कुछ वक्त पहले मैं परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने जिम कॉर्बेट गया था | ये योजना हमने थोड़ा जल्दबाज़ी में बनाई थी | एक हफ्ते तक योजना बनाने और सामनजस्य बैठाने के बाद मेरा भरा पूरा परिवार हफ्ते के अंत में एक शानदार छुट्टी मनाने को तैयार था | अब चूँकि जिम कॉर्बिट अपनी श्रेणी में आने वाले टाइगर रिज़र्व में सबसे बड़ा है, इसलिए हम बस जंगलों में सफारी का मज़ा लेने का इंतज़ार कर रहे थे | छोटे बड़े भतीजों और भाइयों बहनों जिन्होनें अपना सारा जीवन दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े बड़े शहरों की ऊँची ऊँची इमारतों में बिताया है, पहली बार घने जंगलों और तरह तरह की प्रजातियों के पशु पक्षियों को देखने के लिए उत्साहित थे | हमें क्या पता था कि हमें बहुत तरह के झटके मिलने वाले हैं |
पहला झटका
हम में से कई लोग पहले रन्थम्भोर, गिर और सरिस्का जैसे वन्यजीव अभयारण्यों में जा चुके हैं तो हमें लगा कि इन जगहों की तरह ही हम अपने रिज़ोर्ट में पहुँच कर सफारी की टिकटें खरीद सकते हैं | लेकिन हमें क्या पता था कि जिम कॉर्बिट देखने के लिए आपको 25-30 दिन पहले ही बुकिंग करवानी होती है | ये सुनकर हमें झटका सा लगा क्योंकि पहले किसी भो पार्क में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था | देखा जाए तो ये बात जिम कॉर्बिट की आधिकारिक वेबसाइट में लिखा हुआ है | तो अगर आप दिल्ली या आस पास के शहरों में रहते हैं तो याद रखें कि जिम कॉर्बिट पार्क देखने के लिए आपको एक महीने पहले ही अपनी यात्रा की योजना बना लेनी होगी | ज़्यादा ज़रूरी ये है कि आप वेबसाइट को अच्छी तरह पढ़ लें |
दूसरा झटका
पहली निराशा के बाद हमें पता चला कि ढिकला, बिजरानी, झिरना, ढिकाला, ढेला और दुर्गादेवी जैसे चार मुख्य क्षेत्र जहाँ पहले से बुकिंग करवानी पड़ती है, इन क्षेत्रों के अलावा सीताबनी क्षेत्र की टिकट हाथों हाथ भी बुक की जा सकती है | ये खबर सुनकर हमने चैन की साँस ली और सुबह सुबह 5 बजे ही गर्म कपड़े पहन कर एक रोमांचक दिन की शुरुआत करने के लिए तैयार हो गये | पार्क के प्रवेश द्वार पर पहुँच कर पता चला कि अंदर जाने वाली गाड़ियों की कतार में पहले ही 10 जीपें खड़ी हैं | जाहिर था कि सीताबनी भी पार्क के अन्य क्षेत्रों की जैसा ही लोकप्रिय है | हमारी जीप का ₹10000 शुल्क लिया गया जो वेबसाइट पर दिए गये शुल्क से ₹400 ज़्यादा था | अन्य सैलानियों की बात करें तो हरेक से अलग अलग शुक लिया गया था | किसी से ₹3500 तो किसी से ₹6000 तक लिए गये थे |
तीसरा झटका
हमारे ड्राइवर ने पहले बताया था कि सीताबनी में पार्क के अन्य क्षेत्रों जैसी ही जैव विविधता देखने को मिलेगी | मगर पार्क में प्रवेश करते ही उसने बात बदल दी और कहा कि पार्क में हिरण, हाथी या बाघ तब ही दिखाई दे सकता है जब वो सड़क पार कर रहे हों | बाद में हमें पता चला कि पार्क के इस हिस्से में एक भी हाथी नहीं है और बाघ भी केवल 5 ही हैं |
सीताबनी की सफ़ारी बहुत बड़ी धोखाधड़ी है:
इन सबके बाद भी मैं जीप में सवार होकर सीताबनी के जंगलों की सैर करने के विचार से उत्साहित था | मगर घूमने के दौरान एक बार भी ड्राइवर ने हमारी जीप को जंगल में नहीं उतारा | पूरे समय हम पार्क के बीच बनी पक्की सड़क पर ही चलते रहे | सड़क के दोनों ओर घने जंगल ज़रूर थे मगर उनमें उतरने के लिए कोई कच्चा रास्ता नहीं था, सड़क से उतार कर गाड़ी जंगल में नहीं ले जा सकते थे और जंगल के भीतर गहराई में जाने का कोई तरीका नहीं था | अजीब बात तो यह थी कि सुबह का समय होने के बाद भी हमें पक्षियों की आवाज़ें सुनाई नहीं दे रही थी | आस पास के घने जंगलों और तीन जंगली मुर्गों के अलावा हमें कुछ नहीं दिखा | ना तो हमें कोई वन्यजीव दिखाई दिए और ना ही जंगल के भीतर घूमने का रोमांच हासिल हुआ | ये ज़ोर का झटका हमें ज़ोर से ही लगा था | क्षेत्र के निकास द्वार पर बड़ी बड़ी चाय पानी और नाश्ते की दुकानें थीं जहाँ कम से कम 30 लोग खड़े शोरगुल कर रहे थे | ऐसा गैर ज़िम्मेदाराना और असंवेदनशील व्यवहार देख कर दिल को गहरा धक्का लगा और बहुत निराशा हुई | इस तरह की शोरगुल वाली जगह देख कर लगा कि कोई जंगली जानवर निकास द्वार के 2 कि.मी. क्षेत्र के आस पास भी नहीं फटकेगा |
इस बुरे अनुभव से मैंंने क्या सीखा :
पार्क में बहुत बार चूना लगवाने के बाद मुझे एक चीज़ तो समझ आई कि अच्छी तरह जाँच पड़ताल करने बिना हमने इस पार्क में नहीं आना चाहिए था | अगर आप भविष्य में कॉर्बिट पार्क जाने का मन बनाएँ तो यहाँ की वेबसाइट को अच्छे से पढ़ लें और फिर उसी हिसाब से योजना बनाएँ | इससे पहले कि यहाँ के ड्राइवर और अन्य स्थानीय लोग आपको झूठ बोलकर बेवकूफ़ बनाएँ, आप पहले से ही जानकारी जुटा लें | नवंबर से फ़रवरी के महीनों में सीताबनी जाना कोई समझदारी वाली बात नहीं हैं क्योंकि साल के इन महीनों में जंगल इतना घना होता है कि आप अंदर तक देख भी नहीं पाएँगे | आप अपनी जीप की आवाज़ से यहाँ के जंगलों में रहने वाले गिने चुने जानवरों को भी डरा देंगे | अप्रेल- मई के महीनों में जाना फिर भी ठीक है क्योंकि इस समय जंगल ज़्यादा घना नहीं होता |
अब जबकि मैंने आपको सावधान कर ही दिया है तो आशा करता हूँ कि कम से कम आपका अनुभव तो अच्छा रहेगा |
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