Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise

Tripoto
4th Oct 2012
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 1/6 by Alka Kaushik
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 2/6 by Alka Kaushik
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 3/6 by Alka Kaushik
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 4/6 by Alka Kaushik
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 5/6 by Alka Kaushik
Photo of Keoladev Ghana National Park – Birds’ paradise 6/6 by Alka Kaushik

भरतपुर पक्षी विहार

जहां पंछियों की परवाज़ और दिलों के साज़ साफ सुनायी देते हैं …  

भरतपुर नाम जेहन में आते ही पक्षियों के अनेक घोसलों की तस्‍वीरें उभरने लगती हैं और मन घना पक्षी विहार की ओर पंख लगाकर उड़ जाता है। यकीन नहीं होता कि सैंकड़ों चिडि़याओं का बसेरा ‘’दिल्‍ली से इतना कम दूर’’ है। पेड़ों की शाखों पर पत्‍तों के पीछे से बेहद मासूम और विचित्र प्रकार के पक्षी झांकते हैं और इनमें से हर पक्षी की अलग ही कहानी है। घना में कदम रखते ही वक्‍त जैसे ठहर जाता है और अपनी सांसों की आवाज़ भी शोर करती महसूस होती है। थोड़ी-सी आवाज होते ही कोई खूबसूरत पक्षी उड़ान भर लेता है और आप अपने कैमरे के क्लिक बटन पर उंगली की कसमसाहट महसूस करने लगते हैं।

करीब उन्‍नीसवीं सदी से भरतपुर के महाराजाओं की शिकार स्‍थली बनता आया केवलादेव पक्षी विहार का रास्‍ता एक जमाने में सीधा इन राजा-महाराजाओं की किचन तक जाता था। इसी पार्क में उन आखेटकों के नाम और कारनामे आज भी दर्ज हैं जो यहां नियमित रूप से भरतपुर महाराज के निमंत्रण पर आखेट के अपने शौक को पूरा करने आया करते थे। यहां तक कि अंग्रेज गवर्नर जनरल लिनलिथगाव ने तो 1938 में यहां जैसे कहर ही ढा दिया था और दस-बीस नहीं बल्कि 4273 बत्‍तखों का शिकार अकेले एक दिन में कर डाला। और उसी आखेटक दीवार पर बयान हुआ यह दर्दनाक हादसा आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। लेकिन अब इस पक्षी विहार में कोई शिकारी पर नहीं मार सकता। यहां अब पक्षियों का राज है। 1956 में केवलादेव को पक्षी विहार घोषित कर दिया गया लेकिन उसके बावजूद अगले कई वर्षों तक यह राजाओं की आखेटस्‍थली बना रहा। 1972 में जब सरकार ने राजे-रजवाड़ों का भत्‍ता बंद किया तब जाकर इस पार्क में शिकारियों का दबदबा खत्‍म हुआ। 1981 में घना  को नेशनल पार्क का दर्जा मिला और यूनेस्‍को ने भी इसे वर्ल्‍ड हेरिटेज साइट घोषित किया।

इन निर्जन राहों पर टहलकदमी का अपना अलग रोमांस है

केवलादेव घना पक्षी विहार (जो भरतपुर बर्ड सैंक्‍चुरी के नाम से भी विख्‍यात है) दरअसल, प्राकृतिक रूप से एक निचली और दलदली जमीन पर बना है, हर साल मानसून में इसके निचले भाग और ताल-सरोवर भर जाते हैं, और करीब 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली पंछियों की यह सैरगाह हरियाली से घिर जाती है। उस घनी हरियाली ने ही इसे घना नाम दिया है, पंछियों का यह घना बसेरा कभी विश्‍व विख्‍यात था, लेकिन इधर बीते सालों में बारिश ने रूठकर जैसे इसकी ख्‍याति को सीधे चोट पहुंचायी है। अलबत्‍ता, सौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर अब इस पार्क तक गोवर्धन ड्रेन से आने वाली करीब 18 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन (पानी पहुंचाने की यह कवायद 2009 में पूरी हो जानी थी मगर टेंडरिंग की अड़चनों ने इसे अब अक्‍टूबर 2012 में साकार किया है) से पक्षी विहार में पानी की रेल-पेल लौट आयी है और लगता है कि इस पार्क की किस्‍मत अब करवट लेगी और यहां पुराने दिन फिर लौटेंगे।

‘कभी साइबेरिया से हजारों मील की उड़ान भरकर यहां पहुंचने वाले क्रेन भी बरसों पहले इस पक्षी विहार से नाता तोड़ चुके हैं। भरतपुर के इस पक्षी विहार का स्‍टार आकर्षण रहे इन पंछियों का आखिरी जोड़ा 2003 में इस पार्क की दलदली जमीन पर उतरा था मगर लौटा तो ऐसा कि फिर पलटकर नहीं आया। लेकिन तो भी बहुत कुछ इस पक्षी विहार में आज भी है जो प्रकृति प्रेमियों को बुलाता है और वो अपने कैमरों, लैंस, दूरबीनों जैसे साजो-सामान के साथ यहां बार-बार लौटते हैं।’ हमारे रिक्‍शाचालक सतबीर ने जैसे एक रटी-रटायी स्क्रिप्‍ट पढ़ दी थी। वो धाराप्रवाह बोल रहा था और उसमें या किसी ऑर्निथोलॉजिस्‍ट (पक्षी विज्ञानी) में मुझे कोई फर्क नहीं लगा। वो रास्‍ते भर किंगफिशर, स्‍पूनबिल, फाउल, पेंटेड स्टॉर्क, हेरॉन, क्रेन सारस जैसे जाने कितने ही अजीबोगरीब पंछियों के नाम ऐसे गिनाता जा रहा था जैसे सीधे पक्षी विज्ञान के क्‍लासरूम से निकला हो। हम अचरज में थे, लेकिन मन ही मन समझ गए कि क्‍यों‍ उसने हमने पक्षी विहार के गेट पर अलग गाइड साथ ले चलने से रोका था। टिकट घर पर बाकायदा रजिस्‍टर्ड रिक्‍शाचालकों के साथ इस पक्षी स्‍थल की सैर के बारे में जानकारी दी जाती है। इन्‍हें वन विभाग ने प्रशिक्षित किया है और घना पार्क की खर्रामा-खर्रामा सैर पर जब वो पक्षी प्रेमियों को ले जाते हैं तो अद्भुत अनुभव के तार बुनते हैं।

पहली बार पार्क में सैर पर आएं तो गाइड की सेवाएं लेना बेहतर फैसला हो सकता है, चाहें तो सतबीर जैसे ही किसी रिक्‍शाचालक-कम-बर्ड गाइड के रिक्‍शे पर सवार हो जाएं और रिक्‍शे की मंथर चाल के साथ सैर पर निकल जाएं।

घना नेशनल पार्क में पंछियों की करीब साढ़े तीन सौ प्रजातियों को देखा गया है। यहां लोकल प्रजातियों के अलावा अफगानिस्‍तान, कजाखस्‍तान, मंगोलिया, तिब्‍बत, साइबेरिया, तुर्कमेनिस्‍तान जैसे दूर-दराज के इलाकों तक से सर्दियां बिताने के लिए पंछी परवाज़ भरते हैं। लद्दाख की भीषण सर्दी से बच निकलने के लिए बार हैडेड गूज़ जैसे आकर्षक पक्षी पहुंचते हैं। इनके अलावा, नीलगाय, हिरन और यहां तक कि सांप, कोबरा और साही जैसे जीवों की भी शरणस्‍थली है यह पार्क। सांप और साही का घर एक ही होता है, बस पहली और दूसरी मंजिल का फर्क है। सांप दिन भर अपनी बांबी में बंद रहता है और साही उस वक्‍त शिकार पर निकल जाता है, और रात में जब सांप शिकार के लिए अपने ‘फ्लोर’ से रुखसत हो जाता है तो पूरा ‘माटी महल’ साही के नाम हो जाता है। मज़े की बात है कि लुका छिपी के इस खेल का इन दोनों ही जीवों को कभी आभास तक नहीं हो पाता, वरना दोनों एक-दूसरे से भिड़कर बुरी तरह लहूलुहान हो सकते हैं। घना में प्रकृति के इस रहस्‍यवाद से आप बार-बार दो-चार होते हैं। यहां माटी की ऊंची-ऊंची मीनारों को हर जगह देखा जा सकता है। और जब ऐसी कहानियां कानों में पड़ती हैं, तो रोमांच की सिहरन महसूस होती है।

कुछ दूर चलने पर पानी की धार हमें दिखी और हम उम्‍मीद भरी आंखों से उसके किनारे-किनारे बढ़ चले। अब इस पगडंडी पर हमें सावधानी से पैर टिकाने थे, क्‍योंकि जमीन दलदली थी और कहीं-कहीं कांटेदार वनस्‍पति से घिरी थी। पानी की जो धार हमारे साथ-साथ आ रही थी, अचानक जैसे कहीं गुम हो गई और उसकी जगह एक नहर दिखने लगी। और ये क्‍या … नहर के किनारे उगी ऊंची झाडि़यों के पीछे ट्रायपॉड टिकाए, कैमरों की लैंस में से टकटकी लगाए कुछ बदन अब साफ दिख रहे थे। हम भी उनकी तरफ बढ़ चले तो उन्‍होंने होंठों पर उंगली के इशारे से हमसे शोर न करने का अनुरोध किया और बदले में एक हैरतंगेज़ नज़ारे को देखने का मौका दिया। करीब 100 मीटर दूर सारस का एक जोड़ा अंडों की हैचिंग में जुटा था। लंबे-ऊंचे कद के ये पंछी पूरी तन्‍मयता से अपने काम में जुटे थे, बाकी दुनिया से बेज़ार मगर सतर्क इतने की झाडि़यों में हल्‍की-सी सरसराहट तक से उनकी गर्दन चारों ओर घूम जाती। फोटोग्राफरों की वो टीम पिछले तीन दिनों से वहां डेरा डाले हुए थी और उनकी हर गतिविधि को कैमरे में कैद कर रही थी। क्षणवाद में जीती ट्विटर और इंस्‍टाग्राम पीढ़ी के लिए यह टीम किसी दूसरे लोक से आए एलयन्‍स की तरह हो सकती है, जो घंटों घना के जंगल में स्थिर बने रहकर बस सारस की जिंदगी के उन अहम पलों पर अपनी नज़र टिकाए हुए थे।

कैसे पहुंचा जा सकता है भरतपुर बर्ड सैंक्‍चुअरी

दिल्‍ली से एनएच 2 होते हुए मथुरा के बाद दाएं भरतपुर की ओर एनएच 11 पर (दिल्‍ली से कुल दूरी करीब 180 किलोमीटर)। जयपुर से भरतपुर पक्षी विहार की दूरी करीब 170 किलोमीटर और आगरा से यहां तक का रास्‍ता लगभग 56 किलोमीटर है।

रेलमार्ग से भरतपुर जंक्‍शन तक पहुंचे, वहां से ऑटो रिक्‍शा से घना पार्क तक करीब 5 किलोमीटर का रास्‍ता है। शहर भर में रिक्‍शा और ऑटो रिक्‍शाओं की कमी नहीं, अलबत्‍ता, मोलभाव दिल खोलकर कर लें।

कितना रुकें / कहां ठहरें  

बर्ड सैंक्‍चुअरी में पक्षियों से मुलाकात करने का आदर्श समय सवेरे का होता है, कम-से-कम दो दिन हर सुबह इन रंग-बिरंगे सैलानियों के साथ बिताए जा सकते हैं। पक्षी विहार के गेट के नज़दीक ही पर्यटन विभाग का होटल सारस है जो ठहरने का सस्‍ता और ठीक-ठाक ठिकाना है। सबसे उम्‍दा लोकेशन पक्षी विहार के अंदर आईटीडीसी के होटल भरतपुर अशोक की है। यहां रात में जंगल की साय-साय और जंगली जीवों की आवाज़ें और दिनभर पक्षियों का कलरव आपके नेचर विजिट को पूरा करेगा।

 

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