Hey, fellow travellers i am _kahaniwala
A storyteller traveller who tries to tell the story in his own way.
तो शुरू करते हैं आज की कहानी।
मार्च 2019 में अपनी जॉब से फ्रस्ट्रेट हो कर मैंने कहीं घूमने जाने का प्लान किया। बैकग्राउंड स्टोरी बहुत बड़ी है तो वह सुना कर आप सबको बोर नहीं करूंगा।
घूमना फिरना शुरु से ही मेरे लिए जरूरी रहा है। जब भी मौका मिलता है घूमने का मैं उसे कभी जाने नहीं देता। और जब बात हो पहाड़ों में जाने की तो फिर ना जाने का सवाल ही नहीं होता। मैंने और मेरे ट्रैवलर पार्टनर तरुण आचार्य ने प्लान बनाया कहीं घूमने जाने का। अभी तक डेस्टिनेशन पता नहीं थी, बस इतने फ्रस्ट्रेट हो चुके थे कि घर से निकलना था, और कहीं ना कहीं तो जाना था। किसी से सुना था कि बंजार वैली नाम की कोई जगह है, और एक नाम सुना था elivingproject वालों का। गाड़ी स्टार्ट करी और जीपीएस में डाला Mudhouse, Jibhi और बस निकल पड़े। सुबह के निकले हुए शाम को 7:00 बजे के करीब पहुंचे थे वहां। Mudhouse वालों से बात हो गई थी, एक हॉस्टल था वो, और 2 लोगों के रुकने का इंतजाम भी हो चुका था। वहां हमें कुछ पांच ट्रैवलर और मिल गए, जो हमारी तरह शायद सिर्फ पहाड़ों का मजा लेने आए थे। रात भर आग के पास बैठकर, दो दो जाम के साथ अगले दिन का स्केड्यूल प्लान किया गया। सोचा गया क्या किया जा सकता है और क्या करना चाहिए। मार्च का समय था बर्फ 5 से 6 फुट थी ऊपर वाले पहाड़ों में और हमने जाना भी जालोरी पास था।
रात भर बातें करते करते टाइम कैसे गुजर गया कुछ पता ही नहीं चला। शायद यह वह मजा था जो अगर हम होटल लेते तो नहीं कर पाते। रात को करीब 3:00 बजे के आसपास खाना खाया और सोने चले गए, आपस में यह वादा करके कि सुबह 6:00 बजे उठेंगे😂😂।
6:00 बजे उठने के प्लान बनाने वाले लगभग 11:00 बजे के आसपास उठे थे। अजी हम सारे ही आलसी थे वहां। लगभग 12:00 तक सब नाश्ता करके तैयार हो गए। हम 5 लोग गाड़ी में बैठे और चल पड़े जालोरी पास की ओर, GPS होने का एक ही नुकसान था, कि हमने किसी से कोई सलाह नहीं ली। Jibhi से लगभग 5 से 6 किलोमीटर का रास्ता था जालोरी पास टॉप तक। ऊंचे ऊंचे देवदार के पेड़ दोनों तरफ वह भी बर्फ से ढके हुए, यही नजारा दिख रहा था गाड़ी से।
2 किलोमीटर अपनी मंजिल की तरफ जाते ही रास्ता जैसे खत्म ही हो गया। एकदम से 5 फुट बर्फ थी रास्ते पर और लग रहा था कि गाड़ी जहां खड़ी है वहां भी ज्यादा देर टिक नहीं सकती। उस दिन ब्लैक आइस के सीन का भी पता चला। लगभग 1 किलोमीटर पीछे जाकर गाड़ी को पार्क किया गया।
और सब ने मन बना लिया कि अब जालोरी पास जाकर ही वापस आएंगे। हम पांचों चल पड़े उस ट्रैक की ओर जो शायद कभी गाड़ी का रास्ता हुआ करता था। पांचो एक लाइन में एक के पीछे एक चलने लगे, 5 से 6 फ़ीट बर्फ के ऊपर चलते, दोनों तरफ बर्फ से ढके हुए जंगल देखते, जमे हुए पानी के झरने, और पक्षियों की सुरीली आवाज सुनते हम चल पड़े अपनी मंजिल की ओर। एक तो इतनी ठंड और ऊपर से चलने की हालत नहीं थी मेरी, पर बाकी सब के साथ होने की वजह से वो 4 किलोमीटर कुछ भी नहीं लगे।
लगभग 2 घंटे चलने के बाद हम पहुंचे अपनी मंजिल पर जालोरी पास। लेकिन तब तक वहां पर स्नोफॉल शुरु हो चुका था। पहुंचते ही सबसे पहले हम सब दौड़े एकलौती दुकान की ओर। 😁🤦♂️🏃🏃
भाई साहब घुसते ही चाचा ने अंगीठी 🔥हमारी तरफ खिसका दी। उस वक्त तो ऐसा लगा कि जैसे सूर्य देवता खुद मिल गए। 🌞
सभी ने चाय और मैगी का ऑर्डर दे डाला। और दुकान वाले चाचा ने भी मुश्किल से 15-20 मिनट लगाए होंगे, और मैगी के कटोरे लाकर रख दिया हमारे हाथ में।🍜🍝 सब वही खाने लगे मैंने सोचा इतनी ऊपर आकर भी अगर अंदर बैठकर मैगी खानी पड़े तो क्या फायदा। मैं उठा और आ गया बाहर एक पत्थर पर बैठने, थोड़ी सी बर्फ साफ की पत्थर से और बैठ गया अपनी मैगी का कटोरा लेकर। 😄 मेरी पूरी लाइफ की सबसे टेस्टी मैगी रही है वो, और मेरी मैगी स्टोरी भी।
लगभग आधा पौना घंटा वहां काटने के बाद हम चल पड़े वापस Mudhouse की ओर।
मार्च 2021 में दोबारा वही जाने का प्लान है, चाहे कुछ हो जाए फिर से वही बर्फ वही जंगल और वही पास देखना है।
शायद 2 सालों में कुछ तो फर्क आ गया होगा, ग्लोबल वार्मिंग का भी तो फर्क पड़ रहा है आखिर।
जब जाऊंगा तो आकर उस पर एक स्टोरी जरूर लिखूंगा, आप सब को सुनाने के लिए।
Follow on Instagram _kahaniwala