कलकत्ता ने देश को काफी कुछ दिया है। एक से बढ़ कर एक कवि, संगीतकार, लेखक, शिक्षाविद, साहित्यकार, फिल्म जगत के दिग्गज, और बहुत कुछ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सत्यजीत रे, विक्रम सेठ, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, लिएंडर पेस, वाणी गणपति, सौरव गांगुली, और ना जाने कितनी मशहूर हस्तियाँ जिन्होनें भारत में खेल और संगीत जगत, सिनेमा, साहित्य, राजनीति और आध्यात्म को नए आयाम दिए हैं। अपनी बात करूँ तो मेरे दादाजी ने भी कलकत्ता में ही सोने-चांदी और रत्न-जवाहरात का काम सीखा था। फिर जयपुर आकर उस काम को नए आयामों पर पहुँचाया।
तो बचपन से ही मैं कलकत्ता घूमने जाना चाहता था। फिर कुछ वक़्त पहले अचानक मेरे एक दोस्त ने अपनी शादी का न्योता भेजा तो मैनें अपना सामान बाँधा और कलकत्ता के लिए निकल पड़ा।
सोचा था कलकत्ता जाते हुए ही रास्ते में बोधगया, उज्जैन, अलाहाबाद और वाराणसी जैसी जगहें भी घूम लूँगा, मगर संयोग से सीधा कलकत्ता ही पहुँच गया। ये सारी जगहें आते हुए रास्ते में कवर की। मगर इनके बारे में फिर कभी लिखूँगा। इस बार तो मैं आपको कलकत्ता के कुछ ऐसे लज़ीज़ व्यंजन बताऊँगा जो आपको यहाँ ज़रूर चखने चाहिए :
ऐपेटाइज़र (कुछ चटपटा )
काठी रोल
करारे लच्छे परांठे में लिपटे गरमा-गर्म कबाब जो मुँह में रखते ही घुल जाते हैं। काठी का मतलब वो लकड़ी की सींक जिस पर कबाब सेके जाते हैं। ये कलकत्ता की पूरे देश को देन है। हमारा देसी फास्ट फ़ूड है, जिसे आप अपने साथ ले जा सकते हैं। खाने में आसान, ले जानें आसान और स्वाद ऐसा कि मैं रोज़ शाम को एक हल्का-फुल्का काठी रोल खाने पार्क स्ट्रीट चला जाता था।
पुचका
गोलगप्पा, पानीपूरी, बताशे, पुचका, गुपचुप, पानी-पताशे। इस पपड़ी में भरे आलू मसाले और खट्टे मीठे पानी के नाश्ते को देश की अलग-अलग जगहों पर अलग अलग नामों से जानते हैं। पूरे कलकत्ता में आपको हर गली-कूंचे पर पुचका वाला खड़ा दिख जायेगा।
फिश/चिकन कबिराजी
जितना अजीब नाम, उतना ही अजीब ये व्यंजन है। चिकन या मछली के मसालेदार टुकड़े को आलू के लम्बे पतले लच्छों में लपेट कर डीप फ्राई किया जाता है। और आपके सामने परोसा जाता है। एक ऐसा व्यंजन जो ऊपर से करारा तो अंदर से बेहद नरम- मुलायम होता है। पिछले कई दशकों से एस्पलेनैड इलाके के मित्रा कैफे में हरी चटनी और प्याज के साथ परोसा जाता है।
घुगनी
सफ़ेद छोलों को उबाल कर ऊपर से बारीक कटे टमाटर, प्याज, हरी मिर्च और धनिया डाला जाता है और नमक, लाल मिर्च, पिसा जीरा और खट्टी-मीठी चटनी डाल कर दोने में परोसा जाता है। हेल्दी भी, टेस्टी भी।
मेन कोर्स (भर पेट खाना )
कोशा मांगशो
बांग्ला भाषा में कोशा का मतलब होता है मटन। मटन के बड़े टुकड़ों को प्याज और खड़े मसालों के साथ नरम होने तक पकाया जाता है और फिर परांठों के साथ खाया जाता है। तीखे मिजाज़ के लोगों को ये तीखी डिश काफी पसंद आएगी।
माछर झाल
कलकत्ता की सिग्नेचर डिश। माछर मतलब मछली और झाल मतलब रस। सरसों के तेल में मछली की रसदार करी बनायी जाती है। अगर कलकत्ता में ये डिश खाने का मन बनाएँ तो रेस्टोरेंट वाले से दरख्वास्त करके मूढा भी लाने को कहें। मछली के मुँह को मूढा कहते हैं, जिसे बंगाली लोग बड़े चाव से भात के साथ खाते हैं।
भेटकी पातुरी
भेटकी प्रजाति की मछली को केले के पत्ते में लपेट कर मोमोज़ की तरह भाप में पकाया जाता है। मछली को पत्ते में लपेटने से पहले उसपर अदरक-सरसों का लेप लगाया जाता है। मैनें हर दो-तीन दिन में एक बार भजोहरी मात्रा नाम के रेस्टोरेंट में इस डिश का डिनर किया था।
लुच्ची
जिसे उत्तर भारत में पूरी, पंजाब में भटूरा कहते हैं, उसे बंगाल में लुच्ची कहते हैं। खमीर उठे मैदा की रोटियों को तलकर फुला लिया जाता है। पहले करारेपन के बाद मैदे की हलकी-हलकी मिठास महसूस होती है।
बिरयानी
कलकत्ता जैसा मुग़लई खाना दिल्ली में भी ढूँढने से ही मिलता है। सफ़ेद-सुनहरे चावलों में पका हुआ गोश्त। कलकत्ता के अरसलान रेस्टोरेंट के बाहर से गुज़र कर दिखाओ। अगर खुशबू आपको आपको भीतर ना खींच ले तो कहना।
डेज़र्ट (मिठाइयाँ ही मिठाइयाँ)
बांगला जैसी मीठी भाषा जहाँ पनपी है, वहाँ की मिठाइयाँ कितनी मीठी होती होंगी। कलकत्ता की मिठाइयाँ तो पूरे देश में मशहूर हैं ही, मगर इनमें से कुछ मिठाइयाँ ऐसी हैं जिनका असली स्वाद आपको यहीं मिल पाएगा। और सबसे अच्छी बात ये है कि मिठाइयों पर एक पीस का दाम भी लिखा होता है। तो आपको हरेक मिठाई को चखने में बड़ी आसानी होगी और कोई भी मिठाई किलो के हिसाब से नहीं खरीदनी पड़ेगी।
बेक्ड रोशोगुल्ला
आखिरकार वो मिठाई जिसके लिए बंगाल को जाना जाता है। मगर क्या आपको पता है कि असल में रोशोगुल्ला बंगाल की नहीं, बल्कि उड़ीसा की देन है। छेने से बना ठंडा-ठंडा रसगुल्ला मुँह में डालते ही स्वर्ग की सैर हो जाती है।
शोन्देश
छेने में खांड यानी बूरा मिला कर खूब मुलायम होने तक रगड़ा जाता है। फिर ऊपर से पिस्ता के लच्छे और इलायची पाउडर से सजा कर परोसते हैं। इन्हें बंधवा कर अपने साथ लाने की ज़हमत न उठाएँ क्योंकि ये एक-दो दिन में ही खराब हो जाते हैं। इन्हें ताज़ा-ताज़ा ही खाया जाए तो बढ़िया है।
रसमलाई
चपटे रसगुल्ले को रबड़ी वाले गाढ़े मीठे दूध में डुबाया जाता है और ऊपर से केसर के तारों से सजाया जाता है। तब जा कर रसगुल्ले को रसमलाई कहते हैं।
मिष्टी दोई
चीनी को आँच पर सुनहरा होने तक गलाते हैं और फिर दूध में मिला कर पकाते हैं। इस मीठे दूध को ठंडा होने पर दही डाल कर मिट्टी के बर्तन में जमा दिया जाता है।
कुल्हड़ में जमे ठंडे मिष्टी दोई को मदर डेयरी की 10 रुपये वाली प्लास्टिक की डिब्बी वाली गन्दगी से जोड़ने की कोशिश भी मत करना। स्वाद में आकाश-पाताल का फर्क मिलेगा। कुल्हड़ के हिसाब से या ग्राम के हिसाब से भी खरीद सकते हो।
मुखवास
पान
पान के नाम पर दो ही जगह का नाम याद आता है : बनारस और कलकत्ता।
कलकत्ते के पान में मीठा काम और चूना-कत्था ज़्यादा होता है। बनारसी पान की एवज में पत्ता भी मोटा और गहरे हरे रंग का होता है। खाने के बाद आपको कलकत्ता में अधिकतर लोग पान की मनुहार करते मिलेंगे।
इतना कुछ खाने के बाद पचाना तो पड़ेगा ना !
मैं लगभग 10 दिन तक कलकत्ता रहा। हरेक दिन मेरे नाश्ते, खाने और डिनर में कुछ नया होता। कलकत्ता में मैनें दिल खोल कर खाया, मगर फिर भी लौटते वक़्त पेट ही भर पाया, मन नहीं।
आप भी कलकत्ता जाकर आएँ हैं तो वहाँ के खाने-पीने के बारे में मुझे बताओ। कमेंट्स सेक्शन में दिल खोल कर लिखो।
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