शुक्रिया इंटरनेट! मुझे एक नई दुनिया से मिलवाने और बेहतर ट्रैवलर बनाने के लिए

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पहाड़ी इलाके में पैदा होने और वहीं-पलने बढ़ने के कारण परिवार संग छुट्टियों में पहाड़ों की सैर करने की बात से मैं कभी कुछ खास खुश नहीं होती थी। पहाड़ों की चढ़ाई और सूर्यास्त-सूर्योदय देखना तो हमारा रोज़ का ही काम था। मुझे गलत मत समझियेगा, मगर पहाड़ों पर रहने-बढ़ने के बावजूद मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि मैं बाकी लोगों से कितनी खुशनसीब हूँ।

ये तो उम्र के अगले पड़ाव पर जब मैं जयपुर आई, तब मुझे पहाड़ों की कद्र समझ में आई। इंस्ट्राग्रामर्स अपनी डॉक्यूमेंट्री और तस्वीरों में पहाड़ों की सुंदर तस्वीरें कैद करते, और उनके लेंस के ज़रिए ही मुझे पर्वतों की असल खूबसूरती का एहसास हुआ। मैंने भी उन नज़ारों को देखा था, उन रास्तों पर चली थी, मगर जितनी लगन और प्यार से वे लोग उसकी खूबसूरती निहारते, मैं कभी नहीं निहार सकी। जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, तो मैंने फैसला किया कि मैं वापस पहाड़ों पर जाऊँगी। शिव्या नाथ की एकल यात्राओं और अभिनव चंदेल के ब्लॉग को पढ़कर, मेरे हौसलों को और ऊँची उड़ान मिल गयी।

एक दिन इंटरनेट पर ही मुझे अपने एक दोस्त की तस्वीर दिखी जो उत्तर सिक्किम की एक दूर दराज़ के इलाके पर गया हुआ था। अबतक मुझे आसान यात्राओं की आदत थी। उसे देखकर मुझे भी कुछ अलग करने का ख्याल आया। मैंने 'द दोई होस्ट', जोकि हिमालय की यात्राएँ करवाता है, उसके साथ एक ट्रिप प्लान की। अब मुझे 6 अजनबियों के साथ तीस्ता नदी की लहरों संग बढ़ते ही जाना था।

ये मेरे लिए बिल्कुल अलग तरह का अनुभव था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अनजान लोगों के साथ किसी अनजान जगह पर इतना लुत्फ उठा सकूँगी। इस यात्रा के बाद मेरा अपनी यात्राओं की तरफ नज़रिया काफी बदल गया।

सिक्किम से लौटकर मैंने और नई जगहों के लिए ट्रिप प्लान की। मैं कभी यात्राओं को लेकर इतनी जागरूक नहीं हो पाती अगर मैंने इंस्टाग्राम पर इन ट्रैवल कम्युनिटी से सम्पर्क ना बनाया होता। आमतौर पर लोग जहाँ यात्रा की एकाध परत ही देख पाते हैं, मैंने यात्राओं में तरह-तरह की अनुभवों को खुद तलाशा। मैं छोटी यात्राएँ करने से ज्यादा बड़ी यात्राएँ करती हूँ। वीकेंड की जगह मैं छुट्टियों के लिए पैसे बचाकर घूमना पसन्द करती हूँ। मेरा इरादा बस अपनी बकेट लिस्ट टिक करने का नहीं, बल्कि नए अनुभवों को पाने का है। मैंने लोकल खानों, लोगों से मिलने को अपनी यात्राओं का हिस्सा बना लिया है।

मैं बार-बार कहती हूँ कि अगर मैं इंस्ट्राग्राम पर नहीं होती, तो शायद मैं यात्राओं को लेकर इतना कुछ नहीं जान पाती। आमतौर पर लोग सोशल मीडिया की आलोचना करते हैं, मगर इसकी अच्छी साइड भी है। फर्क सिर्फ ये है कि आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं। मैंने ऐसे लोगों को पढ़ना-देखना शुरू कर दिया है जोकि लगातार यात्राएँ करते हैं। शायद तीन साल पहले मैं ऐसा नहीं कह पाती, मगर अब मैं कह सकती हूँ कि जिंदगी यात्राओं के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

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