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'जब आप घर जाएं तो लोगों को जरूर बताएं कि आपके कल के लिए हमने अपना आज कुर्बान किया है'
उपरोक्त पंक्तियां "कारगिल युद्ध स्मारक" के द्वार पर लिखी हैं।
"कारगिल युद्ध स्मारक", कारगिल युद्ध में शहीद हुए 527 से भी अधिक वीरों की याद में बनाया गया स्मारक है जो किसी तीर्थ स्थान से कम नही है।
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श्रीनगर-लेह मुख्य राजमार्ग में बने "कारगिल युद्ध स्मारक" पर्यटको के दिल में कभी ना भूलने वाली और हमेशा गौरवान्वित करने वाली याद बनकर रहती है।
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1999 पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार कर, लेह और कारगिल को श्रीनगर से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ साथ कारगिल की ऊँची पहाडि़यों पर 5,000 पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कब्जा कर लिया था। भारतीय सैनिकों को यह खबर एक चरवाहे से मिली थी। इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो भारतीय सेना ने पाक सैनिकों को भगाने के लिए 'ऑपरेशन विजय' चलाया। युद्ध बहुत भयंकर था। इस युद्ध की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध से की जाती है, क्योंकि इस युद्ध में भारी मात्रा में विस्फोटक, रॉकेट, तोप और मिसाइल का इस्तेमाल किया गया था।
आखिरकार भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे खदेड़ कर यह युद्ध जीत लिया। तभी से 26 जुलाई को कारगिल 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
लगभग दो महीने तक चला यह युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का उत्कृष्ट उदाहरण है। करीब 18 हजार फीट की ऊँचाई पर यह में लड़ाई लड़ी गई और विजय प्राप्त की।
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कश्मीर के द्रास सेक्टर में साल 2004 में गुलाबी बलुआ पत्थर से "कारगिल युद्ध स्मारक" बनाया गया है। इसके एक तरफ युद्ध में जीती गई महत्वपूर्ण चोटी टाइगर हिल और दूसरी तरफ तोलोलिंग हिल नजर आयेगी। दिल्ली के इंडिया गेट की तरह यहाँ पर एक अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसी के पीछे से बनी एक दिवार है, जिसपर पीतल की प्लेट लगी है। इस पीतल की प्लेट पर ऑपरेशन विजय में शहीद होने वाले सैनिकों के नाम लिखे गये हैं। एक ओर भारतीये तिरंगा लहलहाता रहता है जिसका वजन 15 किलो है। दूसरी ओर कैप्टन मनोज पांडे के नाम पर विशेष युद्ध गैलरी है। जिसमे तस्वीरों द्वारा युद्ध की घटनाओं की जानकारी मिलती है। युद्ध से जब्त पाकिस्तानी हथियार भी यहाँ रखे हुए है। एक एमआईजी विमान और कुछ अन्य तोपों का दोनो तरफ प्रदर्शन पर रखा है।
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युद्ध स्मारक के अंदर सेना के द्वारा एक कैफेटेरिया चलाया जाता है। एक दुकान भी है जो टी शर्ट्स, कॉफी मग और टोपी जैसी वस्तुओं को बेचती है।
मेमोरियल पर साउंड एंड लाइट शो भी होता है और लगभग 15 मिनट की एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है।
यहाँ पर हर साल 26 जुलाई को इन शहीद हुए वीर सैनिको को श्रद्धाजंलि दी जाती है।
कारगिल श्रीनगर से करीब 205 किमी और लेह से लगभग 216 किमी की दूरी पर स्थित है। जम्मू व कश्मीर राज्य परिवहन निगम की सामान्य एवं डीलक्स बसें नियमित रूप से चलती हैं, जिनके माध्यम से कारगिल पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा, श्रीनगर और लेह से टैक्सी द्वारा भी कारगिल पहुंचा जा सकता है।
कारगिल के सबसे निकटतम हवाई अड्डा लेह और श्रीनगर का है। जो भारत के कई शहरों से जुड़े हुए हैं।
रेल द्वारा जम्मूतवी रेलवे स्टेशन पहुंच सकते है। यहाँ से कारगिल लगभग 480 किमी की दूरी पर स्थित है।
यहाँ आने जा सही समय मई से नवंबर तक का है। सर्दियों में यहाँ बहुत ठंड होती है।
इस बार अगर आप श्रीनगर या लेह जायें तो "कारगिल युद्ध स्मारक" जाकर उन शहीदों को श्रद्धाजंलि अवश्य दें। यहाँ आकर जब आप द्रास की उन ऊंची चोटियों को देखेंगे, जो दुनिया की दूसरी सबसे ठंडी जगह है। तथा कैसे हमारे वीर सैनिकों ने अपने अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मनों को देश से बाहर खदेड़ दिया था।
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