मेरा नाम प्रशांत पाल है मैं आज पहली बार ऐसी कोई कहानी लिख रहा हूं मुझे लिखने का कोई ऐसा एक्सपीरियंस नहीं है पर फिर भी सोचा था कि सब को आकर बताऊंगा.
और यह कहानी मेरी ही है वैसे मुझे घूमना बहुत पसंद है लेकिन वह आरामदायक होना चाहिए पैदल ट्रैक मुझे बहुत कम पसंद है तो दोस्तों की जिसकी वजह से सोचा चलो इस बार कुछ रोमांचक करते हैं सफर की शुरुआत kalga village से कर रहा हूं जो कि कसोल के आगे है हम हम लोग वहीं cafe में ठहरे हुए थे
ऐसा मैंने सुना था कितुझे ऐसा मैंने सुना था कि पैदल ट्रैक मैं लगभग 10 से 12 घंटे लगते हैं खीरगंगा तक पहुंचने के लिए तो उसके लिए सुबह से ही निकलना चाहिए और हम लोगों ने निकलने मैं बहुत ही देर कर दी , हम लोग kalga village se लगभग 3:30pm पर निकले
आज तक कभी ऐसा ट्रेक पहले कभी किया नहीं था तो मन में एक रोमांच भी था और खतरों के बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था कि ऐसा कुछ भी होगा
चलिए अपने साथियों का परिचय दे देता हूं हम चार दोस्त थे और हमारे साथ तीन गाइड जो कि हमारे मित्र ही थे और एक डॉग हस्की (shadow)
तो कुल मिलाकर हम 8 लोग थे
तो शुरुआत में ही हम लोगों ने अपना थोड़ा थोड़ा सामान रात में रुकने के लिए टेंट थोड़ा बहुत खाने पीने का सामान लेकर सफर के लिए निकल पड़े
शुरुआत के सफर में ही पार्वती नदी पड़ती है बहुत ही सुंदर नदी है
नदी का बहता हुआ पानी और उसमें से निकलती आवाज एक अजीब सा ही खामोशी को बयां कर रही थी
अभी तो दोपहर ही थी तो सफर में तो बहुत ही रोमांस और रोमांच का अनुभव हो रहा था और बहुत ही मजा आता था पराग चलते-चलते थकान से बहुत बुरा हाल था क्योंकि जब हम ऊपर चढ़ते हैं तो बहुत ज्यादा थकान हो जाती है और वह पथरीले रास्ते , रास्ते में ऐसे बहुत से लोग मिले जो आधे रास्ते से ही वापस आ रहे थे उनको देखकर तो लग रहा था कि हम लोग भी वापस चले चले पर हमारे साथ हमारे गाइड थे जो कि हमेशा हौसला बढ़ाते थे कि बस बस अब ज्यादा दूर नहीं है
उबड़ खाबड़ और पथरीले रास्तों में चलकर मेरा भी बुरा हाल था पर मन में यह भी ख्याल था कि जब निकल आया है तो वहां तक जाकर ही जाएंगे
बस अब चलते जा रहे थे नजारों का आनंद लेते जा रहे थे
और सोच रहे थे जब यह हमारे साथ वाले गाइड कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते
और हमारे साथ हमारे गाइड अविनाश भाई जी मैं तो इतना बड़ा बैक थाम रखा था कि मुझे देखकर ही चक्कर आ जा रहा था फिर सोचा मेरा तो इतना छोटा बह गया तो मैं तो कर ही लूंगा
तू सफर में काफी आगे तक पहुंच चुके थे nagthang village
के करीब पहुंचने वाले थे
सर्दियों में भी पसीने से भरा हुआ था क्योंकि चढ़ने यह बात तो जैसे गर्मी ही जाती जा रही है और पता नहीं था कितना थका देने वाला यह trek है मैं सोचता था कि ऐसे पैदल चल करऐसे पैदल चलकर थकान से घूम कर क्या फायदा है मैं 2 सिक्किम की यात्रा कर चुका हूं
तुम मुझे लगता था आराम से कार से जाओ आराम से फोटोस खिंचवा को सुकून का आनंद लो और बस तू ऐसा ट्रक का कोई ज्ञान नहीं था मेरे पास यही सब सोचते सोचते शाम भी डालने को आ गई
और पूरे सफर में हमारा डॉग शैडो सबसे आगे चल रहा था लग रहा था उसने एनर्जी ड्रिंक पी हो सबसे तेज और सबसे आगे वही चल रहा है तो सबको रास्ता दिखा रहा था
और फिर 7:00 बजे के बाद का जो सफल रहा वह तो यादगार ही रहेगा अरे रास्ते में बीच-बीच में बहुत ही ज्यादा snow हर जगह पर फिसलन और जैसा कि मैंने बताया कि ट्रैक kaमुझे ज्यादा कोई एक्सपीरियंस है नहीं
पहाड़ों में जल्दी अंधेरा हो जाता है और रात में तो हर जगह एकदम खामोशी ही नजर आती है हम लोगों ने मोबाइल का फ्लैश जला कर आगे बढ़ रहे थे बस अब हर जगह घना अंधेरा और आसमान में टिमटिमाते हुए तारे दिख रहे थे जितने रोमांच से मैं वहां से निकला था दोपहर में ,वह पूरा खत्म हो चुका था और मेरे चलने की इच्छा शक्ति भी, रास्ता बहुत ही पथरीला उबर खाबर होने की वजह से जितनी बार जमीन में गिरता था हर बात मन में वही आता था कि क्यों आ गए यहां पर आप सोच कर देखिए एकदम पतली सी रास्ता उसमें बर्फ जमी हो और बगल में बहुत बड़ी खाई हो अब दोनों तरफ से फंस चुके थे नहीं वापस जा सकते थे एक ही रास्ता था सिर्फ आगे जाने का फिर हमारी गाइड ने सलाह दी की खाई की तरफ से चलो वह फिसलन भरी नहीं है जिस बर्फ पर ज्यादा लोग जलते हैं तो वह फिसलन भरी हो जाती है
हर 10min मैं मैं थक जा रहा था और बैठने के लिए कह रहा था
और अपने गाइड से पूछ रहा था और कितनी दूर है बस वह कह देते वह देखो बस थोड़ी सी दूर है चलते रहो पर ऐसा लग रहा था पैरों ने जवाब दे दिया मन में ख्याल आ रहा था कि बस ठीक-ठाक वहां तक पहुंच जाएं कैसे भी करके
और फिर आखरी के रास्ते में जहां बर्फ होती थी वहां मैं बैठकर फिसल जाता था और पहले देख लेता था कि फिसलने के बाद कहीं से पैर फसाने की जगह मिल जाए मेरे हाथों में भी छाले पड़ गए थे
और फिर भी कहीं कोई लगभग 9:30 तक हम लोग जैसे तैसे गिरते पड़ते वहां तक पहुंच गए
जल्दी से चाय पी और मैगी खाई और बस थक कर लेट गए और फिर रात के खाने में दाल और चावल खाए , उस दिन वहां पर बहुत ही तेज हवा चल रही थी मैंने 5 कंबल उठाए सबको एक साथ लपेटा और बस ढेर हो गया
गुड मॉर्निंग पहले सुबह हो चुकी थी वहां पर मैंने सोचा था कि रात में इतना थक जाने के बाद बहुत ही अच्छी नींद आएगी पर बिल्कुल भी नींद नहीं आई camp कपड़े का बना हुआ था और रात भर इतनी तेज हवा में उसमें से आवाजें आ रही थी और शायद मुझे ऐसी आवाजों के साथ सोना पसंद नहीं था या आदत नहीं थी पर अब थोड़ी सी धूप निकल आई थी और हवा भी कम हो गई थी तो काफी सुकून मिल रहा था और फिर गरम चाय मंगाई और खुले आसमान में बैठ कर आराम से पी कर उसका लुफ्त ले रहा था और मेरे बाकी साथी पता नहीं सब को कितनी नींद आती है सब अभी तक सो रहे थे मैंने शैडो को उठाया सोचा उसे बाहर घुमा दूंगा मैं भी बाहर घूम लूं शैडो भी मेरी तरह जल्दी सुबह उठ जाता है और उसे बाहर घूमने का शौक भी है
उसके बाद लगभग 12:00 बजे सब सो कर उठे उसके बाद parvati kund में नहाना भी था जिसका नाम तो आपने सुना ही होगा वहां गर्म पानी निकलता है जोकि केम से मात्र 10 मिनट की दूरी पर ही था
10 मिनट की दूरी तय करके जैसे ही parvati kund पहुंचे पानी तो बहुत ही गर्म था पर हवा भी एक अच्छी खासी चल रही थी और कपड़े कपड़े उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था पर सोचा यहां तक आया हूं इतनी मुश्किलें पार करके तो फिर यह कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है और फिर क्या था फटाक से कपड़े उतारे और पार्वती कुंड में प्रवेश कर दिया और वाकई इस पानी में तो जादू ही था शरीर का सारा दर्द और थकान जैसे मिट गई हो बहुत ही अजीब लग रहा था चारों तरफ से ढका हुआ माहौल था और कुंड के अंदर इतना गर्म पानी कुदरत भी कितनी अजीब चीज होती है इसे कोई समझ नहीं पाता
नहाने के बाद वापस कैंप में आकर आलू के पराठे और चाय का लुफ्त उठाया और सब ने अपना बैकपैक किया और वापसी में इतना डर तो नहीं लग रहा था मैं सोच रहा था जो बर्फ वाले रास्ते हैं वह बस सूरज की रोशनी में ही पार हो जाए क्योंकि रात के अंधेरे में बस को पार करना बहुत ही मुश्किल होता है
बस अब बैकपैक हो चुके थे फिर सोचा गया कि चिलम के कुछ लिए जाएं और यहां से निकला जाए और अब काफी कुछ जानकारी ले ली थी मैंने इसलिए मैंने अपने मौजों को पॉलिथीन से कवर किया ताकि रास्ते में बहुत से waterfall में पैर गीला ना हो जूते और मोजे गीले होने से चलते नहीं बनता है इस बार मैंने पूरी होशियारी दिखाई और मौजों के ऊपर पॉलिथीन का सहारा लिया अब मैं पैर पानी में भी डाल देता था क्योंकि पता था मुझे गीले नहीं होंगे इतनी ठंड में पैर ठंडा होना चलने में बहुत तकलीफ दाई होता है
फिर क्या था सामान उठाकर सब लोग जोश और जुनून के साथ वापस के लिए निकल पड़े दिन के उजालों में मैंने देखा जहां पर मैं रात में बहुत डर रहा था दिन में ऐसा कुछ खास डर भी नहीं लग रहा था बस रास्ता बहुत फिसलन भरा था रात भर में काफी चीजें सीख चुका था मैं कि कैसे पैदल ट्रैक करते हैं अब तो जहां चिकनी ढलान आती वहां मैं बैठकर फिसल जाता और देता रहता है कहीं ना कहीं तो रुक ही जाऊंगा कई बार तो काफी ज्यादा फिसल कर नीचे गिरा तो हमारे गाइड ने चला ले जाकर मुझे एक दो बार पकड़ा पर दिन के सफर में उतना डर नहीं लगता है जितना रात के सफर में रात के सफल ने मुझे बहुत ज्यादा डरा दिया था पर अब अच्छे से आराम से वापस जाते रहे और रास्ते में जो भी मिल जाता उससे मैं यह जरूर कहता की रात होने के पहले वहां तक पहुंच जाना और बीच में समय बर्बाद मत करना जल्दी जल्दी चलना
लगभग यहां तक आधा रास्ता पार कर लिया था और यहां तक बहुत तेजी में आए थे बस यही ताकि शाम होने से पहले आधा रास्ता पार करना ही है जहां पर फिसलन भरी बस नहीं होती थी वहां पर तो दौड़ कर रास्ता पार कर लेते थे और नहाने के बाद जैसे थकान गायब ही हो गई थी पैरों में दर्द भी नहीं हो रहा था तो बस लग रहा था दौड़े दौड़े चले जाऊं कहीं भी ना देखूं बस बीच में रुक कर चाय नाश्ता किया थोड़ा सा एक दो फुक चिलम के मारे और फिर जैसे मेरी बैटरी चार्ज हो गई और बस फिर तो तेजी में आगे बढ़ते रहें और सफर निकलता रहा लगभग 6:00 बजे के बाद अंधेरा होना शुरू हो गया था पर अब बर्फ वाली जगह हम लोग पीछे छोड़ चुके थे इतनी तेजी से आगे बढ़े हुए थे आप कहीं जाकर मेरी जान में जान आई सोचा तो कोई दिक्कत नहीं है
अब रास्ते भी आसान है चलते चलते रात तो काफी हो गई थी लगभग लगभग 9:30 पर हम लोग अपने cafe पहुंच गए थे यह सफर बहुत रोमांचकारी रहा , सोचा कि कभी ऐसी ट्रैक नहीं करूंगा,
बस यह थी मेरी कहानी मैंने हर जगह की तस्वीरें भी डाल दी हैं जब आप कहानी पढ़ रहे होंगे तो तस्वीरों को देखकर कहानी का अर्थ और ज्यादा समझ में आएगा ......