इस बात को सभी जानते हैं, कि साफ़ सफ़ाई के मामले में हमारा देश काफ़ी पीछे है।इस तथ्य को हम नकार नहीं सकते क्योंकि यह बात हम सब देशवासियों के लिए शर्मनाक भी है।आइए थोड़ा अतीत में झाँक कर देखते हैं कि इस खेद पूर्ण स्थिति के पीछे क्या कारण रहे हैं और इनको कैसे सुधारा जा सकता है।
स्वच्छता को लेकर भारतीय लोगों का रवैया, वर्ग और जाति की धारणाओं से जुड़ा हुआ है। हम में से ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि ‘मैनुअल लेबर’ समाज के “निचले” तबके का काम है अन्यथा सार्वजनिक स्थानों की सफाई की जिम्मेदारी कौन लेना चाहेगा?
सार्वजनिक स्थानों की सफाई की जिम्मेदारी लेने की बात अधिकांश भारतीयों की सोच में ही नहीं है और यह केवल अब कहीं जाकर, इतने दशकों के बाद, हम इस गलत सोच से मुक्त होने की कोशिश कर रहे हैं।
देश के नागरिकों की मानसिकता और दृष्टिकोण में बदलाव लाने में, सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ ने काफी महत्वपूर्ण निभाई है।हालाकिं इस अभियान की सौ फीसदी सफलता में थोड़ा समय लग सकता है, किन्तु एक अच्छी शुरुआत तो हुई।
जब से स्वच्छ भारत अभियान लागू हुआ है, सरकार सफ़ाई के आधार पर, शहरों और कस्बों का एक वार्षिक सर्वे करती आ रही है और इसमें इंदौर, पिछले दो वर्षों से, ‘सबसे स्वच्छ शहर’ का पुरस्कार जीत रहा है।जो शहर 2014 और 2016 में स्वच्छता के पैमाने पर 149 और 25 वें स्थान पर था, फिर वह कैसे सिर्फ एक साल की अवधि में ही पहले स्थान पर पर पहुंच गया?
इंदौर
कड़ी मेहनत, सहयोग, पुरस्कार और दंड ; यह इंदौर की सफलता का नुस्खा है।2015 से पहले, इंदौर के लोग रंग के आधार पर डस्टबिन में कचरा अलग करके डालने की बात को नहीं मानते थे। इस स्थिति से निपटने के लिए, इंदौर नगर निगम ने एक डस्टबिन रहित शहर, के मॉडल को अपनाया और कचरे को डोर-टू-डोर ( घर घर जाकर ) इकट्ठा किया । एक बार जब लोग, डोर-टू-डोर कचरे संग्रह की सुविधाओं की सराहना करने लगे, तो लोगों को गीले और सूखे कचरे को अलग करके देने के लिए कहा गया। कचरा इकट्ठा करने वाली गाड़ियों में जैविक और अजैवी कचरे को डालने के विभाजन किये गए।
जो लोग अपनी निजी कारों और वाहनों से रोड पर कूड़ा फेंक देते थे,उस पर रोक लगाने के लिए, इंदौर की मेयर मालिनी गौड़ के द्वारा, व्यक्तिगत रूप से लगभग 1,200 कार-डस्टबिन लोगों के बीच बांटे गए और स्वछता को लेकर उन्हें जागरूक किया गया।
इसके साथ साथ आई० एम० सी० ने दंड और पुरस्कार का सिस्टम लागू किया ; जो लोग पब्लिक जगहों पर कूड़ा फेंक रहे थे उनकी खुले आम निंदा की गयी और जो लोग सही तरीके से वेस्ट को मैनेज कर रहे थे, उनकी सराहना की। इस बात ने कचरा फ़ैलाने वाले लोगों के बीच डर और शर्म की भावना पैदा की और लोगों
थोड़े थोड़े समय में वहाँ के संस्थानों, अस्पतालों, रेस्तरां और वार्डों के बीच प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, और जो भी सबसे कुशल और नए तरीके से अपने कचरे का प्रबंध करता है, उसको पुरस्कृत किया जाता है।
यह बात कितनी दिलचस्प है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल, पिछले दो सालों से स्वच्छता के पैमाने पर दूसरे स्थान पर है।वास्तव में तो मध्य प्रदेश में, देश के सबसे ज्यादा टॉप रैंकिंग वाले स्वच्छ शहर हैं।
भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में, इंदौर के उदहारण से हमें भी अपने हर एक गाँव, शहर और कस्बों को स्वच्छ बनाने की प्रेरणा लेनी चाहिए। इस अभियान के योगदान में हम क्या कर सकते हैं आइए जानते हैं -
- हरे डिब्बे में बायोडिग्रेडेबल कचरे और नीले डिब्बे में गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे को फेंकना याद रखें।
- अपने घर की तरह सार्वजनिक स्थानों का भी ध्यान रखें और उन्हें साफ रखने की जिम्मेदारी लें।
- अच्छी आदतें घर से ही आरंभ होती हैं । यदि आप किसी मित्र या परिवार के सदस्य को कचरा फैलाते हुए देखते हैं, तो उन्हें रोकें और शिक्षित करें।
- लंबी दूरी की यात्रा करते समय, कचरे को जमा करने के लिए अपने साथ एक पेपर बैग रखें जिसे बाद में कूड़ेदान में डाल दें।
- ‘जैसी करनी वैसे भरनी’ इस बात से समझें कि किसी भी सार्वजनिक स्थान को गंदा करना, अंततः आपको ही लंबे समय में नुकसान पहुँचाएगा। उदहारण के तौर पर, सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, हमारे देश में टी० बी ० फैलाने का बहुत बड़ा कारण है।