कालीघाट मंदिर यह काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है।
इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुंडो की माला है, हाथ में कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में भी कुछ नरमुंड बंधे हुए हैं।
उनकी जिह्वा (जीभ) निकली हुई है और जीभ में से कुछ रक्त की बूंदे भी टपक रही हैं। प्रतिमा में जिह्वा स्वर्ण से बनी है।
कुछ अनुश्रुतियों के अनुसार देवी किसी बात पर क्रोधित हो गयी थीं। उसके बाद उन्होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया। उनके मार्ग में जो भी आता वो मारा जाता। उनके क्रोध को शान्त करने के लिए भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए। देवी ने क्रोध में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया उसी समय उन्होंने भगवान शिव को पहचान लिया और उन्होंने फिर नरसंहार बंद कर दिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के शरीर के अंग प्रत्यंग जहाँ भी गिरे वहाँ शक्तिपीठ बन गये। ब्रह्म रंध्र गिरने से हिंगलाज, शीश गिरने से शाकम्भरी देवी, विंध्यवासिनी, पूर्णगिरि, ज्वालामुखी, महाकाली आदि शक्तिपीठ बन गये। माँ सती के दायें पैर की कुछ अंगुलिया इसी जगह गिरी थीं।
यह मन्दिर, प्रख्यात दार्शनिक एवं धर्मगुरु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि रही है, जोकि बंगाली अथवा हिन्दू नवजागरण के प्रमुख सूत्रधारों में से एक, दार्शनिक, धर्मगुरु, तथा रामकृष्ण मिशन के संस्थापक, स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।
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वर्ष १८५७-६८ के बीच, स्वामी रामकृष्ण इस मंदिर के प्रधान पुरोहित रहे। तत्पश्चात उन्होंने इस मन्दिर को ही अपना साधनास्थली बना लिया। कई मायनों में, इस मन्दिर की प्रतिष्ठा और ख्याति का प्रमुख कारण है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस से इसका जुड़ाव। मंदिर के मुख्य प्रांगण के उत्तर पश्चिमी कोने में रामकृष्ण परमहंस का कक्ष आज भी उनकी ऐतिहासिक स्मृतिक के रूप में संरक्षित करके रखा गया है, जिसमें श्रद्धालु व अन्य आगन्तुक प्रवेश कर सकते हैं।
मध्य कोलकाता , पश्चिम बंगाल , भारत में भारतीय संग्रहालय , औपनिवेशिक काल के ग्रंथों में कलकत्ता के इंपीरियल संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है , [1] [2] दुनिया का नौवां सबसे पुराना संग्रहालय है, जो भारत में सबसे पुराना और सबसे बड़ा संग्रहालय है । साथ ही एशिया में। [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] इसमें प्राचीन वस्तुओं, कवच और आभूषणों, जीवाश्मों, कंकालों, ममियों और मुगल चित्रों का दुर्लभ संग्रह है । इसकी स्थापना 1814 में कोलकाता (कलकत्ता), भारत में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा की गई थी। संस्थापक क्यूरेटर थेनथानिएल वालिच , डेनिश वनस्पतिशास्त्री।
इसमें छह खंड हैं जिनमें भारतीय कला , पुरातत्व , मानव विज्ञान , भूविज्ञान , प्राणी विज्ञान और आर्थिक वनस्पति विज्ञान जैसे सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कलाकृतियों की पैंतीस गैलरी शामिल हैं । मानविकी और प्राकृतिक विज्ञान से संबंधित कई दुर्लभ और अद्वितीय नमूने, भारतीय और ट्रांस-इंडियन दोनों, इन वर्गों की दीर्घाओं में संरक्षित और प्रदर्शित किए गए हैं। विशेष रूप से कला और पुरातत्व खंड अंतरराष्ट्रीय महत्व के संग्रह रखते हैं।
यह संस्कृति मंत्रालय , भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संगठन है । भारतीय संग्रहालय के वर्तमान निदेशक श्री अरिजीत दत्ता चौधरी हैं जो एनसीएसएम के महानिदेशक भी हैं और उनके पास राष्ट्रीय पुस्तकालय के महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार भी है ।
मध्य कोलकाता , पश्चिम बंगाल , भारत में भारतीय संग्रहालय , औपनिवेशिक काल के ग्रंथों में कलकत्ता के इंपीरियल संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है , [1] [2] दुनिया का नौवां सबसे पुराना संग्रहालय है, जो भारत में सबसे पुराना और सबसे बड़ा संग्रहालय है । साथ ही एशिया में। [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] इसमें प्राचीन वस्तुओं, कवच और आभूषणों, जीवाश्मों, कंकालों, ममियों और मुगल चित्रों का दुर्लभ संग्रह है । इसकी स्थापना 1814 में कोलकाता (कलकत्ता), भारत में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा की गई थी। संस्थापक क्यूरेटर थेनथानिएल वालिच , डेनिश वनस्पतिशास्त्री।
सांस्कृतिक वर्गों का प्रशासनिक नियंत्रण, अर्थात। कला, पुरातत्व और नृविज्ञान इसके निदेशालय के तहत न्यासी बोर्ड के पास है, और तीन अन्य विज्ञान वर्गों में भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारत के जूलॉजिकल सर्वेक्षण और भारत के वनस्पति सर्वेक्षण के साथ है। संग्रहालय निदेशालय में आठ समन्वय सेवा इकाइयां हैं: शिक्षा, संरक्षण, प्रकाशन, प्रस्तुति, फोटोग्राफी, चिकित्सा, मॉडलिंग और पुस्तकालय। बहु-विषयक गतिविधियों वाले इस बहुउद्देशीय संस्थान को भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में शामिल किया जा रहा है ।
Ramkrishna math
यह लेख हावड़ा के एक उपनगर के बारे में है। सामान्य वर्तनी वाले कर्नाटक के शहर हेतु, बेलूर देखें। इससे मिलते नामों के अन्य विषयों हेतु बेलूर (बहुविकल्पी) देखें।
बेलुड़ (Belur) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के हावड़ा ज़िले में हावड़ा शहर का एक उपनगर है।[1][2]
बेलुड़ हुगली नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।[3] पहले यह बाली नगरपालिका के अन्तर्गत आता था और कोलकाता महानगरपालिका का भाग था। अब बाली सहित यह हावड़ा नगरपालिका के अन्तर्गत आता है।[4] बेलुड़ को मुख्यतः बेलुड़ मठ के लिए जाना जाता है, जो रामकृष्ण मिशन का वैश्विक मुख्यालय है। यह जगह विवेकानंद की कर्म अष्टालि रही है जो विश्व विख्यात है।[5]
विक्टोरिया मेमोरियल हाल ( हिन्दी अनुवाद: विक्टोरिया स्मारक शाला) या संक्षिप्त में सिर्फ विक्टोरिया मेमोरियल, भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के कोलकाता नगर में स्थित एक ब्रिटिश कालीन स्मारक है। 1906 से 1921 के बीच निर्मित यह स्मारक इंग्लैण्ड की तत्कालीन साम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया को समर्पित है। इस स्मारक में विविध शिल्पकलाओं का सुंदर मिश्रण है। इसके मुगल शैली के गुंबदों पर सारसेनिक और पुनर्जागरण काल की शैलियों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस भवन के अंदर एक शानदार संग्रहालय भी है जहाँ रानी के पियानो और स्टडी-डेस्क सहित 3,000 से भी अधिक अन्य वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं। यह प्रतिदिन मंगलवार से रविवार तक प्रात: दस बजे से सायं साढ़े चार बजे तक खुलता है, सोमवार को यह बंद रहता है।