कोरोना के कारण दो साल से बंद केदारनाथ धाम के कपाट 6 मई को खोल दिए गए है। लेकिन अब वहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ जमा होने से बुरी तरह अव्यवस्था फैल गई है। उत्तराखंड में चल रही चार धाम यात्रा पर चारों धामों में हर दिन तकरीबन 50,000 लोग दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में सरकार के सामने भीड़ को कंट्रोल करना चुनौती बन गया है।
यात्रा पूरे छः महीने खुली रहेगी, अतः आप से निवेदन है कि आप थोड़ा रुक कर जुलाई अगस्त, सिंतबर में यात्रा करें। केदारग्राम एक बेहद छोटा सा गांव है जिसकी कुल क्षमता 10000 लोग एक बार मे झेलने की है। वहां अधिकतम एक रात में 10000 लोगों के रुकने की व्यवस्था है इतने ही लोगों के भोजन की व्यवस्था हो सकती है। लेकिन 6 मई को कपाट खुलने के पहले दिन ही सुबह गौरीकुंड तक 20000 लोग पहुंच गए । इस भीड़ को प्रशासन को नियंत्रित करने में पसीना आ गया।और लोगो को गौरीकुंड में ही रोक दिया गया। केदारग्राम की हालत ये है कि एक भी होटल, गेस्टहाउस, धर्मशाला में एक भी कमरा खाली नहीं है। छोटे छोटे होटल्स के कमरे 12000 रुपये / रूम पर नाईट तक मे बिक गए। लोग खुले आसमान के नीचे 2℃ में अलाव के भरोसे सोए और खाने का कुछ तो पता ही नही। अब तो पूरी दुनिया को पता है कि पारिस्थितिक रूप से ये बहुत नाजुक इलाका है, 2013 के वो 48 घंटे कोई भुला नही होगा।
सुरक्षा में लापरवाही की तस्वीरें गंगोत्री धाम से भी आ रही है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा घाटों पर पहुंच रहे हैं। साथ ही, इस समय गंगा नदी का प्रवाह काफ़ी तेज़ भी है। लेकिन यहां घाटों पर बैरिकेडिंग, ज़ंजीरें या रस्सियां डालने, रेस्क्यू टीम के मौजूद रहने और लाइफ जैकेट या लाइफ सेविंग सिस्टम जैसे कोई इंतज़ाम नहीं हैं। लोग बगैर किसी रोक टोक के घाटों पर टूट रहे हैं बल्कि डुबकियां तक लगा रहे हैं।
वास्तव में, केदारनाथ की यात्रा के लिए अक्टूबर सबसे अच्छे महीनों में से एक है, जब मंदिर में आमतौर पर एक दिन में सिर्फ एक हजार आगंतुक आते हैं। केदारनाथ के लिए सरकारों को हर दिन के लिए यात्रियों की संख्या निर्धारित करनी चाहिए, ताकि यात्रियों की सुरक्षा हो और केदारनाथ भी केदारनाथ बना रहे।