दुनिया चलती है उनसे, जिनमें सबको दबा के रखने का माद्दा होता है। इतिहास से तो हमें यही सीखने को मिलता है। किसी ज़माने में समूचे हिन्दुस्तान पर अशोक का परचम फहरा रहा था। साम, दाम,दण्ड ,भेद के दम पर हर जगह अपनी सत्ता स्थापित कर रखी थी उसने। और अब बारी थी कलिंग की। हारने का कोई सवाल नहीं था। लेकिन उस वक़्त वो घटा, जिसने पत्थरदिल अशोक को कोमल फूल सा बना दिया।
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अशोक जान गए कि युद्ध से कुछ हासिल नहीं होने वाला, और अन्ततः बुद्ध की शरण में चले गए। भगवान बुद्ध ने नींव डाली शान्ति की। जब पूरा विश्व ख़ून खराबे से सत्ता और भोग विलास के चक्र में डूबा हुआ था, उसे छोड़कर बुद्ध शान्ति के सबसे बड़े द्योतक हुए।
आज कहानी सुनाएँगे हम बुद्ध की और उस बोधगया की भी, जिसने बनाया सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध।
बोध गया को केवल उस स्थान से मत आँकिए, जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बल्कि यह बौद्ध धर्म की नींव का पत्थर भी है। चीनी, तिब्बती, बर्मा और वियतनामी सभ्यता के अंश भी मिलते हैं यहाँ। विभिन्न संस्कृतियाँ अगर किसी मिट्टी पर एक साथ फलती हैं तो उसे बोध गया कहते हैं।
बोध गया का इतिहास
सिद्धार्थ ने अपने जीवन के छः साल इस भूमि पर सत्य की खोज में बिताए हैं। लेकिन उनको विमुक्ति नहीं मिली, ज्ञान नहीं मिला। मोह, दोष और राग से विमुक्ति आपको एक नई दुनिया में ले जाती है, जिसे निर्वाण कहते हैं। सिद्धार्थ अब तक उससे दूर थे।
एक दिन उन्होंने अपने सभी गुरुओं से दूर जाकर स्वयं से ही सत्य की खोज शुरू कर दी। एक पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने समाधि बना ली और प्रण लिया कि तब तक नहीं उठेंगे जब तक सत्य नहीं पा लेते। और फिर हुआ एक चमत्कार, जब सिद्धार्थ को प्राप्त हुआ ब्रह्मज्ञान। रात के अँधियारे में सत्य का दीपक एक प्रकाशपुञ्ज बन फूट चुका था। इसी जादू के पिटारे को पा सिद्धार्थ भगवान बुद्ध हो चुके थे। वो पेड़ आज बोधि पेड़ के नाम से जाना जाता है।
बोध गया के पर्यटन स्थल
1. महाबोधि मंदिर
यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त एक ऐतिहासिक धरोहर। 5 एकड़ में फैला हुआ यह मंदिर बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है। यहाँ स्थित है भगवान बुद्ध का 55 मीटर ऊँचा मंदिर जिसके ठीक बगल में वही पेड़ स्थित है, जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
260 ईसापूर्व में जब अशोक यहाँ आया तो उसने भी एक मंदिर का निर्माण करवाया। लाखों की तादाद में श्रद्धालु हर दिन यहाँ आते हैं। एक उम्र, जब लोग शान्ति की आस करते हैं, महाबोधि मंदिर उन्ही शान्ति स्थलों में एक है।
2. बुद्ध प्रतिमा
बौद्ध धर्म में गुरु-शिष्य परम्परा का बहुत महत्त्व है। एक गुरु होता है जिसे लामा कहते हैं, वो अपनी मृत्यु से पूर्व अगले लामा का जन्म और जन्म स्थान बता कर जाता है। मृत्यु के पश्चात् उसकी खोज शुरू होती है और वही लामा अगली पीढ़ी को सत्य का ज्ञान बताकर जाता है।
14 दलाई लामा ने सन् 1989 में यहाँ भगवान बुद्ध की प्रतिमा बनाई गई थी। इस प्रतिमा में बुद्ध कमल के ऊपर ध्यान की मुद्रा में हैं। लाल ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर की बनी यह प्रतिमा बहुत विशालकाय है। इसकी छवि से ही इसकी भव्यता का अन्दाज़ा होता है।
3. मुचलिंदा झील
भगवान को भी कई कठिन बाधाओं से होकर गुज़रना पड़ता है। भगवान बुद्ध बोधि पेड़ के नीचे तपस्या कर रहे थे। पूरे एक हफ़्ते के लिए आसमान पर सूरज नहीं उगा और आसमान पर काली छाया बनी रही। पूरे पूरे दिन बारिश होती रहती थी। मुचलिंद ने ही ऐसे समय अपने छत्र में भगवान को रखकर उनकी सेवा की थी।
मुचलिंद के नाम पर ही इस झील का नाम मुचलिंदा झील पड़ा। आपने भगवान बुद्ध की कई तस्वीरों में भगवान बुद्ध के ऊपर छत्र देखा होगा। ये वही मुचलिंद का छत्र है। बाकायदा त्रिपिटक में भी इसका ज़िक्र किया गया है।
4. जामा मस्जिद
रमदान महीने के 27वें दिन होने वाली इबादत में जामा मस्जिद पूरे बिहार की सबसे बड़ी इबादतगाह होती है। इस मस्जिद को मुज़फ़्फ़रपुर के रजवाड़ों ने 200 साल पहले बनवाया था। ये जगह आज भी अपने राजशाही शबीना नामक उत्सव के लिए पूरे बिहार में प्रसिद्ध है।
5. तिब्बती मठ
भगवान बुद्ध को याद करने के लिए बोधगया में कई देशों के मठ हैं। उनमें तिब्बती मठ का भी अपना नाम है। संत्रयाना बौद्ध कला का यह मठ आपको हिमाचल के बने बौद्ध मंदिरों की याद दिलाता है, जहाँ भगवान बुद्ध विश्राम कर रहे हैं। करीब 200 क्विंटल के धर्मचक्र को घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं, ऐसी यहाँ की मान्यता है।
6. भूटान मठ
यह अन्य मठों से बिल्कुल अलग है। सादगी ही लज़्ज़त है यहाँ की। मिट्टी का काम बेहद ख़ूबसूरती से किया गया है यहाँ पर।
7. थाई मठ
यह मठ पूरे भारत में अकेला थाइ मठ है। इसकी पूरी छत सोने की टाइलों से बनी हुई है। भगवान बुद्ध की कांसे की बनी हुई मूर्ति कुछ विशिष्ट मूर्तियों में एक है जिसके साथ ही 25 मीटर की एक नई मूर्ति भी आकर्षण का केन्द्र बनती जा रही है।
8. जापानी मठ
जापानी मठ भी बुद्ध के काफ़ी विशिष्ट मठों से इतर कला वाला मठ है। केवल लकड़ियों से बना यह मठ बहुत प्राचीन लकड़ियों की कला वाला इकलौता मठ है। इस स्थान पर आपको ढेरों जापानी लोग अपने साहित्य को पढ़ते, पूजा करते मिल जाएँगे।
देशों के मठों की फेहरिस्त यहाँ थमती नहीं। मंगोलियन और चीनी मठ भी यहाँ बोधगया में मिल जाते हैं।
कब जाएँ
बोध गया घूमने का सबसे बढ़िया समय जनवरी का है। नवंबर से फ़रवरी के महीने में सबसे ज़्यादा तादाद रहती है लोगों की।
लेकिन सबसे ख़राब मौसम होता है बारिश का। मॉनसून में लोग कम ही यहाँ आते हैं।
कैसे पहुँचें
रेल मार्ग- बोध गया के सबसे नज़दीकी स्टेशन गया है जो कुल 13 किमी0 दूर है। यह स्टेशन दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और पटना जैसे बड़े स्टेशनों से ठीक से जुड़ा है। आसानी से ट्रेन मिल जाती है। दिल्ली से गया का स्लीपर किराया ₹400 तक है।
सड़क मार्ग- दिल्ली से गया के लिए बसें चलती रहती हैं। किराया ₹2,000 तक। इसके बजाय आप पटना तक बस से जा सकते हैं। लखनऊ से पटना का बस किराया ₹1,000 तक होगा।
हवाई मार्ग- दिल्ली से गया के लिए फ़्लाइट का किराया ₹4,500 तक होगा। वहीं दिल्ली से पटना के लिए फ़्लाइट ₹2,500 तक पड़ेगी। इसलिए पटना तक टिकट बुक करें। वहाँ से कैब कर लें।
कहानी जिस अन्दाज़ में मैंने सुनाई वो मेरा नज़रिया था, कमेंट बॉक्स में बताएँ कि मैंने कहाँ कहाँ कम जानकारी पहुँचाई।
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