गर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त
हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त”
अगर धरती पर स्वर्ग कहीं है तो बस यहीं है यहीं है यहीं है।
जब जब कश्मीर का ज़िक्र आएगा किसी शायर की लिखी यह अमर पंक्तियाँ हमेशा दुहराई जाएँगी। कश्मीर है ही ऐसी जगह जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाना अतिशयोक्ति नही है। हिमालय की गोद मे बसी यह वादी चारों ओर से बर्फ़ीले पहाड़ों से घिरी हुई है। और इन वादियों की ख़ासियत यह है कि यह हर मौसम मे यह दिल्फ़रेब नज़र आती हैं। फिर चाहे वो गर्मियों का मौसम हो या फिर बरसात का या हो कंपकपाती सर्दियाँ। अगर आप कश्मीर की वादियों मे गर्मी के मौसम मे जाएँगे तो चारों ओर हरयाली नज़र आएगी। शीशे-सी चमकती लिद्दर और झेलम मे आप रफ्टिंग का मज़ा ले सकेंगे। और अगर आप बारिशों मे जाएँगे तो पाइन के घने जंगलों की जादुई महक आपको दीवाना बना देगी। यहाँ वहाँ झुक आए बादल आपको परियों के जादुई लोक मे लेजाएँगे। घाँस के हरे भरे मैदान मन मोह लेंगे। और फिर सर्दी के मौसम की तैयारी मे अपनी हरी भरी शाखों को पीले, नारंगी और सिंदूरी रंगों की पत्तियों से किसी चित्रकार की तरह भर देंगे। सर्दी से पहले सिर्फ़ एक माह के लिए पूरी वादी औटम यानी पतझड़ के सुनहरी रंगों से दमकने लगती है। फिर आता है सर्दी का मौसम। ये हरे भरे घाँस के मैदान पहले ही स्नोफाल से सफेद चादर मे लिपट जाते हैं। दिसंबर का माह आते आते वादी मे कई जगहों पर जम कर बरफबारी होती है और पूरी वादी ए कश्मीर बर्फ की सफेद मखमली चादर से ढ़क जाती है।
डल लेक
कश्मीर का नाम आते ही जो चित्र ज़हन मे उभरता है उसमे डल लेक मे तैरती शिकारा तो होते ही है। यह श्रीनगर के सभी आकर्षणों मे मुख्य आकर्षण है। और क्यूँ ना हो हिन्दी सिनेमा ने 60 और 70 के दशक की फिल्मों मे कश्मीर को इतनी खूबसूरती से दिखाया कि हर इंसान के दिल मे यह सपना कहीं चुपके से समा गया कि एक बार कश्मीर ज़रूर जाना है और डल लेक पर तैरती हाउसबोट मे रुकना है। डल लेक के दो आकर्षण हैं ।एक डल मे शिकारा में नोकाविहार करना दूसरा हाउसबोट मे स्टे करना। डल लेक मे कई कैटेगरी की हाउसबोट होती हैं। 3 सितारा हाउसबोट से लेकर 5 सितारा लग्ज़री हाउस बोट तक। हाउसबोट मे रहना किसी राजसी अनुभव जैसा है। पानी पर हिचकोले खाती यह हाउसबोट देवदार की क़ीमती लकड़ी से तैयार की जाती हैं इनके इंटीरियर्स मे खालिस अखरोट की लकड़ी पर बारीक नक्कार्षी किया जाता है। एक हाउसबोट में दो से तीन बैडरूम ड्रॉयिंग और डाइनिंग रूम होते हैं। कुछ अल्ट्रा लग्ज़री हाउसबोट के ऊपर डेक भी होता है जहाँ बैठ कर सनसेट का मज़ा लिया जा सकता है। हाउसबोट मे रहते हुए कहीं शॉपिंग करने जाने की ज़रूरत नही पड़ती। अगर आप अपना हॉलिडे अरामतलबी से बिताना चाहते हैं तो सुबह सुबह फ्रेश फ्लवर्स से लेकर शॉल,ज्वेलरी, कारपेट और सैफ्रान जैसी कश्मीरी प्रॉडक्ट खुद बा खुद शिकारा मे आप तक आजाएँगे। बिल्कुल हिन्दी फ़िल्मों के स्टाइल मे। और फिर भी आपका मन करे मार्केट जाने को तो डल पर तैरती हुई फ्लोटिंग मार्केट आप के लिए ही बनी है। आप अपने हाउसबोट वाले से बस इच्छा ज़ाहिर कीजिए एक शिकारा झट से आपको डल मे शॉपिंग करवाने के लिए उपलब्ध हो जाएगी। अगर आप किताबों के शौक़ीन है तो डल के बीचों बीच बने नेहरू पार्ट मे एक खूबसूरत बुक स्टोर और कैफे मौजूद है।
मुग़ल गार्डेन्स
डल के बाद नंबर आता है यहाँ बने टैरेस गार्डेन्स को देखने का। यह गार्डेन प्रमाण है कि आज से इतने साल पहले भी हमारे देश आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग मे कितना अड्वान्स था। यहाँ आकर नैचुरल रिसोर्स का इतना सुंदर उपयोग देखने को मिलता है कि आप भी तारीफ किए बिना नही रह पाएँगे। श्रीनगर मे चश्मे शाही, निशात बाग़ और शालीमार गार्डेन ऐसे ही सुंदर टैरेस गार्डसं के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिनके बीच से साफ शफ़्फ़ाफ़ पानी की नहरे बहती हैं। यहाँ चिनार के बहुत प्राचीन वृक्ष मौजूद हैं। इनमे से कोई कोई तो 400 साल पुराना पेड़ भी मौजूद है। औटम मे यह चिनार के पेड़ पीले सुनहरी होकर लाल हो जाते हैं। इन्हें आतिशे ए चिनार भी कहा जाता है।
परी महल
श्रीनगर की एक बहुत बढ़िया बात है कि यहाँ सभी टूरिस्ट अट्रैक्शन क़रीब क़रीब बने हुए हैं। डल के नज़दीक ही परी महल है जिसका निर्माण दारा शिकोह ने करवाया था। उँचे पर्वत पर बना परी महल असल मे खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए मुग़ल राजकुमार के लिए किया गया था। यहाँ से डल लेक का नज़ारा बहुत खूबसूरत नज़र आता है। लोग इसे ही देखने परी महल आते हैं। परी महल और चश्म–ए-शाही आस पास ही हैं। पहले चश्म–ए-शाही पड़ेगा फिर परी महल। आप इन दोनो स्थानों को क्लब कर सकते हैं।
चश्म-ए-शाही चश्मे शाही
एक ऐसा प्राकृतिक पानी का स्त्रोत है जिसमे अनंत काल से पानी बहता आ रहा है। यहाँ के लोगों की माने तो इस पानी मे कुछ रूहानी ताक़त है इसलिए इसे पीने से आप हमेशा स्वस्थ रहते हैं। यहाँ इस से जुड़ी एक कहानी और प्रचलित है। कहा जाता है कि चश्म-ए-शाही के पानी के महत्व को हमारे पहले प्रधानमंत्री ने भी स्वीकारा था और उनके पीने के लिए यहीं से पानी हवाई जहाज़ों मे भर कर दिल्ली ले जाया जाता था। अब इस बात मे कितनी सच्चाई है यह तो उस समय के लोग ही जाने लेकिन आज भी ऐसे कई फसाने यहाँ के लोगों की ज़ुबान पर ज़िंदा हैं। यहाँ इस जल स्रोत की आस पास एक खूबसूरत टैरेस गार्डेन बना हुआ है जिसे मुगलों ने बनवाया था इसी लिए इस स्थान का नाम चश्म-ए-शाही पड़ा। चश्म अर्थात पानी का स्रोत। इसे रॉयल स्प्रिंग के नाम से भी जाना जाता है।
हज़रत बल और अन्य सूफी दरगाहें
कश्मीर मध्य एशिया से आने वाले सभी लोगों के लिए हिन्दुस्तान के द्वार जैसा रहा है,यहीं से, मुग़ल, लुटेरे, व्यापारी और सूफ़ी लोग आए। समय के साथ लुटेरे और व्यापारी तो भुला दिए गए लेकिन जो बाक़ी रहा वो है नाम ए खुदा जिसका ज़िक्र हर सूफ़ी की शिक्षाओं मे मिलता है। पूरे भारत मे सूफ़िज़्म यहीं से फैला इसलिए कश्मीर घाटी मे कई प्रसिद्ध सूफ़ियों के मज़ार हैं। जैसे दस्तगीर साहिब, मक़दूम साहिब और हज़रत बल। हज़रत बाल एक बेहद खूबसूरत संरचना है और वहाँ मुस्लिम संप्रदाय के अंतिम पेगंबर मुहम्मद साहिब का एक बाल सुरक्षित रखा हुआ है। इसी लिए लोग इस जगह को बहुत मुक़द्दस मानते हैं।
गुलमर्ग
गुलमर्ग को हमारा अपना स्विट्ज़रलंड कहें तो ग़लत नही होगा। जहाँ गर्मियों मे गुलमर्ग के हरे भरे घाँस के विशाल मैदान छोटे छोटे फूलों से भर जाते हैं वहीं सर्दियों मे स्नोफॉल होने पर यही घाँस के मैदान बर्फ की मोटी चादर के तले कहीं छुप जाते हैं। यहाँ सर्दी आते ही अफरवात पर्वत पर स्कीइंग करने पूरी दुनिया से एडवेंचर के शौक़ीन जुटने लगते हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि हम भारतीय होकर भी सिर्फ़ 1-2 दिन के लिए गुलमर्ग जाते हैं जबकि स्किंग के शौक़ीन विदेशी पर्यटक यहाँ महीनों के लिए डेरा जमा देते हैं वो भी अपने पूरे साजो सामान के साथ। अगर आप भी स्किंग सीखना चाहते हैं तो यहाँ देश का सबसे प्रतिष्ठित स्किंग इन्स्टिट्यूट- इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ स्कीइंग आंड माउंटिनीरिंग मौजूद है।
गुलमर्ग मे अँग्रेज़ों के ज़माने का एक चर्च भी मौजूद है। हर साल यहाँ बड़ी धूम धाम से क्रिसमस मनाया जाता है। गुलमर्ग का मुख्य आकर्षण है यहाँ का गंडोला राइड। 14000 फीट की ऊंचाई पर बना यह गंडोला राइड आपको ऊर्जा से भर देगा। पैरों तले बर्फ की मोटी चादर, आस पास बर्फ से लधे देवदार के ऊंचे ऊंचे पेड़ आपको रोमांचित कर देंगे।
गुलमर्ग मे जब सब कुछ बर्फ से ढक जाता है तब स्नो स्कूटर चलाने मे बड़ा मज़ा आता है। अगर आप स्लेज पर बैठ कर बर्फ का आनंद उठाना चाहते हैं तो उसका भी पूरा इंतज़ाम है। मात्र कुछ सौ रुपय मे मेहमान नवाज़ कश्मीरी नौजवान आपको स्लेज पर बिठा कर पूरा गुलमर्ग घुमा लाएँगे। बस शर्त इतनी है कि आपने ठंड से बचने का पूरा बंदोबस्त किया होना चाहिए। श्रीनगर से गुलमर्ग 53 किलोमीटर दूर है।
पहलगाम
पहलगाम को शैफ़र्ड वैली भी कहा जाता है। इस वैली की भी सुंदरता शब्दों से परे है। यहाँ बहती है खूबसूरत नदी लिद्दर और उसी के आस पास फैले हैं देवदार के घने जंगल जिनके पीछे हैं बर्फ की चोटियाँ। जहाँ से बर्फ पिघल कर आती है और इस नदी को साफ पानी मुहय्या करवाती है। पहलगाम भी इन दिनो बर्फ की चादर से ढका होता है। यहाँ बर्फ पड़ने से रास्ते भी ढक जाते हैं जिन पर सिर्फ़ चैन वाली गाड़ियाँ ही चल पाती हैं। पहलगाम से थोड़ा ऊपर है अरू वैली। इस वैली की ख़ासियत है ऊंचे घांस के मैदान और उनके चारों ओर फैला पाईन का घना जंगल।
यह वैली बहुत शांत है। यहाँ रुकने के लिए कश्मीर टूरिज़्म की कौटेज बनी हुई हैं इसके अलावा कई होमएस्टे भी मौजूद हैं। जहाँ पहलगाम मे हर बजट के होटल और रिज़ॉर्ट्स हैं वहीं अरू वैली मे कुछ चुनिंदा विकल्प ही मौजूद हैं ठहरने के लिए। लेकिन यहाँ की शांति बहुत अनोखी है। छोटी सी कॉटेज मे रह कर शुध्द हवा को अपनी साँसों मे भरने का अनुभव बहुत अनोखा है। पहलगाम मे एक बेताब वैली भी है। यह एक बड़ा-सा पार्क है जहाँ लोग घूमने आते हैं। इसका नाम बेताब इसलिए पड़ा क्यूंकि इस जगह पर कभी बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी।
आप अगर भीड़ भाड़ पसंद करते हैं तो पहलगाम मे बाज़ार के आस पास बने होटल मे ठहर सकते हैं और अगर आपको शांति से प्रकृति के नज़दीक सुकून से अपना हॉलिडे बिताना है तो पहलगाम के बस स्टैंड से आगे पीछे कुछ किलोमीटर के दायरे मे कई खूबसूरत छोटे छोटे होटल और कौटेज बने हुए हैं। आप इनको भी ट्राई कर सकते हैं। कुछ कौटेज तो बिल्कुल लिद्दर नदी के किनारे पर भी बने हुए हैं की आप दिन मे धूप सैंकने अपनी कौटेज के लौन मे बैठें और सामने ही नीला चमकीला पानी बहता नज़र आए। पहलगाम मे नए साल का जश्न बड़े ही ज़ोर शोर से मनाया जाता है। अगर आप भी अपने फॅमिली के लिए न्यू एअर पर हॉलिडे प्लान कर रहे हैं तो पहलगाम एक यादगार डेस्टिनेशन बन सकता है। श्रीनगर से पहलगाम 140 किलोमीटर दूर है।
मार्तंड सूर्य मंदिर
पहलगाम जाने के रास्ते मे ही पड़ता है मार्तंड सूर्य मंदिर कहते हैं यह मंदिर आठवीं शताब्दी मे बना था। आज यहाँ केवल इस मंदिर के खंडहर ही बचे हैं जिसका रखरखाव पुरातत्व संरक्षण विभाग करता है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण कारकोटा राजवंश के सम्राट ललितादित्या मुक्तापिड़ा ने करवाया था। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इस मंदिर को राष्ट्रिय धरोहर घोषित किया है।
मट्टन सूर्या मंदिर
पहलगाम के नज़दीक ही एक और मंदिर है जिसका नाम है मट्टन सूर्या मंदिर। यह एक प्राचीन मंदिर है जिस के बीचों बीच पानी का एक प्रकृतिक स्रोत बहता है जिसमे हज़ारों की तादाद मे मछलियाँ तैरती हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु मछलियों को आंटा खिलाते हैं। इसी मंदिर के प्रांगण से लगा हुआ एक गुरुद्वारा है इस गुरुद्वारे की भी बड़ी मान्यता है कहते हैं कि गुरुनानक देव जी अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान एक बार यहाँ 13 दिनो के लिए ठहरे थे।
युस्मर्ग
गुलमर्ग की तरह ही युस्मर्ग भी कश्मीर वैली का एक खूबसूरत टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। बस फ़र्क़ इतना है कि यहाँ अभी ज़्यादा टूरिस्ट नही जाते हैं। अगर आप प्रकृति के नज़दीक रहना चाहते हैं और भीड़ भाड़ से दूर कुछ वक़्त शांति के साथ बिताना चाहते हैं तो आप युस्मर्ग जाइए। यह डेस्टिनेशन धीरे धीरे डैवेलप हो रहा है इसलिए यहाँ भीड़भाड़ ज़्यादा नही। बल्कि यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत खूबसूरत है। अगर आप कश्मीर का ग्राम्य जीवन नज़दीक से देखना चाहते हैं तो युस्मर्ग के रास्ते मे आपको कई गाँव देखने को मिलेंगे। यहाँ पहाड़ी गाँवों मे लोग सेब की बाग़बानी करते हैं। यह पूरा रास्ता सेब,अनार, नास्पाती और खूबानी के बाग़ों से भरा हुआ है। श्रीनगर से युसमर्ग 47 किलोमीटर दूर है। चरार-ए-शरीफ युस्मर्ग के रास्ते मे ही एक बड़ी दरगाह पड़ती है जिसे चरार-ए-शरीफ कहते हैं। इस दरगाह की बड़ी मान्यता है। यहाँ लोअपने बच्चों का पहला मुन्डन करवाने के लिए आते हैं।
ट्रेन राइड इन कश्मीर
कैसा सुंदर नज़ारा हो कि चारों तरफ बर्फ बिछी हो और बीच से लाल रंग की रेलगाड़ी दौड़ती हुई जा रही हो। जी मैं स्विट्ज़रलंड की ट्रेन की बात नही कर रही हूँ यह नज़ारा अब भारत मे भी मुमकिन है। अगर आप अपनी कश्मीर की यात्रा को और भी यादगार बनाना चाहते हैं तो एक छोटी सी ट्रेन राइड और जोड़ लीजिये। आप श्रीनगर से बारामूला तक ट्रेन की राइड ले सकते हैं। यह नज़ारा बहुत अद्भुत है। भविष्य मे यह लेन आगे बढ़कर जम्मू तक जुड़ जाएगी। फिलहाल आप कश्मीर की वादियों मे स्विट्ज़रलैंड की ट्रेन का मज़ा एक छोटी राइड से भी उठा सकते हैं। अब वो दिन दूर नही कि कश्मीर पहुँचने के लिए ट्रेन से भी जाया जा सकेगा। जम्मू से श्रीनगर तक का रास्ता ट्रेन से भी तय हो सकेगा। फिलहाल इस रूट पर तेज़ी से काम चल रहा है और इसका काम लगभग 70 प्रतिशत तक पूरा भी हो चुका है। चेनानी-नाशरी टनल वो दिन चले गए जब कश्मीर जाना मुश्किल होता था। अगर आप हवाई यात्रा नही कर रहे हैं तो सड़क मार्ग से एक लंबी और थका देने वाली यात्रा के बाद ही आप कश्मीर की खूबसूरती का आनंद ले पाते थे। और मौसम खराब होने पर यह रास्ता भी कभी कभी बंद हो जाता था या फिर लंबे लंबे जाम यात्रा के सारा मज़ा किरकिरा कर देते थे। लेकिन अब ऐसा नही है। कश्मीर पहुँचने की राह अब चेनानी-नाशरी टनल बनने से ना सिर्फ़ छोटी हुई है बल्कि किसी भी मौसम के प्रभाव से मुक्त भी हुई है। पहले जहाँ जम्मू से श्रीनगर पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से 10 से 12 घंटो का सफ़र करना होता था, वहीं अब यह सफ़र घट कर सिर्फ़ 6-7 घंटो का रह गया है। चेनानी-नाशरी टनलदेश की आधुनिकतम सुरंग परियोजनाओं मे से एक है।
कश्मीर के ज़ायके
कश्मीरी खानों पर मध्य एशिया का प्रभाव है। इसी लिए यहा के आम जीवन मे तंदूर का बड़ा महत्व देखने को मिलता है। इस का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की यहाँ हर मुहल्ले मे कम से कम दो तंदूर तो होते ही हैं। जहाँ बिना नाग़ा तंदूरी रोटी बनाई जाती है। यह आम और ख़ास सभी के रोज़ के खाने का अभिन्न अंग है। कश्मीरी लोग इस छोटी कड़क तंदूरी रोटी को क़हवा और चाय के साथ खाना पसंद करते हैं।
कश्मीर के खानों मे मौसम भी एक बड़ा फैक्टर होता है। जहाँ आपने कश्मीरी वाज़वान का नाम सुना होगा वहीं कश्मीर मे सर्दियों मे एक बहुत ही अनोखी डिश पकाई जाती है जिसका नाम है “हरीसा”। हरीसा बकरे के गोश्त से बनता है। जिसे गरम मसालों, केसर के साथ 15 से 16 घंटों तक मटकों मे पकाया जाता है। इन मटकों को देसी तंदूर पर सेट कर के आँच दी जाती है। यहाँ के लोग सर्दी से बचने के लिए शुध्द प्रोटीन की सप्लाई को इसी खाने से पूरा करते हैं। सर्दी के दिनों मे यहाँ के लोग एक खास क़िस्म की तांबे से बनी केतली का उपयोग करते हैं जिसे “समावार” कहा जाता है। समावार के भीतर गर्म अंगीरों को रखने का चेंबर होता है जिससे क़हवा या नून चाय हमेशा गर्म बनी रहती है। क़हवा कश्मीरियों का पसंदीदा पय पदार्थ है। इसमे केसर, बादाम, छोटी इलायची और दालचीनी को पानी और चीनी के साथ पकाया जाता है। यह पेय सर्दियों मे शरीर को गर्म रखने का काम करता है। कश्मीर के खानों मे बारबेक्यू यानी गोश्त को भून कर खाने का बड़ा रिवाज है। खाना पकाने की यह पद्धति भी मध्य एशिया से भारत आई। आज भी कश्मीर के गली कूंचों मे तरह तरह के कबाब सिगड़ी पर दहकते अंगारों पर पारंपरिक तरीके से पकते नज़र आ जाते हैं। जहाँ कश्मीरी मुसलमानों के खानों मे गोश्त की बहुलता देखने को मिलती है वहीं कश्मीरी पंडितों के खानों मे मेवों शाक और पनीर का इस्तेमाल ज़्यादा होता है। कश्मीरी पंडित लोग सर्दियों मे गर्म रहने के लिए एक तरह का मीठे पकवान बनाते हैं जिसमे पनीर, नारियल और सूखे मेवे डाले जाते हैं। इस पकवान को शुफ़्ता कहते हैं।
शॉपिंग
श्रीनगर मे शॉपिंग के लिए कई विकल्प मौजूद हैं। बुलावार्ड रोड पर कश्मीरी दस्तकारी से बने कपड़ों की पूरी की पूरी मार्केट है। आप वहाँ से खरीदारी कर सकते हैं। अगर आप थोड़ा बचत करना चाहते हैं तो डल गेट से थोड़ा आगे कृष्णा ढ़ाबे की तरफ जाएँ वहाँ कई शॉप्स हैं जिसमे कश्मीरी शॉल भंडार से काफ़ी मुनासिब पैसों मे कश्मीरी सामान खरीद सकते हैं। कश्मीर से मेवे और केसर खरीदी जा सकती है। अगर आप पहलगाम जा रहे हैं तो बीच मे पमपोर पड़ता है जहाँ पर केसर की खेती की जाती है वहाँ रास्ते मे ही कई बड़ी दुकाने पड़ती हैं जहाँ से आप खालिस केसर खरीद सकते हैं। यहीं थोड़ा आगे आख़रोट की लकड़ी से बने क्रिकेट बैट भी मिलते हैं। जोकि दूर-दूर तक फेमस हैं।
कश्मीर से आप हाथ का बना क़ालीन भी खरीद सकते हैं। यहाँ बहुत उम्दा क़िस्म के क़ालीन बनाए जाते हैं।
कैसे जाएं :
कश्मीर सड़क व हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट लेकर श्रीनगर पहुंचा जा सकता है। कश्मीर जाने के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन जम्मू है। यहाँ से आगे सड़क मार्ग से जाया जाता है।
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