कलकत्ता का नाम लेते ही दिमाग़ में मछली, चश्मा लगाए बंगाली और सौरव गांगुली जैसी चीज़ें ही आती है | और आए भी क्यों ना? सालों साल फिल्मों और गानों में यही तो देखते और सुनते आए हैं |
मगर कलकत्ता की खिचड़ी में एक ऐसा तड़का भी है जिसकी महक आज सैकड़ों साल बाद भी यहाँ की हवा में तैर रही है | ये तड़का आज से 200 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के अँग्रेज़ों ने लगाया था | यहाँ का ख़ान-पान, बोलचाल और रहन-सहन, सभी कुछ ब्रिटिश राज से प्रभावित हुआ और आज भले ही ब्रिटिश भारत छोड़ कर जा चुके हों, लेकिन कलकत्ता में इसके कई ऐसे अंश है जिसे ये राज्य अपना चुका है। आइए जानते हैं क्या हैं वो खासियत :
सस्ते पान, बीड़ी और सिगरेट
जो मालबोरो एडवांस आपको भारत के दूसरे शहरों में 17 रुपये की मिलती है, वह कलकत्ता में 14 रुपये की है | जो मीठा पान आपको दूसरी जगहों पर 25 रुपये का मिलता है, वही आपको कलकत्ता में 12 रुपये का मिलेगा |
आप में से काफ़ी लोग सोच रहे होंगे कि सिगरेट पर 3 रुपये और पान पर 13 रुपये बचा कर कौनसा बड़ा तीर मार लिया ? मगर सभ्यता के हिसाब से देखें तो पता चलेगा कि सिगरेट और पान के दामों में लगभग 17 और 50 प्रतिशत की कमी यहाँ लोगों की आदतों और यहाँ उगने वाली चीज़ों को दर्शाता है | आप यहाँ की गलियों में बेतरतीब खुली चाय, पान और तंबाकू की दुकानों पर हर उम्र और अनुभव के लोगों को बैठे बतियाते पाएँगे | हर एक या तो सिगरेट के कश खींच रहा होगा या मूँह में दबाया पान चबा रहा होगा | साल 2017 में इन उत्पादों पर 'सिन टैक्स' ज़रूर लगाया गया था, मगर इससे भी इनके दामों में कोई कमी नहीं आई | इसका कारण है कलकत्ता का मौसम | यहाँ की हवा में गर्मी और नमी दोनों पाई जाती है, जो पान और तंबाकू के उगने के लिए ज़रूरी है|
दूसरी बात ये कि ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान पश्चिम बंगाल काफ़ी समय तक अँग्रेज़ों के अधीन रहा | तंबाकू पीना अँग्रेज़ों की आदत में शुमार रहा है | अँग्रेज़ों ने ही भारत में व्यावसायिक रूप से बनाई गयी सिगरेट को प्रचलित किया था।
हुगली के आस पास बुनी हुई सभ्यता
उत्तराखंड के पहाड़ों से आती गंगा, या यूँ कहें की भागीरथी नदी की धारा को ही बंगाल में हुगली कहा जाता है | इस नदी के आस-पास ही कलकत्ता का जीवन और जीविका पनपे हैं | कलकत्ता को इस नदी से पानी, मछलियाँ, और बंदरगाह मिलते हैं , जो यहाँ की जीवनशैली, खेती और कारखानों के लिए ज़रूरी हैं |
ईस्ट इंडिया कंपनी के अँग्रेज़ इसी नदी के ज़रिए भारत में व्यापार करने आए थे | जब बड़े-बड़े जहाज़ी बेड़े इस नदी के ज़रिए आ सकते हैं तो आप इसकी गहराई और लंबाई का अंदाज़ा लगा लीजिए |यही नदी आगे जाकर सुंदरबन डेल्टा भी बनाती है, जो दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है|
बिना डरे बीफ चखने का मौका
एंग्लो-इंडियन खाने की बात करें और उसमें बड़े का माँस ना शामिल हो ऐसा हो ही नहीं सकता | यूँ तो बंगाली हिंदुओं को बीफ शब्द सुनकर ऐतराज़ होता है और कई मुस्लिम लोगों द्वारा चलाए जाने वाले रेस्तराँ के बाहर भी ''नो बीफ'' का बोर्ड लगा होता है, मगर दूसरे प्रदेश की तरह यहाँ लोगों की भीड़ अफवाह सुनकर किसी बेगुनाह गाँव वाले को गौ हत्यारा कहकर जान से नहीं मारती |
अगर कलकत्ता में बीफ चखना चाहते हैं तो ज़म-ज़म रेस्तराँ में आपको बीफ से बने काफ़ी व्यंजन सस्ते दामों में मिल जाएँगे | अगर ज़म-ज़म आए ही हैं तो बीफ बिरयानी और जालफ्रेज़ी के बाद फिरनी या मिसरी मलाई से मुँह मीठा करना ना भूलें |
तो ये था कलकत्ता को देखने का एक नज़रिया | अगर आप भी कलकत्ता घूम कर आए हैं तो यहाँ की सभ्यता में कुछ ख़ास बातें देखी होगी | क्या आप इन बातों को लोगों के साथ शेयर नहीं करना चाहेंगे ?