भारत के आख़िरी गाँव को देखने का विचार ही अपने आप में बहुत रोमांचक था, और जब वास्तव में उसे देखा तो एक अलग ही अनुभव हो रहा था। यह नवम्बर की बात है और तब किन्नौर में फ्रेश स्नोफ़ॉल हुआ ही था। मैंने 29 नवंबर की रात 9 : 30 बजे दिल्ली से शिमला जाने वाली वोल्वो बस (₹900) में बुकिंग की और वोल्वो ने मुझे निर्धारित समय से एक घंटा पहले ही शिमला पहुँचा दिया। शिमला से आगे की रोड ट्रिप के लिए मैंने एक इन्नोवा गाड़ी किराए पर ले ली थी किन्तु मुझे शिमला के इंटर स्टेट बस टर्मिनल पर ड्राइवर के आने का 2 घंटे इंतजार भी करना पड़ा। सूर्य की पहली किरण के साथ साथ मेरा ड्राइवर भी पहुँच गया था।
किन्नौर जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। उसके लिए दिल्ली से सांगला या दिल्ली से रेकोंग पेओ के लिए डायरेक्ट बस ली जा सकती है और यदि रुक कर जाना चाहते हैं तो दिल्ली से शिमला (₹420) और उसके बाद शिमला से रेकोंग पेओ (₹500) की बस ले सकते हैं।
शिमला से किन्नौर की यात्रा शुरू करने का बाद हम लोग ब्रेकफास्ट के लिए थोड़ी देर कुफरी में रुके और वहाँ के सुन्दर दृश्यों का भी आनंद लिया। तब तक सुबह होने लगी थी और सूर्य की नारंगी किरणें अँधेरे को चीरती हुई पहाड़ों की चोटियों पर चमक रही थीं।
हमारा अगला डेस्टिनेशन, नारकंडा था, जो दिल्ली की हलचल से दूर, प्रकृति की गोद में बसा एक शाँत शहर है।
हाटू पीक
नारकंडा से हाटू पीक का रास्ता खड़ी चढ़ाई के साथ- साथ सँकरा भी था। जिसके कारण पीक पर पहुँचने में थोड़ा समय लग जाता है। करीब 30 मिनट की ड्राइविंग के बाद हम हाटू टॉप पर पहुँच गए। वहाँ से चारों ओर, कभी ना खत्म होने वाले पहाड़ और बर्फ से ढके हिमालय के जो दृश्य दिखाई दे रहे थे, उनका तो केवल अनुभव ही किया जा सकता है। उसके बाद हमने वहाँ एक पुराने मंदिर के दर्शन किए।लकड़ी से बना वह मंदिर हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वास्तुकला को दर्शाता है जो हिमाचल प्रदेश के इस हिस्से में काफी प्रचलित है।
अगले एक घंटे की ड्राइविंग के बाद, सतलुज नदी भी हमारी यात्रा का हिस्सा बन गई। उसके बाद रामपुर पार करते ही जगह में थोड़ा बदलाव आने लगता था,पहाड़ अधिक ऊँचे और पथरीले थे और सड़क पर अनेक सुरंगें भी आ रहीं थी। पूरी यात्रा के समय हिमाचल की सड़कों की हालत अच्छी थी।
वांगटू डैम को पार कर लेने के बाद किन्नौर शुरू हो जाता है और करचम से सांगला और चितकुल की सड़क अलग हो जाती हैं। करचम में एक बहुत बड़ा तालाब है जिसकी पृष्ठ भूमि में बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ बड़ी सुहावनी लगती हैं ।
करचम से आगे, कल्पा का रास्ता थोड़ा ऊबड़-खाबड़ है, लेकिन सांगला की सड़क एकदम सही है।
एक बार जब आप कल्पा / रेकोंग पेओ पहुँचते हैं तो ‘किन्नर कैलाश रेंज’ के अद्भुत दृश्य दिखाई देने लगते हैं। इतने नज़दीक से देखकर ऐसा लगता है मानों उन्हें छूआ जा सकता है। यहाँ आकर ऐसा महसूस होता है कि आप अपनी दुनिया से दूर किसी अनजान धरती पर आ गए हों जो स्वर्ग जैसी सुन्दर है। एक बार आप भी किन्नौर आ कर ज़रूर देखें।