"उम्र तो बस एक नंबर है।"
लोग कई बार इस लाइन को अपनी बातों में यूँ ही कह जाते हैं लेकिन वो ना इस तो इस बात का असली मतलब समझते हैं और ना ही उन्होंने कभी इसके अनुभव को जीया है। पर बलधावा कपल ना सिर्फ इसे अच्छी तरह से समझते है बल्कि उन्होंने इसे जिया भी है, अपनी हाल हीं में की हुई मुंबई से लंदन तक की रोड ट्रिप पर।
2011 में, जब बलधावा कपल लंदन से मुंबई फ्लाइट से वापिस आ रहे थे, तब उनकी नज़र प्लेन की खिड़की से बाहर के नज़ारो पर पड़ी और बस वहीं उनके अंदर के एडवेंचर्स व्यक्ति ने बद्री बलधावा को चुनौती दे डाली। बद्री बलधावा ने मई 2016 में इस ग्रैंड रोडट्रिप की योजना बनाना शुरू की और एक साल से भी कम समय में, उन्होंने अपनी 64 वर्षीय पत्नी और 10 वर्षीय पोती के साथ 72 दिन की यह लंबी यात्रा शुरू कर दी । मुंबई से लंदन तक की यह यात्रा उन्हें 19 देशों में 22,000 कि.मी. तक ले गई।
बद्री बलधावा पेशे से स्टील निर्यातक और चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और दिल से एक पक्के रोडट्रिपर और एडवेंचर्स व्यक्ति। सालों पहले उन्होंने माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप (2008) पर चढ़ाई कर ली थी, एक तीर्थ यात्रा के लिए उन्होंने मुंबई से बद्रीनाथ तक ड्राइव की, रोड से आइसलैंड तक एक रोडट्रिप की, और साथ ही साथ लगातार 46 घंटे की ड्राइव कर नॉर्थ केप तक पहुँचें और वो अंटार्कटिका के लिए एक चुनौती भरे क्रूज़ पर भी गए है ।
बद्री बलधावा के पासपोर्ट में 65 देशों के वीज़ा टिकट हैं, और पुष्पा बलधावा के पास 55 हैं। लेकिन ये सड़क यात्रा बहुत खास थी जिसने इस साहसी कपल पर छाप छोड़ दी और, जिससे वह हमेशा प्रेरित होते रहेंगे । द हिंदू ने बलधावा परिवार का इंटरव्यू लिया और उनके साथ चर्चा की कि कैसे उन्होने ना सिर्फ इतनी बड़ी रोडट्रिप की ना सिर्फ पूरी योजना बनायी बल्कि उसे सफलतापूर्वक पूरा भी किया ।
यात्रा शुरू होने से पहले ही बलधावा दंपति को यह तय करने में बहुत मुश्किल आई कि वे मुंबई से लंदन जाने के लिए कौन सा रास्ता चुनें। बहुत सी अटकलों और विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने इम्फाल जाने का फैसला किया और फिर वहाँ से म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, चीन और रूस के रास्ते लंदन चले गए।
थाईलैंड टूर पैकेज 3 दिन 2 रातें
“मुंबई से लंदन जाने के लिए कोई दूसरा वैकल्पिक मार्ग नहीं था: अगर मुझे पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होकर जाना पड़ता, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि मैं इस रोड-ट्रिप को ज़िंदा पूरा कर पाऊँगा । हम तिब्बत से भी उत्तर की ओर नहीं जा सकते थे, क्योंकि चीन इसकी अनुमति नहीं देता।”
बलधावा अपनी यात्रा में अकेले नहीं थे क्योंकि उन्हे इम्फाल में 12 अन्य वाहनों के ग्रुप ने जॉइन किया था; पूरे ग्रुप में कुल 27 लोग थे जिसमें एक बच्चा भी शामिल था। क्योंकि ग्रुप की भारत सरकार में जान-पहचान थी, इसलिए उन्हें ये फायदा हुआ कि वो जिस भी जगह ठहरें, उन्हें डिनर इंडियन इम्बैसी में करने को मिला। यहाँ तक की थाईलैंड के पर्यटन मंत्रालय ने तो उनके लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया था।
थाईलैंड से निकलने के बाद बलधावा व पूरे ग्रुप को चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को पार करने में 16 दिनों का समय लगा । उत्तर पश्चिम चीन के इलाके और जलवायु ने पूरे ग्रुप को एक बड़ी चुनौती दी थी क्योंकि चार घंटे के अंदर ही मौसम में भारी बदलाव आया; दुनहुआंग में 24 डिग्री सेल्सियस से गिरता हुआ तापमान, ज़ीनिंग में शून्य डिग्री सेल्सियस तक गिर गया । लेकिन एक चुनौती जिसके लिए वे तैयार होकर गए थे वो थी लोकल लोगों की नाराज़गी और बुरा व्यवहार लेकिन जहाँ भी वो गए उन्हें हैरानी ही हुई।
"हम तो इस अनुमान के साथ गए थे कि चीन और रूस के लोग काफी सख्त और कम मिलनसार हैं और बाहरी लोगों का ज्यादा स्वागत नहीं करते और ना ज्यादा घुलते मिलते हैं, लेकिन सच कहूँ तो हमारा हर जगह स्वागत किया गया।"
बद्री बलधावा एंड ग्रुप ने हर दिन लगभग 400 कि.मी. की दूरी तय की और उन्होंने पहले ही यह तय कर लिया था कि उनका ड्राइविंग का समय एक दिन में 12 घंटे से ज्यादा नहीं हो क्योंकि वह चाहते थे कि जिन देशो से वह ड्राइव करके निकल रहे है वह उन देशो को थोड़ा एक्सप्लोर कर पाएँ और वहाँ के कल्चर और माहौल को थोड़ा समझ पाएँ । द हिंदू के साथ इंटरव्यू में मिस्टर बलधावा ने बताया की उन्होंने एक ही दिन लंबी ड्राइव की थी वो भी वारसॉ से ब्रुसेल्स तक, 930 कि.मी. की ।
"उस दिन हमने वॉरसॉ (पोलैंड) में नाश्ता किया, कोलोन (जर्मनी) में दोपहर का खाना, और ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में रात का खाना खाया ।"
19 देशो की उनकी इस यात्रा से बलधावा को कई नयी चीज़ों, सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखने का मौका मिला, जिनकी भारत में कमी और ज़रूरत दोनों है । जैसे वो एक उदाहरण देते हैं कि कैसे चीन के पहाड़ों में उन्हे शानदार सड़कों के नेटवर्क ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि शानदार नेटवर्क ने उन्हे अपनी रोज़ाना की योजना को बनाए रखने और उन्हे पूरा करने मे काफी मदद की।
“पूर्वोत्तर भारत में पहाड़ियों के आसपास रोड तो बने हुए हैं लेकिन (चीन में) उच्च गति वाले राजमार्ग थे जो पहाड़ की चोटी से जुड़े थे, और पहाड़ों के माध्यम से लंबी सुरंगें भी थीं। "
इस दंपति ने दुनिया भर में कई रोड-ट्रिप्स की हैं पर मुंबई से लंदन तक की इस रोडट्रिप ने उन्हे हर जगह पर फ्लाइट की बजाय ड्राइव करके जाने के विचार को पहले से कहीं ज्यादा मज़बूत किया है ।
बद्री बलधावा का यह मानना है कि किसी भी जगह की रोडट्रिप से आप उस जगह को अच्छे से जान सकते हैं, आपको उस जगह की वास्तविकता और संस्कृतियों और अन्य चीज़ों को करीब से जानने का मौका मिलता है ।
“जब आप एक जगह पर फ्लाइट से जाते हैं तो सब कुछ आसानी से हो जाता है और हमें सारी चिज़ें बहुत ही आसानी से भी मिल जाती है इसीलिए आप शायद अच्छे से एक्सप्लोर नहीं कर पाते है । लेकिन जब आप ड्राइव करके कहीं जाते हैं, तो आप उस जगह के हर तरह के असली अनुभवो को जी पाते है, और साथ ही साथ उस जगह की असली वाइब्स और माहौल को भी महसूस कर पाते है”
बलधावा कपल का अगला प्लान अब दुनिया को अपनी ट्रैवल स्टोरीस बताना है खासकर उन यात्रियों के साथ, जो एक नए उत्साह के साथ नयी यात्राओं और जगहों की खोज कर रहे हैं, और वह लोग इस शानदार कपल की कहानियों से थोड़ी प्रेरणा ले सकते हैं। उनका मुख्य संदेश है, "उम्र बस एक संख्या है", और मुंबई से लंदन जैसी यात्रा के बाद वह इस बात को बोलने का और इसके साथ पूरा न्याय करने का जज्बा रखते हैं ।
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