खजुराहो की यात्रा में समझ आया कि लोग इस जगह के बारे में कितना कम जानते हैं!

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यात्राएं आसान नहीं होती हैं लेकिन ये मन को सुकून और खुशी देती हैं। यात्रा पूरी करने के बाद भी वो जगह मुझ पर कई दिनों तक हावी रहती है। वो कुछ दिन किस तरह गुजरे, क्या किया, क्या देखा? सब कुछ जेहन में एक फिल्म की तरह बार-बार चलता है। शायद यही वजह है कि यात्राएं हमें हल्का कर देती हैं। यात्राएं सिर्फ खुशी ही नहीं देती हैं ये सुनी-सुनाई बातों को सही या गलत के रास्ते पर ले जाती है। जैसे कि मुझे खजुराहो में घूमने के दौरान पता चला कि लोग इस शहर के बारे में कितना गलत सोचते हैं। खजुराहो की यात्रा में मैंने मंदिर से लेकर प्रकृति की खूबसूरती देखी।

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मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के पन्ना और छतरपुर शहर के बीच में स्थित है, खजुराहो। यहाँ कभी खजूर के पेड़ बहुत होते थे उसी से इस जगह का नाम खजुराहो पड़ा। खजुराहो बुंदेलखंड का ऐतहासिक शहर है। यहाँ के मंदिर पूरी दुनिया में फेमस हैं जो अपनी शिल्प कला के लिए जाने जाते हैं। खजुराहो को यूनेस्को ने विश्व विरासत का दर्जा दिया है। खजुराहो चंदेलों की राजधानी हुआ करती थी। उन्हीं राजाओं ने यहाँ के मंदिरों को बनवाया था। सिकन्दर लोधी समेत कई मुसलमान शासकों ने इन मंदिरों को नष्ट कर दिया था। बाद में 1900 के बाद खजुराहो का पुनरुद्धार भारतीय पुरात्व विभाग ने करवाया। आज हम जिस खजुराहो को देखते हैं वो पूरी तरह से प्राचीन नहीं है।

लो शुरू हो गया सफर

मैंने खजुराहो जाने का सोचा था लेकिन कब जाना होगा, ये पता नहीं था। कई महीनों तक जब घूम नहीं पाया और जैसे ही कहीं जाने का मौका मिला तो उसके लिए मैंने खजुराहो को चुना। खजुराहो के बारे में मुझे ज्यादा नहीं पता था, बस इतना कि यहाँ बहुत सारे मंदिर और इन मंदिरों पर सेक्स करते हुए मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मैं बुंदेलखंड में ही अपने घर पर था। मेरे घर से खजुराहो की दूरी लगभग 150 किमी. है। मैंने अपने छोटे बैग में कुछ सामान रखा और सुबह 6 बजे खजुराहो के सफर पर निकल पड़ा।

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बुंदेलखंड का एक छोटा-सा कस्बा, मऊरानीपुर।

दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में सुबह-सुबह कहीं निकलना कोई आसान काम नहीं है। घूमने की वजह से मैं कई महीनों बाद इतनी सुबह उठा था। अभी पूरी तरह से उजाला नहीं हुआ था। सड़क पर कम ही लोग दिख रहे थे। कुछ देर बाद लाल सूरज दिखा। लाल सूरज बेहद प्यारा लग रहा था। खेतों और पेड़ों के पीछे उगता हुआ सूरज हमारे सफर को शानदार बना रहा था। जब आसमान में ऐसा खूबसूरत नजारा दिखाई देता है तो कुछ और देखने का मन नहीं करता। कुछ देर बाद चारों तरफ घूप निकल आई। इसी धूप के साये में होते हुए मैं थोड़ी देर बाद मऊरानीपुर पहुँच गया।

पहले छतरपुर

सफर का एक नजारा।

Photo of मऊरानीपुर, Uttar Pradesh, India by Rishabh Dev

अगर आप झांसी से खजुराहो जाते हैं तो आपको रास्ते में मऊरानीपुर शहर मिलेगा। एक छोटा-सा शहर, जहाँ आसपास के लोगों की जरूरतों की सभी चीजें मिलती हैं। सवेरे-सवेरे मऊरानीपुर बिल्कुल शांत लग रहा था। मुझे यहँ से खजुराहो जाने वाली बस पकड़नी थी। बस स्टैंड पहुंचा तो पता चला कि खजुराहो जाने वाली बस अंबेडकर चौराहे पर मिलेगी। कुछ मिनटों के बाद चौराहे पर बस का इंतजार कर रहा था। आसपास के लोगों से बात करने पर मालूम हुआ कि अभी बस आने में समय है। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो वहीं पास की दुकान से समोसे ले लिए। समोसे खाने के कुछ देर बाद छतरपुर जाने वाली बस भी आ गई। मैं छतरपुर वाली बस में बैठ तो गया लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि छतरपुर पहले है या खजुराहो।

बस के अंदर।

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बस जब चली तो उस समय सुबह के 8 बज रहे थे। कंडक्टर आया तो उसने बताया कि ये बस छतरपुर जाएगी वहाँ से आपको खजुराहो के लिए बस मिल जाएगी। मऊरानीपुर से छतरपुर का किराया 90 रुपए लगा। अगर आप झांसी से खजुराहो जाना चाहते हैं तो हो सकता है कि आपको खजुराहो की डायरेक्ट बस न मिले, इसलिए पहले छतरपुर पहुँचिए। बस पूरी तरह से खड़खड़ा रही थी। अगर कहीं रास्ता खराब मिलता तो पूरी बस ही हिलने लगती, लगता कि अभी बस के सारे पुर्जे अलग हो जाएंगे। धूप तेज थी लेकिन खिड़की से ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, मैंने खिड़की बंद कर दी।

सफर में ज्ञान

हरे-भरे खेत।

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रास्ते में हरे-भरे खेत, गाँव, नहर और अपने रोज का काम करते हुए लोग दिखाई दे रहा था। सबकी जिंदगी शायद रोज की तरह होगी लेकिन मेरी लिए ये दिन कुछ अलग था। जिसकी खुशी मेरे चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे रही थी। मैं जब भी सफर में जाता हूं तो मेरे बैग में एक किताब जरूर रहती है चाहे फिर मैं उसको पढ़ू या न पढ़ूँ। इस बार मेरे बैग में क्रिक पांडा पों पों थी जिसको लिखा है ऋषभ प्रतिपक्ष ने। मैंने वो किताब बैग से निकाली और फिर ऋषभ, ऋषभ की किताब पढ़ने लगा। बस में पुराने गाने बज रहे थे और बस भरी भी नहीं थी। मैं किताब पढ़ रहा था कभी बाहर देख रहा था।

ये भी जरूरी है।

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मेरे बगल वाली सीट पर एक शख्स बैठे थे, 50 से उपर की उम्र रही होगी। मैंने उनसे पूछा कि ये बस कहां तक जाएगी? उन्होंने बताया, राजनगर जाएगी। खजुराहो से आगे राजनगर है। उन्होंने बताया कि वे राजनगर के सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं। उन्होंने ही बताया कि अस्पताल में डाॅक्टर के अलावा किसी की इज्जत नहीं है लेकिन उनकी है। उन्होंने अपने पूरे परिवार के बारे में बता दिया कि तीन बेटे हैं, तीनों ने इंजीयनियरिंग की है। एक की नौकरी लग गई है और शादी भी हो चुकी है। दूसरे का काॅललेटर आने वाला है लेकिन उसके लिए रिश्वत देनी पड़ेगी और वो उसके लिए तैयार भी हैं।

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ये तो कुछ नहीं था। अभी असली ज्ञान तो मिलना बचा ही था, शादी और प्यार पर। उन्होंने बताया कि जैसे ही लड़के की नौकरी लगे तो फिर शादी कर दो नहीं तो फिर वो घर वालों की नहीं सुनता, अपनी मर्जी से शादी करेगा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया तो लड़का लव मैरिज करता है और वो भी दूसरी बिरादरी जाति की लड़की से। उन्होंने अपना ब्रम्ह ज्ञान दिया कि लव मैरिज कभी सफल नहीं होती हैं। सिर्फ 10 फीसदी लव मैरिज चलती हैं। तभी पन्ना शहर आ गया और बस खाली हुई तो वो भाईसाहब दूसरी सीट पर चले गए।

खजुराहो का सफर

छतरपुर का श्यामा प्रसाद मुखर्जी अंतर्राज्यीय बस स्टैंड।

Photo of छतरपुर, Madhya Pradesh, India by Rishabh Dev

रास्ते में कई जगह पर रोड बन रही थी तो कुछ एक जगह पर नया टोल प्लाजा भी बनता हुआ दिखाई दिया। कुछ देर बाद बस छतरपुर के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अंतर्राज्यीय बस स्टैंड पर पहुँच गई। बस स्टैंड काफी बड़ा था, बिल्कुल झांसी जैसा ही बड़ा। यहाँ अलग-अलग जगहों के लिए बस लगी थी। कुछ लोगों से पूछने पर बस मिल गई और खिड़की वाली सीट पकड़ ली। कुछ देर बाद बस चल पड़ी। छतरपुर से खजुराहो की दूरी 43 किमी. है। लगभग 1 घंटे के बाद बस बमीठा पहुँच गई। यहाँ से खजुराहो की दूरी 11 किमी. है। पांच मिनट बस यहाँ रूकी और फिर आगे चल पड़ी।

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अब रास्ते में होटल के बोर्ड मिलने लगे थे जिससे समझ आ रहा था कि खजुराहो टूरिज्म शुरू हो गया है। मैंने 126 रुपए में अपना होटल बुक किया था। इतने सस्ते में होटल मिलने से मैं खुश था। मेरा होटल राजनगर रोड पर था। कुछ देर बाद गाड़ी बस स्टैंड पर पहुँच गई, मैं वहीं उतर गया। खजुराहो बस स्टैंड बहुत छोटा है। यहाँ एक दुकान है और स्टैंड पर बस तो एक भी नहीं थी। बस स्टैंड के बाहर ऑटो खड़ी थीं जो हर किसी को मंदिर छोड़ने की बात कह रहे थे। मैं उनको छोड़कर पैदल ही चल दिया। यहाँ से मेरा होटल करीब 3 किमी. दूर था। गूगल मैप पर होटल की डायरेक्शन लगाई और चल पड़ा खजुराहो को देखने।

चलो गली-गली

खजुराहो की एक सड़क।

Photo of खजुराहो, Madhya Pradesh, India by Rishabh Dev

कहते हैं कि किसी भी नए शहर को देखना और समझना हो तो उस शहर में पैदल चलना चाहिए। कुछ देर बाद एक चऔराहा आया जिस पर अंबेडकर की मूर्ति लगी हुई थी। यहाँ खजुराहो बिल्कुल शांत और साफ लग रहा था। पहली नजर में खजुराहो मुझे भा गया था। इस चौराहे से मैं दायीं तरफ चल पड़ा। कुछ देर बाद मैं खजुराहों की गलियों से होते हुए चले जा रहा था। लोग बुंदेली बोल रहे थे तो मुझे लग रहा था कि मैं अपनी ही किसी जगह पर हूं। रास्ते में होटल बहुत सारे दिखाई दे रहे थे और सभी पर एक ही बात लिखी थी। कुछ देर बाद मुझे एक तालाब दिखाई दिया। तालाब के किनारे पर पानी में काफी गंदगी थी बीच में पानी साफ लग रहा था।

खजुराहो का तालाब खूबसूरत लेकिन गंदा था।

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तालाब के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ लगे हुए थे जो इसे खूबसूरत बना रहा था। कुछ देर बैठने के बाद मैं आगे बढ़ गया। कुछ आगे बढ़ा तो पहली बार मुझे वो मंदिर दिखाई दिए। जिनको देखने के लिए दुनिया भर से लोग यहाँ आते हैं। मैंने दूर से ही उन मंदिरों को कुछ देर निहारा और निकल पड़ा अपने होटल की ओर। आगे बढ़ा तो खजुराहो संग्रहालय दिखाई दिया। जिसके कुछ देर बाद चलने पर खजुराहो से बाहर राजनगर तरफ चले जा रहा था। कुछ देर बाद गूगल मैप वाली जगह पर पहुँच गया लेकिन वहाँ होटल के नाम का कोई बोर्ड नहीं था। वहाँ तो किसी आश्रम का बोर्ड था। जब मुझे होटल नहीं दिखाई दिया तो जिस नंबर पर बुक किया था उसे काॅल किया। पता चला कि वो आश्रम होटल में ही मुझे ठहरना है। फाॅर्मेल्टी पूरी करने के बाद मैं अपने कमरे में था। 126 रुपए के हिसाब से कमरा बेहतरीन था। बालकनी से शानदार नजारा भी दिखाई दे रहा था।

होटल का कमरा जिसमें मैं ठहरा था।

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मैं खजुराहो आ चुका था, अब मुझ शहर को घूमने के लिए निकलना था। आपकी आधी घुमक्कड़ी तभी पूरी हो जाती है जब आप उस जगह पर पहुँच जाते हैं। अब मुझे इस शहर को सिर्फ देखना ही नहीं था बटोरने थे बहुत सारे अनुभव। पहली नजर में मुझे खजुराहो प्यारा और खूबसूरत लगा। यात्रा कमाल की होती है। जब हम घूम रहे होते हैं तो सिर्फ उस घूमने वाली जगह के बारे में सोचते रहते हैं। मैं भी होटल के कमरे में बैठकर इस नए शहर को कैसे देखा जाए? इस बारे में सोच रहा था।

खजुराहो वेस्टर्न ग्रुप ऑफ टेंपल।

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कुछ देर बाद मैंने तय कर लिया था कि खजुराहो में सबसे पहले क्या देखना है? मैंने अपना सामान होटल में ही छोड़ा और निकल पड़ा बुंदेलखंड के इस ऐतहासिक शहर को देखने। कुछ देर बाद मैं खजुराहो के पश्चिमी समूहों के मंदिरों को देखने के लिए गेट पर पहुँच गया था। मैंने सुना था कि खजुराहो के मंदिरों में सेक्स की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मेरे जेहन में चल रहा था कि मंदिरों की दीवारों पर सिर्फ सेक्स करने वाली तस्वीरें हैं?

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मंदिर का टिकट काउंटर बंद था उसकी जगह पर ऑनलाइन टिकट लेना था। टिकट काउंटर के उपर पर लगे बोर्ड में लिखा था कि भारतीयों के प्रति व्यक्ति 40 रुपए और बच्चों के लिए फ्री एंट्री है। विदेशी नागरिकों को मंदिरों को देखने के लिए 600 रुपए देने पड़ेंगे। वहीं सार्क देश के लोगों को भी 40 रुपए ही देने होंगे। अगर आपको कैमरे से मंदिरों की वीडियोग्राफी करनी है तो उसके लिए 25 रुपए अलग से देने होंगे।

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कोरोना की वजह से टिकट काउंटर बंद था। पास में ही एक और बोर्ड लगा था जिसमें क्यूआर कोड था। पेटीएम से स्कैन करके टिकट बुक की जा सकती है। अगर आपके पास पेटीएम नहीं है तो आर्कोलोजी सर्वे ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर जाकर टिकट बुक कर सकते हैं। मैंने भी वेबसाइट पर जाकर टिकट बुक की, टिकट के 35 रुपए लिए। अच्छी बात ये है कि एक जगह टिकट ले लो, म्यूजियम से लेकर वही टिकट हर जगह चलेगा। आपको अलग से टिकट नहीं लेना पड़ेगा।

वेस्टर्न ग्रुप मंदिरों की सैर

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मंदिर के गेट अंदर एंट्री ली और टिकट चेक कराया तो पहली नजर में दूर-दूर तक बड़े मंदिर दिखाई दिए। देखकर लग रहा था कि किसी कलाकार ने इस मंदिरों को तराशकर बनाया है। हर मंदिर दूर से एक जैसे ही लग रहे थे लेकिन सबकी अलग खासियत। अंदर घुसते ही सबसे पहले एक बोर्ड मिला जिस पर खजुराहो के बारे में लिखा था। मुझे उस बोर्ड को पढ़कर ही पता चला कि बुंदेलखंड को प्राचीन समय में वत्स और फिर जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाता था। चंदेल राजाओं ने खजुराहो में 85 मंदिर बनवाए थे लेकिन अब सिर्फ 22 ही बचे हैं।

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मैं सबसे पहले वराह मंदिर गया। वराह मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर आयातकार बना हुआ है। ये मंदिर 14 खंभों पर खड़ा हुआ है और ये पिरामिड शैली में बना हुआ है। मंदिर में भगवान विष्णु के वराह रूप की 2.6 मीटर लंबी मूर्ति बनी हुई है। इसकी खास बात ये है कि पूरी मूर्ति में अनगिनत देवी-देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मूर्ति की नीचे एक सांप बनाया गया है। मंदिर की छज्जा पर बेहतरीन नक्काशी है जो इसे और भी खूबसूरत बनाती है। वराह मंदिर को देखने के बाद इसके ठीक सामने बना लक्ष्मण मंदिर को देखने के लिए बढ़ गया। लक्ष्मण मंदिर को 930 ईस्वी में राजा यशोवर्मन ने बनवाया था। इस मंदिर का नाम तो लक्ष्मण है लेकिन ये भगवान विष्णु का मंदिर है।

लक्ष्मण मंदिर।

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ऊँचे चबूतरे पर बना लक्ष्मण मंदिर पंचायतन शैली का संधार मंदिर है। पहले मैं मंदिर को देखने के लिए गया। पश्चिमी ज्यादातर मंदिर अंदर से एक जैसे हैं। सभी में मुख, मंडप, महापंडम, अंतराल और गर्भगृह हैं। मंदिर में घुसते ही सबसे पहले एक बड़ा-सा गलियारा मिलता है जिसके छज्जे पर शानदार नक्काशी है। इसके बाद अंदर जाने पर ऊँचे चबूतरे वाला भाग मिला, जिसके चारों तरफ लंबे-लंबे चार खंभे थे। कहा जाता है कि इस जगह पर धार्मिक नृत्य हुआ करते थ। यहाँ भी छज्जे पर बेहतरीन नक्काशी है। मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति दिखाई दी। मंदिर के अंदर भी चारों तरफ छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनी हुई हैं।

मंदिर ही मंदिर

कंदारिया महादेव मंदिर।

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ये सभी मंदिर बालू के पत्थर के बने हुए हैं जो केन नदी से लाए गए थे। मंदिरों की दीवारों पर नृत्य करती हुए प्रतिमा, भगवान गणेश और विष्णु की भी मूर्ति है। इसके अलावा सेक्स करती हुई मूर्तियाँ हैं। जो कहते हैं कि ये सेक्स करती हुई मंदिर में क्यों हैं? तो उनको पता होना चाहिए कि ये मंदिर उस समय बनाए गए थे जब अभिव्यक्ति का माध्यम सिर्फ शिल्प कला ही थी। शायद इसी वजह से सेक्स करती हुईं प्रतिमाएं बहुत सारी हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि इन मंदिरों में सिर्फ सेक्स की ही मूर्तियाँ है। यहाँ योग करती हुई मूर्तियाँ है, धार्मिक अनुष्ठान, शिकार, कल्चर और लोगों का जनजीवन कैसा था? ये सब इन मूर्तियों को देखकर समझ आता है।

मंदिर में बनीं मूर्तियां।

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लक्ष्मण मंदिर को देखने के बाद मैं आगे बढ़ चला। ये मंदिर एक बहुत बड़ी जगहें में हैं जहाँ चारों तरफ हरे-भरे पेड़ और घास है जो इस जगह को और भी खूबसूरत बना देता है। जिस मंदिर को देखने वाला था, वो कंदारिया महादेव मंदिर है। ये इन सभी मंदिरों से सबसे बड़ा और खूबसूरत है। इस मंदिर को 1065 ईस्वी में राजा विद्याधर ने बनवाया था। ये मंदिर अंदर से लक्ष्मण मंदिर की तरह ही था बस इसमें भगवान शिव विराजमान है। मंदिर में एक बड़ी-सी शिवलिंग है जो संगमरमर की बनी हुई है।

ये मंदिर रथ शैली का बना हुआ है। दूर से देखने पर ये मंदिर रथ की तरह दिखाई देता है। ये मंदिर 117 फीट ऊँचा, 117 फुट लंबा और 66 फीट चौड़ा है। मंदिर में कुछ गाइड लोगों को मंदिर की खासियत बता रहे थे। वो बता रहे थे कि लोग यहाँ आते हैं और सभी मंदिरों को जल्दी-जल्दी देखकर, कुछ फोटो खींचकर 15 मिनट में वापस चले जाते हैं। मुझे उनकी ये बात सही भी लगी। मंदिर के दोनों तरफ शेर की मूर्ति बनी हुई है।

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इस मंदिर की दीवारों पर भी कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस मंदिर में उस समय के जनजीवन को दिखातीं छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इसके अलावा कुछ बड़ी मूर्तियाँ भी हैं। जिसमें कुछ सेक्स को दिखाती हुई प्रतिमाएं हैं। एक मूर्ति में तो महिला के जांघ पर बिच्छू दिखाया गया है। ऐसी ही बहुत सारी मूर्तियाँ इस मंदिर पर बनी हुई हैं। इसके बाद मैंने जगदंबी मंदिर देखा। जगदंबी मंदिर निरन्धार शैली का बना हुआ है। इस मंदिर के तीन शिखर हैं, ये मंदिर बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन खूबसूरत है। इस मंदिर को गंडदेव वर्मन ने बनवाया था। मूलरूप से ये भगवान विष्णु का ही मंदिर है। 1880 में छतरपुर के महाराजा ने मनियागढ़ से मूर्ति इस मंदिर में स्थापित की। तब से ये मंदिर जगदंबी मंदिर हो गया।

क्यों टूटी हुई हैं मूर्तियाँ?

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पश्चिमी समूह की ज्यादातर मूर्तियाँ टूटी हुई हैं। किसी का हाथ नहीं है, किसी की मूर्ति का पैर नहीं है। ये सिर्फ एक मंदिरों में नहीं है, सभी मंदिरों का यही हाल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुस्लिम शासकों ने बार-बार इन मंदिरों को तोड़ा। जिससे आज भी उन हमलों की गवाही देती हैं ये टूटी-फूटी मूर्तियाँ। जगदंबी मंदिर को देखने के बाद चित्रगुप्त मंदिर की ओर बढ़ा। 11वीं शताब्दी में चित्रगुप्त मंदिर को गण्ढदेव बर्मन ने बनवाया था। खजुराहो में बने मंदिरों में केवल यही इकलौता सूर्य मंदिर है। मंदिर के अंदर सूर्य देवता की मूर्ति और पास में चित्रगुप्त की खंडित मूर्ति है। इस मंदिर में परिक्रमा करने की जगह नहीं है जो बाकी मंदिरों से अलग है।

चित्रगुप्त मंदिर।

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इस मंदिर की दीवारों पर भी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। जिसमें भगवान विष्णु को एक मूर्ति में 11 सिरों का दिखाया गया है। इस मंदिर के बाद पार्वती मंदिर को देखा। ये मंदिर विश्वनाथ मंदिर का ही एक भाग है। मंदिर में पार्वती की मूर्ति है। इसके अलावा मंदिर मुखमंडप पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। नंदी मंडप और विश्वनाथ मंदिर को देखने के बाद मैं बाहर निकल आया। लगभग 2-3 घंटों तक पश्चिमी मंदिरों को देखने के बाद बाकी मंदिरों की तैयारी कर ली। जैन मंदिर मेरी अगली लिस्ट में था लेकिन लोगों ने बताया कि 3-4 किमी. दूर है। वहाँ ऑटो कोई नहीं जाएगी बुक करनी पड़ेगी। जिससे मैंने म्यूजियम को देखने का प्लान बनाया।

आदिवासी म्यूजियम

आदिवर्त ट्राइबल एंड फोल्क आर्ट म्यूजियम।

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पश्चिमी मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर आदिवर्त ट्राइबल एंड फोल्क आर्ट म्यूजियम है। मैं उस ओर चल दिया। म्यूजियम के गेट के अंदर घुसते ही समझ आ गया कि ये आदिवासी म्यूजियम है। म्यूजियम में कोई नहीं था, रिसेप्शन पर भी कोई नहीं था, अंदर का गेट भी बंद था। वहीं सैनिटाइर की बोतल रखी थी, मैंने सैनिटाइजर से हाथ साफ किया तब तक गाॅर्ड आ गए। उन्होने एंट्री करवाई और म्यूजियम का गेट खोल दिया। ये म्यूजियम दो कमरों में हैं। जिसमें बस्तर से लेकर पूरे देश की आदिवासी इलाकों के सामान रखे हुए हैं, जिनके साथ उनके नाम भी लिखे हुए है। जिससे सबको उन सामानों के बारे में पता चल सके।

म्यूजियम के भीतर।

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आदिवासी इलाकों की खूबसूरत पेटिंग, देवी-देवीताओं की मूर्तियाँ और न जाने क्या-क्या इस म्यूजियम है? लगभग पौना घंटा इस म्यूजियम में रहने के बाद मैं शहर के दूसरे म्यूजियम को देखने के लिए निकल पड़ा। पुरातत्व संग्रहालय, आदिवासी म्यूजियम से 100 मीटर की दूरी पर है। अंदर एक गार्ड मिला जिसने टिकट माँगा। गार्ड ने बताया कि अंदर फोटो और वाीडियोग्राफी करना मना है। मैंने फिर फोटो के बारे में सोचा ही नहीं। इस म्यूजिय में देश भर की प्राचीन दुर्लभ मूर्तियाँ रखी हुई हैं। इस म्यूजियम को जी डार्टिन ने बनवाया था। बाद में आजादी के बाद 1967 में ये पुरातत्व संग्रहालय हो गया।

खजुराहों में बाइक

पुरातत्व संग्रहालय

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इस संग्रहालय में भगवान विष्णु, ब्रम्हा, गणेश, जैन और भगवान शिव की कई मूर्तियाँ हैं। इस म्यूजियम में कई कक्ष हैं। इसके अलावा बरामदे और आंगन में भी मूर्तियाँ हैं। लगभग आधा-पौना घंटा इस म्यूजियम को देखने के बाद मैं बाहर निकल आया। अब सवाल था क्या किया जाए? सामने मुझे ठेला दिखा, जिस पर कुछ खाने को मिल रहा था। मैंने वहाँ पर अप्पे खाये, ये मेरे लिए कुछ नया था। उससे मैंने रेंट पर साइकिल लेने की दुकान पूछी तो उसने पता बता दिया। मैं वहाँ गया तो पता चला कि अभी उसके पास कोई साइकिल नहीं है। उसने बताया कि थोड़े आगे चलने पर एक और दुकान है। मैं वहाँ गया तो साइकिल के लिए स्कूटी ले ली, वो भी दो दिन के लिए। किराये पर स्कूटी लेने के 600 रुपए दिए और उसी से देखने चल पड़ा जैन मंदिर देखने।

जैन मंदिर।

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कई घंटे शहर में बिताने के बाद शहर आपको अपना-सा लगने लगता है। इन नई जगहों पर भटक तो जाते हैं लेकिन यहाँ भटकना बुरा नहीं लगता है। मैं कुछ देर बाद जैन मंदिर में था। जैन मंदिर के सभी मंदिरों की दीवारें पीले रंग की थी सिर्फ दो मंदिरों को छोड़कर। इन दो मंदिरों की बनावट ठीक वैसे ही है जैसी पश्चिमी मंदिर समूहों की है। जिसमें से एक पाश्र्वनाथ मंदिर है। ये खजुराहो के सबसे भव्य मंदिरों में से एक है। शाम होने वाली थी, मंदिर के शिखर में धूप पड़ने से ये और भी सुंदर लग रहा था। इस मंदिर के पीछे एक और इस शैली का मंदिर बना हुआ है।

खजुराहो का पार्श्वनाथ मंदिर।

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आप जैन मंदिर कभी भी आ सकते हैं इसकी कोई टाइमिंग नहीं है। पश्चिमी समूह मंदिर शाम 5 बजे बंद हो जाता है, उसके बाद शाम साढ़े बजे इंग्लिश अंग्रेजी में लाइट और साउंड शो होता और साढ़ सात बजे से हिन्दी में होता है। जिसका टिकट 250 रुपए का होता है, अंधेरा हो चुका था। मैंने होटल जाना ही बेहतर समझा, कुछ देर बाद मैं अपने होटल के कमरे में था। कुछ देर बाद मैं बिस्तर में लेटा हुआ था। मैं पूरे दिन के बारे में सोचने लगा। मैंने सोचा कि ये शहर व्यस्त है या यहाँ के लोग, फिर समझ आया कि सब अपने में मस्त है। वो अपने काम में व्यस्त हैं और मैं घूमने में मस्त हूं। इसके बावजूद मैं उनसे कहना चाहता हूं कि आपका शहर वाकई कमाल है।

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