यात्राएँ हमें कितना कुछ सिखाती हैं। आजादी की कीमत, किसी नई जगह को झट से अपना लेने वाला सुकून, बदलाव की समझ और भी बहुत कुछ। इन सभी गुणों में सबसे जरूरी होती है हमेशा चलते जाने की इच्छा। एक घुमक्कड़ कभी भी किसी एक जगह पर बहुत दिनों तक नहीं रह पाता है। कुछ दिनों के बाद उसे घूमने जाने और किसी नई जगह को टटोलने का मन करने लगता है। शहरों में भी एक तरह की समझ होती है। जब आप किसी छोटी जगह पर ना जाकर किसी फेमस जगह पर जाने का प्लान बनाते हैं तब वो छोटे शहरों को भी कहीं पीछे छूट जाने का मलाल रह जाता है। ये जगहें बेहद खूबसूरत होती हैं लेकिन क्योंकि ये किसी फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन के पास होती है इसलिए इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। इन जगहों के सौंदर्य को देखने के लिए केवल कुछ घंटों का समय काफी नहीं होता है। ऐसी ही बेहद खूबसूरत और अनछुई जगह है उत्तराखंड का लण्ढोर।
लण्ढोर
लण्ढोर एक छोटा-सा शहर है जो मसूरी से सिर्फ 7 किमी. की दूरी पर स्थित है। लण्ढोर को मसूरी का ताज भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये जगह मसूरी से भी ज्यादा ऊँचाई पर है। लण्ढोर को मसूरी का ही हिस्सा माना जाता है। खास बात ये है कि मसूरी के इतने नजदीक बसे होने के बावजूद ये जगह बेहद शांत और खूबसूरत है। लण्ढोर का नाम असल में ब्रिटेन के एक गाँव के नाम रखा गया है। ब्रिटिश राज के दौरान जब अंग्रेजी सैनिकों को घर की याद आने लगती थी तब वो भारत की ही जगहों का नाम ब्रिटिश शहरों और गाँवों के नाम पर रख दिया करते थे। इसके अलावा ब्रिटिश भारतीय सेना ने यहाँ 1827 में घायल सैनिकों के इलाज के लिए जगह भी बनवाई थी। तब से लेकर अबतक लण्ढोर सेना के लिए एक महत्वपूर्ण स्टेशन बना हुआ है और इसलिए ये पूरा शहर छावनी क्षेत्र है।
क्या देखें?
वादियों में बसे लण्ढोर में देखने और महसूस करने के लिए असंख्य ऑप्शन्स हैं। अगर आप शहर घूमते-घूमते थक भी गए हैं उसके बाद भी आप केवल अपने कमरे की बालकनी में बैठकर दूर तक फैले पहाड़ों निहारते रह सकते हैं।
1. केलॉग मेमोरियल चर्च और लण्ढोर लैंग्वेज स्कूल
लण्ढोर में एक रास्ता ऐसा भी है जिसका आकर बिल्कुल 8 की तरह है। इस रास्ते पर एक खूबसूरत और बहुत पुराना चर्च है जिसे आपको देख लेना चाहिए। आम दिनों में इस चर्च के अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है लेकिन बाहर से देखने में ही इस चर्च की भव्यता को आसानी से समझा जा सकता है। चर्च में कांच की खिड़कियाँ हैं जिनको अलग-अलग रंगों से रंगा गया है। चर्च का ढांचा गोथिक आर्किटेक्चर को ध्यान में रखकर बनाया गया है जो इस चर्च को और भी खूबसूरत बना देता है। चर्च के इतिहास के बारे में कहें तो इसका निर्माण 1903 में किया गया था। चर्च का नाम डॉक्टर सैमुएल केलॉग के नाम पर रखा गया है जिन्होंने उस समय लण्ढोर के विकास में बहुत जरूरी भूमिका निभाई थी।
लण्ढोर लैंग्वेज स्कूल केलॉग मेमोरियल चर्च के ठीक पीछे स्थित है। कहा जाता है भारत में शासन के दौरान अंग्रज़ इसी स्कूल में हिंदी सीखा करते थे। अंग्रेजों की हिंदी भाषा पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए डॉक्टर सैमुएल केलॉग ने हिंदी व्याकरण पर एक किताब भी लिखी थी। खास बात ये है कि इस स्कूल को आज भी चलाया जा रहा है जहाँ दुनियाभर से आने वाले छात्रों को हिंदी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू और गढ़वाली जैसी भारतीय भाषाओं की सीख दी जाती है।
2. सेंट पॉल चर्च
सेंट पॉल चर्च एक छावनी चर्च है जिसका निर्माण 1840 में किया गया था। ये चर्च चार दुकान के ठीक बगल में ही स्थित इसलिए आपको यहाँ पहुँचने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। इस चर्च की खास बात ये है कि ये पहला ऐसा चर्च है जहाँ राइफल को अंदर लाने की अनुमति दी गई थी। अंग्रेज अफसर अक्सर चर्च के बाहर से राइफल चोरी होने की शिकायत किया करते थे। जिसके बाद 1857 में चर्च के अंदर ही राइफल रखने के लिए जगह बना दी गई थी। अच्छी बात ये है कि राइफल रखने की इन जगहों को आज भी एकदम वैसे ही रखा गया है। हरे-भरे देवदार के पेड़ों के बीच बना हुए ये चर्च लण्ढोर की सबसे शांत और सुंदर जगहों में से है।
3. लाल टिब्बा व्यू पॉइंट
अगर आपको ट्रेकिंग का शौक है फिर आपने लाल टिब्बा का नाम जरूर सुना होगा। इस जगह को लाल टिब्बा यहाँ पर मिलने वाली मिट्टी की वजह से कहा जाता है जिसका रंग लाल होता है। ये लण्ढोर की सबसे ऊँची जगह है जहाँ से आप कई सारे पहाड़ों को देख सकते हैं। इस व्यू पॉइंट पर दो कैफे भी हैं जहाँ से आप दूरबीन की मदद से इन पहाड़ों को और भी आसानी से देख सकते हैं। ये पॉइंट इतना शानदार है कि आपका मन खुश हो जाएगा। लोकल लोगों का कहना है कि इस व्यू पॉइंट पर आकर आप चार धाम को भी महसूस कर सकते हैं। अगर आप इस जगह की सबसे आकर्षक तस्वीर देखना चाहते हैं फिर आपको यहाँ सनसेट या सनराइज के समय आना चाहिए।
4. रस्किन बोंड का घर
रस्किन बोंड ब्रिटिश मूल के भारतीय लेखक हैं जो लण्ढोर में रहते हैं। भारत में शायद की कोई ऐसा किताबी कीड़ा होगा जिसने रस्किन बोंड की किताबें नहीं पढ़ी होंगी। रस्किन बोंड के घर तक पहुँचने के लिए आपको ऊपरी चक्कर से ढलान से होते हुए आना होगा। रस्किन बोंड का घर ढूंढने में आपको ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। इनका घर डोल्मा इन के ठीक बगल में स्थित है इसलिए इसको आसानी से देखा जा सकता है।
कहाँ खाएं?
शायद ही कोई इन्सान ऐसा होगा जिसको पहाड़ों को निहारते हुए खाना खाने का एहसास सुखद नहीं लगता है। लण्ढोर में भी आराम से बैठकर समय बिताने के लिए बहुत सारे कैफे और बेकरी हैं जो आपको खूब पसंद आएंगे।
1. लण्ढोर बेकहाउस
ये जगह जितनी खास है इतना ही खास इस जगह का इतिहास भी है। कहते हैं 1830 के समय से लण्ढोर में रहने वाले हर इंसान के पास एक ओवन हुआ करता था। जिसकी वजह से 1900 के दशक से ये लोग अपनी खुद की कुकबुक प्रकाशित करने लगे। इस बुक को लण्ढोर कुकबुक का नाम दिया गया। लण्ढोर और उसके आसपास के सभी इलाकों में ये बुक काफी लोकप्रिय हुई। आज इस बकेहाउस में कई तरह के केक और पेस्ट्री के साथ-साथ कुकी और क्रोसोंट भी मिलते हैं। कैफे का माहौल आपको पुराने जमाने की याद दिलाएगा। कैफे में वाईफाई नहीं है जिससे आपका पूरा ध्यान खाने और बाहर के खूबसूरत नजारों पर ही रहेगा। अगर आप लण्ढोर आने का प्लान बना रहे हैं तब ये जगह आपकी बकेट लिस्ट में जरूर होनी चाहिए।
2. अनिल प्रकाश स्टोर
अगर आपको पीनट बटर खाना अच्छा लगता है तब ये जगह आपको खूब पसंद आएगी। लण्ढोर बेकहाउस के ठीक बगल मे स्थित इस दुकान के जैम और पीनट बटर के किस्से दूर-दूर तक फेमस हैं। 1830 के समय में लण्ढोर में रहने वाले अमरीकी मिशनरी अपना पीनट बटर खुद बनाया करते थे जिसकी बिक्री केवल लण्ढोर में ही नहीं बल्कि आसपास वाले इलाकों में भी होती थी। आजादी के बाद उन्होंने अपनी सभी मशीनों को बेचकर भारत छोड़ दिया। ये मशीनें अनिल प्रकाश के परिवार ने खरीद लीं जिसको उन्होंने वापस से जैम और पीनट बटर बनाने के काम में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आज अनिल प्रकाश की ये दुकान घर की बनी जैम, चीज और पीनट बटर के लिए पूरे लण्ढोर में जानी जाती है। सबसे अच्छी बात ये है कि कुछ भी खरीदने से पहले आप इन सभी चीजें को चख भी सकते हैं जिसके बाद आप सामान तय कर सकते हैं।
3. एमिली रेस्त्रां
अगर आप लण्ढोर के सबसे आलीशान रेस्त्रां की सूची बनाएंगे तो इस रेस्त्रां का नाम उसमें जरूर शामिल होगा। एमिली रेस्त्रां में आप भारतीय के साथ-साथ कॉन्टिनेंटल खाने का भी स्वाद ले सकते हैं। रेस्त्रां का खाना इतना लजीज होता है कि आपका मन खुश हो जाएगा। इस रेस्त्रां में आपको इनके स्टिकी टॉफी पुडिंग जरूर चखनी चाहिए। रेस्त्रां की पूरी सजावट ब्राउन थीम को ध्यान में रखकर की गई है जिसको देखकर आपको एकदम गाँव वाला फील आएगा। रेस्त्रां में जगह-जगह पर सुंदर लैंप सजाए गए हैं जिससे रेस्त्रां का माहौल और भी खास हो जाता है। इसके अलावा इस रेस्त्रां में आप किताबें भी पढ़ सकते हैं।
4. चार दुकान
अगर आप सोच रहे हैं कि ये चार दुकानों की लाइन वाला बाजार है तो आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं। लण्ढोर लैंग्वेज स्कूल के ज्यादातर लोग यहीं से अपनी जरूरत का सारा सामान खरीदते हैं। चार दुकान की सभी दुकानों में नॉर्मल खाने के साथ-साथ पारंपरिक पहाड़ी खाने का भी पूरा इंतजाम है जो आपके अंदर बैठे फूडी को बहुत अच्छा लगेगा। चार दुकान में आप गर्म-गर्म मैगी, चाय, कॉफी, पकोड़े, पराठा और बन खाने का भी मजा उठा सकते हैं। लण्ढोर का फेमस अनिल कैफे और टिप टॉप चाय की दुकान यहीं चार दुकान में ही हैं।
कब जाएँ?
लण्ढोर आने के लिए आपको किसी तय समय का इंतजार नहीं करना होता है। आप साल के किसी भी समय लण्ढोर आ सकते हैं। वैसे ज्यादातर लोग अप्रैल से जून के महीनों में लण्ढोर आना पसंद करते हैं। इस समय जब देश के बाकी सभी हिस्सों में तेज गर्मी पड़ रही होती है, पहाड़ों पर होने की वजह से लण्ढोर का मौसम सुहावना बना रहता है। वैसे आप चाहें तो ठंड के समय भी आप लण्ढोर आ सकते हैं। लेकिन इस समय स्नोफॉल की वजह से सड़क बंद मिलने के चांस बढ़ जाते हैं।
कैसे पहुँचें?
लण्ढोर आने के लिए सबसे पहले आपको मसूरी आना चाहिए जो लण्ढोर से लगभग 7 किमी. की दूरी पर है। मसूरी आने के लिए आपके पास कई विकल्प हैं। आप फ्लाइट, ट्रेन या बस लेकर आसानी से मसूरी आ सकते हैं।
फ्लाइट से: अगर आप फ्लाइट से मसूरी आना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट आना होगा। ये एयरपोर्ट मसूरी से 60 किमी. दूर है जिसके बाद लण्ढोर आने के लिए आपको और 7 किमी. का साफ तय करना होगा। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए आपको देश के सभी बड़े शहरों से आसानी से फ्लाइट मिल जाएगी इसलिए इसमें कोई परेशानी नहीं होगी।
ट्रेन से: देहरादून रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जिसके लिए आपको देश से सभी हिस्सों से आसानी से ट्रेन मिल जाएगी। देहरादून से लण्ढोर आने के लिए फिर आप शेयर टैक्सी या बस ले सकते हैं।
वाया रोड: अगर आप सड़क के रास्ते मसूरी आना चाहते हैं तो आपको उसमें भी कोई दिक्कत नहीं होगी। दिल्ली और आसपास के सभी शहरों से ओवरनाइट बस लेकर आप आसानी से लण्ढोर आ सकते हैं।
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