कूड़ा दो, खाना लो! प्रदूषण और भूख मिटाने की अनोखी मिसाल दे रहा है छत्तीसगढ़ का ये कैफे

Tripoto

सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन ऐसी ही अनोखी और बेहतरीन पहल की शुरुआत की है छत्तीसगढ़ के छोटे से शहर अम्बिकापुर ने। पर्यावरण संरक्षण के मामले में पहले से ही सुर्खियाँ बटोर चुका अम्बिकापुर अब अपने गार्बेज (कूड़ा) कैफे के साथ देश और दुनिया के लिए एक नई प्रेरणा बन रहा है।

ये कैफे प्लास्टिक प्रदूषण और भूख- इन दोनों समस्याओं का हल लेकर आया है।

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गार्बेज कैफ़े स्थानीय प्रशासन की एक अभूतपूर्व पहल है जोकि प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण, लैंडफिल और कम आय वर्ग के लोगों में कुपोषण जैसी गंभीर समस्याओं से निजात पाने में मदद कर सकती है। इस स्कीम के तहत नगर निगम गरीब लोगों को बेकार प्लास्टिक इकट्ठा कर जमा करने के बदले खाना दिया जाएगा। जो लोग 1 किलो प्लास्टिक ले कर आते हैं उन्हें पूरा भोजन दिया जायेगा और जो 500 ग्राम प्लास्टिक ले कर आते हैं उन्हें पौष्टिक नाश्ता दिया जाएगा।

गार्बेज कैफ़े की यह स्कीम उन लोगों के लिए मददगार है जो शहर के आस-पास के कूड़े से पॉलिथीन और बेकार प्लास्टिक इकठ्ठा करते हैं जिसे रीसायकल कर के दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे 2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान के साथ भी जोड़ा जा रहा है।

अम्बिकापुर देश भर के लिए मिसाल है!

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फिश पॉइंट, मैनपाट, अम्बिकापुर

अम्बिकापुर पिछले कुछ सालों में देश के सबसे इको-फ्रेंडली जगहों में उभर कर सामने आया है। यहाँ पर 8 लाख पॉलिथीन बैग्स और एस्फाल्ट से तैयार रोड पहले से ही प्रशासन के लिए गौरव का प्रतीक बन चुका है। साथ ही साथ शहर में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर कड़ा प्रतिबन्ध भी लगा दिया जा चुका है। इन कदमों का ही नतीजा है किअम्बिकापुर, इंदौर के बाद, देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर भी घोषित किया जा चुका है>

गार्बेज कैफे की इस स्कीम को 5 लाख रुपए का बजट दिया गया है जिसके तहत जो लोग प्लास्टिक इकठ्ठा करते हैं उनके लिए भोजन और रहने भी किया जाएगा।

इन अथक प्रयासों ने अम्बिकापुर जैसा छोटे शहर को देश में एक अलग पहचान दे ही है और अब यह एक ऑफ-बीट डेस्टिनेशन की तरह उभर रहा है जहाँ जाने के लिए लोग बेताब हैं।

अम्बिकापुर के नगर निगम द्वारा उठाए गए इन क़दमों के नक़्श-ए-क़दम चलते हुए हमें भी प्लास्टिक के इस्तेमाल को काम करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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