घूमने के लिए नहीं चाहिए ज़्यादा पैसा, ₹500 प्रति दिन के खर्च में किया देशभर में सफर! 

Tripoto

शुक्रवार की रात। आईएसबीटी कश्मीरी रोड। मेरे वॉलेट में मात्र ₹1000।

बस टिकट, 313 आधी रात को टॉयलेट स्टॉप पर मैगी मसाला, 10।

घुमावदार सड़कों से होते हुए हिमालय की छत्रछाया में पहुँचने के लिए इतना ही तो लगता है!

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श्रेयः अखिल वर्मा

आप भारत में केवल ₹1000 में आखिर कितनी दूर जा सकते हैं?

जैसे कोई अगर सस्ते में यात्रा करना पसंद करता है तो हो सकता है कि मेरी यात्रा उनसे थोड़ी अलग हो। व्यावहारिक रूप से बजट यात्रा वाले इस देश में आपकी सस्ती यात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितने अनुभवी हैं!

इतना सस्ता सफर क्यों?

कई बार सौदेबाजी करना उतना मजेदार भी नहीं होता है, लेकिन अनुभव से ये बेहतरीन ढंग से किया जा सकता है।

जैसे हो सकता है, मोलभाव कर सस्ते गेस्टहाउस में ठहरने पर टूटी खिड़कियों के साथ-साथ टपकती छत आपके सफर का जायका ही खराब कर दे।

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श्रेयः अखिल वर्मा

या फिर खराब इंग्लिश लिखा कोई ढाबा मिला लेकिन खाना जबरदस्त!

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कई बार ऐसी जगहें भी मिलती है जहाँ आपने कितना भुगतान किया है, ये मायने नहीं रखता। कुछ बेहतरीन छोटे कैफे में, जहाँ बड़े-बड़े बोर्ड नहीं लगे होते वहाँ आपको बेहतरीन खाना मिल सकता है। यात्रा के दौरान आपको ये सब अनुभव तो होता ही है।

देश के ज्यादातर पर्यटन क्षेत्र बजट यात्रियों को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं। लिहाजा जाने, रहने से लेकर खाने-पीने में कोई अधिक खर्च नहीं आता है। कई बार तो लगता है कि बजट यात्रा करना अधिक अनुभव देता है। आप भी कहीं सस्ती यात्रा पर निकल पड़ें!

तो, 500 प्रति दिन की यात्रा कैसी होती है?

सुबह-सुबह बस ने मुझे पठानकोट में उतार दिया। धर्मशाला के लिए अगली बस एक घंटे बाद खुलेगी। फिर क्या था, मैंने एक शेयर्ड टैक्सी पकड़ ली जो कि पालमपुर की ओर जा रही थी। ड्राइवर के बगल में खाली खिड़की वाली सीट देखकर आखिर लालच आ ही गया।

"क्या आप वास्तव में अकेले यात्रा कर रहे हैं?" मैं सवाल का जवाब देने के लिए घूम गया। पालमपुर जाते समय टैक्सी में तीन अन्य महिलाएँ थीं। हमने हिमाचल और कांगड़ा घाटी के बारे में तब तक बातचीत की, जब तक कि गग्गल के पास उतरने की जगह नहीं आ गई। लोग मुझे पालमपुर जाने के लिए कहते रहे लेकिन मैं उतर गया। किराया के रूप में मुझे ₹40 देने पड़े।

सुबह 9 बजे के आस-पास मैं मैक्लोडगंज पहुँच गया था। यहाँ पहुँचने के लिए दो बसों की लागत ₹95 थी। मैं ₹50 लेकर अपने पसंदीदा कैफे तक गया और टोफू थुकपा लिया जिसके लिए मैं हफ्तों से तरस रहा था।

मैं धरमकोट (2 कि.मी.) तक चला और जब तक मुझे अपने बजट के भीतर एक गेस्टहाउस मिला, सूरज चढ़ चुका था। ₹150 में एक कमरा मिला जिसमें कॉमन शौचालय और बाथरूम था। मैंने फटाफट स्नान किया और वो करने निकला, जिसके लिए यहाँ आया था, दूर तक फैले पहाड़ों में लंबी सैर।

दोपहर का भोजन सिंपल ही था। धरमकोट में कहीं किसी कॉर्नर के कैफ़े से दो पराठे (₹40) जो मैंने निकलने से पहले अपने बैग में पैक कर लिए थे। मैं वहाँ जाकर रुका जहाँ एक पिकनिक स्टॉप के लिए बेहद संकरा रास्ता था। दोपहर के 3 बज चुके थे और मैं अब लौट रहा था। वो संकरा रास्ता एक सुंदर सीक्रेट झरने की ओर जाता है।

सूर्यास्ट का वक्त धरमकोट के एक कैफे में बिताया, जहाँ मैंने ₹10 में अदरक वाली चाय ली। शाम 7 बजे डिनर, स्टीम राइस के साथ वेजसूप जिसकी कीमत पड़ी ₹60। रात के खाने के बाद अचानक कैफे में लाइव जैम-सेशन आयोजित किया गया वो भी बिल्कुल फ्री।

पैराडाइज़ माउंटेन विलेज में दिन बिताया, जिसमें भोजन और आवास सहित 445 लगे।

कम बजट पर यात्रा करना जीवन में छोटी-छोटी चीजों में खुशियाँ ढूँढने की सीख देता है। सुंदर सैर, शानदार बातचीत और दुनिया को देखना, इन्हीं अनुभवों के लिए तो मेरे जैसे कई मुसाफिर दुनिया सैर पर निकलते हैं।

तो फिर, ₹500 में दिन गुजारना कैसा होता है? कुछ ऐसा होता है!

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श्रेयः अखिल वर्मा

कम बजट में यात्रा करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ बातें:

ट्रेन और बसें

स्लीपर और सेकेंड सीटर्स तथा सरकार द्वारा संचालित बसें (नॉन एसी, हार्ड सीट) में शायद ही आपको ₹500 से ज्यादा लगे। कोई एयर-कंडीशनिंग नहीं, और सीटें अक्सर असुविधाजनक हो सकती हैं, लेकिन जानने को मिलेगा कि देश के अधिकांश लोग कैसे ट्रैवेल करते हैं।

जहाँ ट्रेनें उपलब्ध नहीं हैं या बस रुक-रुक कर चलती हैं, वहाँ अक्सर आने-जाने के वैकल्पिक साधनों की व्यवस्था होती है। शेयर्ड टैक्सी और वैन देश भर में चलते हैं, जो हज़ारों शहरों और गाँवों को यातायात से जोड़ती हैं। जब तक एकदम ज़रूरी ना हो, प्राइवेट टैक्सी बुक ना करें।

ओवरनाइटर्स

आपके पास दो बड़े टिकट आइटम, रहने की व्यवस्था और यातायात होते हैं। यह सुनिश्चित करते हुए आगे की योजना बनाएँ कि आपको एक ही दिन दोनों चीजों के लिए भुगतान ना करना पड़े।

उदाहरण के लिए, शहर से बाहर वीकेंड की यात्रा पर, शुक्रवार रात को एक रात की बस लें। शनिवार को अपने कमरे में और रविवार को चेक-आउट करें। अपने सामान को रिसेप्शन पर छोड़ दें और दिन में हमेशा की तरह तब तक घूमें जब तक आपकी रात भर की बस वापस शहर में न आ जाए। इस तरह आप यात्रा के दौरान केवल एक रात के लिए आवास पर खर्च कर दो दिन टूर करेंगे।

भुक्खड़ ना बनें

सस्ते भोजन की फिराक में रहें - आमतौर पर पारंपरिक भोजनालयों या स्ट्रीट फूड से खाना लें। पैराग्लाइडिंग टूर के बजाय हाइकिंग पर जाएँ। ₹150 की कॉफी की जगह ₹5 की चाय लें। इसी सोच के साथ खर्चों को अंजाम दें।

आराम-आराम से घूमें

बसों, ट्रेनों और अन्य परिवहन की लागत आपके खर्चों को बढ़ा सकते हैं। यदि आप धीमी गति से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो आप बहुत कम पैसे में अधिक घूम सकते हैं।

अधिक दिनों तक ठहरना; अपनी सूची से स्थानों को ठीक से देख लें। यदि आप एक अच्छा गेस्टहाउस पाते हैं, तो आप अक्सर कम कीमत के लिए बातचीत कर सकते हैं यदि आप लंबे समय तक रह रहे हैं।

यदि आप लंबे समय तक बैकपैक करने की योजना बना रहे हैं, तो एक ही स्थान पर कम से कम पाँच दिन का बजट रखें। आपको आस-पास के सस्ते, ऑफबीट जगहों को ठीक से देखने का मौका मिल जाएगा। आपका खर्चा लंबे समय तक चलेगा और अधिक अनुभव भी ले सकेंगे।

समझदारी से खाना खाएँ

एक वक्त के खाने पर ₹50 से अधिक खर्च न करने का प्रयास करें। यह सुनिश्चित करने की कोशिश करें कि भोजन आसानी से पचने वाला और पौष्टिक है। कई यात्री अपने खाना-पीने के सामान या फिर खाना बनाने के इंतजाम साथ में रखते हैं।

जहाँ सस्ते विकल्प मौजूद हैं

थोड़ा रिसर्च यह सुनिश्चित करेगा कि आप शहर के पॉश कोने से दूर न जाएँ, जहाँ होटल आपके बजट की पहुँच से दूर हैं। यदि आप अपने आप को उस जगह पर पाते हैं जहाँ कीमतें अधिक हैं, तो किसी स्थानीय व्यक्ति से पूछें कि सस्ते गेस्टहाउस कहाँ₹ हैं।

ठहरने के लिए 30 से अधिक का खर्च ना करें। सबसे सस्ता सौदा करने के लिए चारों ओर पूछें। यदि आपको कोई दिक्कत ना हो तो मौसम, स्थिति, स्थान और क़ानून को देखते हुए टेंट (तंबू) लगाकर भी आराम फरमा सकते हैं।

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श्रेयः मैके सेवेज

मुसाफिर होते हुए भी हम स्थानीय लोगों की तरह रहने की कोशिश करते हैं, जबकि हम लोगों के व्यवहार को समझते हैं। हम वास्तविकता से बचने के लिए नहीं, बल्कि सच का सामना करने के लिए ऐसी यात्रा करते हैं। विशेषाधिकार और संघर्ष के बीच विभाजित दुनिया के हम हिस्से हैं। मोबाइल फोन और वाईफाई से प्रभावित शहरों से, हम जुड़ाव महसूस करने से बचते हैं। कई जगहों के साथ हमारा गहरा रिश्ता है, और सड़कों के साथ एक गहरा संबंध है जो हमें वहाँ तक ले जाता है।

और मेरा विश्वास कीजिए, यात्रा करना वास्तव में एक विलासिता का काम है। शायद सबसे ज्यादा विलासिता का, लेकिन इसमें कोई ज्यादा खर्च भी नहीं है।

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श्रेयः मैके सेवेज

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