खजुराहो का जिक्र आते ही सबसे पहले वहाँ की कामुक मूर्तियाँ दिमाग में आ जाती है। परंतु खजुराहो प्रसिद्ध है अपनी भव्यता, खूबसूरती और ऐतिहासिक मंदिरों के लिये। इन मंदिरों पर की गई बारीक नक्काशी, वास्तुकला और आकर्षित मूर्तियाँ खजुराहो को अन्य मंदिरों से अलग करती है। नारी सौन्दर्य की कोमलता को जिस तरह पत्थरों में उतार दिया है वो देखते ही बनता है।
पर क्या आप जानते है कि लगभग 1,000 साल पुराने चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए ये मंदिर मध्यप्रदेश के जंगलों में मिट्टी के टीलों में दबे हुए थे। दुबारा इन मंदिरों की खोज, करीब 180 साल पहले एक अंग्रेज़ अफसर कैप्टन टी. एस. बर्ट ने की। जब वह अपनी टीम के साथ मध्यप्रदेश के खजुराहो के जंगलों से गुजर रहा था, तब उसको यह मंदिर दिखे। उन मंदिरों को देखकर ही उसे एहसास हो गया था कि उसने एक असाधारण खोज की है। 1986 यानि 35 साल पहले यूनेस्को ने इन मंदिरों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया।
भारत में जहाँ 'सेक्स या काम' शब्द का बोलना भी अनैतिक माना जाता है। इस विषय पर बात करना, पढ़ना, देखना आदि कुकृत्य माना जाता है। वहीं खजुराहो के मंदिर अपनी कामुक, नग्न मूर्तियों के लिये विश्व विख्यात है। लाखों देसी-विदेशी पर्यटक यहाँ आते है। महत्वपूर्ण बात ये है कि इन नग्न, कामुक और कामकला आसनों में बनी इन मूर्तियोंं को देखकर जरा भी अश्लीलता या भोंडेपन का अहसास नहीं होता है। बल्कि इन मूर्तियों को देखकर पवित्रता का अनुभव होता है। इन मूर्तियों के चेहरों पर एक अलौकिक और दैवी आनंद की आभा झलकती है।
चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए ये मंदिर गुलाबी, बादामी और पीले रंगों के साथ बलुई पत्थर से बने हुए है। कहते है कि यहाँ 85 मंदिर हुआ करते थे, परंतु बाहरी आक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं के कारण बहुत से मंदिर ध्वस्त हो गये और अब यहाँ सिर्फ 22 मंदिर ही बचे है।
खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी 3 भागो में विभाजित है।
पश्चिमी भाग में कंदारिया महादेव का मंदिर भगवान शिव को समर्पित और काम शिक्षा के लिए प्रसिद्ध है। ये खजुराहो का सबसे विशाल तथा विकसित शैली का मंदिर है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर कुल 646 मूर्तियाँ जिसमे सुर-सुंदरी, नर-किन्नर, देवी-देवता व प्रेमी-युगल सुंदर रूपों में अंकित है। अंदर की दीवारों में भी 226 मूर्तियाँ है। इतनी मूर्तियां शायद अन्य किसी मंदिर में नहीं हैं। मंदिर में शिव की चौमुखी प्रतिमा है।
खजुराहो का सबसे प्राचीन मतंगेश्वर मंदिर पिरामिड शैली में बना है। गर्भगृह में ढाई मीटर ऊंचा और एक मीटर व्यास का एक शिवलिंग है।
लक्ष्मण मंदिर को 930 ई. में राजा यशोवर्मन द्वारा बनवाया गया था। मुख्य मंदिर के द्वार पर रथ पर सवार सूर्यदेव की सुंदर प्रतिमा है।
वहां से आगे विश्वनाथ मंदिर जो शिव को समर्पित है। 90 फुट ऊंचे और 45 फुट चौड़े इस मंदिर की सीढ़ियों के आगे दो शेर और हाथी बने हैं। मंदिर के सामने शिव के वाहन नंदी की 6 फुट ऊंची प्रतिमा है।
विश्वनाथ मंदिर के आगे चित्रगुप्त मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। जहाँ 7 घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा है। निकट ही हाथ में लेखनी लिए चित्रगुप्त बैठे हैं।
पूर्वी मंदिरों में 4 जैन तथा 3 हिन्दू मंदिर हैं। जिसमें ब्रह्मा जी का मंदिर, वामन मंदिर और जवारी मंदिर है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर काफी संख्या में मूर्तियां हैं। यहीं पर 4 जैन मंदिर स्थित हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है पार्श्वनाथ जी मंदिर है। जिसके गर्भगृह में आदिनाथजी की प्रतिमा है।
दक्षिणी मंदिरों में है दूल्हादेव मंदिर। मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग पर 1,000 छोटे-छोटे शिवलिंग बने हैं। यह 12वीं शताब्दी में निर्मित चंदेल राजाओं की अंतिम धरोहर है। इसके बाद दूल्हादेव मंदिर से कुछ दूर चतुर्भुज मंदिर है।
खजुराहो के मंदिरों की दीवारों को देखकर लगता है कि कामसूत्र की सभी कामक्रियाएं, सभी आसन और भाव भंगिमाएं, शिल्पकार ने मूर्तियों के रूप मे चित्रित कर दिया है। पत्थरों पर बनाई गई इन मूर्तियों को देखने के बाद कोई भी उन शिल्पकारों की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सकता।
मंदिर जैसी पवित्र स्थान पर ये मानव उन्मुक्त क्रीड़ाओं की मूर्तियाँ बनाने का पहला कारण था कि जो भी मंदिर के अंदर प्रवेश करे वो अपनी सभी काम, वासना और इच्छाओं को बाहर छोड़ साफ़ मन से प्रवेश करे। इसलिए इन मूर्तियों का चित्रण सिर्फ मंदिर की बाहरी दीवारों पर ही किया गया है। मंदिर के अन्दर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ है।
दूसरे बौद्ध धर्म के प्रभाव के चलते नवयुवक गृहस्थ धर्म से विमुख हो रहे थे। इन मंदिरों मे बनाई गई मूर्तियों के माध्यम से यह दर्शाया गया की गृहस्थ रहकर भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा तन्त्र शास्त्रों के अनुसार योग तथा भोग दोनों ही मोक्ष के रास्ते खोल देते है।
मध्यप्रदेश के प्रमुख शहर खजुराहो जाने के लिए आप रेल द्वारा सीधे खजुराहो तक पहुंच सकते है। नजदीकी स्टेशन महोबा (61 किमी), हरपालपुर स्टेशन (94 किमी) और झाँसी स्टेशन (172 किमी) किमी) है, यहाँ से भी ट्रेन चेंज करके खजुराहो जाया जा सकता है।
हवाई मार्ग द्वारा भी आप खजुराहो पहुँच सकते है। शहर से खजुराहो एयरपोर्ट 3 किमी दूर है। बिना किसी परेशानी के आप आसानी से इन मंदिरों तक पहुँच सकते। यहाँ पहुंचने के लिए बेहतरीन बस सुविधा भी उपलब्ध है।
खजुराहो में ठहरने के लिए बजट और लग्जरी दोनों तरह के होटल उपलब्ध हैं। यहाँ सालभर पर्यटको की भीड़ रहती है।
एक बार आप खजुराहो अवश्य आयें। आप स्वयं जान जायेंगे कि यहाँ सिर्फ 10% ही कामुक मूर्तियाँ है। अन्य मूर्तियों में मध्यकालीन लोगों के जीवन और दिनचर्या को बहुत खूबसूरती से मूर्तियों का रूप दिया है। इन मंदिरों को देखकर आप जरूर करेंगें कि खजुराहो की कला, दुनिया के लिये अनमोल तोहफ़ा है।
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