महाराष्ट्र। भारत का एक ऐसा राज्य जो भगवान शिव के भक्तों के लिए बेहद खास है। जानते हैं क्यों? क्योंकि 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ज्यादा 3 ज्योतिर्लिंग अकेले इसी राज्य में है। वैसे दावा तो 5 ज्योतिर्लिंग होने का है, लेकिन बाकी 2 की मान्यता विवादास्पद है। हालांकि, आज हम महाराष्ट्र में मौजूद भीमाशंकर, घृष्णेश्वर और त्र्यम्बकेश्वर इन तीन सर्वमान्य ज्योतिर्लिंगों के बारे में बात नहीं करेंगे। इस लेख के जरिए तो आपको महाराष्ट्र के एक ऐसे प्राचीन शिवलिंग के दर्शन कराएंगे, जो चारों ओर से चार युगों से घिरा हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस जगह पर मौजूद शिवलिंग जिन 4 स्तंभों के आधार पर खड़ा है, वो असल में 4 युगों का प्रतीक है। इनमें से सतयुग, द्वापरयुग और त्रेतायुग वाले स्तंभ तो समय के साथ नष्ट हो गए हैं। लेकिन, कलयुग वाला स्तंभ आज भी जस का तस सलामत खड़ा है। किवदंतियों की मानें तो जिस दिन चौथा स्तंभ यानी कलयुग का प्रतिनिधित्व करने वाला स्तंभ भी गिर जाएगा, उस दिन इस दुनिया का अंत हो जाएगा।
हम बात कर रहे हैं- महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित हरिश्चंद्र गढ़ पर मौजूद केदारेश्वर शिवलिंग की। जमीन से करीब 4500 फीट ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव जी का यह स्वरूप इतना ज्यादा सुंदर है कि इसे एक झलक भर देखने के लिए लोग हंसते-खेलते पूरा पहाड़ चढ़ जाते हैं। यह शिवलिंग दरअसल एक गुफा में मौजूद है। गुफा के अंदर भी पांच फीट के शिवलिंग का स्थान पानी के कुंड के बीचोबीच स्थित है। शिवलिंग के चारों ओर बने हुए चार पिलर आधारस्तंभ के रूप में मौजूद हैं। और इनमें से तीन स्तंभ टूट चुके हैं। और जो बचा हुआ है उसे लेकर कहानी यह कही जाती है कि इसके टूटने के बाद दुनिया भी समाप्त हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस दिन चौथे पिलर को कुछ हुआ उस दिन प्रलय आ जाएगा। अब इस बात में कितनी हकीकत है और यह किताना फ़साना है, इसको हम आप लोगों की ही समझदारी और विश्वास पर छोड़ देते हैं। हां, एक ऐसा काम हैं जो हम सब कर सकते हैं। और वो यह कि हम इस गुफा के जल कुंड में उतर शिवलिंग के दर्शन करते हुए यहां की शांति में अपने लिए ढेर सारा सुकून बटोर सकते हैं।
केदारेश्वर शिवलिंग को 4 स्तंभ वाली कहानी के इतर एक और अनूठी पहेली है जो सबसे अनोखा बनाती है। गुफा में मौजूद शिवलिंग के चारों ओर कुंड में जमा पानी गर्मी के दिनों में आश्चर्यजनक रूप से बहुत ज्यादा ठंडा होता है। और ठंड के दिनों में पानी मौसम के विपरीत अपना व्यवहार बदलते हुए गुनगुना हो जाता है। गुफा के कुंड में कमर तक पानी होने के चलते इस शिवलिंग तक पहुंचने के लिए आपको अच्छी-खासी मशक्कत करनी पड़ जाती है। बाकी मुश्किल नजर आने वाला यह काम भी सिर्फ ठंडी और गर्मी के महीने में ही मुमकिन हो पाता है। क्योंकि बरसात के मौसम में केदारेश्वर शिवलिंग की गुफा के ठीक बाहर पानी का एक तेज बहाव बह रहा होता है। इस बहाव को ही मलंग गंगा नंदी का उद्गम स्थल भी माना जाता है। ऐसा नहीं है कि इस बहाव को पार कर लोग मॉनसून में केदारेश्वर शिवलिंग के दर्शन नहीं करते। बाकी हमारा तो यही मानना है कि घर से इतने दूर और जमीन के इतने ऊपर किसी तरह का जोख़िम लेकर बेकार में खुद को और अपने साथ आए लोगों को परेशानी में डालने की बेवकूफी करने से बचने में ही समझदारी है।
केदारेश्वर शिवलिंग के दर्शन करने का सबसे सही समय इस इलाके में बरसात की विदाई से लेकर गर्मियों के आगमन की आहट तक का होता है। क्योंकि इन दिनों में हरिश्चंद्र गढ़ पहाड़ का मौसम बहुत ही ज्यादा खुशनुमा रहता है। अगर फिल्मी अंदाज में कहें तो अक्टूबर से लेकर मार्च तक हरिश्चंद्र गढ़ पहाड़ यहां आने वाले लोगों के लिए ग्रीन कार्पेट बिछाए रहता है। इसके अलावा सुबह-शाम होने वाला कोहरा भी अपनी मौजूदगी से आपकी प्रसन्नता को बढ़ा देता है। सबसे अच्छी बात तो यह कि ऐसे ठंड भरे माहौल के चलते शिवलिंग तक पहुंचने के लिए की जाने वाली 4600 फीट की चढ़ाई के दौरान ना तो खास थकावट ही होती है और ना ही ज्यादा पसीना ही बहता है।
वैसे ये थकावट और पसीना ही दो सबसे बड़ी परेशानी है जिसके चलते गर्मियों के दिनों में यहां आना अवॉइड करना होता है। बाकी, मजा तो मॉनसून के मौसम में भी बड़ा आता है। क्योंकि इस दौरान शिवलिंग परिसर में आपको जहां-तहां इतने झरने दिख जाएंगे कि आपकी नजर किसी एक पर ठहर ही नहीं पाएगी। और बारिश के पानी में भीगते हुए पहाड़ की चढ़ाई का भी अपना अलग सुख है। लेकिन यह सब कुछ सुनने में जितना अच्छा लग रहा है, असल में करने में उतना ही खतरनाक भी होता है। क्योंकि पहाड़ों में बरसात के दिनों में कदम-कदम पर पैर फिसलने का खतरा बना रहता है। और अगर ऐसे में कहीं आपके कदम लड़खड़ाने का डर हकीकत में तब्दील हो गया, तो फिर सारा मजा एक पल में सजा बन सकता है।
केदारेश्वर शिवलिंग तक पहुंचने के लिए आपको भारत के अन्य इलाकों से सबसे पहले महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे या फिर नासिक इन तीन शहरों में आना होगा। हरिश्चंद्र गढ़ पर मौजूद केदारेश्वर शिवलिंग अहमदनगर जिले की परिधि में आता है। लेकिन सह्याद्री का यह शिखर ठाणे और पुणे जिले से भी बॉर्डर साझा करता है। इस फोर्ट तक पहुंचने के लिए आपको मुंबई से 200 किमी, पुणे से 150 किमी और नासिक शहर से 100 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। आपको बता दें कि केदारेश्वर शिवलिंग तक सड़क मार्ग के जरिए पहुंचने के ही तीन रास्ते नहीं हैं। बल्कि इस तक पहुंचने के लिए जो ट्रेकिंग करनी होती है, उसमें भी आपके पास तीन विकल्प होते हैं।
पहला रास्ता तो 'नालीची वाट' है। मराठी भाषा के इस शब्द का मतलब है पानी के बहाव का रास्ता। नाम से जाहिर हो रहा है कि यह रास्ता सिर्फ और सिर्फ कुशल ट्रेकर्स के लिए ही है। इस रास्ते के जरिए ट्रेक करने में 8 से 10 घंटे का समय लग जाता है। क्योंकि इस रास्ते में आपको पहाड़ से मैदान में आने वाले पानी के बहाव की खड़ी और उल्टी दिशा में चढ़ना होता है। कहीं-कहीं तो यह चढ़ान 80 डिग्री जितनी सीधी हो जाती है। इसलिए इसे बस जानकारी के लिए ही याद रखिए।
दूसरा रास्ता खिररेश्वर से होकर गुजरता है। मुंबई से केदारेश्वर शिवलिंग देखने आने वाले पर्यटकों के लिए यह रूट सबसे बेहतर होता है। मालशेज घाट उतरने के ठीक बाद आपको पिम्पलगांव जोगा डैम के रास्ते खिररेश्वर विलेज पहुंचना होता है। इस बेस विलेज से हरिश्चंद्रगढ़ तक की चढ़ाई में भी 4 से 5 घंटे का वक्त लग जाता है। अगर आप पुणे या फिर नासिक से आ रहे हैं, तो फिर आपके हिस्से हरिश्चंद्र गढ़ पर पहुंचने का सबसे आसान रास्ता आएगा। जी हां, केदारेश्वर शिवलिंग तक जाने का तीसरा रास्ता पाचनई गांव से होकर जाता है। और यहां से आप महज एक घंटे की ट्रेकिंग कर शिखर पर पहुंच जाएंगे। इस रास्ते की दूरी भी कम है और जोखिम भी ना के बराबर ही है। इस वजह के समय भी बहुत कम लगता है। अगर संभव हो तो मुंबई से आने वाले लोग भी पाचनई वाला रूट ही चुनें। इसके लिए सड़क के जरिए भले दूरी ज्यादा तय करनी पड़ जाए, लेकिन पैरों पर काफी कम बोझ पड़ता है।
हरिश्चंद्रगढ़ पहाड़ पर देखने के लिए सिर्फ केदारेश्वर शिवलिंग ही नहीं है। इस एक जगह पर आपको राज्य का सबसे खूबसूरत कोना कोकणकड़ा और राज्य की तीसरे सबसे ऊंची जगह तारामती शिखर देखने को मिलता है। इतना ही नहीं तो केदारेश्वर शिवलिंग के बगल में ही आपको 6वीं शताब्दी में बनाए गए हरिश्चंद्र मंदिर के भी दर्शन हो जाएंगे। सबसे पहले बात करें कोकणकड़ा की यह देखने में किसी सांप के फन जैसा है। यहां से आप दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली को देर तक एकटक शांत भाव से बस देखते रहने का कभी न भुलाए जा सकना वाला सुख भोग सकते हैं। तारामती शिखर से तो अगर आपको सूर्योदय देखने मिल गया, फिर तो आप ताउम्र इससे खूबसूरत सूर्योदय नहीं देख पाएंगे। क्योंकि जमीन से करीब 4700फीट ऊंचाई पर मौजूद इस जगह से उगते हुए सूरज को देखने के बाद आपकी आंखों को दूसरा कुछ अच्छा नजर आएगा ही नहीं। वहीं अंत में हरिश्चंद्र मंदिर में भगवान शिव जी के दर्शन करने के बाद आपकी आत्मिक यात्रा भी पूरी हो जाएगी। इस फोर्ट पर समय की भी कोई पाबंदी नहीं है, इसलिए यहां आप कैम्पिंग का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं।
क्या आपने हाल में कोई की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।