कैसे निकल जाऊँ? क्या होगा? कैसे लोग मिलेंगे? रहने के लिए अच्छी जगह मिलेगी या नहीं? लोग क्या सोचेंगे? कहीं कुछ गलत हो गया तो? यकीन मानिए यदि आप भी इन सब सवालों से घिरे हुए हैं तो आपने अभी घुमक्कड़ी को सही तरीके से समझा नहीं है। यहाँ डर और सवालों के लिए कोई जगह नहीं है। बेखौफ और बेबाक होकर चलना, अपने मन की सुनना, जब जो जी में आए करना। यही तो है घुमक्कड़ी।
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अगर आप अपनी पहली यात्रा पर निकलने के बारे में सोच रहे हैं फिर तो ये ख्याल जरूर आएँगे। आप अपनी पहली यात्रा पर निकलने वाले हैं और अपनी पहली यात्रा को यादगार बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए आप पहाड़ों पर जाना चाहिए तो आपकी खोज कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर आ कर रुकती है। इस सफर पर जाने से पहले कैलाश-मानसरोवर यात्रा के बारे में अच्छे से जान लीजिए।
समुद्र तल से 21,778 फीट की ऊँचाई पर स्थित है कैलाश पर्वत। यहाँ की ठंड और ऊँचाई को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए। कैलाश पर्वत के नीचे है खूबसूरत मानसरोवर नदी। मानसरोवर नदी समुद्र तल से 15,060 फीट की ऊँचाई पर है। ये दोनों ही तिब्बत की सीमा में आते हैं। ऐसा माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती देवी रहा करते थे इसलिए इस पर्वत की बहुत मान्यता है। मानसरोवर नदी भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाई गई थी इसी वजह से हिन्दू धर्म में इसको बहुत पवित्र माना गया है। हर साल यहाँ दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं और डुबकी लगते हैं। उनको मानना है कि यहाँ डुबकी लगाने से पापों का प्रायश्चित हो जाता है।
मोक्ष का मोल
हरे-भरे लहलहाते घास के मैदान और बर्फ से ढँके पहाड़ देख कर सभी का दिल खुश हो उठता है। यहाँ का माहौल और खूबसूरती देख कर ऐसा लगता है मानो भगवान ने इसे फुरसत से बनाया है। सुनने में ये जितना आसान लग रहा है वैसा है नहीं। कैलाश यात्रा दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में से एक है। यहाँ चलने वाली ठंडी हवा से लड़ना होता है जिसकी तैयारी पहले से कर लेनी चाहिए। इस लंबी यात्रा का रास्ता ऊँचे-नीचे पत्थरों से भरा है। रास्ता इतना खराब है कि यहाँ गाड़ी नहीं जा सकती। ये दुर्गम रास्ते इस यात्रा को मुश्किल बनाते हैं। जो लोग यहाँ आते हैं उनको इतनी ऊँचाई पर रहने की आदत नहीं है। इसलिए जब ऑक्सीजन कम होने लगती है तो थकान और सिर दर्द भी हो सकता है। इसी वजह से यहाँ आने से पहले मेडिकल परीक्षण किया जाता है। इस यात्रा में 52 किलोमीटर पैदल चलना होता है इसलिए अगर आप बीमार होंगे तो पैदल चलना बहुत मुश्किल होगा।
कई बार इन जगहों पर एक्यूट माउंटेन सिकनेस (ए.एम.एस.) होने का खतरा भी रहता है। एक्युट माउंटेन सिकनेस यानी ऊँचाई पर जाने से होने वाली बीमारी। इसमें आपको चक्कर आना, सिर दर्द से लेकर जी मचलने तक कुछ भी हो सकता है। अगर आप सोच रहे हैं कि ये खतरा सिर्फ ज्यादा उम्र वाले लोगों के साथ है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ये बीमार किसी को भी हो सकती है। हालांकि डरने की कोई बात नहीं है। आपको कोई परेशानी और तबीयत खराब न हो इसका ध्यान रखा जाता है। यात्रा पर आने से पहले एक डॉक्टर आपकी पूरी मेडिकल जाँच करता है और यदि आप पूरी तरह से फिट होते हैं तभी आपको यात्रा करने की अनुमति दी जाती है।
यात्रा के नियम
कैलाश मानसरोवर यात्रा पर आने वाले लोग स्वस्थ रहें और यात्रा में किसी तरह की अड़चन न आए। इसके लिए भारत सरकार ने कुछ नियम बनाए हैं। हर साल ये यात्रा जून के महीने से लेकर सितंबर तक होती है। यात्रा पर जाने से समय पहले विदेश मंत्रालय से संबंधित एक डॉक्टर आपकी जाँच करता है। 2017 में इन नियमों में कुछ बदलाव भी हुए हैं। यात्रा पर जाने के लिए अब आपको कुल 17 मेडिकल जाँचों से गुजरना होता है। इसके बाद ही यात्रा की अनुमति मिलती है। यदि आपको कोई दिल की समस्या है, साँस लेने में तकलीफ होती है, डायबिटीज या ब्लड प्रेशर संबंधी कोई बीमारी है तो आपको कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने नहीं दिया जाएगा। इन सबके अलावा 17 साल से कम और 70 साल से ज्यादा उम्र के लोग भी इस यात्रा को नहीं कर सकते।
पहाड़ों पर बढ़ती भीड़
कैलाश मानसरोवर के जादू को देखने के लिए हर साल हजारों लोग आते हैं। केवल 2017 में ही 4,442 लोग इस यात्रा पर आए थे। इसमें ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश से थे। इसकी वजह थी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राहत पैकेज की घोषणा। जिसके अनुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले हर व्यक्ति को एक लाख रुपए दिए जाएंगे। वैसे सिर्फ पैसों की वजह से नहीं कई और वजहें हैं जो लोगों को यहाँ खींचती है। लगभग पूरे साल ही टूर ऑपरेटर ईमेल और फोन से लोगों को पैकेज देने की कोशिश करते हैं। लोग भी कम पैसे और स्कीम सुन कर खिंचे चले आते हैं। हालांकि यहाँ पर पहुँचने पर सच्चाई कुछ और ही देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा करवाने के लिए यहाँ एक माफिया की तरह का गैंग काम करता है। उनका अपना पूरा अलग सिस्टम है। इन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। इस बारे में इंडियन आर्मी के मेजर जनरल क्या कहते हैं, जान लेते हैं।
मेजर जनरल मृणाल सुमन अभी डिफेंस टेक्निकल एसेसमेंट और एडवाइजरी सर्विस ऑफ कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री में अपना योगदान दे रहे हैं। 2014 में वो खुद कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर चुके हैं। उनको इस यात्रा के बारे में पूरी जानकारी है। सियाचिन ग्लेशियर की देख-रेख कर चुके मेजर सुमन के लिए हिमालय उनके दोस्त की तरह है। यहाँ के माफिया गैंग के बारे में मेजर अपने ब्लॉग में लिखी कुछ पंक्तियों को याद करते हुए बताते हैं,'यह पूरी यात्रा एक माफिया नेटवर्क का जाल है जिसे नियंत्रण किया जाता है। इसमें टूर ऑपरेटर्स, होटल से लेकर प्लेन तक सब शामिल हैं। इसमें यात्रियों की सुरक्षा और आराम को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया जाता है।'
मेजर बताते हैं कि ये माफिया गैंग यात्रियों की सेहत का भी ख्याल नहीं रखती है। यहाँ मेडिकल सुविधा का कोई प्रबंध नहीं है। यात्रा में शुरू से ही यात्रियों कि देखभाल करना तो दूर उनके चलने की क्षमता पर भी ध्यान नहीं देते। वे नेपालगंज से तकलाकोट तक की यात्रा पहले ही दिन करने को कहते हैं। नेपालगंज 490 फीट पर है और तकलाकोट 13,025 फीट की ऊँचाई पर। 490 फीट से 13,025 फीट तक का सफर पहले ही दिन करने में अक्सर लोगों को परेशानी होती है। इससे एक्यूट माउंटेन सिकनेस होने का खतरा बढ़ जाता है। हालत और खराब हो जाने पर ये लोग काठमांडू से हेलीकॉप्टर बुलाते हैं। जिसका खर्च 1.5 लाख रुपए होता है। जिसे आपको अपनी ही जेब से भरना पड़ेगा।
मेजर सुमन बताते हैं कि आमतौर पर इन टूर ऑपरेर्स को यानी होने वाली लैंडस्लाइड के बारे में पहले से ही पता होता है। उसके बावजूद भी ये यात्रियों कि आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि ऐसा होने पर हेलीकाॅप्टर की मदद लेनी पड़े। जिससे हर व्यक्ति से वे 15 हजार रुपए ले सकें। उसमें भी सुरक्षा के के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है। हेलीकॉप्टर को उड़ाने वाले पायलट 10 घंटे से ज्यादा की ड्यूटी कर चुके होते हैं जो नियमों के खिलाफ है। इनके पास किसी भी मौसम खराब होने की जानकारी के लिए कोई सुविधा नहीं है। जिसका फायदा ये टूर ऑपरेटर्स बड़े आराम से उठते हैं। ऐसे में यात्रियों को खराब होटल में रहने को मजबूर होना पड़ता है और इससे मिलने वाला पैसा ये लोग आपस में बांट लेते हैं। ये सब पहले से बनाई गई साजिश के तहत होता है।
सिंह परिवार की कहानी
यदि आपको मेजर सुमन की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है तो दिल्ली के सिंह परिवार की कहानी भी जान लीजिए। अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कैलाश मानसरोवर की उनकी यात्रा किसी भयानक सपने से कम नहीं थी। 2017 में ये लोग कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए थे। वो कहते हैं कि उन्होंने एक जानी-मानी ट्रैवल कंपनी के साथ अपना पैकेज बुक किया था। कहते हैं न नाम बड़े और दर्शन छोटे। ऐसा ही कुछ इनके साथ भी हुआ।
सिंह परिवार का टूर मुंबई के छोटे से प्राइवेट टूर ऑपरेटर ने संभाला। यात्रा से पहले उनका न तो कोई मेडिकल परीक्षण किया गया और न ही कोई जांच हुई। टूर ऑपरेटर ने उन्हें अपने लोकल डॉक्टर से मेडिकल सर्टिफिकेट लाने को कहा। उनकी न तो भारत में और न ही नेपाल की एक भी चेक पोस्ट पर कोई मेडिकल जाँच हुई। भक्ति और श्रद्धा में लोग इतना खो जाते हैं कि बिना किसी डॉक्टर से मिले यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। सिंह बताते हैं, ऊपर पहुँचने पर ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है जिसकी वजह से साँस लेने में बहुत मुश्किल होती है। उनके साथ भी वही हुआ। इसलिए यदि आप पूरी तरह से फिट हैं तभी आप इस यात्रा पर जाएं।
कुछ भी हो कैलाश मानसरोवर यात्रा भी पर्यटन का एक जगह है। यहाँ यात्रियों की सुविधा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कहाँ रहेंगे, क्या खाएँगे, कैसे और कितना रास्ता एक दिन में चलेंगे? इन सब बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए लेकिन दुख की बात ये है कि इस माफिया गैंग के लिए यात्री सिर्फ पैसा ही होते हैं। आप इनके जाल का शिकार होते जाएँगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। रहने की सुविधा तो दूर की बात है इनके पास बाथरूम तक की भी अच्छी व्यवस्था नहीं होती है और जो होते हैं वो सब बस नाम के। बाथरूम की हालत इतनी खराब रहती है कि आपको न चाहते हुए भी दूसरे उपाय अपनाने पड़ते हैं। उससे तबियत खराब होने का डर रहता है।
ये माफिया गैंग क्षमता से अधिक लोगों को यात्रा पर ले जाते हैं। ग्रुप बहुत बड़ा होता है जिसके चलते अक्सर दिक्कतें आती हैं। जब मेडिकल परीक्षण नहीं होता है तो ग्रुप में ज्यादातर लोग 60-65 तक की उम्र के होते हैं। सिंह बताते हैं कि उनके ग्रुप में कुछ लोग 70 साल से ज्यादा के थे। किसी की भी मेडिकल जाँच नहीं की गई। इसकी चिंता न तो किसी अधिकारी को थी और न ही टूर ऑपरेटर को। सीधे और कम शब्दों में कहें तो अपना ख्याल खुद रखें।
अपने अनुभव को याद करते हुए सिंह साहब बताते हैं कि उनके ग्रुप में एक 75 साल का व्यक्ति था। जिसकी रास्ते में मौत हो गई थी। जिस वजह से पूरे ग्रुप को मजबूरन वापस बेस कैंप आना पड़ा था। सुरक्षा का इतना खराब इंतजाम था कि सिंह परिवार ने वहीं से वापस लौटना सही समझा। सिंह बताते हैं कि उनके लीडर के पास सामान्य फर्स्ट ऐड किट थी और पूरे ग्रुप के बीच में बस एक ऑक्सीजन सिलेंडर। सिंह परिवार के शब्दों में कहें तो ये किसी करिश्मा से कम नहीं होगा। यदि आप 60 साल के होने के बावजूद सही सलामत लौट आएं।
अब इसे जादू कहें या भगवान शिव का आशीर्वाद कि हर साल कई ऐसे श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। जिनकी उम्र 60-65 साल से अधिक होती है और या तो वो सरकार के नियमों के खिलाफ बिना मेडिकल जाँच करवाए इस यात्रा पर जाते हैं। मगर इसका ये मतलब नहीं है कि यहाँ ऐसी लापरवाही और मनमानी चलनी दी जाए। यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसी तरह से लोगों को भी किसी पर भी आँख बंद कर के भरोसा नहीं कर चाहिए क्योंकि छोटी-सी अनदेखी आपको बहुत भारी पड़ सकती है। एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले तीन साल में कैलाश मानसरोवर पर 30 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं।
पहाड़ देखने में तो सबको सुंदर और शांत दिखते हैं पर इनको कम आंकना आपकी सबसे बड़ी भूल भी साबित हो सकती है। सालों से यह यात्रा ऐसे ही चलती आ रही है। लोग आस्था और श्रद्धा में इतना डूब जाते हैं कि जिसका फायदा ये टूर ऑपरेटर्स उठाते हैं।
अगर आपने कैलाश-मनसरोवर की यात्रा की है यहाँ क्लिक करें और उस अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटें।
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