अपने सबसे साफ शहर के बारे मे सुना होगा,सबसे गंदे शहरों के बारे में भी सुना होगा क्योंकि आए दिन हमें अखबार और न्यूज चैनल के माध्यम से ऐसी खबरे सुनने को मिल जाती है।लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शहर के विषय में बताएंगे जिसे अपने खुशबू के लिए जाना जाता है।जी हां अपने बिल्कुल सही सुना यह शहर इत्र की राजधानी के रूप में विख्यात है। उत्तर प्रदेश के कन्नौज को भारत की परफ्यूम सिटी के नाम से जाना जाता है।जहां आपको हर गली और मुहल्ले के हर घर से तरह तरह के खुशबू मिलेंगे।इस शहर ही हवाओ से लेकर यहां को मिट्टी तक से इत्र की खुशबू आती है।तो आइए आज आपको ले चलते है खूसबुओ भरे इस सफर पर।
कन्नौज
कन्नौज उत्तर प्रदेश का एक शहर है।गंगा के तट पर बसा कन्नौज सम्राट हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। इस शहर ने इत्र बनाने की प्राचीन कला को आज तक सहेज कर रखा हुआ है।इसे परफ्यूम सिटी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर परफ्यूम का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है।कहते है इत्र की खुशबू यहां की मिट्टी तक से आती है।यहां का एक भी घर आपको ऐसा नहीं मिलेगा जहां से आपको कोई खुशबू न आए।प्रत्येक घर से अलग अलग तरह की खुशबू आना यहां आम बात है।यहां की इत्र और इसकी तकनीक भले ही पुरानी है पर इसकी परफ्यूम की क्वालिटी आपको कही भी पूरी दुनिया में नही मिलेगी।इस इत्र के बारे में जानने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों पर्यटक आते है।
पारंपरिक तरीके से तैयार किया जाता है इत्र
पिछले कई सालों में विज्ञान ने इतनी तरक्की की है कि जिस काम को करने में कई दिन लग जाते थे वो काम अब कुछ ही घंटो में हो जाता है।पर आपको जानकर ये हैरानी होगी कि कन्नौज में आज भी इत्र बनाने के लिए उसी पुराने पारंपरिक तरीके का प्रयोग किया जाता है जो कई सालो पहले किया जाता था। यहां आज भी हाथो से ही इत्र बनाया जाता है । यहां पर फूलों से इत्र बनाने का कार्य आज भी हाथों के द्वारा हो किया जाता है।कन्नौज में आज भी आपको ऐसे कई परिवार मिल जायेंगे जिसकी 8 वी या 9 वी पीढ़ी है जो इस कार्य को कर रही है। यहां बनाई जाने वाली इत्र न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी भेजी जाती है।
ऐसे बनाया जाता है यहां इत्र
कन्नौज में डिस्टिलेशन प्रक्रिया के तहत इत्र तैयार किया जाता है जिसमे फूलों की पंखुड़ियों से इत्र तैयार किया जाता है। फूलों की पंखुड़ियों को बड़े बड़े पत्रों में साफ पानी में डालकर उसे चारो तरफ़ से पैक कर दिया जाता है और उनके ढक्कन से एक पाइपनुमा आकार दूसरे सुराहीनुमा पात्र में लगी रहती है। जैसे जैसे पात्र का पानी गर्म होता है उस में डाली हुई फूलों की पंखुड़ियां भी अच्छी तरह पक कर धीरे धीरे इत्र और तेल के रूप में दूसरे रखे हुए पात्र में इक्कठा हों जाता है जिसे छान कर फिर उसे बोटलो में पैक कर के बाजारों में बेचा जाता है।
600 साल पुरानी मुगल कालीन है इत्र बनाने की तकनीक
स्थनीय लोगो का कहना है कि कन्नौज में इत्र बनाने की तकनीक एक दो नहीं बल्कि 600 साल पुरानी है।यहां के लोगो ने इत्र बनाने की यह कला मुग़ल कारीगरों से सीखी थी।बताया जाता है कि मुगल बेगम नूरजहां ने इन कारीगरों को खास गुलाब के इत्र बनाने के लिए बुलाया था। तब से लेकर आज तक यहां उस तकनीक से ही खास इत्र बनाया जाता है।इस इत्र को पहले देश और धीरे धीरे विदेशों में भी काफी प्रसिद्धि मिली।अब यहां गुलाब से लेकर चंदन , लिली ,केसर,मोगरा, केवड़ा, चमेली, मेंहदी, गेंदा, शमामा, मास्क-अंबर, कस्तूरी, खस और जैश्मिन जैसे न जाने कितने तरह के इत्र का निर्माण होता है।
कैसे पहुंचे कन्नौज
कन्नौज पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट कानपुर है, जो यहां से करीब 100 किमी दूर है। कानपुर से आप बस, ट्रेन या टैक्सी से कन्नौज पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से कन्नौज देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। अगर आप रेलमार्ग से कन्नौज आना चाहते हैं तो दिल्ली, कानपुर, लखनऊ से आपको कन्नौज के लिए ट्रेनें आसानी से मिल जाएंगी।
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