महानगर! यानी भीड़-भाड़, भाग-दौड़, गर्मी-पसीना! लेकिन भारत में बैंगलोर(बंगलुरु) ही एक ऐसा महानगर है जहाँ मौसम सदा सुहावना बना रहता है। दक्कन के पठार पर समुद्रतल से 1000 मीटर पर होने के कारण यहाँ एक प्रकार का प्राकृतिक वातानुकूलन यानी नैचुरल एसी मौजूद है। मौसम के खुशमिजाजी के कारण ही अन्य महानगरों की तुलना में बैंगलोर काफी पसंद किया जाता रहा है। दक्षिण भारत यात्रा के अंतिम पड़ाव में ऊटी, केरल और कन्याकुमारी से नागरकोइल होते हुए एक शाम हमने बैंगलोर में गुज़ारी।
बैंगलोर पैलेस: दीवारों पर हरियाली
कन्याकुमारी के समीप के नागरकोइल से रातभर ट्रेन का सफर कर सुबह सुबह बैंगलोर सिटी स्टेशन पर दाखिल होते ही यहाँ के सुहावने मौसम ने सारी थकान मानो एक झटके में दूर कर दी। यहाँ रुकने का कार्यक्रम सिर्फ एक ही दिन का था, फलतः जल्दबाजी में शहर भ्रमण हेतु टूरिस्ट बस की सेवा लेना ही श्रेयस्कर तो जान पड़ा, किन्तु ट्रेवल एजेंटों की चालाकी का भी थोड़ा शिकार होना पड़ा। उनके द्वारा उपलब्ध कराये गए बस में सीटों की संख्या ही कम पड़ गयी, लेकिन इसपर उनलोगों ने पूर्णतः उदासीन रवैया अपनाया। साथ ही यह भी पता चला की वे लोग जिसे-जैसा मनमाना पैसा भी वसूलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। खैर उनका कार्यक्रम सिर्फ पाँच घंटे- दो बजे से शाम सात बजे तक का ही था, जिसमे बैंगलोर पैलेस शामिल नहीं था, और इत्तेफाक से हम सुबह ही वहाँ का दर्शन कर चुके थे।
यूँ तो अभी बैंगलोर सॉफ्टवेयर उद्योग का एक गढ़ बन चूका है, लेकिन ऐतिहासिक स्थलों की बात करते ही सबसे पहले नाम आएगा बैंगलोर पैलेस का। इसे मैसूर के राजा चमराजेन्द्र वाडियार दसवें ने 1862 में बनाया था। बाहरी दीवारों पर उगाई गयी हरियाली इसकी भव्यता की पुष्टि करती हैं। अंदर जाने पर आपको ऑडियो गाइड की भी सुविधा मिलेगी, लेकिन उसकी फीस थोड़ी महँगी पड़ेगी। ऊपर के चित्र में आप इसके हरे-भरे बगीचे देख सकते है।
यह देखना दिलचस्प था की अधिकांश भारतीयों के बीच भी कुछ अमेरिकी पर्यटकों का एक काफिला यहाँ मौज-मस्ती में व्यस्त था। यह अध्याय ख़त्म करने के बाद बाकि शहर के भ्रमण हेतु हमें टूरिस्ट बस के पास जाना था मैजेस्टिक नामक इलाके में, तो सबसे पहले लगभग बीस मुसाफिरों की फ़ौज एक छोटी सी बस में पहुँची टीपू सुल्तान के ग्रीष्मकालीन महल में। यह भारतीय-इस्लामिक स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। लकड़ियों से बने हुए खम्बे और बालकनी देखकर हैरानी हुई। यह कभी मैसूर के इस राजा का ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था।
आगे बढ़ते हुए हमें चलती बस से ही विधान सुधा या कर्नाटक विधानसभा के भव्य महल को देखकर संतोष करना पड़ा। यह भारतीय-द्रविड़ कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, किन्तु आनन-फानन में इसका फोटो लेने में असमर्थ रहा। बैंगलोर के बाकि स्थलों में सिर्फ कुछ पार्कों को देखकर ही संतुष्ट रहना पड़ा, जिनमे लाल बाग एक पार्क है जहाँ हजारों किस्म के सुन्दर फल-फूल और वनस्पतियाँ मौजूद हैं। इसे हैदर अली द्वारा सन 1760 ईस्वी में बनवाया गया था। इसी तरह शहर के बीचो-बीच स्थित कबन पार्क भी काफी लोकप्रिय स्थल है। ज्यादातर लोगों द्वारा पार्कों में रूचि नहीं लेने के कारण फटाफट हमारा कारवां अगले और अंतिम पड़ाव विश्वेश्वरैया तकनिकी संग्रहालय की ओर चल पड़ा। इस विशाल संग्रहालय का छान-बिन करने के लिए सिर्फ एक ही घंटा बचा था, फिर भी एक-दो मॉडल तो देख ही लिए। यह विशाल इंजन जो आप देख रहे हैं वो विश्वयुद्ध के जहाजों में कभी इस्तेमाल हुआ था।
यह जो नमूना आप देख रहे हैं, राइट ब्रदर्स द्वारा किए गए प्रथम इंसानी उड़ान की कहानी दर्शा रहा है।
इसी प्रकार के कुछ अन्य मॉडल देखने के बाद शाम हो चली और सफर को विराम देना पड़ा। अब अगली सुबह यशवंतपुर स्टेशन जाने के क्रम में रास्ते में ही कुछ यूँ इस्कॉन मंदिर से रु-ब-रु होना हुआ। इस्कॉन यानि ISKON -International Society for Krishna Consciousness .इस्कॉन मंदिर आधुनिक मंदिरों में से एक है और बैंगलोर का इस्कॉन दुनिया के सबसे बड़े इस्कॉन मंदिरों में से एक हैं। ये मंदिर हरे कृष्णा पहाड़ी पर ही बना हुआ है, जिस कारण काफी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। और अंततः बंगलोर का सफर अब यहीं खत्म होता है।
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