक्तों की तांता लग जाता है।

सभा मंडप:- अब हम मंदिर के दूसरे हिस्से यानी सभा मंडप में प्रवेश के लिए तीन प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। पहला तो स्वर्ग मंडप से बना हुआ है और अन्य दो प्रवेशद्वार मंदिर के उत्तर तथा दक्षिण दिशा में मौजूद हैं। सभा मंडप के प्रवेशद्वार की दीवार पर मां सरस्वती की नक्काशीदार मूर्ति बनाई गई है। इसके अतिरिक्त इसके ऊपरी हिस्से में भी पूर्ण कलश की सुंदर नक्काशी की गई है। आप प्रवेशद्वार पर दोनों तरफ 5-5 द्वारपालों की नक्काशी को भी देख सकते हैं। विदेशी हमलावरों के चलते इनका गदा भले टूट गया हो, लेकिन आक्रमणकारियों की लाख हमलों के बावजूद इनकी खूबसूरती का बाल भी बांका नहीं हो पाया है। सभा मंडप को भी कुछ कुछ स्वर्ग मंडप की ही तरह बनाया गया है। इसे 3 घेरों के जरिए 60 स्तंभ के आधार पर खड़ किया गया है। इसकी दीवारों पर नक्काशी के जरिए पौराणिक कथाओं को भी अंकित किया गया है।

गर्भगृह:- मंदिर के गर्भगृह में आकर आपको इस जगह के मूल यानी भगवान शिवजी के क्रोधित स्वरूप के प्रतीक लिंग के दर्शन होते हैं। जिनकी पूजा यहां पर कोपेश्वर महादेव के रूप में की जाती है। इनके ठीक बगल में आपको एक और लिंग नजर आता है, जो कि भगवान विष्णु जी के शांत स्वरूप को प्रदर्शित करता है। क्योंकि भगवान विष्णु जी ही शिव जी को शांत करने के लिए उन्हें अपने साथ लेकर यहां आए थे। इसलिए कोपेश्वर मंदिर में उनके इस स्वरूप की गोपेश्वर के रूप में पूजा की जाती है। यही एक बात इस मंदिर को और ज्यादा खास बना देती है कि एक ही स्थान पर सृष्टि के पालनहार और सृष्टि के संहारक दोनों की पूजा की जाती है। गर्भगृह में ही आपको एक अंधेरी गुफा भी दिख जाएगी। जो कि यहां बैठकर ध्यान लगाने के उद्देश्य से बनाई गई है।

कोपेश्वर मंदिर को अंदर से जी-भरकर देख लेने के बाद बारी इसकी बाहरी कलाकृतियों को बारीक नजर से देखने की आती है। इस दौरान आपको 12 हाथियों वाला एक पैनल नजर आता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानों इनपर लादकर मंदिर को कहीं ले जाया जा रहा है। वैसे मंदिर के निर्माण में जिन कठोरतम चट्टानों के इस्तेमाल किया गया है वो मंदिर से करीब 100 किमी दूर सह्याद्री पहाड़ से काटकर ही लाए गए होंगे। तो संभव है कि उनको पत्थरों को ढोकर लाने में इन हाथियों का इस्तेमाल किया गया हो। आप अगर करीब से इन हाथियों को देखेंगे तो पाएंगे कि हर हाथी को अलग तरह से तराशा गया है और उनके ऊपर विराजमान देवता भी अलग-अलग ही हैं। इसके अलावा सभा मंडप की बाह्य दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, कृष्ण, शिव जैसे देवताओं और देवियों की मूर्ति के साथ ही रामायण तथा महाभारत की कहानी को प्रदर्शित करती अतुलनीय नक्काशी भी मौजूद है।

कोपेश्वर मंदिर का इतिहास जान लेने के बाद अब हम इसकी थोड़ी भौगोलिक स्थिति को भी जान समझ लेते हैं। कोपेश्वर मंदिर महाराष्ट्र-कर्नाटक के बॉर्डर पर कोल्हापुर जिले के सांगली इलाके में स्थित खिद्रपुर नामक गांव से होकर गुजरती कृष्णा नदी के किनारे मौजूद है। अगर आप हवाई मार्ग के जरिए यहां आना चाह रहे हैं तो फिर आपको मंदिर से 170 किमी दूर स्थित हाल ही में बनाए गए बीजापुर एयरपोर्ट उतरना होगा। यहां से आप निजी गाड़ी या फिर बस के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। ट्रेन से सफर करने वालों के पास सांगली या फिर कोल्हापुर रेलवे स्टेशन तक का सफर करने का विकल्प होते है। सांगली से मंदिर की दूरी महज 40 किमी है और कोल्हापुर से यह फासला करीब 60 किमी का है। यदि आप अपने निजी वाहन के सहारे सफर तय करने की सोच रहे हैं तो भी आप आसानी से अपने शहर से मंदिर तक का सफर तय कर सकते है।

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