कमरुनाग झील हिमाचल प्रदेश में स्थित मंडी जिले से करीबन 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित है। हिमाचल प्रदेश की कमरुनाग झील अपने भीतर कई रहस्य छिपाए हुए है। कहा जाता है कि इस झील के भीतर अरबों-खरबों रुपयों का खजाना छिपा हुआ है, जिसे कोई भी निकालने की कोशिश नहीं करता है।
हिमाचल प्रदेश काफी खूबसूरत जगह है। यहांँ के पहाड़, पर्वत और बर्फीली वादियां अक्सर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहती हैं। यहांँ पर कई ऐसी जगह हैं, जो अपने भीतर ना जाने कितने रहस्यों को दफन किए हुए हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से इस स्थान का भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अनूठा योगदान रहा है। हिमाचल प्रदेश में कई जगहों का सीधा संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इस जगह पर कई ऐसे मंदिर और झीलें हैं, जिनके रहस्यों को अब तक कोई जान नहीं पाया है। इसी में एक नाम आता है हिमाचल प्रदेश के कमरुनाग झील का। इस झील से जुड़ी कई ऐसी रहस्यमय बाते हैं, जिन्हें जानने के बाद आप भी आश्चर्य में पड़ जाएंगे।
इस झील का नाम घाटी के देवता कमरुनाग के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि इस झील के भीतर अरबों-खरबों का खजाना छिपा हुआ है, जिसे अब तक किसी ने निकाला नहीं है। झील के भीतर इतनी ज्यादा मात्रा में सोने और चांदी के बर्तन हैं कि कोई उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकता। काफी लंबे समय से लोग सोने और चांदी की बनी महंगी से महंगी प्रतिमाओं को यहां अर्पण करते आ रहें हैं। इस कारण कमरुनाग झील के गर्भ में बेशुमार मात्रा में दौलत इकट्ठी हो गई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि चोरों ने कई बार इस झील के भीतर से खजाने को चोरी करने का प्रयास किया, परंतु उनका यह प्रयास हर बार असफल साबित हुआ।
आश्चर्य करने वाली बात यह है कि इस झील के भीतर बड़ी मात्रा में खजाना छिपा हुआ है। इसके बावजूद भी इस स्थान पर किसी भी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था नहीं हैं। लोगों की मान्यता है कि झील की रक्षा स्वयं कमरुनाग देवता करते हैं। झील का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण पांडु पुत्र भीम ने किया था।
इस झील के पास एक मंदिर है, जहांँ पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं। ये भक्त इस मंदिर में खूब सारा चढ़ावा चढ़ाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त इस मंदिर के पास स्थित कमरुनाग झील में हीरे और जवाहरात को अर्पित करते हैं। इसके अलावा महिलाएं इस झील में सोने चांदी के जेवर भी चढ़ाती हैं। इस जगह पर जून के महीने में एक बड़े मेले का आयोजन होता है। भक्त गण और श्रद्धालुओं की मानें तो 14 और 15 जून को बाबा कमरुनाग स्वयं अपना दर्शन देते हैं।
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