सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी जी द्वारा अभी कुछ दिनों पहले संसद में दी हुई एक जानकारी काफी शेयर की जा रही हैं जिसमे वे कह रहे हैं कि 2023 से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए चीन या नेपाल से होकर नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से ही सीधा कैलाश का मार्ग बन जायेगा।हालाँकि यह स्टेटमेंट थोड़ा समझ नहीं आया और मैंने इसके बारे में ज्यादा कुछ पढ़ा भी नहीं । परन्तु क्योंकि कैलाश मानसरोवर तो तिब्बत में स्थित हैं जो कि चीन द्वारा कब्जाया हुआ हैं।मतलब कैलाश पर्वत तो हैं चीन के क्षेत्र में ही और इसका मतलब अब भी आपको कैलाश मानसरोवर दर्शन के लिए चीन के क्षेत्र में तो आपको प्रवेश करना होगा ही।
कैलाशयात्रा के वर्तमान में तीन रूट निर्धारित हैं -नाथुला दर्रा रूट ,लिपुलेख दर्रा एवं काठमांडू (नेपाल ) से होकर।नाथुला दर्रा वाला रूट सिक्किम से होकर जाता हैं। इसमें पैदल ट्रेक केवल कैलाश पर्वत की परिक्रमा के दौरान ही किया जाता हैं ,बाकी पूरी यात्रा बसों से करवाई जाती हैं। लिपुलेख दर्रे वाला रास्ता उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से ॐ पर्वत के दर्शन कराते हुए तिब्बत की ओर ले जाता हैं। मैंने लिपुलेख वाले रूट से यात्रा की थी जो कि सबसे ज्यादा कठिन रूट माना जाता हैं। इसमें आपको पिथौरागढ़ के आगे से ही 4 से 5 दिन का खतरनाक पैदल ट्रेक करके तिब्बत में प्रवेश करवाया जाता हैं और अगर बीच में कही फंस गए तो 10 से 15 दिन भी लग जाते हैं। ये दोनों रूट केवल विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित यात्रा के लिए ही हैं।इन दोनों रूट में इंडिया से सीधा तिब्बत में प्रवेश किया जाता हैं जहाँ 2 -3 दिन अलग अलग तिब्बती शहरों में रुक कर फिर कैलाश पर्वत की परिक्रमा शुरू की जाती हैं।
काठमांडू वाला रूट पर कुछ प्राइवेट एजेंसीज इस यात्रा को आयोजित करती हैं जिसमे हेलीकाप्टर से आपको 10 से 12 दिन (कभी कभी और भी कम दिन )में ही यात्रा करवा दी जाती हैं।इसमें आपको इंडिया से नेपाल ,फिर नेपाल से तिब्बत जाना होता हैं। जहाँ विदेश मंत्रालय से आयोजित यात्रा में करीब 25 दिन लगते हैं वहा इधर केवल 10 -12 दिन ही। इसी कारण कई यात्री इस तीसरे रूट से नेपाल होकर कैलाश यात्रा पर जाते हैं।जब मैं लिपुलेख वाले मार्ग से 2018 में यात्रा कर रहा था तब वहा लिपुलेख दर्रे तक सड़क बनाने का काम चल रहा था ,ताकि यात्रियों को 8 -10 दिन के खतरनाक ट्रेक से पैदल लाने की बजाय सीधा गाड़ियों से ही एक-दो दिन में ले आये और बॉर्डर क्रॉस करवा कर चाइना के जवानो के पास छोड़ दे। मेरे हिसाब से गडकरी जी इसी प्रोजेक्ट की बात कर रहे थे , यह पूरा रूट पक्की सड़क से बन जाने से एक तो यात्रा की अवधि कम हो जायेगी ,दूसरा अगर इस रूट पर कुछ प्राइवेट एजेंसीज को भी यात्रा करवाने दे तो हमको काठमांडू /नेपाल होकर जाना ही नहीं पड़ेगा। गडकरी जी के स्टेटमेंट में कैलाश यात्रा में नेपाल होकर ना जाने वाली बात तो समझ आगयी। अब चाइना होकर ना जाने वाली बात तब सत्य हो जब या तिब्बत भारत का हिस्सा हो जाए और या फिर चीन से मुक्त होकर खुद राष्ट्र बन जाए।अब शिवभक्त तो प्रार्थना ही यही कर रहे हैं कि तिब्बत भारत का हिस्सा हो जाए ताकि आसानी से सभी बिना पासपोर्ट ,वीजा के यह यात्रा भी कर ले। लेकिन तब तक तो चीन (तिब्बत ) से होकर गुजरना ही होगा।
लेकिन सच कहा जाए तो इस यात्रा का मजा पैदल ही आता है ,आप पुरे देश के अलग अलग राज्यों से चुने हुए विभिन्न प्रोफेशन के 60 लोगों के साथ बिना किसी मोबाइल नेटवर्क के उत्तराखंड के इन खतरनाक इलाकों से कई दिनों तक गुजरते हैं।जो मिलता हैं खाते हैं ,लड़ाई झगड़ा करते हैं फिर से एक हो जाते हैं ,जहाँ जो टेंट मिला सो जाते हैं ,एक दूसरे को पूर्ण अधिकार से प्यार से डांट भी देते हैं ,रास्तों में गिरते हैं फिसलते हैं ,घर को याद कर रोते हैं ,एक दूसरे की खिल्लियां उड़ाते हैं ऐसा लगने लगता हैं मानो सभी लोग आपस में बरसो से जुड़े हुए हैं। आपके साथ ITBP के जवान ,कुछ गिने चुने लोकल्स (पोर्टर्स एवं खच्चर के लिए )एवं इन सहयात्रियों के अलावा कोई नहीं होता हैं ,ना कोई अन्य इंसान आपको इन इलाकों में मिलता हैं। इसीलिए इसी दौरान ही आप एक दूसरे को अच्छे से जान पाते है ,घुल मिल जाते हैं और इनके साथ एक घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लेते हैं और अंत में यात्रा खत्म होने पर इन लोगों को छोड़ना नहीं चाहते ,वापस घर नहीं जाना चाहते। यात्रा समाप्त करके जब लौटते हैं तो आप दिल्ली गुजरात भवन के बाहर बिछड़ने के आंसू देख सकते हैं ,कई लोग तो फुट फुट कर रोते हैं।घर आने पर आपके पास अन्य लोगो को बताने के लिए बहुत कुछ होता हैं ,इसी तरह मैंने 'चलो चले कैलाश ' लिखी थी जो भी आप में से कई लोगों ने पढ़ ही रखी हैं।
कुल मिला कर यह पैदल मार्ग तो इस यात्रा की जान हैं।लेकिन डिफेन्स पर्पज से बॉर्डर तक सड़क का होना भी जरुरी हैं। 2023 में अगर पैदल यात्रा भी जारी रखी जायेगी तो मैं अभी भी पैदल जाना ही पसंद करूँगा।
-ऋषभ भरावा