![Photo of प्रकृति की गोद में सुहाना सफर करना है, तो चलो असम में बसे काज़ीरंगा की सैर पर! by Rupesh Kumar Jha](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1563110/TripDocument/1562081037_1521606793_26008996717_e4b62bc3a5_k.jpg)
जहाँ पक्षियों के चहचहाने से संगीत बजता है, घने घास के मैदानों में हाथी जहाँ मचलते हुए चलते हैं और आप उसकी पीठ पर कसकर बैठ जाते है, असम के इस विराट जंगल में प्रकृति के बीच मनमोहक सूर्योदय का अनुभव लेते हुए आप ठिठक से जाते हैं। जलाशय बेहद चमकीला हो उठता है और घास पर लोटने को मन मचलने लगता है। आप एक सींग वाले गैंडे को देखकर रोमांचित होते हैं और अपने साथियों के चेहरे पर चमक से लगता है कि मानो वो जुरासिक पार्क फिल्म में ही आ गए हों! यहाँ आकर आपको पता चलता है कि काज़ीरंगा नेशनल पार्क को लोग इतना क्यों पसंद करते हैं।
संरक्षण की अपील
पूर्वी हिमालयी जैव विविधता का प्रमुख आकर्षण का ये केंद्र गोलाघाट और नागांव जिले की सीमा पर स्थित है। काज़ीरंगा नेशनल पार्क 430 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें हाथी-घास के मैदान, दलदली लैगून और घने जंगल हैं। यह दुनिया में जीवों के लिए सबसे अधिक संरक्षित जगहों में से एक है और आपको यहाँ इसके कई दिलचस्प किस्से देखने को मिल सकते हैं। इस पार्क में 2200 से अधिक भारतीय एक सींग वाले गैंडे (दुनियाभर में उनकी कुल आबादी का लगभग दो-तिहाई) हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, काज़ीरंगा में बाघों की संख्या भी बढ़ रही है। बता दें कि इसे 2006 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। हैरानी की बात है कि गैंडों के लिए पहचान पाने वाले काज़ीरंगा में गैंडे सुरक्षित नहीं है, लिहाजा लगभग 600 गार्ड तैनात हैं, जो 130 कैम्प लगाकर उनकी रक्षा कर रहे हैं।
पार्क जंगली हाथियों सहित अन्य खतरनाक जानवरों का भी निवास स्थान है। साथ ही ये कई प्रजातियों के जीवों का घर भी है। एशियाई जंगली भैंस (सबसे ज्यादा संख्या में), हॉग हिरण, बारासिंगा, दलदल वाला हिरण, एल्क जैसे सांभर और सैकड़ों जंगली हॉग यहाँ मिल जाएँगे। यह सर्दियों के दौरान मध्य एशिया से आए हलके उजले रंग के हंस, फेरुजिनस डक, बेयर पोचर्ड बत्तख और कुछ काले गर्दन वाले सारस और एशियाई ओपनबिल स्टॉर्क जैसे प्रवासी पक्षियों का भी घर बन जाता है।
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पार्क के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के बीच ऊँचाई में अंतर के कारण आप जलोढ़ घास के मैदान, जलोढ़ सवाना जंगल, ट्रॉपिकल नमी वाले पतझड़ी जंगल और ट्रापिकल अर्ध-सदाबहार जंगल देख पाएंगे। कुम्भी, भारतीय करौदा, कपास का पेड़, और हाथी सेब उन प्रसिद्ध पेड़ों में से हैं जिन्हें पार्क में देखा जा सकता है। विभिन्न प्रकार के जलीय वनस्पतियों को झीलों, तालाबों और ब्रम्हपुत्र के तटों पर देख सकते हैं।
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पार्क के बनने की दिलचस्प कहानी
मैरी कर्जन की सिफारिश पर 1908 में बनाए गए इस पार्क को यूनेस्को द्वारा वर्ष 1985 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में घोषित किया गया था। कहा जाता है कि मैरी कर्जन, जो कि भारत के तत्कालीन वॉइसराय की पत्नी, केडल्टन के लॉर्ड कर्जन ने इस इलाके का दौरा किया। उन्हें सींग वाले भारतीय गैंडों को देखना था लेकिन वो कहीं नहीं दिखा। फिर उन्होंने अपने पति को घटती प्रजातियों की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय करने के लिए राज़ी किया। इसके बाद ही उन्होंने उनके संरक्षण की योजना बनाई और इसके बाद ही काज़ीरंगा प्रस्तावित रिजर्व फ़ॉरेस्ट 1905 में 232 कि.मी. स्कवैयर (90 वर्ग मील) के क्षेत्र में बनाया गया।
काज़ीरंगा नैशनल पार्क में सफारी
पार्क को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है; सभी अपनी अनूठी स्थलाकृति और विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं। इस भव्य जंगल को विभिन्न तरीकों से अनुभव किया जा सकता है। काज़ीरंगा पार्क के अधिकारी दिन के अलग-अलग समय में जीप और हाथी सफारी का आयोजन करते हैं।
सफारी का वक्त
सुबह 8 बजे, 10 बजे, दोपहर 2 बजे और शाम 4 बजे जीप सफारी होती है। ये सफारी आम तौर पर मिहिमुख से सेंट्रल रेंज के कोहरौरा, बागोरी के पश्चिमी रेंज में बागोरी, अगरतोली के पूर्वी रेंज में अगरतोली, बुरापहाड़ रेंज में घोड़ाखाटी से शुरू होती है।
आप सुबह 5:30 और शाम 6:30 बजे हाथी सफारी के लिए जा सकते हैं। गर्मियों और सर्दियों में समय थोड़ा अलग भी हो सकता है, इसलिए बुकिंग के समय इसकी पुष्टि कर लें। हाथी सफारी सबको करनी चाहिए क्योंकि इसका अनुभव रोमांचकारी होता है और आपको इसके ज़रिए पार्क के कई दिलचस्प जगहों पर जाने का मौक़ा मिलता है। हाथी की सवारी आपको लगभग ₹900 प्रति व्यक्ति, जबकि जीप सफारी की ₹2500 प्रति वाहन पड़ सकती है। सफ़ारी को संबंधित फ़ॉरेस्ट गेट (पूर्वी, मध्य और पश्चिमी) के टिकट काउंटरों पर बुक किया जा सकता है। हाथी सफारी के लिए सीमित सीटें होती हैं। इसके लिए टिकट एक दिन पहले बुक कर लिए जाते हैं। आप अपने होटल की मदद से भी टिकट बुक कर सकते हैं।
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कब जाएँ काज़ीरंगा की यात्रा पर
नवंबर से फरवरी का समय पार्क की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय है क्योंकि जलवायु हल्की और शुष्क होती है। गैंडों को देखने के लिए सर्दियों का समय बेहतर होता है क्योंकि घास के नहीं होने से क्षेत्र साफ रहता है।
काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान हर साल जून से सितंबर तक बंद रहता है। इस समय के दौरान इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है (लगभग 2,220 मिलीमीटर / 87 इंच)। ऐसे में अक्सर ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ की स्थिति बनती है। अप्रैल और मई में गर्मी होती है और जलवायु शुष्क रहती है। इस समय जानवरों को जल क्षेत्र के आसपास रखना आसान है।
कैसे पहुँचें काज़ीरंगा नैशनल पार्क
हवाई मार्ग: नई दिल्ली से काज़ीरंगा के बीच कोई सीधी उड़ान या ट्रेन या बस नहीं हैं। नई दिल्ली से काज़ीरंगा तक पहुँचने का सुविधाजनक और सबसे तेज़ तरीका है नई दिल्ली से गुवाहाटी के लिए उड़ान भरना और उसके बाद गुवाहाटी से काज़ीरंगा के लिए कैब किराए पर लेना।
ट्रेन: नई दिल्ली और काज़ीरंगा के बीच कोई सीधी ट्रेन नहीं है। आप नई दिल्ली से गुवाहाटी के लिए फ्लाइट ले सकते हैं, फिर गुवाहाटी से होजई के लिए आरजेपीबी एनटीएसके एक्सप्रेस लें, फिर होजई से काजीरंगा के लिए टैक्सी लें।
सड़क मार्ग: गुवाहाटी से काज़ीरंगा (217 कि.मी., ₹500), जोरहाट (96 कि.मी., ₹70), नवगांव, डिब्रूगढ़, तेजपुर (75 कि.मी., ₹50) या तिनसुकिया के लिए बसें हैं। कोहोरा, जो गुवाहाटी-जोरहाट मार्ग पर पार्क का लगभग मध्य भाग है, में उतरें, इस बस से लगभग 6 घंटे का समय लगेगा। अगर अरुणाचल प्रदेश से काज़ीरंगा का दौरा किया जाए, तो तेजपुर सबसे अच्छा गंतव्य है जहाँ से काजीरंगा की ओर बस पकड़नी पड़ेगी। प्राइवेट और सरकारी बसों के किराए में अंतर हो सकता है और आमतौर पर ये आरामदायक होता है। यात्रा में किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए बसों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि उन्हें सुरक्षित माना जाता है।
काज़ीरंगा में कहाँ ठहरें?
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