2015 में अमरनाथ यात्रा के दौरान कुछ किलोमीटर का रास्ता ऐसा मिला ,जहाँ हम तीन लोगों के अलावा दूर दूर तक कोई नहीं था। एकाएक मेरे साथ चल रहा मेरा दोस्त चिल्लाया - ''अरे ,अरे ,जल्दी देखो ,भालू के बच्चे हैं देखो ''.. उसने जिस तरफ इशारा किया वहां एक मैदान की ओर हमने देखा। कुछ भूरे रंग के थोड़े बड़े से ,भालू जैसे 2 -3 जानवर दिखाई दिए।सहमते हुए ,थोड़ा सा करीब जाने लगे तो हमने पहचान लिया कि ये तो वो ही चूहे हैं जो अमरनाथ गुफा के एकदम बाहर हमे दिखे, जिन्हे कुछ लोग भगवान गणेश जी का गण मानकर हाथ भी जोड़ रहे थे। हालाँकि ,हमे नजदीक आता देख वे सब पास में ही स्थित जमीन के अंदर बने अपने बिल में छिप गए।
अगली बार इन्हे सीधा मैंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ,लिपुलेख दर्रे के पास ,फिर कैलाश पर्वत की परिक्रमा के दौरान तिब्बत में देखा। तब तक मैं ,इन्हे चूहे की प्रजाति का ही मानता था। किताब 'चलो चले कैलाश' लिखने के दौरान इनके बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा ,तब इनके बारे में पता लगा कि ये जीव चूहे नहीं ,बल्कि गिलहरी की प्रजाति से ताल्लुक रखते हैं। पिछले साल लद्दाख में पैंगोंग लेक की तरफ जाते हुए भी इन्हे देखकर एकाएक हमारी बाइक्स रुक गयी थी। तब इन्हे काफी नजदीक से हमने देखा था।आज अचानक सोचा क्यों ना थोड़ा इनके बारे में पढ़कर जान लिया जाए। हालाँकि इनके बारे में काफी कम बाते ही अभी तक ज्ञात हैं। गूगल पर भी इनपर कुछ रिसर्च पेपर्स ही मौजूद हैं ,जिन्हे मैंने पढ़ा तो सोचा कुछ इन पर लिख भी दूँ ताकि इनके बारे में कुछ बेसिक जानकारी सबको पता चल सके ।चलिए जानते हैं इस पहाड़ी दोस्त के बारे में -
भारत में इनकी पायी जाती हैं दो प्रजातियां :
दुनिया की बड़ी गिलहरियों की लिस्ट शामिल इन जीवों को Marmots कहा जाता हैं।हिंदी में इन्हे 'फिया' बोलते हैं। विश्व में इनकी करीब 15 प्रजातियां ज्ञात हैं जिनमे से 2 प्रजातियां तो भारत में पायी जाती है।एक हैं हिमालयन marmot एवं दूसरे ,गोल्डन marmot ,जिनमे से हिमालयन marmot अधिकता में मौजूद हैं।हालाँकि बिहैवियर में इनमे काफी समानता हैं परन्तु सबसे बड़ा फर्क इनमे यह हैं कि हिमालयन marmots जहाँ 10000 से 18000 फ़ीट की ऊंचाई पर मिलते हैं वही गोल्डन/long-tailed marmots करीब 4500 से 7000 फ़ीट तक की ऊंचाई पर ही मिल जाते हैं। भारत में ये कश्मीर ,लद्दाख ,उत्तराखंड ,हिमाचल में मिलते हैं एवं एशिया में यह जीव भारत ,तिब्बत ,पाकिस्तान ,भूटान में पाया जाता हैं।
ठंड में करीब 6 महीने से ज्यादा समय तक रहते हैं hibernation (शीतनिद्रा) में :
एशियाई marmots ,बर्फीले इलाके मे बड़े घास के मैदानों में जमीन के अंदर बिल/सुरंग खोदकर उसमे रहते हैं।सामान्यत: ये marmots पौधों के तने ,जड़े ,बेर आदि खाते हैं और मांसाहारी नहीं होते। लेकिन कुछ marmots (शायद नॉन एशियाई) छोटे-छोटे कीड़ो और पक्षियों के अंडे खा जाते हैं।ठंड से बचने के लिए इनके शरीर पर लम्बे गहरे बाल होते हैं।
सामान्यत : अप्रैल अंत से सितम्बर महीने में ही इन्हे देखा जा सकता हैं क्योकि अक्टूबर से ठंड पड़ते ही यह जीव ठंड से बचने के लिए अपने बिल में घुस जाते हैं और करीब अप्रैल तक hibernation में चले जाते हैं। Hibernation/शीतनिद्रा का मतलब ,ये एक तरह से सुस्त अवस्था में रहते हैं ,हालाँकि इसे पूर्ण रूप से निद्रा अवस्था नहीं कहा जा सकता ,लेकिन इस अवस्था में इनकी शारीरिक क्रिया क्षीण हो जाती हैं इसीलिए ये लम्बे समय तक अपने बिल में निष्क्रिय पड़े रहते हैं।यह hibernation पीरियड क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होता हैं। माना जाता हैं कि hibernation के दौरान nutrition के लिए ये अपने body fat पर डिपेंड रहते हैं।गर्मियां आते ही ये सब वापस अपने बिल से निकल जाते हैं।
इस प्रकार हैं इनके बारे में कुछ और तथ्य :
गर्मियों के दौरान जब ये जमीन से बाहर होते हैं तो सामान्यत: ये खाना ढूंढते हैं और एक तरह की बॉक्सिंग टाइप का playfight करके वक्त गुजारते हैं। ये कॉलोनी सिस्टम से रहते हैं ताकि भेड़ियों ,लेपर्ड से बचे रह सके। इनके बिल करीब 30 फ़ीट तक गहरे होते हैं और एक बिल में कई marmot एक साथ रहते हैं। एक ही कॉलोनी के marmots के बिल अंदर से interconnected भी होते हैं। जब इनपर कोई हमला करता हैं तो ये भाग कर इन्ही मांद/बिल में घुस जाते हैं।
ये दो तरह का साउंड निकालते हैं जिनमे से एक अपने साथियों को ढूंढने के लिए एवं दूसरा कोई खतरा भांप कर साथियों को सचेत करने के लिए निकालते हैं। जब ये बाहर होते हैं और इन्हे खतरा महसूस होता हैं तो यह पिछले दो पैरों पर खड़े होकर आवाज़ निकालते हैं। इनके साउंड के कई वीडियो यूट्यूब पर मौजूद हैं। उसमे कुछ फेक वीडियो में इनके साउंड पर इंसान के चिल्लाने की आवाज़ लगायी हुई हैं। hibernation के कुछ महीनो पहले से ही ये उसकी तैयारी में जुट जाते हैं और घास ,पौधे ,पर्यटकों के द्वारा फेके गए कपड़ों को बिल में ले जाते रहते हैं ताकि उन्हें hibernation पीरियड में काम में ले सके।
पहाड़ी यात्रा के दौरान कई बार यात्रियों की भेंट इनसे होती हैं। इन्हे कई लोग खाने को भी देते हैं और ये थोड़े थोड़े डरते डरते ,पास आकर उन चीजों को यात्रियों के हाथ से भी ले जाते हैं।यूट्यूब पर इनकी playfight के विडिओज भी उपलब्ध हैं। इनपर रिसर्च लगातार जारी रहती हैं, कई देशों में इन्हे संरक्षित कर कैमरों से इनपर निगाह रख इनके बिहेवियर पर स्टडी की जाती हैं।
नोट :इस आर्टिकल का लेखक एक इंजीनियर हैं ,जीव विशेषज्ञ नहीं। तो कोई ना तो डीप सवाल करे और ना ही इन बातों को 100% सही ले लेवे। ये फैक्ट्स केवल एशियाई marmot पर उपलब्ध पेपर्स एवं डाटा को पढ़कर लिखे गए हैं। और हां , जो मेरी फोटो यहाँ लगी हैं उसका इस लेख से कोई लेना देना भी नहीं,बस यह बताना था कि जहाँ मैं खड़ा हूँ वो जगह पेंगोंग झील (थ्री इडियट फिल्म वाली झील )की सबसे खूबसूरत जगह हैं।
अब आप कंमेंट बॉक्स में यह बताईये कि किन किन घुम्मक्कड़ों ने इन प्यारे जीवों से मुलाक़ात की हैं।
-ऋषभ भरावा
(पुस्तक-चलो चले कैलाश )