साल में खुद के लिए एक ट्रिप तो बनती है। व्यस्त जिंदगी में अगर आपको इतना समय भी नहीं मिला कि आप कुछ तय कर सकें तो कोई बात नहीं। आज हम आपको एक ऐसी जगह के विषय में बताने जा रहे हैं जहां पहाड़ हैं, मस्त मौसम है और मन शांत करने के लिए प्रकृति की खूबसूरती भी है। सबसे बड़ी बात कि ये यहां भागमभाग नहीं बल्कि शांति है क्योंकि ये खूबसूरत गांव है। तीन दिन का प्लान बनाकर आराम से मूड फ्रेश कर आ सकते हैं।
दिल्ली से लगभग 450 किमी की दूरी पर है। शहर की चहल-पहल से दूर ये जगह इतनी मनोरम है कि यहां बस जाने का दिल करेगा। उत्तराखंड की में बसे इस गांव का नाम कलाप है, जो गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। ये गांव रूपिन नदी के किनारे 7800 फीट की ऊचाई पर स्थित है। देवदार लंबे और घने पेड़ गांव के आकर्षण में चार चांद लगा देते हैं।
इस गांव से रामायण और महाभारत का कनेक्शन-
टन्स घाटी को महाभारत की जन्मभूमि कहा जाता है और उत्तराखंड का कलाप गांव भी इसी घाटी में है। यही कारण है कि यहां के लोग खुद को कौरवों और पांडवों का वंशज बताते हैं। माना जाता है कि कलाप के लोग महाभारत के पांडवों और कौरव भाइयों के वंशज हैं। वास्तव में, कलाप में मुख्य मंदिर पांडव भाइयों में से एक कर्ण को समर्पित है। गांव के स्थानीय लोगों से बात करेंगे तो आपको महाभारत से जुड़े आकर्षक किस्से और सुनने को मिलेंगे।
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काफी खूबसूरत है कलाप गांव-
यह गांव उस क्षेत्र के अन्य इलाकों से कटा हुआ है और यहां के लोगों की जिदंगी भी काफी मुश्किलों भरी है. आबादी कम होने और बाकी इलाकों से दूर होने की वजह से यहां के निवासियों की आमदनी का मुख्य सहारा खेती है. इसके अलावा वे भेड़-बकरी भी पालते हैं. इस गांव की अद्भुत खूबसूरती और रामायण व महाभारत से खास कनेक्शन के चलते इसे ट्रैवल डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित किया जा रहा है। यहां पहुंचकर बंदरपूंछ पीक (6316 मीटर) कुछ अद्भुत नजारे देख सकते हैं।
इस जगह से जुड़ी खास बातें-
इस गांव में कर्ण का मंदिर है। इसीलिए यहां कर्ण महाराज उत्सव भी मनाया जाता है। ये विशेष उत्सव यहां 10 साल के अंतराल पर मनाया जाता है। केवल इतना ही नहीं, जनवरी के महीने में यहां पांडव नृत्य भी किया जाता है, जिसमें महाभारत की कई कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है। ये जगह काफी दुर्गम माना जाता है। यही वजह है कि यहां जो कुछ भी लोग खाते-पीते या पहनते हैं, वो सब कुछ कलाप में ही बनता है।कलाप के लोगों का खान-पान बहुत ही साधारण है। यहां के लोग लिंगुड़ा, लेकप पपरा, बिच्छू घास और जंगली मशरूम का सेवन अधिक करते हैं। इस गांव में खसखस, गुड़ और गेहूं के आटे को मिलाकर एक खास डिश बनाई जाती है।
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प्राथमिक व्यवसाय-
उत्तराखंड के इस गांव का प्राथमिक व्यवसाय कृषि है। यहां के अधिकतर लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। इसके अलावा यहां के लोग भेड़-बकरी भी पालते हैं। वही गांव के आसपास उपलब्ध संसाधनों से ही अपनी दिनचर्या तथा जीवन यापन करते हैं। इस गांव में 'कलाप' नाम का एक एनजीओ काम करता है जो सैलानियों को इस गांव के बारे में बताता है तथा इस गांव की ऐतिहासिक समृद्धि के दर्शन कराता है, जिसमें होम स्टे, ट्रेक और बहुत कुछ शामिल है।। इसीलिए अगर आप यहां घूमने की योजना बना रहे हैं तो सबसे पहले आपको 'कलाप' एनजीओ से संपर्क स्थापित करना होगा, जिससे आप आसानी से इस गांव की यात्रा कर सकें और अपने इतिहास के बारे में जानकारी ले सकें।
कब करें यात्रा-
कलाप दिल्ली से 540 किलोमीटर दूर है, जबकि देहरादून से मात्र 210 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां साल के किसी भी वक्त जाया जा सकता है. यहां से स्नोफॉल का भी काफी शानदार व्यू नजर आता है।
यहां कैसे पहुंचें-
देहरादून से आप गांव के निकटतम रेल स्टेशन सांखरी तक पहुंच सकते हैं। फिर, आपको कलाप को दो अलग-अलग मार्गों से ट्रेक करने की आवश्यकता है जिसमें छह और चार घंटे लगते हैं। दोनों मार्गों के लिए आपको किराए पर कूली मिल जाएंगे, बशर्ते आप कलाप एनजीओ के साथ पहले ही बात कर लें।
सड़क मार्ग- कलाप गांव, देहरादून से 210 किलोमीटर और दिल्ली से 450 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा गर्मी और सर्दी में इस गांव तक पहुंचने में अलग-अलग रूट हैं।
रेल मार्ग – देहरादून यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है। यहां से कलाप गांव तक पहुंचने में 6-8 घंटे का समय लगता है।
हवाई मार्ग – देहरादून स्थित जौली ग्रांट एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यहां से किसी भी साधन से कलाप गांव तक पहुंच सकते हैं।
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