शौक भी अजब-गजब होते हैं। किसी को खाने का शौक तो किसी को पहनने का। और ऐसे भी लोग जिन्हें अपनी रिहाईश यानी निवास स्थान आलीशान चाहिए। संगमनगरी के नामचीन पुरुषों की कोठियां इसी ठाठ-बाट के लिए विख्यात हैं। यहां एक से एक आलीशान आशियानों की फेहरिश्त है जिसे नाम दिया गया कोठी। वह भी एक दो नहीं, अहियापुर की तंग गली से लेकर संगम सीन तक कोठियों की कतार है, जो आपको आकर्षित जरूर कर लेंगी। राजस्थानी नक्काशी का अनूठा उदाहरण है इन कोठियों में तो भीतर ऐशो आराम के साधनों की जबरदस्त मिसाल।
1. बड़ी कोठी
दारागंज में धकाधक चौराहे से कुछ ही फासले पर है बड़ी कोठी जिसकी बाहरी भव्यता वहां से गुजरने वाले किसी भी नए राहगीर के लिए कौतूहल बन जाती है। करीब 400 साल पहले इसका निर्माण पेरुमल अग्रवाल ने कराया था। पूर्वजों से सुनी सुनाई बातों पर दारागंज वासी कहते हैं कि पेरुमल तब बड़े जमींदार थे और उनके यहां आसपास के खेतों, अन्य जमीन से लगान आता था। इस कोठी में लगती थी अदालत जहां अपराधियों को बंद करने के लिए जेल भी बनवाई गई थी और तहखाने भी। वर्तमान में यह कोठी रंजन सिंह के स्वामित्व में है जिन्होंने 2017 में इसे पेरुमल की वर्तमान पीढ़ी के दुर्गेश अग्रवाल से खरीदा है। दुर्गेश अग्रवाल की पहचान भी जान लीजिए, यह हैं पूर्व मशहूर राज्य सभा सदस्य राय अमरनाथ अग्रवाल के बेटे। बाहर से जितनी खूबसूरत है यह कोठी भीतर भी उतनी ही आलीशान। सोचिए जिस तीन मंजिली कोठी की छत पर स्वीमिंग पूल बना हो और वहां से गंगा नदी के दर्शन होते हों तो भीतर कमरों में उसके नजारे कैसे होंगे। प्रयागराज आना चाहते हैं और गंगा के बिल्कुल किनारे रहने का मन है तो यह कोठी आपका इंतज़ार कर रही है। अंग्रेजों के वक्त की बनी मशहूर ‘बड़ी कोठी दारागंज़’ अब हेरीटेज होटल बन गया है। बड़ी कोठी को उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने हेरीटेज होटल घोषित किया है। ITC ने इसे अपने अंतर्गत शामिल किया है।
2. चौधरी नौनिहाल सिंह की कोठी
अहियापुर की तंग गली में गुरुद्वारा पक्की संगत के ठीक सामने स्थित है चौधरी नौनिहाल सिंह की भव्यतम कोठी। इसका इतिहास करीब ढाई सौ साल पुराना है। प्रदेश के पूर्व गृह और शिक्षामंत्री चौधरी नौनिहाल सिंह ने बनवाया था इसे। इस कोठी के आंगन में कदम रखते ही चौंधिया जाएंगी आंखें, हर ओर नक्काशी के नजारे देख कर। विशाल कमरे, सभाकक्ष, मुजरा कक्ष और तत्कालीन राजनेताओं को शाही अंदाज में ठहराने के लिए संगमरमरी कमरे भी पुराने रूप में मौजूद हैं यहां। जिन्हें संजो कर रखा है पूर्व मेयर और वर्तमान में केपी ट्रस्ट के अध्यक्ष चौधरी जितेंद्र नाथ सिंह ने। इस कोठी की नक्काशी भी राजस्थानी शैली में है और कहीं मरम्मत भी होती है तो उसके लिए कारीगर राजस्थान से ही बुलाए जाते हैं।
3. आनंद भवन
आनंद भवन नेहरू परिवार का पूर्व निवास है जिसे अब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के युग के विभिन्न कलाकृतियों और लेखों को दर्शाने वाले संग्रहालय में बदल गया है। बता दे इस दो मंजिला भवन को व्यक्तिगत रूप से मोतीलाल नेहरू द्वारा डिजाइन किया गया था। यह भवन चीन और यूरोप से आयातित लकड़ी के फर्नीचर और दुनिया भर से विभिन्न कलाकृतियों के साथ खूबसूरती से सुशोभित है। आनंद भवन का न केवल इसके निर्माण के कारण बल्कि, भारत के इतिहास में प्रमुख भूमिका के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मूल्य है। यहाँ कई प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दौरा किया गया था ताकि अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए योजना बनाई जा सके। आनंद भवन में म्यूजियम के साथ साथ जवाहर तारामंडल भी स्थित है जो अपने कार्यक्रमों के माध्यम से जनता के बीच वैज्ञानिक स्वभाव को विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
4. राजा मांडा की कोठी
राजा मांडा की कोठी डेढ़ दशक पहले तक लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु थी। राजा से मिलने के लिए लोगों की भीड़ लगा करती थी। घंटों तक इंतजार करना पड़ता था लेकिन इन दिनों वही कोठी वीरान सी पड़ी है, सन्नाटा पसरा रहता है। कभी इसी कोठी से देश और प्रदेश की सियासत बनती और बिगड़ती थी। लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के 27 नवंबर 2008 में निधन के बाद जैसे सबकुछ उन्हीं के साथ चला गया हो।
और भी हैं कोठियां जिनका है सुनहरा इतिहास
दारागंज में मझली कोठी, छोटी कोठी, अलोपीबाग में ढिंगवस कोठी, चौक रानीमंडी में बच्चा जी की कोठी, राजा बनारस की कोठी।
इन कोठियों को देखने पर आपको आत्मीय सुख के साथ साथ यहां के राजनीतिक इतिहास की भी जानकारी मिलती है। इन कोठियों को फिल्म बनाने वालों ने भी खूब पसंद किया है। यहां कई फिल्मों और नाटकों की शूटिंग पहले हो चुकी है।
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