उत्तर प्रदेश का कन्नौज शहर इत्र यानी परफ्यूम के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां कई घरों में इत्र बनाया जाता है, जो यहां से दुनियाभर में भेजा जाता है। कन्नौज शहर की संकरी गलियों में इत्र की खूशबू किसी को भी दीवाना बना लेंगी। यहां की गलियों में गुलाब, चंदन और चमेली की खुशबू आती है। कन्नौज में इत्र बनाने का काम सदियों से चला आ रहा है। सम्राट हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया था। इस खुशबू भरे इस शहर का इतिहास 200 साल से भी पुराना है।
भारत के "इत्र नगरी " के रूप में प्रसिद्ध, कन्नौज एक भारत का अनोखा शहर है, जो अपनी सुगंधित टेपेस्ट्री और इत्र की सदियों पुरानी परंपरा के साथ पर्यटकों को लुभाता है। कन्नौज में कदम रखना एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करने जैसा है जहाँ सुगंध हवा में नृत्य करती है, बीते युगों और कारीगरी की कहानियों को बुनती है। यहां की हवा भी चमेली, गुलाब और चंदन की खुशबू से महकती है।
कन्नौज का इतिहास : भारत में इत्र कला का उदय
लगभग 600 साल से यहां इत्र बनाने के लिए देशी तकनीक का ही इस्तेमाल किया जाता है। इतिहास के जानकर बताते हैं कि कन्नौज को इत्र बनाने का ये नुस्खा फारसी कारीगरों से मिला था। जिन्हें मुगल बेगम नूरजहां ने बुलाया था। इन फारसी कारीगरों को नूरजहां ने गुलाब के फूलों से बनने वाले एक विशेष प्रकार के इत्र के निर्माण के लिए बुलवाया था। तब से लेकर आज तक कन्नौज में उसी तरीके से इत्र का निर्माण होता आ रहा है।
सदियों से कन्नौज भारत में इत्र कला का अग्रणी रहा है, जिसका श्रेय इसके अनुकूल मौसम और मिट्टी को जाता है। यहां का प्राकृतिक वातावरण जड़ी-बूटियों और फूलों को उगाने के लिए एक आदर्श वातावरण बनाते हैं, जो कांच की बोतलों में बंद इस सुगंधित इत्र को बनाने के लिए आवश्यक हैं, जिन्हें अक्सर 'तरल सोना' के रूप में जाना जाता है।
इस तरह तैयार किया जाता है इत्र
इत्र बनाना एक बेहतरीन कला है, जहाँ कारीगर, जिन्हें साज़ के नाम से जाना जाता है, डेग-भभका नामक प्राचीन पारंपरिक मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते हैं। इस जटिल विधि में, देग नामक विशाल बर्तनों को फूलों की पंखुड़ियों और पानी से भर दिया जाता है, एक विशेष मिट्टी के पेस्ट से सील कर दिया जाता है, और ढक्कन लगा दिए जाते हैं। ये बर्तन लंबी गर्दन वाले बर्तनों से जुड़े होते हैं जिन्हें 'भभका' कहा जाता है। भट्ठी पर इस पानी को लगातार गर्म किया जाता है जिससे निकलने वाली भाप पात्र में रखी फूलों की पंखुड़ियों को गर्म करती है। पंखुड़ियों को गरम करके इनसे खुशबू या तेल निकाला जाता है। पात्र से निकला इत्र या तेल एक लड़की से पार होते हुए एक सुराही के आकार के बर्तन में इकट्ठा कर लिया जाता है। यह सारी क्रिया आसवन विधि या डिस्टिलेशन प्रोसेस के आधार पर की जाती है। अब इस भभका में इकट्ठा हुए तेल को अलग करके, प्रोसेस करके पैकिंग की जाती है।
यहां का इत्र आज भी बना हुआ है लोगों की पहली पसंद
कन्नौज के इत्र को 2014 में जीआई टैग मिला था। जिस तरह से आज फ्रांस के ग्रास शहर का परफ्यूम लोगों की पहली पसंद है, उसी तरह से कभी किसी दौर में कन्नौज का इत्र पहली पसंद हुआ करता था। कन्नौज का इत्र पूरी तरह प्राकृतिक गुणों से युक्त और एल्कोहल मुक्त होता है। यही वजह है कि दवा के रूप में कुछ रोगों जैसे नींद न आना, एंग्जाइटी और स्ट्रेस में इसकी खुशबू रामबाण इलाज मानी जाती है। आज भी परंपरागत इत्र की महक जिसमें गुलाब, बेला, केवड़ा, केवड़ा, चमेली, मेहंदी, और गेंदा को पसंद करने वाले लोगों की कमी नहीं है। इसके अलावा कुछ खास किस्म के इत्र जैसे शमामा, शमाम-तूल-अंबर और मास्क-अंबर भी हैं। सबसे कीमती इत्र अदर ऊद है, जिसे असम की एक विशेष लकड़ी 'आसामकीट' से बनाते है। साथ ही यहां के जैसमिन, खस, कस्तूरी, चंदन और मिट्टी अत्तर बेहद मशहूर हैं। कन्नौज पीढ़ियों से इत्र बनाने की कला को आगे बढ़ा रहा है, कन्नौज पश्चिम में अच्छी तरह से जाना जाता है, लेकिन दुख की बात है कि केवल मुट्ठी भर भारतीय ही इस जगह को मानचित्र पर अंकित कर सकते हैं।
इत्र से परे: कन्नौज भले ही अपने इत्र के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता हो, लेकिन यह शहर यात्रियों को कई तरह के अनुभव प्रदान करता है। पौराणिक कथाओं से भरे प्राचीन मंदिरों के दर्शन करें, विदेशी वनस्पतियों से भरे हरे-भरे बगीचों में घूमें या सुगंधित मसालों से भरपूर स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेते हुए पाककला के रोमांच का आनंद लें।
परंपरा का संरक्षण: आधुनिकीकरण के बावजूद, कन्नौज अपने पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ है। कई इत्र बनाने वाली कंपनियाँ पारिवारिक व्यवसाय के रूप में काम करना जारी रखे हुए हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि इत्र बनाने की कला आने वाली पीढ़ियों के लिए फलती-फूलती रहेगी।
कब और कैसे जाए इत्र की नगरी
कन्नौज सड़क और रेल द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है, लखनऊ में निकटतम हवाई अड्डा है, जो लगभग 130 किलोमीटर दूर है। वैसे तो इस शहर में साल भर जाया जा सकता है, लेकिन इसके आकर्षण का अनुभव करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के महीनों में आयोजित होने वाले वार्षिक 'कन्नौज परफ्यूम फेस्टिवल' के दौरान होता है।
चाहे आप परफ्यूम के शौकीन हों, इतिहास के शौकीन हों या बस एक जिज्ञासु घुमक्कड़ हों, इस परफ्यूम के स्वर्ग की यात्रा आपकी इंद्रियों के लिए कभी न भूल सकने वाले अनुभव का वादा करती है। तो, अपना बैग पैक करें और भारत के इस सुगंधित शहर की एक सुगंधित रोमांच पर निकलने के लिए तैयार हो जाएँ।