"सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है"
"सूरत नहीं सीरत अच्छी होनी चाहिए"
"बीते ज़माने की बात ही कुछ और थी"
ऐसी कितनी ही बातें हम बड़े-बुज़ुर्गों के मुँह से सुनते हैं। और बाकी बातों की तरह ये भी हमारे सर के ऊपर से निकल जाती हैं। मगर गहराई से सोचें तो ऐसी हरेक बात को आप सोने के भाव में तोल सकते हो। ऐसे ही अगर कहीं घूमने जाने की बात करें तो हम में से ज़्यादातर लोग किसी चमक-दमक वाली जगह जाना चाहेंगे। जाना भी चाहिए। मगर क्या एक बार ऐसी जगह भी घूमने जानी चाहिए जो आज भी बीते ज़माने के गाने गुनगुनाती हो, चमक ऊँची इमारतों के साथ लोगों की आँखों में भी हो, वो जगह जो आज भी अपनी जड़ों से उसी कदर जुड़ी है, जैसे आज से कई साल पहले थी, जहाँ घूमकर आपको लगेगा मानों इतिहास के कई पुलिंदे पढ़ डाले हों। आपके नज़रिये में वास्तविकता का पुट आ जायेगा।
मैं कलकत्ता की बात कर रहा हूँ।
कलकत्ता
कुछ महीने पहले मेरा कलकत्ता घूमने जाने का प्रोग्राम बना। इंस्टाग्राम पर शाउट-आउट के बाद यहाँ का ही एक लोकल बंगाली लड़का मुझे कलकत्ता घुमाने के लिए राज़ी हो गया।
उसने बताया कि सुबह-सुबह ही नाव में चढ़कर हुगली नदी पार करने वालों की भीड़ लग जाती है। पुरानी खटारा टैक्सियों से आए दिन सड़कें जाम हो जाती है। गरीबी इतनी कि आज भी लोग हाथ से रिक्शा खींचते हैं। कड़वे तेल में बना खूब तेल-मिर्च मसाले का खाना बनता है।
मगर फिर जब सुबह उसके साथ घूमने निकला तो देखा कि,
असल में कलकत्ता आज भोर होते ही हुगली नदी को प्रणाम करता है। जहाँ नए ज़माने की ओला-ऊबर के अलावा सदियों पुरानी अनोखी काली-पीली टैक्सियाँ भी चलती हैं, जो लोग पुरानी हिंदी फिल्मों में ही देख पाते हैं। यहाँ आज भी चंद रुपयों की बख्शीश की एवज में हाथ रिक्शे वाला आपको बाबू-बाबू कहता ख़ुशी से बाज़ारों में घुमा देगा, जहाँ के खाने का बंगाली और मुग़लई स्वाद आपके जुबान पर ऐसा चढ़ेगा कि फिर ऐसा ज़ायका आप दिल्ली-लखनऊ में खोजते रह जाएँगे।
जब मैनें इस चीज़ों के बारे में अपने बंगाली दोस्त से बात की तो उसने हँस कर कहा कि कलकत्ता की इन खूबियों पर गौर कर पाना हरेक के बस की बात नहीं है। अगर ये शहर आपको भा गया तो आप फिर से यहाँ आने के बहाने ढूँढेंगे अगर आज आपके पास कलकत्ता आने का कोई बहाना नहीं है, तो मैं आपको कुछ दिए देता हूँ।
ट्राम में बैठ के निकल जाइए अतीत की सैर पर
सडकों पर बिछी पटरियों पर बिजली से चलती ट्राम अंग्रेज़ों के ज़माने से कलकत्ता की शान है। हो सकता है कि आप ट्राम में बैठे हों और खिड़की से बाहर देखने पर पैदल इंसान ज़्यादा तेज़ी से आगे जाता दिख जाये। इतनी हौले चलती है कि आप चलती ट्राम से उतर सकते हैं। मगर कलकत्ता में तेज़ी से चलना किसे है ? यहाँ तो हर गली-चौराहे और नुक्कड़ पर जाने क्या दिख जाए।
बाबूमोशाय हाथ रिक्शा की सैर हो जाए
यहाँ का हाथ रिक्शा भी कलकत्ता की पहचान है। कंधे पर गमछा और घुटनों पर लुंगी लपेटे रिक्शा खींचने वाला आपको बढ़िया सैर करवा देगा, वो भी कुछ रुपए में ही। वैसे तो पतले से आदमी को घोड़े की जगह हाथ रिक्शा यानी ताँगा खींचते देख आपका दिल भर आएगा, मगर यही उसकी रोज़ी है। तो अगर आप ठीक-ठाक वज़नी हैं तो ज़रूर बैठिये।
कलकत्ता पुलिस के कपड़ों जितनी ही साफ़ इनकी नीयत है
यहाँ पुलिस वाले आपको खाकी नहीं बल्कि सफ़ेद-झक वर्दी में मुस्तैदी से तैनात दिखेंगे। ऐसी इसलिए क्योंकि कलकत्ता पुलिस को ब्रिटिश राज में तैनात किया गया था। दिन-पर-दिन शहर में भीड़ बढ़ती जा रही है, मगर यहाँ की पुलिस का अनुशासन ऐसा काबिलेतारीफ कि सड़क पर चलते हुए आपको काफी सुरक्षित महसूस होगा।
भारत का चाइनाटाउन कलकत्ता में है
सुबह सूरज उगने से पहले कलकत्ता का तिरेटी मार्किट खुल जाता है। यहाँ आप चीनी दवाइयों से लेकर, खाने का सामान, मांस, सॉसेज, जड़ी-बूटियाँ और बहुत कुछ मिलेगा। ये भारत का इकलौता चाइनाटाउन भी है। आते हुए आप यहाँ से चीनी अखबार खरीद सकते हैं या हाथ से बनाए जूते भी ले सकते हैं।
दुर्गा पूजा के दौरान एक से दूसरे पंडाल में घूमने की मस्ती
चाहे आप बंगाली हो या न हों, दुर्गा पूजा के हुड़दंग में शामिल होना ही होगा। लज़ीज़ खाने की खातिर, लोगों को हँसते-नाचते देखने के लिए, सुन्दर-सुन्दर रंगीले कपड़ों में इधर-उधर फुदकते माँ दुर्गा के ये भक्त कलकत्ता को और भी मस्त बना देते हैं।
ईडन गार्डन स्टेडियम का नाम तो सुना ही होगा
कलकत्ता में खेलों के दीवाने बहुत हैं, जिसके चलते यहाँ सॉल्ट लेक स्टेडियम बना है जो न सिर्फ भारत का सबसे बड़ा स्टेडियम है, बल्कि पूरी दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा फुटबॉल स्टेडियम भी है। इसके अलावा यहाँ ईडन गार्डन स्टेडियम तो है ही, जहाँ 70000 लोग बैठ सकते हैं। ये दुनिया का तीसरे नंबर का ऐसा स्टेडियम है जहाँ सबसे ज़्यादा लोग बैठ सकते हैं।
फ्लोटिंग मार्किट देखने थाईलैंड क्यों जाना ? यहाँ कलकत्ता में भी तो है
बाईपास बनाने में हुई तोड़फोड़ के चलते कलकत्ता के एक बाजार को हटाया तो गया, मगर उसे बेहतर तरीके से बसाया भी गया। पानी पर तैरती 114 नावों पर बानी 280 दुकानों में साग-सब्जियां, फल, मांस-मछली और जड़ी-बूटियाँ बेची जाती है। इस बाज़ार का नाम है पतौली बाज़ार। यहाँ आप आराम से घूमते-घामते खरीदारी का मज़ा ले सकते हो। हजामत बनवाने मन हो तो यहाँ पानी पर तैरते दो सैलून भी है।
कलकत्ता के खाने के स्वाद में खोकर प्लेट मत चबा जाना
फूडी तो मैं हूँ ही। ऐसे में अगर कलकत्ता जाएँ और अर्सलान की बिरयानी या सड़क किनारे काटते-मीठे गोलगप्पे न खाये तो क्या फायदा। यहाँ एक के बाद एक इतनी स्वादिष्ट चीज़ें सामने आती जाती है कि वज़न संतुलित रखने के लिए चाहे रोज़ सुबह मैराथन दौड़ लो।
क्या कभी कलकत्ता घूमे हो ? कैसा लगा घूमके ? कमेंट्स में लिखो।
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